Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 762

Page 762

ਆਵਹਿ ਜਾਹਿ ਅਨੇਕ ਮਰਿ ਮਰਿ ਜਨਮਤੇ ॥ अनेकों ही जीव जगत् में आते-जाते रहते हैं और वे पुनःपुन जन्मते-मरते रहते हैं।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਸਭੁ ਵਾਦਿ ਜੋਨੀ ਭਰਮਤੇ ॥੫॥ परमात्मा को समझे बिना उनका सबकुछ व्यर्थ है और वे योनियों में ही भटकते रहते हैं। ५॥
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕਉ ਭਏ ਦਇਆਲ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਭਇਆ ॥ जिन पर वह दयालु हुआ है, उन्हें साधु की संगत प्राप्त हुई है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਜਨੀ ਜਪਿ ਲਇਆ ॥੬॥ हरि का अमृत-नाम उन्होंने जप लिया है॥ ६॥
ਖੋਜਹਿ ਕੋਟਿ ਅਸੰਖ ਬਹੁਤੁ ਅਨੰਤ ਕੇ ॥ करोड़ों एवं असंख्य लोग उसे बहुत खोजते रहते हैं।
ਜਿਸੁ ਬੁਝਾਏ ਆਪਿ ਨੇੜਾ ਤਿਸੁ ਹੇ ॥੭॥ लेकिन जिसे वह स्वयं ही सूझ प्रदान करता है, उसे वह अपने समीप ही बसता दिखाई देता है॥ ७॥
ਵਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਦਾਤਾਰ ਆਪਣਾ ਨਾਮੁ ਦੇਹੁ ॥ हे दाता ! मुझे अपना नाम दीजिए, चूंकि तू मुझे कदापि न भूले।
ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ਨਾਨਕ ਚਾਉ ਏਹੁ ॥੮॥੨॥੫॥੧੬॥ नानक की प्रार्थना है कि हे प्रभु ! मेरे मन में यही चाव है कि मैं दिन-रात तेरा गुणगान करता रहूँ ॥ ८॥ २॥ ५॥ १६॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੧ ਕੁਚਜੀ रागु सूही महला १ कुचजी
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮੰਞੁ ਕੁਚਜੀ ਅੰਮਾਵਣਿ ਡੋਸੜੇ ਹਉ ਕਿਉ ਸਹੁ ਰਾਵਣਿ ਜਾਉ ਜੀਉ ॥ हे मेरी सखी ! मैं शुभ गुणों से विहीन हूँ और मुझ में अनंत दोष हैं। फिर मैं अपने पति-प्रभु से कैसे रमण करने जाऊँ ?
ਇਕ ਦੂ ਇਕਿ ਚੜੰਦੀਆ ਕਉਣੁ ਜਾਣੈ ਮੇਰਾ ਨਾਉ ਜੀਉ ॥ उसके पास एक से बढ़कर एक गुणवान जीवात्माएँ हैं और वहाँ कौन मेरा नाम जानता है ?
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਸਖੀ ਸਹੁ ਰਾਵਿਆ ਸੇ ਅੰਬੀ ਛਾਵੜੀਏਹਿ ਜੀਉ ॥ मेरी जिन सखियों ने प्रभु से रमण किया है, वे तो आमों की छाया में बैठी हुई हैं।
ਸੇ ਗੁਣ ਮੰਞੁ ਨ ਆਵਨੀ ਹਉ ਕੈ ਜੀ ਦੋਸ ਧਰੇਉ ਜੀਉ ॥ उन जैसे शुभ गुण मुझ में नहीं हैं। फिर मैं किसे दोष दूँ?
ਕਿਆ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਵਿਥਰਾ ਹਉ ਕਿਆ ਕਿਆ ਘਿਨਾ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ਜੀਉ ॥ हे प्रभु जी ! मैं तेरे क्या गुण वर्णन करूं ? मैं तेरा कौन-कौन सा नाम लूं ?
ਇਕਤੁ ਟੋਲਿ ਨ ਅੰਬੜਾ ਹਉ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੈ ਤੇਰੈ ਜਾਉ ਜੀਉ ॥ तुझे मिलने के लिए मैं किसी एक गुण को भी भी ग्रहण नहीं कर सकती। मैं तुझ पर सदैव कुर्बान जाती हूँ।
ਸੁਇਨਾ ਰੁਪਾ ਰੰਗੁਲਾ ਮੋਤੀ ਤੈ ਮਾਣਿਕੁ ਜੀਉ ॥ हे सखी ! सोना, चांदी, सुन्दर मोती एवं माणिक्य ये सब वस्तुएँ
ਸੇ ਵਸਤੂ ਸਹਿ ਦਿਤੀਆ ਮੈ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਸਿਉ ਲਾਇਆ ਚਿਤੁ ਜੀਉ ॥ मेरे प्रभु ने मुझे दी है लेकिन मैंने अपना चित्त इनसे लगा लिया है।
ਮੰਦਰ ਮਿਟੀ ਸੰਦੜੇ ਪਥਰ ਕੀਤੇ ਰਾਸਿ ਜੀਉ ॥ हे सखी ! मैंने मिट्टी एवं पत्थर के बने हुए मंदिर को अपनी पूंजी बना लिया है
ਹਉ ਏਨੀ ਟੋਲੀ ਭੁਲੀਅਸੁ ਤਿਸੁ ਕੰਤ ਨ ਬੈਠੀ ਪਾਸਿ ਜੀਉ ॥ में इन सुंदर वस्तुओं में आकर्षित होकर भूली हुई हूँ और कभी भी अपने प्रभु के पास नहीं बैठी।
ਅੰਬਰਿ ਕੂੰਜਾ ਕੁਰਲੀਆ ਬਗ ਬਹਿਠੇ ਆਇ ਜੀਉ ॥ आसमान में कुरलाने वाली कूजें चली गई हैं और बगुले आ कर बैठ गए हैं अर्थात् बुढ़ापे में मेरे सिर के काले बाल चले गयें है सफ़ेद बाल आ गयें है।
ਸਾ ਧਨ ਚਲੀ ਸਾਹੁਰੈ ਕਿਆ ਮੁਹੁ ਦੇਸੀ ਅਗੈ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥ वह जीव-स्त्री अपने ससुराल परलोक को चली गई है लेकिन वह आगे जाकर अपना कौन-सा मुँह दिखाएगी ?
ਸੁਤੀ ਸੁਤੀ ਝਾਲੁ ਥੀਆ ਭੁਲੀ ਵਾਟੜੀਆਸੁ ਜੀਉ ॥ वह जीवन भर अज्ञानता की निद्रा में मग्न रही और सफेद दिन उदय हो गया है अर्थात् उसकी जीवन रूपी रात्रि व्यतीत हो गई है।
ਤੈ ਸਹ ਨਾਲਹੁ ਮੁਤੀਅਸੁ ਦੁਖਾ ਕੂੰ ਧਰੀਆਸੁ ਜੀਉ ॥ वह सन्मार्ग को भूल गई है। हे मेरे पति-प्रभु ! मैं तुझ से बिछुड़ गई हूँ और मैंने दुखों को धारण कर लिया है।
ਤੁਧੁ ਗੁਣ ਮੈ ਸਭਿ ਅਵਗਣਾ ਇਕ ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਜੀਉ ॥ नानक की एक प्रार्थना है कि हे प्रभु ! तुझ में बेअन्त गुण हैं लेकिन मुझ में तो अवगुण ही भरे हुए हैं।
ਸਭਿ ਰਾਤੀ ਸੋਹਾਗਣੀ ਮੈ ਡੋਹਾਗਣਿ ਕਾਈ ਰਾਤਿ ਜੀਉ ॥੧॥ सुहागिनें तो सब रातें तेरे साथ रमण करती रहती हैं और मुझ दुहागिन को भी कोई एक रात अपने साथ रमण के लिए प्रदान कर दो ॥ १॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੧ ਸੁਚਜੀ ॥ सूही महला १ सुचजी ॥
ਜਾ ਤੂ ਤਾ ਮੈ ਸਭੁ ਕੋ ਤੂ ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰੀ ਰਾਸਿ ਜੀਉ ॥ हे मेरे मालिक ! तू ही मेरी जीवन पूंजी है। जब तू मेरे साथ होता है तो प्रत्येक व्यक्ति मुझे आदर देता है।
ਤੁਧੁ ਅੰਤਰਿ ਹਉ ਸੁਖਿ ਵਸਾ ਤੂੰ ਅੰਤਰਿ ਸਾਬਾਸਿ ਜੀਉ ॥ जब तू मेरे हृदय में आ बसता है तो मैं सुखी रहती हूँ। जब तू मेरे अन्तर्मन में आ बसता है तो हर कोई मुझे शाबाशी देता है।
ਭਾਣੈ ਤਖਤਿ ਵਡਾਈਆ ਭਾਣੈ ਭੀਖ ਉਦਾਸਿ ਜੀਉ ॥ परमात्मा की रज़ा में कोई सिंहासन पर बैठकर यश प्राप्त करता है, और उसकी रज़ा में कोई भीख मांगता है और दुखी होता है।
ਭਾਣੈ ਥਲ ਸਿਰਿ ਸਰੁ ਵਹੈ ਕਮਲੁ ਫੁਲੈ ਆਕਾਸਿ ਜੀਉ ॥ उसकी मर्जी से ही मरुस्थल पर भी सरोवर बहने लगता है और उसकी रज़ा में आकाश में भी कमल खिल पड़ता है।
ਭਾਣੈ ਭਵਜਲੁ ਲੰਘੀਐ ਭਾਣੈ ਮੰਝਿ ਭਰੀਆਸਿ ਜੀਉ ॥ ईश्वरेच्छा से कोई भवसागर में से भी पार हो जाता है और यदि उसकी इच्छा हो तो कोई पापों से भर कर भवसागर में डूब जाता है।
ਭਾਣੈ ਸੋ ਸਹੁ ਰੰਗੁਲਾ ਸਿਫਤਿ ਰਤਾ ਗੁਣਤਾਸਿ ਜੀਉ ॥ हे भाई ! उसकी इच्छा में ही किसी ने अपना रंगीला पति-प्रभु पा लिया है और कोई स्तुति द्वारा गुणों के भण्डार प्रभु में रंग गया है।
ਭਾਣੈ ਸਹੁ ਭੀਹਾਵਲਾ ਹਉ ਆਵਣਿ ਜਾਣਿ ਮੁਈਆਸਿ ਜੀਉ ॥ हे मालिक प्रभु ! तेरी रज़ा में ही मुझे यह जगत् भयानक लगता है और मैं जन्म-मरण के चक्र में पड़कर मृत्यु को प्राप्त करती रहती हूँ।
ਤੂ ਸਹੁ ਅਗਮੁ ਅਤੋਲਵਾ ਹਉ ਕਹਿ ਕਹਿ ਢਹਿ ਪਈਆਸਿ ਜੀਉ ॥ हे मेरे मालिक ! तू अगम्य एवं अतुलनीय है। मैं प्रार्थना कर-करके तेरे द्वार पर गिर पड़ी हूँ।
ਕਿਆ ਮਾਗਉ ਕਿਆ ਕਹਿ ਸੁਣੀ ਮੈ ਦਰਸਨ ਭੂਖ ਪਿਆਸਿ ਜੀਉ ॥ मैं तुझ से और क्या मागूं ? मैं तुझे और क्या कहूँ कि तू मेरी प्रार्थना सुन ले ? चूंकि मुझे तो तेरे दर्शन की ही भूख एवं प्यास है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਸਹੁ ਪਾਇਆ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਜੀਉ ॥੨॥ परमात्मा ने नानक की सच्ची प्रार्थना स्वीकार कर ली है और उसने गुरु के शब्द द्वारा अपना मालिक-प्रभु पा लिया है॥ २॥


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