Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 761

Page 761

ਆਵਣੁ ਜਾਣਾ ਰਹਿ ਗਏ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਜੀਉ ॥ निरंकार प्रभु मेरे मन में आ कर बस गया है और अब मेरा जन्म-मरण मिट गया है।
ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ਊਚਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰੁ ਜੀਉ ॥ उस सर्वश्रेष्ठ, अगम्य एवं अपरंपार प्रभु का अंत नहीं पाया जा सकता।
ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਣਾ ਵਿਸਰੈ ਸੋ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਲਖ ਵਾਰ ਜੀਉ ॥੬॥ जिस इन्सान को अपना प्रभु ही भूल जाता है, वह लाखों बार जन्मता एवं मरता है॥ ६॥
ਸਾਚੁ ਨੇਹੁ ਤਿਨ ਪ੍ਰੀਤਮਾ ਜਿਨ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਆਪਿ ਜੀਉ ॥ जिनके मन में वह स्वयं आकर बस जाता है, उनका अपने प्रियतम प्रभु से सच्चा प्रेम बन जाता है।
ਗੁਣ ਸਾਝੀ ਤਿਨ ਸੰਗਿ ਬਸੇ ਆਠ ਪਹਰ ਪ੍ਰਭ ਜਾਪਿ ਜੀਉ ॥ जो व्यक्ति उनकी संगत में रहते हैं, वह उनके साथ गुणों की भागीदारी कर लेते हैं और आठ प्रहर प्रभु को ही जपते रहते हैं।
ਰੰਗਿ ਰਤੇ ਪਰਮੇਸਰੈ ਬਿਨਸੇ ਸਗਲ ਸੰਤਾਪ ਜੀਉ ॥੭॥ परमेश्वर के रंग में रंगकर उनके सारे दुख-संताप नाश हो जाते हैं।॥ ७॥
ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਤੂੰ ਕਰਣਹਾਰੁ ਤੂਹੈ ਏਕੁ ਅਨੇਕ ਜੀਉ ॥ हे ईश्वर ! तू जगत् का रचयिता है और सबकुछ करने में परिपूर्ण है। तू ही एक है और तेरे रूप अनेक हैं।
ਤੂ ਸਮਰਥੁ ਤੂ ਸਰਬ ਮੈ ਤੂਹੈ ਬੁਧਿ ਬਿਬੇਕ ਜੀਉ ॥ तू सर्वकला समर्थ है और तू सब में बसा हुआ है। तू ही जीवों को बुद्धि एवं ज्ञान देने वाला है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਜਪੀ ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੀ ਟੇਕ ਜੀਉ ॥੮॥੧॥੩॥ हे नानक ! प्रभु ही भक्तजनों का अवलम्ब है और वे सदा ही उसका नाम जपते रहते हैं।॥ ८॥ १॥ ३॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀਆ ਘਰੁ ੧੦ ਕਾਫੀ रागु सूही महला ५ असटपदीआ घरु १० काफी
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਜੇ ਭੁਲੀ ਜੇ ਚੁਕੀ ਸਾਈ ਭੀ ਤਹਿੰਜੀ ਕਾਢੀਆ ॥ हे प्रभु ! यदि मुझ से कोई भूल चूक भी हो गई है तो भी मैं तेरी ही कहलाती हूँ।
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਨੇਹੁ ਦੂਜਾਣੇ ਲਗਾ ਝੂਰਿ ਮਰਹੁ ਸੇ ਵਾਢੀਆ ॥੧॥ जिन जीव-स्त्रियों का प्रेम किसी दूसरे से लगा हुआ है तो वे परित्यक्ताएँ बड़ी दुखी होकर मरती हैं ॥ १॥
ਹਉ ਨਾ ਛੋਡਉ ਕੰਤ ਪਾਸਰਾ ॥ हे मेरी सखी ! मैं अपने पति-प्रभु का साथ कभी भी नहीं छोडूंगी।
ਸਦਾ ਰੰਗੀਲਾ ਲਾਲੁ ਪਿਆਰਾ ਏਹੁ ਮਹਿੰਜਾ ਆਸਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह मेरा प्यारा लाल सदैव ही रंगीला है और मुझे उसका ही सहारा है॥ ॥१॥ रहाउ॥
ਸਜਣੁ ਤੂਹੈ ਸੈਣੁ ਤੂ ਮੈ ਤੁਝ ਉਪਰਿ ਬਹੁ ਮਾਣੀਆ ॥ हे प्रभु जी ! एक तू ही मेरा सज्जन है और तू ही मेरा संबंधी है। मुझे तुझ पर बहुत गर्व है।
ਜਾ ਤੂ ਅੰਦਰਿ ਤਾ ਸੁਖੇ ਤੂੰ ਨਿਮਾਣੀ ਮਾਣੀਆ ॥੨॥ तू ही मुझ जैसी मानहीन का सम्मान है। जब तू मेरे हृदय-घर में आ बसता है तो मुझे बड़ा सुख प्राप्त होता है॥ २॥
ਜੇ ਤੂ ਤੁਠਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਨਾ ਦੂਜਾ ਵੇਖਾਲਿ ॥ हे कृपानिधान ! यदि तू मुझ पर प्रसन्न हो गया है तो तू मुझे कोई अन्य मत दिखा।
ਏਹਾ ਪਾਈ ਮੂ ਦਾਤੜੀ ਨਿਤ ਹਿਰਦੈ ਰਖਾ ਸਮਾਲਿ ॥੩॥ मैंने तुझ से यही देन प्राप्त की है और मैं तुझे नित्य ही संभाल कर रखती हूँ॥ ३॥
ਪਾਵ ਜੁਲਾਈ ਪੰਧ ਤਉ ਨੈਣੀ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਲਿ ॥ तू मेरे नयनों को अपने दर्शन दिखा, में अपने पैरों को तेरे मार्ग पर चलाऊँ।
ਸ੍ਰਵਣੀ ਸੁਣੀ ਕਹਾਣੀਆ ਜੇ ਗੁਰੁ ਥੀਵੈ ਕਿਰਪਾਲਿ ॥੪॥ यदि गुरु मुझ पर कृपालु हो जाए तो मैं उससे अपने कानों से तेरी कहानियाँ सुनूं ॥ ४॥
ਕਿਤੀ ਲਖ ਕਰੋੜਿ ਪਿਰੀਏ ਰੋਮ ਨ ਪੁਜਨਿ ਤੇਰਿਆ ॥ हे प्रिय ! दुनिया में लाखों-करोड़ों कितने ही बड़े-बड़े महापुरुष हैं लेकिन वे सारे ही तेरे एक रोम के बराबर भी नहीं पहुँचते।
ਤੂ ਸਾਹੀ ਹੂ ਸਾਹੁ ਹਉ ਕਹਿ ਨ ਸਕਾ ਗੁਣ ਤੇਰਿਆ ॥੫॥ तू बादशाहों का बादशाह है, मैं तेरे गुण व्यक्त नहीं कर सकती ॥ ५॥
ਸਹੀਆ ਤਊ ਅਸੰਖ ਮੰਞਹੁ ਹਭਿ ਵਧਾਣੀਆ ॥ हे प्रभु ! असंख्य सखियाँ तेरी दासियों हैं, वे सब मुझ से एक से बढ़कर एक बहुत सुन्दर हैं।
ਹਿਕ ਭੋਰੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ਦੇਹਿ ਦਰਸੁ ਰੰਗੁ ਮਾਣੀਆ ॥੬॥ अपनी कृपा-दृष्टि करके थोड़ा-सा मेरी तरफ देख और मुझे अपने दर्शन करवा दे ताकि मैं भी आनंद प्राप्त कर सकूं ॥६॥
ਜੈ ਡਿਠੇ ਮਨੁ ਧੀਰੀਐ ਕਿਲਵਿਖ ਵੰਞਨ੍ਹ੍ਹਿ ਦੂਰੇ ॥ जिस प्रभु को को देखने से मन को धीरज होता है और मेरे पाप दूर हो जाते हैं,"
ਸੋ ਕਿਉ ਵਿਸਰੈ ਮਾਉ ਮੈ ਜੋ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥੭॥ हे मेरी माँ ! वह मुझे क्यों भूलें, जो सारे जगत् में बसा हुआ है॥ ७ ॥
ਹੋਇ ਨਿਮਾਣੀ ਢਹਿ ਪਈ ਮਿਲਿਆ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥ जब में विनम्र होकर उसके द्वार पर नतमस्तक हो गई तो वह मुझे सहज स्वभाव ही मिल गया।
ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਸਹਾਇ ॥੮॥੧॥੪॥ हे नानक ! संतों की मदद से मैंने उसे पा लिया है जैसे पूर्व ही मेरे भाग्य में ऐसा लिखा हुआ था॥८॥१॥४॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥
ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਬੇਦ ਪੁਰਾਣ ਪੁਕਾਰਨਿ ਪੋਥੀਆ ॥ स्मृतियाँ, वेद, पुराण, इत्यादि सारे धार्मिक ग्रंथ पुकार पुकार कर कह रहे हैं कि
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸਭਿ ਕੂੜੁ ਗਾਲ੍ਹ੍ਹੀ ਹੋਛੀਆ ॥੧॥ नाम के बिना अन्य सबकुछ झूठ एवं थोथी बातें हैं।॥१॥
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਅਪਾਰੁ ਭਗਤਾ ਮਨਿ ਵਸੈ ॥ नाम रूपी अपार खजाना तो भक्तों के मन में बसता है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਮੋਹੁ ਦੁਖੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਨਸੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साधुओं की संगत करने से जन्म-मरण, मोह एवं दुख इत्यादि सब दूर हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਮੋਹਿ ਬਾਦਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਸਰਪਰ ਰੁੰਨਿਆ ॥ मोह, वाद-विवाद एवं अहंकार में फँसकर आदमी अवश्य ही दुखी होकर रोता है।
ਸੁਖੁ ਨ ਪਾਇਨ੍ਹ੍ਹਿ ਮੂਲਿ ਨਾਮ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ॥੨॥ परमात्मा के नाम से बिछुड़ा हुआ वह बिल्कुल भी सुख हासिल नहीं करता ॥ २ ॥
ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਧਾਰਿ ਬੰਧਨਿ ਬੰਧਿਆ ॥ मेरी-मेरी की भावना धारण करके जीव माया के बन्धनों में बंध जाता है और
ਨਰਕਿ ਸੁਰਗਿ ਅਵਤਾਰ ਮਾਇਆ ਧੰਧਿਆ ॥੩॥ माया के धंधों में फंसकर नरक-स्वर्ग में जन्म लेता रहता है। ॥३ ॥
ਸੋਧਤ ਸੋਧਤ ਸੋਧਿ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥ भलीभांति विचार-विचार कर मैंने यह परिणाम निकाला है कि
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸੁਖੁ ਨਾਹਿ ਸਰਪਰ ਹਾਰਿਆ ॥੪॥ परमात्मा के नाम बिना आदमी को सुख नहीं मिलता और वह अवश्य ही अपनी जीवन-बाजी हार जाता है॥ ४॥


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