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ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਗੁਣਵੰਤੀ ॥
सूही महला ५ गुणवंती ॥
ਜੋ ਦੀਸੈ ਗੁਰਸਿਖੜਾ ਤਿਸੁ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗਉ ਪਾਇ ਜੀਉ ॥
जो भी गुरु का शिष्य दिखाई देता है, मैं झुक-झुक कर उसके चरणों में पड़ता हूँ।
ਆਖਾ ਬਿਰਥਾ ਜੀਅ ਕੀ ਗੁਰੁ ਸਜਣੁ ਦੇਹਿ ਮਿਲਾਇ ਜੀਉ ॥
मैं उसे अपने मन की व्यथा बताता हूँ और उसे निवेदन करता हूँ कि वह मुझे मेरे सज्जन गुरु से मिला दे।
ਸੋਈ ਦਸਿ ਉਪਦੇਸੜਾ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਅਨਤ ਨ ਕਾਹੂ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥
मुझे वह उपदेश बताओ जिससे मेरा मन कहीं और मत भटके।
ਇਹੁ ਮਨੁ ਤੈ ਕੂੰ ਡੇਵਸਾ ਮੈ ਮਾਰਗੁ ਦੇਹੁ ਬਤਾਇ ਜੀਉ ॥
मैं अपना यह मन तुझे दे दूंगा, मुझे (प्रभु मिलन का) मार्ग बता दो।
ਹਉ ਆਇਆ ਦੂਰਹੁ ਚਲਿ ਕੈ ਮੈ ਤਕੀ ਤਉ ਸਰਣਾਇ ਜੀਉ ॥
मैं बहुत दूर से चलकर तेरे पास आया हूँ और मैंने तेरी ही शरण देखी है।
ਮੈ ਆਸਾ ਰਖੀ ਚਿਤਿ ਮਹਿ ਮੇਰਾ ਸਭੋ ਦੁਖੁ ਗਵਾਇ ਜੀਉ ॥
मैंने अपने चित्त में यह आशा रखी हुई है कि तू मेरा सारा दुख दूर कर देगा।
ਇਤੁ ਮਾਰਗਿ ਚਲੇ ਭਾਈਅੜੇ ਗੁਰੁ ਕਹੈ ਸੁ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ਜੀਉ ॥
हे भाई ! यदि तू इस मार्ग पर चले, जो गुरु कहे, वह कार्य करे,
ਤਿਆਗੇਂ ਮਨ ਕੀ ਮਤੜੀ ਵਿਸਾਰੇਂ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਜੀਉ ॥
अपने मन की मति त्याग दे और द्वैतभाव को भुला दे तो
ਇਉ ਪਾਵਹਿ ਹਰਿ ਦਰਸਾਵੜਾ ਨਹ ਲਗੈ ਤਤੀ ਵਾਉ ਜੀਉ ॥
इस तरह तू हरि का दर्शन पा लेगा और तुझे कोई दुख नहीं लगेगा।
ਹਉ ਆਪਹੁ ਬੋਲਿ ਨ ਜਾਣਦਾ ਮੈ ਕਹਿਆ ਸਭੁ ਹੁਕਮਾਉ ਜੀਉ ॥
मैं स्वयं तो कुछ भी बोलना नहीं जानता, मैंने तो सबकुछ परमात्मा के हुक्म से ही कहा है।
ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਖਜਾਨਾ ਬਖਸਿਆ ਗੁਰਿ ਨਾਨਕਿ ਕੀਆ ਪਸਾਉ ਜੀਉ ॥
गुरु नानक ने मुझ पर बड़ी कृपा की है और मुझे हरि की भक्ति का खजाना प्रदान कर दिया है।
ਮੈ ਬਹੁੜਿ ਨ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭੁਖੜੀ ਹਉ ਰਜਾ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਇ ਜੀਉ ॥
अब मैं बिल्कुल तृप्त हो गया हूँ और मुझे दोबारा माया की तृष्णा एवं भूख नहीं लगती।
ਜੋ ਗੁਰ ਦੀਸੈ ਸਿਖੜਾ ਤਿਸੁ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗਉ ਪਾਇ ਜੀਉ ॥੩॥
जो भी गुरु का शिष्य नजर आता है, मैं झुक-झुक कर उसके चरणों में पड़ता हूँ॥ ३॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧
रागु सूही छंत महला १ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਭਰਿ ਜੋਬਨਿ ਮੈ ਮਤ ਪੇਈਅੜੈ ਘਰਿ ਪਾਹੁਣੀ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
जीव-स्त्री अपनी भरपूर जवानी में इस तरह रहती है जैसे वह मदिरापान करके मदहोश हो गई है।
ਮੈਲੀ ਅਵਗਣਿ ਚਿਤਿ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਗੁਣ ਨ ਸਮਾਵਨੀ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
वह यह नहीं जानती कि वह अपने पीहर अर्थात् इहलोक में एक अतिथि है। वह अपने अवगुणों से अपने चित्त में मैली रहती है। गुरु के बिना उसके हृदय में गुण नहीं बसते।
ਗੁਣ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੀ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੀ ਜੋਬਨੁ ਬਾਦਿ ਗਵਾਇਆ ॥
उसने गुणों की कद्र नहीं जानी और वह भ्रम में ही भूली हुई है। उसने अपना यौवन व्यर्थ ही गंवा लिया है।
ਵਰੁ ਘਰੁ ਦਰੁ ਦਰਸਨੁ ਨਹੀ ਜਾਤਾ ਪਿਰ ਕਾ ਸਹਜੁ ਨ ਭਾਇਆ ॥
न ही उसने अपने वर (पति-प्रभु) को जाना, न ही उसका घर-द्वार देखा, और न ही उसका दर्शन किया है। उसे अपने प्रभु का सहज सुख नहीं भाया।
ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਛਿ ਨ ਮਾਰਗਿ ਚਾਲੀ ਸੂਤੀ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥
वह अपने सतगुरु से पूछकर प्रभु के मार्ग पर नहीं चली। वह तो अज्ञानता की निद्रा में ही सोई रही और उसकी जीवन-रूपी रात्रि बीत गई है।
ਨਾਨਕ ਬਾਲਤਣਿ ਰਾਡੇਪਾ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਧਨ ਕੁਮਲਾਣੀ ॥੧॥
हे नानक ! यूं समझ लो कि वह तो बाल्यावस्था में ही विधवा हो गई है और अपने पति-प्रभु के बिना वह मुरझा गई है। १॥
ਬਾਬਾ ਮੈ ਵਰੁ ਦੇਹਿ ਮੈ ਹਰਿ ਵਰੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸ ਕੀ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
हे बाबा ! मुझे मेरे पति-प्रभु से मिला दो। मुझे अपना वर हरि बहुत भाता है, मैं तो उस पर ही कुर्बान हैं।
ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਜੁਗ ਚਾਰਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਬਾਣੀ ਜਿਸ ਕੀ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
वह चारों युगों में ही जगत् में बसा हुआ है, जिसकी वाणी तीनों लोकों–आकाश, पाताल एवं धरती में पढ़ी, सुनी एवं गाई जाती है।
ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਕੰਤੁ ਰਵੈ ਸੋਹਾਗਣਿ ਅਵਗਣਵੰਤੀ ਦੂਰੇ ॥
तीनों लोकों का मालिक, परमात्मा सुहागिन जीव-स्त्रियों से रमण करता है। लेकिन वह अवगुणों वाली जीव-स्त्रियों से दूर रहता है।
ਜੈਸੀ ਆਸਾ ਤੈਸੀ ਮਨਸਾ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥
जैसी किसी जीव स्त्री की अभिलाषा होती है, सर्वव्यापक परमात्मा उसकी वही अभिलाषा पूरी कर देता है।
ਹਰਿ ਕੀ ਨਾਰਿ ਸੁ ਸਰਬ ਸੁਹਾਗਣਿ ਰਾਂਡ ਨ ਮੈਲੈ ਵੇਸੇ ॥
जो जीव-स्त्री हरि की पत्नी बन जाती है, वह सदा ही सुहागिन रहती है। वह न कभी विधवा होती है और न ही उसका वेष मैला होता है।
ਨਾਨਕ ਮੈ ਵਰੁ ਸਾਚਾ ਭਾਵੈ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਤੈਸੇ ॥੨॥
हे नानक ! मुझे सच्चा प्रभु बहुत भाता है, मेरा प्रियतम युग-युग में एक जैसा ही रहता है॥ २॥
ਬਾਬਾ ਲਗਨੁ ਗਣਾਇ ਹੰ ਭੀ ਵੰਞਾ ਸਾਹੁਰੈ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
हे बाबा ! मेरे विवाह का लग्न निकलवा लो, ताकि विवाह करवा कर मैं भी अपने ससुराल में जाऊँ।
ਸਾਹਾ ਹੁਕਮੁ ਰਜਾਇ ਸੋ ਨ ਟਲੈ ਜੋ ਪ੍ਰਭੁ ਕਰੈ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
प्रभु अपनी रजानुसार जो हुक्म करता है, वही विवाह का लग्न होता है। उसका हुक्म कभी टल नहीं सकता।
ਕਿਰਤੁ ਪਇਆ ਕਰਤੈ ਕਰਿ ਪਾਇਆ ਮੇਟਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਈ ॥
जो भाग्य में लिखा पड़ा है और जिसे करतार ने स्वयं लिख दिया है, उसे कोई टाल नहीं सकता।
ਜਾਞੀ ਨਾਉ ਨਰਹ ਨਿਹਕੇਵਲੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਤਿਹੁ ਲੋਈ ॥
जो प्रभु तीनों लोकों में बसा हुआ है और जो सबसे निष्पक्ष है, वह स्वयं अपना वर नाम रखवा कर मुझ से विवाह करवाने आया है।
ਮਾਇ ਨਿਰਾਸੀ ਰੋਇ ਵਿਛੁੰਨੀ ਬਾਲੀ ਬਾਲੈ ਹੇਤੇ ॥
परमात्मा रूपी दुल्हे से जीव-स्त्री दुल्हन के प्रेम को देखकर माँ रूपी माया निराश होकर रोती हुई दुल्हन से बिछुड़ गई है।
ਨਾਨਕ ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਸੁਖ ਮਹਲੀ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਪ੍ਰਭੁ ਚੇਤੇ ॥੩॥
हे नानक ! जीव-स्त्री गुरु के चरणों में लगकर प्रभु को याद करती रहती है और सच्चे शब्द द्वारा अपने प्रभु के महल में सुख भोगती रहती है॥ ३॥