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ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਰਹਣੁ ਨ ਪਾਵਹਿ ਸੁਰਿ ਨਰ ਦੇਵਾ ॥
रहणु न पावहि सुरि नर देवा ॥
सृष्टि में सदा के लिए तो देवगण, मानव एवं बड़े-बड़े देवता भी नहीं रह सके।
ਊਠਿ ਸਿਧਾਰੇ ਕਰਿ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸੇਵਾ ॥੧॥
ऊठि सिधारे करि मुनि जन सेवा ॥१॥
बड़े-बड़े मुनिजन भी परमात्मा की उपासना करके स्वर्ग सिधार गए॥ १ ॥
ਜੀਵਤ ਪੇਖੇ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥
जीवत पेखे जिन्ही हरि हरि धिआइआ ॥
जीवित तो वही देखे गए, जिन्होंने भगवान् का ध्यान किया है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधसंगि तिन्ही दरसनु पाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
साधुओं की संगति में उन्होंने ही भगवान् के दर्शन प्राप्त किए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਬਾਦਿਸਾਹ ਸਾਹ ਵਾਪਾਰੀ ਮਰਨਾ ॥
बादिसाह साह वापारी मरना ॥
बादशाह, साहूकार एवं व्यापारी ने भी मृत्यु को ही प्राप्त होना है।
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਕਾਲਹਿ ਖਰਨਾ ॥੨॥
जो दीसै सो कालहि खरना ॥२॥
जो दुनिया में दिखाई दे रहे हैं, उन्होंने भी एक न एक दिन काल का ग्रास बनना है॥ २॥
ਕੂੜੈ ਮੋਹਿ ਲਪਟਿ ਲਪਟਾਨਾ ॥
कूड़ै मोहि लपटि लपटाना ॥
जीव झूठे मोह में फंसकर लिपटा रहता है।
ਛੋਡਿ ਚਲਿਆ ਤਾ ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਨਾ ॥੩॥
छोडि चलिआ ता फिरि पछुताना ॥३॥
जब वह सबकुछ छोड़कर चल देता है तो फिर पछताता है॥ ३॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਕਰਹੁ ਦਾਤਿ ॥
क्रिपा निधान नानक कउ करहु दाति ॥
हे कृपानिधान ! दास नानक को यह देन प्रदान करो कि
ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਜਪੀ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥੪॥੮॥੧੪॥
नामु तेरा जपी दिनु राति ॥४॥८॥१४॥
वह दिन-रात आपका ही नाम जपता रहे ॥४॥८॥१४॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु:५ ॥
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਤੁਮਹਿ ਬਸਾਰੇ ॥
घट घट अंतरि तुमहि बसारे ॥
हे जगत् के मालिक ! प्रत्येक शरीर में आप ही रहते है और
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਸੂਤਿ ਤੁਮਾਰੇ ॥੧॥
सगल समग्री सूति तुमारे ॥१॥
सृष्टि रूपी सारी सामग्री आपके धागे में पिरोई हुई है॥ १ ॥
ਤੂੰ ਪ੍ਰੀਤਮ ਤੂੰ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੇ ॥
तूं प्रीतम तूं प्रान अधारे ॥
आप मेरे प्रियतम है और आप ही मेरे प्राणों का आधार है।
ਤੁਮ ਹੀ ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਮਨੁ ਬਿਗਸਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तुम ही पेखि पेखि मनु बिगसारे ॥१॥ रहाउ ॥
आपको देख-देखकर मेरा मन फूलों की तरह खिला रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਹਾਰੇ ॥
अनिक जोनि भ्रमि भ्रमि भ्रमि हारे ॥
अनेक योनियों में भटक-भटक कर हार चुका हूँ।
ਓਟ ਗਹੀ ਅਬ ਸਾਧ ਸੰਗਾਰੇ ॥੨॥
ओट गही अब साध संगारे ॥२॥
अब मैंने साधुओं की संगति में शरण ली है।॥ २॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਅਲਖ ਅਪਾਰੇ ॥
अगम अगोचरु अलख अपारे ॥
एक परमात्मा जो अगम्य, अगोचर, अलक्ष्य एवं अपरंपार है,
ਨਾਨਕੁ ਸਿਮਰੈ ਦਿਨੁ ਰੈਨਾਰੇ ॥੩॥੯॥੧੫॥
नानकु सिमरै दिनु रैनारे ॥३॥९॥१५॥
नानक दिन-रात उसका ही सिमरन करता रहता है॥ ३ ॥ ६ ॥ १५ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕਵਨ ਕਾਜ ਮਾਇਆ ਵਡਿਆਈ ॥
कवन काज माइआ वडिआई ॥
हे भाई, माया से मिला वैभव, धन और ताकत किस काम की?
ਜਾ ਕਉ ਬਿਨਸਤ ਬਾਰ ਨ ਕਾਈ ॥੧॥
जा कउ बिनसत बार न काई ॥१॥
जिसका नाश होते कोई देरी नहीं लगती ॥ १॥
ਇਹੁ ਸੁਪਨਾ ਸੋਵਤ ਨਹੀ ਜਾਨੈ ॥
इहु सुपना सोवत नही जानै ॥
यह संसार स्वप्न के समान है; जैसे अज्ञानता की निद्रा में सोया हुआ आदमी यह नहीं जानता कि वह एक स्वप्न देख रहा है।
ਅਚੇਤ ਬਿਵਸਥਾ ਮਹਿ ਲਪਟਾਨੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अचेत बिवसथा महि लपटानै ॥१॥ रहाउ ॥
अचेतावस्था में वह माया से ही लिपटा रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਮਹਾ ਮੋਹਿ ਮੋਹਿਓ ਗਾਵਾਰਾ ॥
महा मोहि मोहिओ गावारा ॥
माया के महा मोह ने अज्ञानी आदमी को मुग्ध कर लिया है।
ਪੇਖਤ ਪੇਖਤ ਊਠਿ ਸਿਧਾਰਾ ॥੨॥
पेखत पेखत ऊठि सिधारा ॥२॥
सबके देखते-देखते ही वह उठकर दुनिया से चला जाता है। २॥
ਊਚ ਤੇ ਊਚ ਤਾ ਕਾ ਦਰਬਾਰਾ ॥
ऊच ते ऊच ता का दरबारा ॥
उस परमात्मा का दरबार सर्वोपरि है।
ਕਈ ਜੰਤ ਬਿਨਾਹਿ ਉਪਾਰਾ ॥੩॥
कई जंत बिनाहि उपारा ॥३॥
उसने कई जीवों को नाश कर पैदा भी किया है॥ ३॥
ਦੂਸਰ ਹੋਆ ਨਾ ਕੋ ਹੋਈ ॥
दूसर होआ ना को होई ॥
उस जैसा सर्वशक्तिमान न कोई हुआ है और न ही कोई होगा।
ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਏਕੋ ਸੋਈ ॥੪॥੧੦॥੧੬॥
जपि नानक प्रभ एको सोई ॥४॥१०॥१६॥
हे नानक ! उस एक प्रभु का ही जाप करते रहो ॥ ४॥ १०॥ १६॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਤਾ ਕਉ ਹਉ ਜੀਵਾ ॥
सिमरि सिमरि ता कउ हउ जीवा ॥
मैं तो उसका सिमरन करके ही जीता हूँ।
ਚਰਣ ਕਮਲ ਤੇਰੇ ਧੋਇ ਧੋਇ ਪੀਵਾ ॥੧॥
चरण कमल तेरे धोइ धोइ पीवा ॥१॥
हे ईश्वर ! मैं आपके सुन्दर चरण-कमल धो-धोकर पीता हूँ॥ १॥
ਸੋ ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
सो हरि मेरा अंतरजामी ॥
मेरा हरि बड़ा अन्तर्यामी है।
ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਸੁਆਮੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भगत जना कै संगि सुआमी ॥१॥ रहाउ ॥
वह स्वामी तो भक्तजनों के साथ ही रहता है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਾ ॥
सुणि सुणि अम्रित नामु धिआवा ॥
हे प्रभु जी ! मैं आपका अमृत नाम सुन सुनकर आपका ही ध्यान करता रहता हूँ और
ਆਠ ਪਹਰ ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ॥੨॥
आठ पहर तेरे गुण गावा ॥२॥
आठ प्रहर आपका ही गुणगान करता रहता हूँ॥ २ ॥
ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਲੀਲਾ ਮਨਿ ਆਨੰਦਾ ॥
पेखि पेखि लीला मनि आनंदा ॥
आपकी अद्भुत लीला देख-देखकर मन में आनंद बना रहता है।
ਗੁਣ ਅਪਾਰ ਪ੍ਰਭ ਪਰਮਾਨੰਦਾ ॥੩॥
गुण अपार प्रभ परमानंदा ॥३॥
हे परमानंद प्रभु! आपके गुण अपार हैं।॥ ३॥
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਕਛੁ ਭਉ ਨ ਬਿਆਪੈ ॥
जा कै सिमरनि कछु भउ न बिआपै ॥
हे नानक ! जिसका सिमरन करने से कोई भय नहीं लगता,
ਸਦਾ ਸਦਾ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਾਪੈ ॥੪॥੧੧॥੧੭॥
सदा सदा नानक हरि जापै ॥४॥११॥१७॥
में तो सदैव उस हरि को ही जपता रहता हूँ॥ ४॥ ११॥ १७ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਰਿਦੈ ਧਿਆਨੁ ਧਾਰੀ ॥
गुर कै बचनि रिदै धिआनु धारी ॥
गुरु के वचन द्वारा हृदय में भगवान् का ही ध्यान धारण करता हूँ।
ਰਸਨਾ ਜਾਪੁ ਜਪਉ ਬਨਵਾਰੀ ॥੧॥
रसना जापु जपउ बनवारी ॥१॥
अपनी जीभ से परमात्मा का जाप ही जपता हूँ॥ १॥
ਸਫਲ ਮੂਰਤਿ ਦਰਸਨ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥
सफल मूरति दरसन बलिहारी ॥
उस प्रभु का रूप फलदायक है, मैं तो उसके दर्शन पर बलिहारी हूँ।
ਚਰਣ ਕਮਲ ਮਨ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चरण कमल मन प्राण अधारी ॥१॥ रहाउ ॥
उसके चरण-कमल मेरे मन एवं प्राणों का आधार है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਨਮ ਮਰਣ ਨਿਵਾਰੀ ॥
साधसंगि जनम मरण निवारी ॥
साधुओं की संगति में मैंने जन्म-मरण का निवारण कर लिया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਥਾ ਸੁਣਿ ਕਰਨ ਅਧਾਰੀ ॥੨॥
अम्रित कथा सुणि करन अधारी ॥२॥
कानों से हरि की अमृत कथा को सुनकर उसे अपने जीवन का सहारा बना लिया है॥ २ ॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਮੋਹ ਤਜਾਰੀ ॥
काम क्रोध लोभ मोह तजारी ॥
काम, क्रोध, लोभ एवं मोह को छोड़ दिया है।
ਦ੍ਰਿੜੁ ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਸੁਚਾਰੀ ॥੩॥
द्रिड़ु नाम दानु इसनानु सुचारी ॥३॥
जीवन में परमात्मा का नाम, दान, स्नान एवं शुभ आचरण को दृढ़ किया है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੀ ॥
कहु नानक इहु ततु बीचारी ॥
हे नानक ! मैंने इसी तत्व पर विचार किया है कि
ਰਾਮ ਨਾਮ ਜਪਿ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੀ ॥੪॥੧੨॥੧੮॥
राम नाम जपि पारि उतारी ॥४॥१२॥१८॥
राम का नाम जपने से ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है ॥४॥ १२ ॥ १८ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਮਗਨ ਅਪਰਾਧੀ ॥
लोभि मोहि मगन अपराधी ॥
हम तुच्छ जीव लोभ एवं मोह में ही मग्न हैं, और बड़े अपराधी हैं,