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ਕਰਣਹਾਰ ਕੀ ਸੇਵ ਨ ਸਾਧੀ ॥੧॥
करणहार की सेव न साधी ॥१॥
क्योंकि जिस परमपिता ने हमें पैदा किया है, हम उसकी उपासना ही नहीं की। १॥
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮ ਤੁਮਾਰੇ ॥
पतित पावन प्रभ नाम तुमारे ॥
हे प्रभु ! आपका नाम पतितपावन है,
ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨੀਆਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राखि लेहु मोहि निरगुनीआरे ॥१॥ रहाउ ॥
मुझ को अपनी शरण में रख लो ॥१॥ रहाउ ॥
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
तूं दाता प्रभ अंतरजामी ॥
हे अन्तर्यामी प्रभु ! एक आप ही दाता है।
ਕਾਚੀ ਦੇਹ ਮਾਨੁਖ ਅਭਿਮਾਨੀ ॥੨॥
काची देह मानुख अभिमानी ॥२॥
यह शरीर तो नश्वर है, पर हम मनुष्य व्यर्थ ही अभिमानी बने हुए हैं।॥ २॥
ਸੁਆਦ ਬਾਦ ਈਰਖ ਮਦ ਮਾਇਆ ॥
सुआद बाद ईरख मद माइआ ॥
दुनिया के स्वाद, वाद - विवाद, इर्षा, एवं माया के नशे में
ਇਨ ਸੰਗਿ ਲਾਗਿ ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੩॥
इन संगि लागि रतन जनमु गवाइआ ॥३॥
लगकर यह अमूल्य जीवन व्यर्थ ही गंवा दिया है ॥ ३ ॥
ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਜਗਜੀਵਨ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥
दुख भंजन जगजीवन हरि राइआ ॥
हे दुःखनाशक! हे जग के जीवन ! हे श्रीहरि !
ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਨਾਨਕੁ ਸਰਣਾਇਆ ॥੪॥੧੩॥੧੯॥
सगल तिआगि नानकु सरणाइआ ॥४॥१३॥१९॥
सबकुछ त्याग कर नानक आपकी ही शरण में आया है ॥ ४ । १३ । १६ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪੇਖਤ ਚਾਖਤ ਕਹੀਅਤ ਅੰਧਾ ਸੁਨੀਅਤ ਸੁਨੀਐ ਨਾਹੀ ॥
पेखत चाखत कहीअत अंधा सुनीअत सुनीऐ नाही ॥
जो दुनिया की हर चीज़ को देखता है लेकिन भगवान् को नहीं पहचानता, जो सब आवाज़ें सुनता है पर ईश्वर की महिमा नहीं सुनता, वह आत्मिक रूप से अज्ञानी होता है।
ਨਿਕਟਿ ਵਸਤੁ ਕਉ ਜਾਣੈ ਦੂਰੇ ਪਾਪੀ ਪਾਪ ਕਮਾਹੀ ॥੧॥
निकटि वसतु कउ जाणै दूरे पापी पाप कमाही ॥१॥
निकट पड़ी वस्तु को वह दूर ही जानता है और वह पापी पाप ही करता रहता है। १॥
ਸੋ ਕਿਛੁ ਕਰਿ ਜਿਤੁ ਛੁਟਹਿ ਪਰਾਨੀ ॥
सो किछु करि जितु छुटहि परानी ॥
वह कौन-सा कार्य है, जिससे प्राणी पापों से छूट सकता है ?
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि नामु जपि अम्रित बानी ॥१॥ रहाउ ॥
सदैव ही भगवान् का नाम स्मरण करो और उसकी अमृत-वाणी जपते रहो ॥ १॥ रहाउ॥
ਘੋਰ ਮਹਲ ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥
घोर महल सदा रंगि राता ॥
प्राणी हमेशा ही सुन्दर घोड़े एवं भव्य महल के मोह में मग्न रहता है।
ਸੰਗਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ਕਛੂ ਨ ਜਾਤਾ ॥੨॥
संगि तुम्हारै कछू न जाता ॥२॥
हे प्राणी ! जगत् को छोड़ते समय तेरे साथ तो कुछ भी जाने वाला नहीं है॥ २॥
ਰਖਹਿ ਪੋਚਾਰਿ ਮਾਟੀ ਕਾ ਭਾਂਡਾ ॥
रखहि पोचारि माटी का भांडा ॥
हे नश्वर, तुम इस नाशवान शरीर को मिट्टी के घड़े की तरह सजाने में लगे हो
ਅਤਿ ਕੁਚੀਲ ਮਿਲੈ ਜਮ ਡਾਂਡਾ ॥੩॥
अति कुचील मिलै जम डांडा ॥३॥
किन्तु तेरा यह शरीर भीतर से पापों की मैल से भरा होने के कारण बहुत ही गंदा है और इसे यम का दण्ड अवश्य मिलेगा ॥३॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧਿ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਬਾਧਾ ॥
काम क्रोधि लोभि मोहि बाधा ॥
काम, क्रोध, लोभ एवं मोह ने तुझे फँसाया हुआ है और
ਮਹਾ ਗਰਤ ਮਹਿ ਨਿਘਰਤ ਜਾਤਾ ॥੪॥
महा गरत महि निघरत जाता ॥४॥
विकारों के दल-दल में और भी फंसता जा रहा है ॥ ४॥
ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਸੁਣੀਜੈ ॥ ਡੂਬਤ ਪਾਹਨ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਲੀਜੈ ॥੫॥੧੪॥੨੦॥
नानक की अरदासि सुणीजै ॥ डूबत पाहन प्रभ मेरे लीजै ॥५॥१४॥२०॥
हे मेरे प्रभु ! दास नानक की अरदास सुन लो और मुझ जैसे डूबते पत्थर को भी बचा लो॥ ५॥ १४॥ २०॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜੀਵਤ ਮਰੈ ਬੁਝੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥
जीवत मरै बुझै प्रभु सोइ ॥
ईश्वर उसे ही मिलता है, जो घर-गृहस्थी में रहकर भी माया से दूर रहता है।
ਤਿਸੁ ਜਨ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੧॥
तिसु जन करमि परापति होइ ॥१॥
भाग्य से उसे ही परमात्मा की प्राप्ति होती है।॥ १॥
ਸੁਣਿ ਸਾਜਨ ਇਉ ਦੁਤਰੁ ਤਰੀਐ ॥
सुणि साजन इउ दुतरु तरीऐ ॥
हे मेरे साजन ! सुनो, यह भवसागर बड़ा कठिन है और इससे पार होने के लिए
ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਚਰੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलि साधू हरि नामु उचरीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
साधुओं के साथ मिलकर भगवान् का नाम उच्चारित करते रहना चाहिए॥ १॥ रहाउ ॥
ਏਕ ਬਿਨਾ ਦੂਜਾ ਨਹੀ ਜਾਨੈ ॥
एक बिना दूजा नही जानै ॥
जो व्यक्ति एक परमात्मा के अतिरिक्त किसी दूसरे को नहीं जानता,
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਨੈ ॥੨॥
घट घट अंतरि पारब्रहमु पछानै ॥२॥
वह प्रत्येक शरीर में विद्यमान पारब्रह्म को पहचान लेता है॥ २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸੋਈ ਭਲ ਮਾਨੈ ॥
जो किछु करै सोई भल मानै ॥
जो कुछ ईश्वर करता है, वह सहर्ष उसे ही भला मानता है।
ਆਦਿ ਅੰਤ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਜਾਨੈ ॥੩॥
आदि अंत की कीमति जानै ॥३॥
जो परमात्मा सृष्टि के आदि एवं अंत तक विद्यमान है, वह उसके मूल्यांकन को जान लेता है। ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਜਨ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥ ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਵਸਹਿ ਮੁਰਾਰੀ ॥੪॥੧੫॥੨੧॥
कहु नानक तिसु जन बलिहारी ॥ जा कै हिरदै वसहि मुरारी ॥४॥१५॥२१॥
हे नानक ! मैं उस भक्त पर बलिहारी जाता हूँ, जिसके हृदय में ईश्वर रहते है ll ४ ॥ १५ ॥ २१ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पंचम गुरु ५ ॥
ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਕਰਣੈਹਾਰੁ ॥
गुरु परमेसरु करणैहारु ॥
पुूर्ण गुरु ही परमेश्वर है और वही सबकुछ करने में परिपूर्ण है।
ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਉ ਦੇ ਆਧਾਰੁ ॥੧॥
सगल स्रिसटि कउ दे आधारु ॥१॥
वह सारी सृष्टि को नाम का आधार देते है ॥१॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਕਮਲ ਮਨ ਧਿਆਇ ॥
गुर के चरण कमल मन धिआइ ॥
हे मेरे मन ! गुरु के चरण कमलों का ध्यान किया कर,
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਇਸੁ ਤਨ ਤੇ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दूखु दरदु इसु तन ते जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जिसके फलस्वरूप इस तन से दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਭਵਜਲਿ ਡੂਬਤ ਸਤਿਗੁਰੁ ਕਾਢੈ ॥
भवजलि डूबत सतिगुरु काढै ॥
सतगुरु भवसागर में डूब रहे जीव को भी बाहर निकाल देते है।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਟੂਟਾ ਗਾਢੈ ॥੨॥
जनम जनम का टूटा गाढै ॥२॥
यह जन्म-जन्मांतर से परमात्मा से बिछुड़े व्यक्ति को भी उससे मिला देते है॥ २॥
ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਕਰਹੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥
गुर की सेवा करहु दिनु राति ॥
दिन-रात गुरु की सेवा करो,
ਸੂਖ ਸਹਜ ਮਨਿ ਆਵੈ ਸਾਂਤਿ ॥੩॥
सूख सहज मनि आवै सांति ॥३॥
इससे सहज सुख एवं मन को बड़ी शांति प्राप्त होती है॥ ३॥
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਰੇਣੁ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਵੈ ॥
सतिगुर की रेणु वडभागी पावै ॥
केवल भाग्यशाली व्यक्ति को ही सच्चे गुरु की शिक्षाओं का पालन करने का अवसर मिलता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕਉ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਵੈ ॥੪॥੧੬॥੨੨॥
नानक गुर कउ सद बलि जावै ॥४॥१६॥२२॥
हे नानक ! मैं तो गुरु पर सदैव बलिहारी जाता हूँ ॥ ४॥ १६॥ २२ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पंचम गुरु: ५ ॥
ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਊਪਰਿ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ॥
गुर अपुने ऊपरि बलि जाईऐ ॥
अपने गुरु पर बलिहारी जाना चाहिए और
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਈਐ ॥੧॥
आठ पहर हरि हरि जसु गाईऐ ॥१॥
आठ प्रहर हरि का यश गाना चाहिए ॥१॥
ਸਿਮਰਉ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਸੁਆਮੀ ॥
सिमरउ सो प्रभु अपना सुआमी ॥
मैं तो अपने स्वामी प्रभु का ही सिमरन करता रहता हूँ,
ਸਗਲ ਘਟਾ ਕਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल घटा का अंतरजामी ॥१॥ रहाउ ॥
जो सबके मन की जानने वाला बड़ा अन्तर्यामी है॥ १॥ रहाउ॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
चरण कमल सिउ लागी प्रीति ॥
जब उसकी सुन्दर चरण-कमलों से प्रीति लग जाती है।
ਸਾਚੀ ਪੂਰਨ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥੨॥
साची पूरन निरमल रीति ॥२॥
तब उसकी जीवनशैली धार्मिक, सफल और पवित्र हो जाती है, ||2||॥ २॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਵਸੈ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
संत प्रसादि वसै मन माही ॥
यदि संतों की कृपा से प्रभु मन में बस जाए तो
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਵਿਖ ਜਾਹੀ ॥੩॥
जनम जनम के किलविख जाही ॥३॥
जन्म-जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं।॥ ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
करि किरपा प्रभ दीन दइआला ॥
हे दीनदयालु प्रभु ! कृपा करो,
ਨਾਨਕੁ ਮਾਗੈ ਸੰਤ ਰਵਾਲਾ ॥੪॥੧੭॥੨੩॥
नानकु मागै संत रवाला ॥४॥१७॥२३॥
दास नानक तो आपके संतों की चरण-धूलि ही चाहते है॥ ४॥ १७ ॥ २३॥