Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 726

Page 726

ਜੋ ਗੁਰਸਿਖ ਗੁਰੁ ਸੇਵਦੇ ਸੇ ਪੁੰਨ ਪਰਾਣੀ ॥ जो गुरसिख गुरु सेवदे से पुंन पराणी ॥ जो गुरु के शिष्य अपने गुरु की सेवा करते हैं, वे उत्तम प्राणी हैं।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਤਿਨ ਕਉ ਵਾਰਿਆ ਸਦਾ ਸਦਾ ਕੁਰਬਾਣੀ ॥੧੦॥ जनु नानकु तिन कउ वारिआ सदा सदा कुरबाणी ॥१०॥ दास नानक उन पर ही न्यौछावर है और सदा उन पर बलिहारी जाते हैं॥ १०॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਖੀ ਸਹੇਲੀਆ ਸੇ ਆਪਿ ਹਰਿ ਭਾਈਆ ॥ गुरमुखि सखी सहेलीआ से आपि हरि भाईआ ॥ गुरुमुख सखी-सहेलियाँ आप हरि को अच्छी लगी हैं।
ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪੈਨਾਈਆ ਹਰਿ ਆਪਿ ਗਲਿ ਲਾਈਆ ॥੧੧॥ हरि दरगह पैनाईआ हरि आपि गलि लाईआ ॥११॥ हरि के दरबार में उन्हें शोभा का वस्त्र पहनाया है और हरि ने स्वयं ही उन्हें अपने गले से लगाया है॥ ११॥
ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਦੇ ਤਿਨ ਦਰਸਨੁ ਦੀਜੈ ॥ जो गुरमुखि नामु धिआइदे तिन दरसनु दीजै ॥ हे प्रभु ! जो गुरुमुख आपके नाम का ध्यान करते हैं, मुझे उनके दर्शन दीजिए।
ਹਮ ਤਿਨ ਕੇ ਚਰਣ ਪਖਾਲਦੇ ਧੂੜਿ ਘੋਲਿ ਘੋਲਿ ਪੀਜੈ ॥੧੨॥ हम तिन के चरण पखालदे धूड़ि घोलि घोलि पीजै ॥१२॥ मैं उनके चरण धोता हूँ और उनकी चरण-धूलि घोल-घोलकर पीता हूँ॥ १२॥
ਪਾਨ ਸੁਪਾਰੀ ਖਾਤੀਆ ਮੁਖਿ ਬੀੜੀਆ ਲਾਈਆ ॥ पान सुपारी खातीआ मुखि बीड़ीआ लाईआ ॥ जो जीव-स्त्रियाँ पान-सुपारी खाती हैं और मुँह पर लिपस्टिक लगाती हैं,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਦੇ ਨ ਚੇਤਿਓ ਜਮਿ ਪਕੜਿ ਚਲਾਈਆ ॥੧੩॥ हरि हरि कदे न चेतिओ जमि पकड़ि चलाईआ ॥१३॥ और हरि को कभी याद नहीं करती तो यम उन्हें पकड़कर आगे लगा लेता है॥ १३ ॥
ਜਿਨ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਹਰਿ ਚੇਤਿਆ ਹਿਰਦੈ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥ जिन हरि नामा हरि चेतिआ हिरदै उरि धारे ॥ जिन्होंने हरि को याद किया है और हरि-नाम को अपने हृदय में बसाया है,
ਤਿਨ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਈ ਗੁਰਸਿਖ ਗੁਰ ਪਿਆਰੇ ॥੧੪॥ तिन जमु नेड़ि न आवई गुरसिख गुर पिआरे ॥१४॥ यम उनके निकट नहीं आता वे गुरु के शिष्य गुरु के प्यारे होते हैं।॥ १४॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਕੋਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਣੈ ॥ हरि का नामु निधानु है कोई गुरमुखि जाणै ॥ हरि का नाम सुखों का भण्डार है लेकिन कोई गुरुमुख ही इस भेद को जानता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਰੰਗਿ ਰਲੀਆ ਮਾਣੈ ॥੧੫॥ नानक जिन सतिगुरु भेटिआ रंगि रलीआ माणै ॥१५॥ हे नानक ! जिन्हें सतगुरु मिल गए हैं, वे खुशियाँ मनाते हैं॥ १५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਆਖੀਐ ਤੁਸਿ ਕਰੇ ਪਸਾਓ ॥ सतिगुरु दाता आखीऐ तुसि करे पसाओ ॥ सतगुरु को दाता कहा जाता है, जो प्रसन्न होकर प्रभु का नाम देने की कृपा करते हैं।
ਹਉ ਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਸਦ ਵਾਰਿਆ ਜਿਨਿ ਦਿਤੜਾ ਨਾਓ ॥੧੬॥ हउ गुर विटहु सद वारिआ जिनि दितड़ा नाओ ॥१६॥ मैं गुरु पर सदा ही बलिहारी जाता हूँ, जिन्होंने मुझे परमात्मा का नाम दिया है ॥१६॥
ਸੋ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਸਾਬਾਸਿ ਹੈ ਹਰਿ ਦੇਇ ਸਨੇਹਾ ॥ सो धंनु गुरू साबासि है हरि देइ सनेहा ॥ वह गुरु धन्य है, मेरा उन्हें कोटि-कोटि नमन है, जो मुझे हरि का संदेश देते है।
ਹਉ ਵੇਖਿ ਵੇਖਿ ਗੁਰੂ ਵਿਗਸਿਆ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਦੇਹਾ ॥੧੭॥ हउ वेखि वेखि गुरू विगसिआ गुर सतिगुर देहा ॥१७॥ मैं गुरु को देख-देखकर खुश हो गया हूँ और उस गुरु का रूप बहुत सुन्दर है॥ १७॥
ਗੁਰ ਰਸਨਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਬੋਲਦੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸੁਹਾਵੀ ॥ गुर रसना अम्रितु बोलदी हरि नामि सुहावी ॥ गुरु की रसना अमृत रूपी नाम बोलती है और वह हरि नाम बोलती हुई बड़ी सुन्दर लगती है।
ਜਿਨ ਸੁਣਿ ਸਿਖਾ ਗੁਰੁ ਮੰਨਿਆ ਤਿਨਾ ਭੁਖ ਸਭ ਜਾਵੀ ॥੧੮॥ जिन सुणि सिखा गुरु मंनिआ तिना भुख सभ जावी ॥१८॥ जिन्होंने गुरु की शिक्षा को सुनकर उस पर भरोसा किया है, उनकी सारी भूख दूर हो गई है॥ १८ ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਮਾਰਗੁ ਆਖੀਐ ਕਹੁ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਜਾਈਐ ॥ हरि का मारगु आखीऐ कहु कितु बिधि जाईऐ ॥ मुझे बताओ, उस मार्ग पर किस विधि द्वारा जाया जाता है, जिसे हरि का मार्ग कहा जाता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਹੈ ਹਰਿ ਖਰਚੁ ਲੈ ਜਾਈਐ ॥੧੯॥ हरि हरि तेरा नामु है हरि खरचु लै जाईऐ ॥१९॥ हे हरि ! जो आपका हरि-नाम है, उस नाम को यात्रा खर्च के तौर पर अपने साथ ले जाना चाहिए॥ १६॥
ਜਿਨ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਆਰਾਧਿਆ ਸੇ ਸਾਹ ਵਡ ਦਾਣੇ ॥ जिन गुरमुखि हरि आराधिआ से साह वड दाणे ॥ जिन गुरुमुखों ने हरि की आराधना की है, वे बड़े शाह एवं चतुर हैं।
ਹਉ ਸਤਿਗੁਰ ਕਉ ਸਦ ਵਾਰਿਆ ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਸਮਾਣੇ ॥੨੦॥ हउ सतिगुर कउ सद वारिआ गुर बचनि समाणे ॥२०॥ मैं सतगुरु पर सदा ही बलिहारी जाता हूँ और गुरु के वचनों में लीन रहता हूँ॥ २०॥
ਤੂ ਠਾਕੁਰੁ ਤੂ ਸਾਹਿਬੋ ਤੂਹੈ ਮੇਰਾ ਮੀਰਾ ॥ तू ठाकुरु तू साहिबो तूहै मेरा मीरा ॥ हे हरि ! आप ही मेरे स्वामी है, आप ही मेरे मालिक है, आप ही मेरे बादशाह है।
ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤੇਰੀ ਬੰਦਗੀ ਤੂ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰਾ ॥੨੧॥ तुधु भावै तेरी बंदगी तू गुणी गहीरा ॥२१॥ यदि आपको अच्छा लगे तो ही आपकी बंदगी कर सकता हूँ, आप गुणों का गहरा सागर है॥ २१॥
ਆਪੇ ਹਰਿ ਇਕ ਰੰਗੁ ਹੈ ਆਪੇ ਬਹੁ ਰੰਗੀ ॥ आपे हरि इक रंगु है आपे बहु रंगी ॥ हरि स्वयं ही एक रंग वाले हैं और स्वयं ही बहुरंगी है।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਨਾਨਕਾ ਸਾਈ ਗਲ ਚੰਗੀ ॥੨੨॥੨॥ जो तिसु भावै नानका साई गल चंगी ॥२२॥२॥ हे नानक ! जो उस प्रभु को अच्छा लगता है, मेरे लिए वही बात अच्छी है॥ २२॥ २॥
ਤਿਲੰਗ ਮਹਲਾ ੯ ਕਾਫੀ तिलंग महला ९ काफी राग तिलंग, नौवें गुरु, काफी
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਚੇਤਨਾ ਹੈ ਤਉ ਚੇਤ ਲੈ ਨਿਸਿ ਦਿਨਿ ਮੈ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥ चेतना है तउ चेत लै निसि दिनि मै प्रानी ॥ हे प्राणी ! यदि तूने परमेश्वर को याद करना है तो हर पल याद कर ले।
ਛਿਨੁ ਛਿਨੁ ਅਉਧ ਬਿਹਾਤੁ ਹੈ ਫੂਟੈ ਘਟ ਜਿਉ ਪਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ छिनु छिनु अउध बिहातु है फूटै घट जिउ पानी ॥१॥ रहाउ ॥ जैसे फूटे हुए घड़े में से पानी निकलता रहता है, वैसे ही क्षण-क्षण तेरी जीवन-अवधि बीतती जा रही है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਗੁਨ ਕਾਹਿ ਨ ਗਾਵਹੀ ਮੂਰਖ ਅਗਿਆਨਾ ॥ हरि गुन काहि न गावही मूरख अगिआना ॥ हे मूर्ख अज्ञानी ! तू ईश्वर के गुण क्यों नहीं गाता ?
ਝੂਠੈ ਲਾਲਚਿ ਲਾਗਿ ਕੈ ਨਹਿ ਮਰਨੁ ਪਛਾਨਾ ॥੧॥ झूठै लालचि लागि कै नहि मरनु पछाना ॥१॥ झूठे लालच में लगकर तूने अपनी मृत्यु को भी नहीं पहचाना॥ १॥
ਅਜਹੂ ਕਛੁ ਬਿਗਰਿਓ ਨਹੀ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥ अजहू कछु बिगरिओ नही जो प्रभ गुन गावै ॥ अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, जो प्रभु का गुणगान कर लेगा।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਭਜਨ ਤੇ ਨਿਰਭੈ ਪਦੁ ਪਾਵੈ ॥੨॥੧॥ कहु नानक तिह भजन ते निरभै पदु पावै ॥२॥१॥ हे नानक ! उस प्रभु का भजन करने से जीव निर्भय पद पा लेता है॥ २॥ १॥
ਤਿਲੰਗ ਮਹਲਾ ੯ ॥ तिलंग महला ९ ॥ राग तिलंग, नौवें गुरु ९ ॥
ਜਾਗ ਲੇਹੁ ਰੇ ਮਨਾ ਜਾਗ ਲੇਹੁ ਕਹਾ ਗਾਫਲ ਸੋਇਆ ॥ जाग लेहु रे मना जाग लेहु कहा गाफल सोइआ ॥ हे मेरे मन! अज्ञानता की नींद से जाग ले। तू क्यों बेपरवाह होकर जीवन में सोया पड़ा है।
ਜੋ ਤਨੁ ਉਪਜਿਆ ਸੰਗ ਹੀ ਸੋ ਭੀ ਸੰਗਿ ਨ ਹੋਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो तनु उपजिआ संग ही सो भी संगि न होइआ ॥१॥ रहाउ ॥ जो तन जीव के साथ ही उत्पन्न हुआ है, वह कभी साथ नहीं गया ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਬੰਧ ਜਨ ਹਿਤੁ ਜਾ ਸਿਉ ਕੀਨਾ ॥ मात पिता सुत बंध जन हितु जा सिउ कीना ॥ जिस माता-पिता, पुत्रों एवं संबंधियों के साथ तूने बहुत स्नेह किया था,
ਜੀਉ ਛੂਟਿਓ ਜਬ ਦੇਹ ਤੇ ਡਾਰਿ ਅਗਨਿ ਮੈ ਦੀਨਾ ॥੧॥ जीउ छूटिओ जब देह ते डारि अगनि मै दीना ॥१॥ जब तेरे प्राण इस शरीर से निकल जाएँगे, तब इस नश्वर देह को अग्नि को समर्पित कर दिया जाएगा। ॥ १॥


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