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ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਕਰੇ ਆਪਿ ਜਿਨਿ ਵਾੜੀ ਹੈ ਲਾਈ ॥੧॥
आपे जाणै करे आपि जिनि वाड़ी है लाई ॥१॥
जिस प्रभु रूपी बागबां ने यह जगत् रूपी वाटिका लगाई है, वह स्वयं ही इस बारे जानता है और स्वयं ही इसकी देखरेख करता है॥ १॥
ਰਾਇਸਾ ਪਿਆਰੇ ਕਾ ਰਾਇਸਾ ਜਿਤੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
राइसा पिआरे का राइसा जितु सदा सुखु होई ॥ रहाउ ॥
उस प्यारे प्रभु का गुणगान करो, जिससे सदा सुख प्राप्त होता है॥ रहाउ॥
ਜਿਨਿ ਰੰਗਿ ਕੰਤੁ ਨ ਰਾਵਿਆ ਸਾ ਪਛੋ ਰੇ ਤਾਣੀ ॥
जिनि रंगि कंतु न राविआ सा पछो रे ताणी ॥
जिन जीव-स्त्रियों ने प्रेम से पति-प्रभु को याद नहीं किया, वे अन्त में पछताती रहती हैं।
ਹਾਥ ਪਛੋੜੈ ਸਿਰੁ ਧੁਣੈ ਜਬ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥੨॥
हाथ पछोड़ै सिरु धुणै जब रैणि विहाणी ॥२॥
जब उनकी जीवन रूपी रात्रि बीत जाती है तो वे अपने हाथ मलती हैं और अपना सिर पटकती हैं॥ २ ॥
ਪਛੋਤਾਵਾ ਨਾ ਮਿਲੈ ਜਬ ਚੂਕੈਗੀ ਸਾਰੀ ॥
पछोतावा ना मिलै जब चूकैगी सारी ॥
जब उनका सारा जीवन ही समाप्त हो जाएगा तो फिर पछताने से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।
ਤਾ ਫਿਰਿ ਪਿਆਰਾ ਰਾਵੀਐ ਜਬ ਆਵੈਗੀ ਵਾਰੀ ॥੩॥
ता फिरि पिआरा रावीऐ जब आवैगी वारी ॥३॥
इष्ट-ईश्वर को स्मरण करने का अवसर केवल तब मिलता है जब मनुष्य पुनः मानव जीवन प्राप्त करता है। ॥ ३॥
ਕੰਤੁ ਲੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਮੈ ਤੇ ਵਧਵੀ ਏਹ ॥
कंतु लीआ सोहागणी मै ते वधवी एह ॥
हे सखी ! जिस सूहागिन जीव-स्त्री ने अपना पति-प्रभु पा लिया है, वह मुझ से सर्वोत्तम है।
ਸੇ ਗੁਣ ਮੁਝੈ ਨ ਆਵਨੀ ਕੈ ਜੀ ਦੋਸੁ ਧਰੇਹ ॥੪॥
से गुण मुझै न आवनी कै जी दोसु धरेह ॥४॥
उस जैसे शुभ-गुण मुझ में नहीं हैं, फिर मैं किसे दोष दूँ॥ ४॥
ਜਿਨੀ ਸਖੀ ਸਹੁ ਰਾਵਿਆ ਤਿਨ ਪੂਛਉਗੀ ਜਾਏ ॥
जिनी सखी सहु राविआ तिन पूछउगी जाए ॥
जिन सखियों ने पति-प्रभु पा लिया है, मैं उन से जाकर पूछूंगी।
ਪਾਇ ਲਗਉ ਬੇਨਤੀ ਕਰਉ ਲੇਉਗੀ ਪੰਥੁ ਬਤਾਏ ॥੫॥
पाइ लगउ बेनती करउ लेउगी पंथु बताए ॥५॥
मैं उनके चरणों में पडूंगी उनसे विनती करूँगी और उनसे पति-प्रभु के मिलन का मार्ग पूछ लूंगी ॥ ५ ॥
ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਨਾਨਕਾ ਭਉ ਚੰਦਨੁ ਲਾਵੈ ॥
हुकमु पछाणै नानका भउ चंदनु लावै ॥
हे नानक ! जो जीव-स्त्री प्रभु का आदेश पहचान लेती है, वह उसका भय रूपी चंदन अपने शरीर को लगा लेती है।
ਗੁਣ ਕਾਮਣ ਕਾਮਣਿ ਕਰੈ ਤਉ ਪਿਆਰੇ ਕਉ ਪਾਵੈ ॥੬॥
गुण कामण कामणि करै तउ पिआरे कउ पावै ॥६॥
जब वह शुभ गुण ग्रहण करने का जादू टोना करती है तो वह अपने प्यारे प्रभु को पा लेती है॥ ६ ॥
ਜੋ ਦਿਲਿ ਮਿਲਿਆ ਸੁ ਮਿਲਿ ਰਹਿਆ ਮਿਲਿਆ ਕਹੀਐ ਰੇ ਸੋਈ ॥
जो दिलि मिलिआ सु मिलि रहिआ मिलिआ कहीऐ रे सोई ॥
हे भाई! वही व्यक्ति वास्तव में ईश्वर से जुड़ा होता है जो उसे अपने हृदय से महसूस करता है और निरंतर उससे जुड़ा रहता है।
ਜੇ ਬਹੁਤੇਰਾ ਲੋਚੀਐ ਬਾਤੀ ਮੇਲੁ ਨ ਹੋਈ ॥੭॥
जे बहुतेरा लोचीऐ बाती मेलु न होई ॥७॥
कोई चाहे जितनी भी इच्छा करे, ईश्वर को केवल शब्दों से महसूस नहीं किया जा सकता। ॥ ७ ॥
ਧਾਤੁ ਮਿਲੈ ਫੁਨਿ ਧਾਤੁ ਕਉ ਲਿਵ ਲਿਵੈ ਕਉ ਧਾਵੈ ॥
धातु मिलै फुनि धातु कउ लिव लिवै कउ धावै ॥
जिस प्रकार एक धातु पिघलकर उसी धातु के अन्य टुकड़े में मिल जाती है, उसी प्रकार भक्त का प्रेम भगवान् के प्रेम को आकर्षित करता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਾਣੀਐ ਤਉ ਅਨਭਉ ਪਾਵੈ ॥੮॥
गुर परसादी जाणीऐ तउ अनभउ पावै ॥८॥
गुरु की कृपा से जब मनुष्य इस बात को जान लेता है तो वह प्रभु को पा लेता है॥ ८ ॥
ਪਾਨਾ ਵਾੜੀ ਹੋਇ ਘਰਿ ਖਰੁ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੈ ॥
पाना वाड़ी होइ घरि खरु सार न जाणै ॥
यदि घर में पान की बगीची लगी हुई तो भी गधा उसकी कद्र को नहीं जानता, वैसे ही जो व्यक्ति अध्यात्म से अनभिज्ञ होता है, वह अपने हृदय में बसे ईश्वर के नाम के महत्त्व को नहीं समझ पाता।
ਰਸੀਆ ਹੋਵੈ ਮੁਸਕ ਕਾ ਤਬ ਫੂਲੁ ਪਛਾਣੈ ॥੯॥
रसीआ होवै मुसक का तब फूलु पछाणै ॥९॥
जिस प्रकार कोई सुगंध प्रेमी ही फूलों की महक की महत्ता जानता है, उसी प्रकार ईश्वर के नाम का मूल्य भी तभी समझ में आता है जब उसके हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है।॥ ६ ॥
ਅਪਿਉ ਪੀਵੈ ਜੋ ਨਾਨਕਾ ਭ੍ਰਮੁ ਭ੍ਰਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥
अपिउ पीवै जो नानका भ्रमु भ्रमि समावै ॥
हे नानक ! जो व्यक्ति नाम रूपी अमृत पीता है, उसके मन का भ्रम समाप्त हो जाता है।
ਸਹਜੇ ਸਹਜੇ ਮਿਲਿ ਰਹੈ ਅਮਰਾ ਪਦੁ ਪਾਵੈ ॥੧੦॥੧॥
सहजे सहजे मिलि रहै अमरा पदु पावै ॥१०॥१॥
वह सहज ही प्रभु से मिला रहता है और अमर पदवी पा लेता है॥ १० ॥ १॥
ਤਿਲੰਗ ਮਹਲਾ ੪ ॥
तिलंग महला ४ ॥
राग तिलंग, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹਰਿ ਕੀਆ ਕਥਾ ਕਹਾਣੀਆ ਗੁਰਿ ਮੀਤਿ ਸੁਣਾਈਆ ॥
हरि कीआ कथा कहाणीआ गुरि मीति सुणाईआ ॥
हरि की कथा-कहानियां मुझे मित्र गुरु ने सुनाई हैं।
ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਗੁਰ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਈਆ ॥੧॥
बलिहारी गुर आपणे गुर कउ बलि जाईआ ॥१॥
मैं अपने गुरु पर बलिहारी हूँ और उस पर ही बलिहारी जाता हूँ॥ १॥
ਆਇ ਮਿਲੁ ਗੁਰਸਿਖ ਆਇ ਮਿਲੁ ਤੂ ਮੇਰੇ ਗੁਰੂ ਕੇ ਪਿਆਰੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
आइ मिलु गुरसिख आइ मिलु तू मेरे गुरू के पिआरे ॥ रहाउ ॥
हे गुरु के शिष्य ! मुझे आकर मिल। हे मेरे गुरु के प्यारे ! तू मुझे आकर मिल॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਹਰਿ ਭਾਵਦੇ ਸੇ ਗੁਰੂ ਤੇ ਪਾਏ ॥
हरि के गुण हरि भावदे से गुरू ते पाए ॥
हरि के गुण हरि को बहुत अच्छे लगते हैं और वे गुण मैंने गुरु से पाए हैं।
ਜਿਨ ਗੁਰ ਕਾ ਭਾਣਾ ਮੰਨਿਆ ਤਿਨ ਘੁਮਿ ਘੁਮਿ ਜਾਏ ॥੨॥
जिन गुर का भाणा मंनिआ तिन घुमि घुमि जाए ॥२॥
जिन्होंने गुरु की इच्छा को खुशी-खुशी माना है, मैं उन पर हमेशा बलिहारी जाता हूँ॥ २॥
ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਿਆਰਾ ਦੇਖਿਆ ਤਿਨ ਕਉ ਹਉ ਵਾਰੀ ॥
जिन सतिगुरु पिआरा देखिआ तिन कउ हउ वारी ॥
जिन्होंने प्यारे सतगुरु के दर्शन किए हैं, मैं उन पर बार-बार बलिहारी जाता हूँ।
ਜਿਨ ਗੁਰ ਕੀ ਕੀਤੀ ਚਾਕਰੀ ਤਿਨ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੩॥
जिन गुर की कीती चाकरी तिन सद बलिहारी ॥३॥
जिन्होंने गुरु की चाकरी की है, उन पर मैं सदैव बलिहारी हूँ॥ ३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਹੈ ਦੁਖ ਮੇਟਣਹਾਰਾ ॥
हरि हरि तेरा नामु है दुख मेटणहारा ॥
हे प्रभु! आपका नाम सब दुःख मिटाने वाला है।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਪਾਈਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥੪॥
गुर सेवा ते पाईऐ गुरमुखि निसतारा ॥४॥
यह (नाम) गुरु की सेवा करने से पाया जाता है तथा गुरुमुख बनने से आदमी का भवसागर से उद्धार हो जाता है॥ ४॥
ਜੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਦੇ ਤੇ ਜਨ ਪਰਵਾਨਾ ॥
जो हरि नामु धिआइदे ते जन परवाना ॥
जो व्यक्ति हरि-नाम का ध्यान करते हैं वे प्रभु को स्वीकृत हो जाते हैं।
ਤਿਨ ਵਿਟਹੁ ਨਾਨਕੁ ਵਾਰਿਆ ਸਦਾ ਸਦਾ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥੫॥
तिन विटहु नानकु वारिआ सदा सदा कुरबाना ॥५॥
भक्त नानक उन पर न्यौछावर है और हमेशा ही बलिहारी जाते हैं। ५॥
ਸਾ ਹਰਿ ਤੇਰੀ ਉਸਤਤਿ ਹੈ ਜੋ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ॥
सा हरि तेरी उसतति है जो हरि प्रभ भावै ॥
हे हरि ! वही तेरी उस्तति है, जो तुझे अच्छी लगती है।
ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਿਆਰਾ ਸੇਵਦੇ ਤਿਨ ਹਰਿ ਫਲੁ ਪਾਵੈ ॥੬॥
जो गुरमुखि पिआरा सेवदे तिन हरि फलु पावै ॥६॥
जो गुरुमुख प्यारे प्रभु की सेवा करते हैं, उन्हें पुरस्कारस्वरूप ईश्वर के साथ मिलन की प्राप्ति होती है।॥ ६॥
ਜਿਨਾ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਪਿਰਹੜੀ ਤਿਨਾ ਜੀਅ ਪ੍ਰਭ ਨਾਲੇ ॥
जिना हरि सेती पिरहड़ी तिना जीअ प्रभ नाले ॥
जिन लोगों का हरि से प्रेम हो जाता है उनके दिल प्रभु से ही मिले रहते हैं।
ਓਇ ਜਪਿ ਜਪਿ ਪਿਆਰਾ ਜੀਵਦੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲੇ ॥੭॥
ओइ जपि जपि पिआरा जीवदे हरि नामु समाले ॥७॥
वे अपने प्यारे प्रभु को जप-जप कर ही जीवित रहते हैं और हरि का नाम ही याद करते रहते हैं ॥ ७॥
ਜਿਨ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਿਆਰਾ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨ ਕਉ ਘੁਮਿ ਜਾਇਆ ॥
जिन गुरमुखि पिआरा सेविआ तिन कउ घुमि जाइआ ॥
जिन गुरुमुखों ने प्यारे प्रभु का सिमरन किया है, मैं उन पर बार-बार बलिहारी जाता हूँ।
ਓਇ ਆਪਿ ਛੁਟੇ ਪਰਵਾਰ ਸਿਉ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਛਡਾਇਆ ॥੮॥
ओइ आपि छुटे परवार सिउ सभु जगतु छडाइआ ॥८॥
वे अपने परिवार सहित स्वयं छूट गए हैं और उन्होंने सारे जगत् को भी छुड़ा लिया है॥ ८ ॥
ਗੁਰਿ ਪਿਆਰੈ ਹਰਿ ਸੇਵਿਆ ਗੁਰੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੁ ਧੰਨੋ ॥
गुरि पिआरै हरि सेविआ गुरु धंनु गुरु धंनो ॥
मेरे प्यारे गुरु ने हरि का सिमरन किया है, इसलिए मेरा गुरु धन्य-धन्य है।
ਗੁਰਿ ਹਰਿ ਮਾਰਗੁ ਦਸਿਆ ਗੁਰ ਪੁੰਨੁ ਵਡ ਪੁੰਨੋ ॥੯॥
गुरि हरि मारगु दसिआ गुर पुंनु वड पुंनो ॥९॥
गुरु ने मुझे हरि का मार्ग बताया है, गुरु ने मुझ पर बड़ा उपकार किया है॥९॥