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ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਧਾਰਿ ਗੁਰ ਮੇਲਹੁ ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਹਰਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੩॥
हे हरि ! कृपा करके मुझे गुरु से मिला दो, क्योंकि गुरु से मिलकर ही तेरे प्रति उमंग पैदा होती है।॥ ३॥
ਕਰਿ ਕੀਰਤਿ ਜਸੁ ਅਗਮ ਅਥਾਹਾ ॥
उस अगम्य एवं अनंत प्रभु का कीर्ति-गान करो,"
ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਗਾਵਾਹਾ ॥
क्षण-क्षण राम-नाम का स्तुतिगान करो।
ਮੋ ਕਉ ਧਾਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਮਿਲੀਐ ਗੁਰ ਦਾਤੇ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਭਗਤਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੪॥੨॥੮॥
हे मेरे दाता गुरु ! कृपा करके मुझे दर्शन दीजिए, चूंकि नानक को तो भगवान की भक्ति की तीव्र लालसा लगी हुई है ॥४॥२॥८॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਃ ੪ ॥
जैतसरी मः ४ ॥
ਰਸਿ ਰਸਿ ਰਾਮੁ ਰਸਾਲੁ ਸਲਾਹਾ ॥
मैं प्रेमपूर्वक रसों के घर राम का स्तुतिगान करता हूँ।
ਮਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਭੀਨਾ ਲੈ ਲਾਹਾ ॥
मेरा मन राम के नाम से प्रसन्न हो गया है और नाम का लाभ प्राप्त कर रहा है।
ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਭਗਤਿ ਕਰਹ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਗੁਰਮਤਿ ਭਗਤਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੧॥
मैं दिन-रात प्रत्येक क्षण भक्ति करता हूँ और गुरु के उपदेश द्वारा मेरे मन में भक्ति की उमंग उत्पन्न होती है ॥१॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਜਪਾਹਾ ॥
मैं भगवान का गुणगान करता हूँ, गोविन्द का जाप जपता रहता हूँ।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਜੀਤਿ ਸਬਦੁ ਲੈ ਲਾਹਾ ॥
अपने मन एवं तन पर विजय प्राप्त करके शब्द-गुरु का लाभ प्राप्त किया है।
ਗੁਰਮਤਿ ਪੰਚ ਦੂਤ ਵਸਿ ਆਵਹਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਹਰਿ ਓਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੨॥
गुरु की शिक्षा द्वारा कामादिक शत्रु नियन्त्रण में आ गए हैं और मन एवं तन में भगवान की भक्ति का चाव उत्पन्न होता रहता है॥ २॥
ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਹਾ ॥
नाम अमूल्य रत्न है, अंतः हरि-नाम का जाप करो।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਸਦਾ ਲੈ ਲਾਹਾ ॥
भगवान का स्तुतिगान कर सदैव ही लाभ प्राप्त करो।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਮਾਧੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੩॥
हे दीनदयालु परमेश्वर ! मुझ पर कृपा करो और मेरे मन में नाम की लालसा उत्पन्न कर ॥ ३॥
ਜਪਿ ਜਗਦੀਸੁ ਜਪਉ ਮਨ ਮਾਹਾ ॥
अपने मन में जगदीश्वर का जाप जपता रहूँ।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਗੰਨਾਥੁ ਜਗਿ ਲਾਹਾ ॥
इस जगत में जगन्नाथ हरि-नाम ही लाभप्रद है।
ਧਨੁ ਧਨੁ ਵਡੇ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਭਗਤਿ ਓਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੪॥੩॥੯॥
नानक का कथन है कि हे मेरे ठाकुर प्रभु ! तू बड़ा धन्य-धन्य है, क्योंकि तेरा नाम जपकर ही भक्ति करने का चाव उत्पन्न होता है। ॥४॥३॥९॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
जैतसरी महला ४ ॥
ਆਪੇ ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਜੁਗਾਹਾ ॥
ईश्वर स्वयं ही योगी है और स्वयं ही समस्त युगों में योग की युक्ति है।
ਆਪੇ ਨਿਰਭਉ ਤਾੜੀ ਲਾਹਾ ॥
वह स्वयं ही निर्भीक होकर समाधि लगाता है।
ਆਪੇ ਹੀ ਆਪਿ ਆਪਿ ਵਰਤੈ ਆਪੇ ਨਾਮਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੧॥
वह स्वयं ही सर्वव्यापक हो रहा है और मनुष्य को स्वयं ही नाम-सिमरन की उमंग प्रदान करता है॥ १॥
ਆਪੇ ਦੀਪ ਲੋਅ ਦੀਪਾਹਾ ॥
वह स्वयं ही दीप, प्रकाश एवं प्रकाश करने वाला है।
ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਮੁੰਦੁ ਮਥਾਹਾ ॥
वह स्वयं ही सतगुरु है और स्वयं समुद्र मंथन करने वाला है।
ਆਪੇ ਮਥਿ ਮਥਿ ਤਤੁ ਕਢਾਏ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੨॥
वह स्वयं ही मंथन करके तत्व निकालता है और नाम-रत्न का जाप करने से मन में भक्ति करने का चाव उत्पन्न होता है॥ २ ॥
ਸਖੀ ਮਿਲਹੁ ਮਿਲਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾਹਾ ॥
हे सत्संगी सखियों ! आओ, हम मिलकर भगवान का गुणगान करें।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਹਰਿ ਲਾਹਾ ॥
गुरु के उन्मुख रहकर नाम का जाप करो और भगवान के नाम का लाभ प्राप्त करो।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜੀ ਮਨਿ ਭਾਈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੩॥
मैंने हरि की भक्ति अपने मन में दृढ़ कर ली है और यही मेरे मन को भा गई है। हरि का नाम-सिमरन करने से मन में उत्साह बना रहता है॥ ३॥
ਆਪੇ ਵਡ ਦਾਣਾ ਵਡ ਸਾਹਾ ॥
भगवान स्वयं ही बड़ा चतुर एवं महान् शाह है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪੂੰਜੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਹਾ ॥
गुरु के सान्निध्य में रहकर ही नाम की पूंजी प्राप्त होती है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਾਤਿ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਗੁਣ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੪॥੪॥੧੦॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! कृपा करके मुझे नाम की देन प्रदान करो क्योंकि तेरे ही गुण मुझे भाते हैं और मेरे हृदय में नाम का उत्साह बना रहे ॥४॥४॥१०॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
जैतसरी महला ४ ॥
ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਸੰਗਿ ਗੁਰਾਹਾ ॥
मैं सतसंगति में मिलकर गुरु की संगत करता हूँ
ਪੂੰਜੀ ਨਾਮੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੇਸਾਹਾ ॥
नाम की पूंजी संचित करता हूँ।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਧਾਰਿ ਮਧੁਸੂਦਨ ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੧॥
हे मधुसूदन ! हे हरि ! मुझ पर कृपा करो ताकि सतसंगति में मिलकर मन में तेरी भक्ति करने के लिए तीव्र लालसा बनी रहे॥ १॥
ਹਰਿ ਗੁਣ ਬਾਣੀ ਸ੍ਰਵਣਿ ਸੁਣਾਹਾ ॥ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮਿਲਾਹਾ ॥
वाणी द्वारा अपने कानों से भगवान के गुण श्रवण करूँ हे परमेश्वर ! कृपा करके मुझे सतगुरु से मिला दो।
ਗੁਣ ਗਾਵਹ ਗੁਣ ਬੋਲਹ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਜਪਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੨॥
मैं हरि का गुणगान करूँ, वाणी द्वारा तेरे गुण उच्चारण करूँ और हरि के गुण जपकर मेरे मन में तुझे मिलने के लिए उत्साह बना रहे ॥२॥
ਸਭਿ ਤੀਰਥ ਵਰਤ ਜਗ ਪੁੰਨ ਤੋੁਲਾਹਾ ॥
मैंने समस्त तीर्थ, व्रत, यज्ञ एवं दान पुण्य के फलों को तोल लिया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨ ਪੁਜਹਿ ਪੁਜਾਹਾ ॥
परन्तु यह सभी हरि-नाम सिमरण के बराबर नहीं पहुँचते।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਤੁਲੁ ਤੋਲੁ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ਗੁਰਮਤਿ ਜਪਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੩॥
हरि का नाम अतुलनीय है, अत्यन्त महान् होने के कारण इसे तोला नहीं जा सकता, गुरु के उपदेश द्वारा ही हरि-नाम का जाप करने का उत्साह पैदा होता है॥ ३॥
ਸਭਿ ਕਰਮ ਧਰਮ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਹਾ ॥
जो हरि-नाम जपता है, उसे सभी धर्म-कर्मो का फल मिल जाता है,
ਕਿਲਵਿਖ ਮੈਲੁ ਪਾਪ ਧੋਵਾਹਾ ॥
इससे किल्विष-पापों की सारी मैल धुल जाती है।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਹੋਹੁ ਜਨ ਊਪਰਿ ਦੇਹੁ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਓਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੪॥੫॥੧੧॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे दीनदयालु ! अपने सेवक पर दयालु हो जाओ तथा मेरे हृदय में अपना नाम देकर उत्साह बनाए रखो ॥४॥५॥११॥