Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 700

Page 700

ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ जैतसरी महला ५ घरु ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕੋਈ ਜਾਨੈ ਕਵਨੁ ਈਹਾ ਜਗਿ ਮੀਤੁ ॥ कोई विरला ही जानता है कि इस दुनिया में हमारा कौन घनिष्ठ मित्र है ?
ਜਿਸੁ ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਸੋਈ ਬਿਧਿ ਬੂਝੈ ਤਾ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिस पर भगवान कृपालु होता है, वही इस तथ्य को भलीभांति बूझता है और उसका जीवन-आचरण पवित्र बन जाता है॥१॥ रहाउ॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਬਨਿਤਾ ਸੁਤ ਬੰਧਪ ਇਸਟ ਮੀਤ ਅਰੁ ਭਾਈ ॥ माता-पिता, पत्नी, पुत्र, संबंधी, परम मित्र एवं भाई-"
ਪੂਰਬ ਜਨਮ ਕੇ ਮਿਲੇ ਸੰਜੋਗੀ ਅੰਤਹਿ ਕੋ ਨ ਸਹਾਈ ॥੧॥ पूर्व जन्म के संयोग से ही मिलते हैं, लेकिन जीवन के अन्तिम समय में कोई सहायक नहीं होता ॥ १ ॥
ਮੁਕਤਿ ਮਾਲ ਕਨਿਕ ਲਾਲ ਹੀਰਾ ਮਨ ਰੰਜਨ ਕੀ ਮਾਇਆ ॥ मोतियों की मालाएँ, स्वर्ण, जवाहरात एवं हीरे मन को आनंद देने वाली दौलत है।
ਹਾ ਹਾ ਕਰਤ ਬਿਹਾਨੀ ਅਵਧਹਿ ਤਾ ਮਹਿ ਸੰਤੋਖੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੨॥ मनुष्य की जीवन-अवधि इन्हें एकत्र करने के दु:ख में व्यतीत हो जाती है किन्तु इन सबकी उपलब्धि होने पर मनुष्य को संतोष प्राप्त नहीं होता।॥ २॥
ਹਸਤਿ ਰਥ ਅਸ੍ਵ ਪਵਨ ਤੇਜ ਧਣੀ ਭੂਮਨ ਚਤੁਰਾਂਗਾ ॥ मनुष्य के पास चाहे हाथी, रथ, पवन की तरह तेज चलने वाले घोड़े, धन-दौलत, भूमि एवं चतुरंगिणी सेना भी क्यों न हो,
ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲਿਓ ਇਨ ਮਹਿ ਕਛੂਐ ਊਠਿ ਸਿਧਾਇਓ ਨਾਂਗਾ ॥੩॥ इनमें से कुछ भी मनुष्य के साथ नहीं जाता और वह नग्न ही दुनिया को छोड़कर चला जाता है॥ ३॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਤਾ ਕੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਾਈਐ ॥ हरि के संतजन प्रियतम प्रभु के प्रिय होते हैं, इसलिए हमें उनकी संगति में रहकर सदैव भगवान का यशोगान करना चाहिए।
ਨਾਨਕ ਈਹਾ ਸੁਖੁ ਆਗੈ ਮੁਖ ਊਜਲ ਸੰਗਿ ਸੰਤਨ ਕੈ ਪਾਈਐ ॥੪॥੧॥ हे नानक ! ऐसे संतों की संगति में रहने से मनुष्य को इहलोक में सुख प्राप्त होता है और आगे परलोक में भी बड़ी शोभा प्राप्त होती है।॥४॥ १॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ ਦੁਪਦੇ जैतसरी महला ५ घरु ३ दुपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਦੇਹੁ ਸੰਦੇਸਰੋ ਕਹੀਅਉ ਪ੍ਰਿਅ ਕਹੀਅਉ ॥ हे सत्संगी सुहागिन सखियों ! मुझे मेरे प्रियतम-परमेश्वर का सन्देश दो, उस प्रिय के बारे में कुछ तो बताओ।
ਬਿਸਮੁ ਭਈ ਮੈ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਸੁਨਤੇ ਕਹਹੁ ਸੁਹਾਗਨਿ ਸਹੀਅਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उसके बारे में अनेक प्रकार की बातें सुनकर मैं आश्चर्यचकित हो गई हूँ ॥ १॥ रहाउ ॥
ਕੋ ਕਹਤੋ ਸਭ ਬਾਹਰਿ ਬਾਹਰਿ ਕੋ ਕਹਤੋ ਸਭ ਮਹੀਅਉ ॥ कोई कहता है कि वह शरीर से बाहर ही रहता है और कोई कहता है कि वह सबमें समाया हुआ है।
ਬਰਨੁ ਨ ਦੀਸੈ ਚਿਹਨੁ ਨ ਲਖੀਐ ਸੁਹਾਗਨਿ ਸਾਤਿ ਬੁਝਹੀਅਉ ॥੧॥ उसका कोई वर्ण दिखाई नहीं देता और कोई चिन्ह भी दिखाई नहीं देता, हे सुहागिनो ! मुझे सत्य बतलाओ॥ १॥
ਸਰਬ ਨਿਵਾਸੀ ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਾਸੀ ਲੇਪੁ ਨਹੀ ਅਲਪਹੀਅਉ ॥ वह परमेश्वर सब में निवास कर रहा है, प्रत्येक शरीर में वे वास करने वाला है, वह माया से निर्लिप्त है और उस पर जीवों के शुभाशुभ कर्मों का कोई दोष नहीं लगता।
ਨਾਨਕੁ ਕਹਤ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਲੋਗਾ ਸੰਤ ਰਸਨ ਕੋ ਬਸਹੀਅਉ ॥੨॥੧॥੨॥ नानक कहते हैं कि हे लोगो ! ध्यानपूर्वक सुनो, मेरा परमेश्वर तो संतजनों की रसना पर निवास कर रहा है॥ २ ॥ १ ॥ २ ॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਃ ੫ ॥ जैतसरी मः ५ ॥
ਧੀਰਉ ਸੁਨਿ ਧੀਰਉ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अपने प्रभु की महिमा सुनकर मुझे बड़ा धैर्य होता है।॥१॥ रहाउ॥
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸਭੁ ਅਰਪਉ ਨੀਰਉ ਪੇਖਿ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਨੀਰਉ ॥੧॥ अपने प्रभु के अत्यन्त निकट दर्शन करके मैं अपनी आत्मा, प्राण, मन एवं तन सब कुछ उसे अर्पण करता हूँ॥१॥
ਬੇਸੁਮਾਰ ਬੇਅੰਤੁ ਬਡ ਦਾਤਾ ਮਨਹਿ ਗਹੀਰਉ ਪੇਖਿ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ॥੨॥ उस बेशुमार, बेअंत एवं महान् दाता प्रभु को देखकर मैं अपने हृदय में बसाता हूँ ॥२॥
ਜੋ ਚਾਹਉ ਸੋਈ ਸੋਈ ਪਾਵਉ ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਪੂਰਉ ਜਪਿ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ॥੩॥ मैं जो कुछ चाहता हूँ, वही उससे प्राप्त कर लेता हूँ, अपने प्रभु का सिमरन करने से मेरी आशा एवं मनोरथ भी पूर्ण हो जाते हैं।॥३॥
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਦੂਖਿ ਨ ਕਬਹੂ ਝੂਰਉ ਬੁਝਿ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ॥੪॥੨॥੩॥ हे नानक ! गुरु की अपार कृपा से वह मेरे मन में बस गया है और प्रभु को समझकर अब मैं दु:ख में कभी व्याकुल नहीं होता।॥ ४॥ २॥ ३॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ जैतसरी महला ५ ॥
ਲੋੜੀਦੜਾ ਸਾਜਨੁ ਮੇਰਾ ॥ वह मेरा साजन प्रभु ही है, जिसे पाने के लिए प्रत्येक जिज्ञासु के मन में तीव्र लालसा लगी हुई है।
ਘਰਿ ਘਰਿ ਮੰਗਲ ਗਾਵਹੁ ਨੀਕੇ ਘਟਿ ਘਟਿ ਤਿਸਹਿ ਬਸੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अतः घर-घर में उसका मंगल-गान करो, उसका निवास तो प्रत्येक जीव के हृदय में है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੂਖਿ ਅਰਾਧਨੁ ਦੂਖਿ ਅਰਾਧਨੁ ਬਿਸਰੈ ਨ ਕਾਹੂ ਬੇਰਾ ॥ हर्षोल्लास (सुख) के समय उसकी ही आराधना करो एवं किसी संकट काल (दुःख) के समय भी उसकी ही आराधना करो और किसी भी समय उसे कदापि विस्मृत न करो।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਕੋਟਿ ਸੂਰ ਉਜਾਰਾ ਬਿਨਸੈ ਭਰਮੁ ਅੰਧੇਰਾ ॥੧॥ उसके नाम का जाप करने से करोड़ों ही सूर्यो का उजाला हो जाता है एवं भ्रम, अज्ञान के अन्धेरे का नाश हो जाता है॥१॥
ਥਾਨਿ ਥਨੰਤਰਿ ਸਭਨੀ ਜਾਈ ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਤੇਰਾ ॥ हे परमात्मा ! देश-देशान्तर सब में तू ही व्यापक है तथा जो कुछ भी होता है, वह तेरा ही है।
ਸੰਤਸੰਗਿ ਪਾਵੈ ਜੋ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਹੁਰਿ ਨ ਹੋਈ ਹੈ ਫੇਰਾ ॥੨॥੩॥੪॥ हे नानक ! जो व्यक्ति संतों की संगति में रहता है, वह पुनः आवागमन के चक्र में नहीं पड़ता अर्थात् उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।॥२॥३॥४॥


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