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ਜਿਨ ਕਉ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੀ ਜਗਜੀਵਨਿ ਹਰਿ ਉਰਿ ਧਾਰਿਓ ਮਨ ਮਾਝਾ ॥
जिन कउ क्रिपा करी जगजीवनि हरि उरि धारिओ मन माझा ॥
जगत् के जीवन परमात्मा ने जिस पर अपनी कृपा की है, अपने मन एवं हृदय में उसे बसा लिया है।
ਧਰਮ ਰਾਇ ਦਰਿ ਕਾਗਦ ਫਾਰੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਲੇਖਾ ਸਮਝਾ ॥੪॥੫॥
धरम राइ दरि कागद फारे जन नानक लेखा समझा ॥४॥५॥
यमराज ने अपने दरबार में उनके कर्मों के काग़ज़ फाड़ दिए हैं। हे नानक ! उन परमात्मा के भक्तों का लेखा समाप्त हो गया है॥ ४॥ ५ ॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
जैतसरी महला ४ ॥
राग जैतश्री, चौथे गुरु: ४ ॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਪਾਈ ਵਡਭਾਗੀ ਮਨੁ ਚਲਤੌ ਭਇਓ ਅਰੂੜਾ ॥
सतसंगति साध पाई वडभागी मनु चलतौ भइओ अरूड़ा ॥
सौभाग्य से मुझे संतों की सुसंगति प्राप्त हुई है, जिससे मेरा अस्थिर मन स्थिर हो गया है।
ਅਨਹਤ ਧੁਨਿ ਵਾਜਹਿ ਨਿਤ ਵਾਜੇ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰ ਰਸਿ ਲੀੜਾ ॥੧॥
अनहत धुनि वाजहि नित वाजे हरि अम्रित धार रसि लीड़ा ॥१॥
अब मेरे मन में नित्य ही अनहद ध्वनि का नाद बजता रहता है और मैं हरिनामामृत की धारा के रस से तृप्त हो गया हूँ॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਪਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਰੂੜਾ ॥
मेरे मन जपि राम नामु हरि रूड़ा ॥
हे मेरे मन ! सुन्दर हरि का राम-नाम जपो,
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਹਰਿ ਮਿਲਿਓ ਲਾਇ ਝਪੀੜਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरै मनि तनि प्रीति लगाई सतिगुरि हरि मिलिओ लाइ झपीड़ा ॥ रहाउ ॥
गुरु ने मेरे मन एवं तन में प्रीति लगा दी है और भगवान् ने मुझे गले लगा लिया है॥ रहाउ॥
ਸਾਕਤ ਬੰਧ ਭਏ ਹੈ ਮਾਇਆ ਬਿਖੁ ਸੰਚਹਿ ਲਾਇ ਜਕੀੜਾ ॥
साकत बंध भए है माइआ बिखु संचहि लाइ जकीड़ा ॥
भगवान् से विमुख व्यक्ति माया के बन्धनों में फँसे हुए हैं और वे दृढ़ता से विषैली माया को संचित करते रहते हैं।
ਹਰਿ ਕੈ ਅਰਥਿ ਖਰਚਿ ਨਹ ਸਾਕਹਿ ਜਮਕਾਲੁ ਸਹਹਿ ਸਿਰਿ ਪੀੜਾ ॥੨॥
हरि कै अरथि खरचि नह साकहि जमकालु सहहि सिरि पीड़ा ॥२॥
वे इस माया को भगवान् के नाम पर खर्च नहीं कर सकते और अपने सिर पर यमों की पीड़ा ही सहते रहते हैं।॥ २ ॥
ਜਿਨ ਹਰਿ ਅਰਥਿ ਸਰੀਰੁ ਲਗਾਇਆ ਗੁਰ ਸਾਧੂ ਬਹੁ ਸਰਧਾ ਲਾਇ ਮੁਖਿ ਧੂੜਾ ॥
जिन हरि अरथि सरीरु लगाइआ गुर साधू बहु सरधा लाइ मुखि धूड़ा ॥
जिन्होंने अपना शरीर भगवान् की आराधना में लगाया है और बड़ी श्रद्धा से संत गुरुदेव की चरण-धूलि अपने मुख पर लगाई है,
ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਹਰਿ ਸੋਭਾ ਪਾਵਹਿ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਲਗਾ ਮਨਿ ਗੂੜਾ ॥੩॥
हलति पलति हरि सोभा पावहि हरि रंगु लगा मनि गूड़ा ॥३॥
वे इहलोक एवं परलोक में भगवान् की शोभा का पात्र बनते हैं चूंकि उनके मन को भगवान् के प्रेम का गहरा रंग लगा होता है।॥ ३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਮੇਲਿ ਜਨ ਸਾਧੂ ਹਮ ਸਾਧ ਜਨਾ ਕਾ ਕੀੜਾ ॥
हरि हरि मेलि मेलि जन साधू हम साध जना का कीड़ा ॥
हे मेरे परमेश्वर ! मुझे साधुओं की संगति में मिला दो, क्योंकि मैं तो उन साधुजनों का एक कीड़ा ही हूँ।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੀ ਪਗ ਸਾਧ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਪਾਖਾਣੁ ਹਰਿਓ ਮਨੁ ਮੂੜਾ ॥੪॥੬॥
जन नानक प्रीति लगी पग साध गुर मिलि साधू पाखाणु हरिओ मनु मूड़ा ॥४॥६॥
हे नानक ! मेरी प्रीति तो साधु-गुरुदेव के चरणों से ही लगी हुई है और उनसे मिलकर मेरा विमूढ़ कठोर मन खिल गया है॥ ४॥ ६॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੨
जैतसरी महला ४ घरु २
राग जैतश्री, चतुर्थ गुरु, द्वितीय ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਹੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥
हरि हरि सिमरहु अगम अपारा ॥
अगम्य एवं अपरंपार हरि का सिमरन करो,
ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਦੁਖੁ ਮਿਟੈ ਹਮਾਰਾ ॥
जिसु सिमरत दुखु मिटै हमारा ॥
जिसका सिमरन करने से हमारा दुःख मिट जाता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਾਵਹੁ ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ਰਾਮ ॥੧॥
हरि हरि सतिगुरु पुरखु मिलावहु गुरि मिलिऐ सुखु होई राम ॥१॥
हे हरि ! मुझे महापुरुष सतगुरु से मिला दो, क्योंकि गुरु मिलने से ही सुख की प्राप्ति होती है॥१॥
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹੁ ਮੀਤ ਹਮਾਰੇ ॥
हरि गुण गावहु मीत हमारे ॥
हे मेरे मित्रो ! भगवान् के गुण गाओ;
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਖਹੁ ਉਰ ਧਾਰੇ ॥
हरि हरि नामु रखहु उर धारे ॥
हरि-नाम को अपने हृदय में बसाकर रखो।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਚਨ ਸੁਣਾਵਹੁ ਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਪਰਗਟੁ ਹੋਈ ਰਾਮ ॥੨॥
हरि हरि अम्रित बचन सुणावहु गुर मिलिऐ परगटु होई राम ॥२॥
मुझे हरि के अमृत वचन सुनाओ, जब गुरु मिल जाता है तो भगवान् चित में प्रगट हो जाते हैं।॥२॥
ਮਧੁਸੂਦਨ ਹਰਿ ਮਾਧੋ ਪ੍ਰਾਨਾ ॥
मधुसूदन हरि माधो प्राना ॥
हे मधुसूदन ! हे हरि ! हे माधव ! आप ही मेरे प्राण है और
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਮੀਠ ਲਗਾਨਾ ॥
मेरै मनि तनि अम्रित मीठ लगाना ॥
मेरे मन एवं तन को आपका नाम ही अमृत के समान मीठा लगता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਗੁਰੁ ਮੇਲਹੁ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸੋਈ ਰਾਮ ॥੩॥
हरि हरि दइआ करहु गुरु मेलहु पुरखु निरंजनु सोई राम ॥३॥
हे प्रभु ! दया करके मुझे गुरु से मिला दो, क्योंकि वही महापुरुष, माया से निर्लिप्त परमात्मा के समान है ॥३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
हरि हरि नामु सदा सुखदाता ॥
हरि-नाम हमेशा सुख प्रदान करने वाला है।
ਹਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥
हरि कै रंगि मेरा मनु राता ॥
अतः मेरा मन हरि के रंग में ही मग्न रहता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਹਾ ਪੁਰਖੁ ਗੁਰੁ ਮੇਲਹੁ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ਰਾਮ ॥੪॥੧॥੭॥
हरि हरि महा पुरखु गुरु मेलहु गुर नानक नामि सुखु होई राम ॥४॥१॥७॥
हे हरि ! मुझे महापुरुष गुरु से मिला दो, क्योंकि हे नानक ! गुरु के नाम द्वारा ही सुख प्राप्त होता है॥४॥१॥७॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਃ ੪ ॥
जैतसरी मः ४ ॥
राग जैतश्री, चतुर्थ गुरु ४ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਹਾ ॥
हरि हरि हरि हरि नामु जपाहा ॥
सदा-सर्वदा हरि नाम का ही निरन्तर जाप करो;
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਲੈ ਲਾਹਾ ॥
गुरमुखि नामु सदा लै लाहा ॥
गुरु के सन्मुख रहकर सदैव ही नाम का लाभ प्राप्त करो।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਵਹੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੧॥
हरि हरि हरि हरि भगति द्रिड़ावहु हरि हरि नामु ओमाहा राम ॥१॥
अपने मन में भगवानू की भक्ति दृढ़ करो और हरि-नाम के लिए चाहत पैदा करो ॥१॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦਇਆਲੁ ਧਿਆਹਾ ॥
हरि हरि नामु दइआलु धिआहा ॥
दया के घर हरि-नाम का ध्यान करो।
ਹਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ਸਦਾ ਗੁਣ ਗਾਹਾ ॥
हरि कै रंगि सदा गुण गाहा ॥
भगवान् के रंग में मग्न होकर सदा उसका गुणगान करो।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਘੂਮਰਿ ਪਾਵਹੁ ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੨॥
हरि हरि हरि जसु घूमरि पावहु मिलि सतसंगि ओमाहा राम ॥२॥
हरि का यशोगान करो और निष्ठा से उसका ही नृत्य करो और बड़े आनंद से संतों की सभा में सम्मिलित होकर आनंद करो ॥ २ ॥
ਆਉ ਸਖੀ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਹਾ ॥
आउ सखी हरि मेलि मिलाहा ॥
है सत्संगी सखियो। आओ, हम भगवान् की संगति में मिलें और
ਸੁਣਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਨਾਮੁ ਲੈ ਲਾਹਾ ॥
सुणि हरि कथा नामु लै लाहा ॥
हरि-कथा को सुनकर उसके नाम का लाभ प्राप्त करें।