Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 697

Page 697

ਜੈਤਸਰੀ ਮਃ ੪ ॥ जैतसरी मः ४ ॥ राग जैतश्री, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਕਛੂਅ ਨ ਜਾਨਹ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਤੇਰੇ ਮੂਰਖ ਮੁਗਧ ਇਆਨਾ ॥ हम बारिक कछूअ न जानह गति मिति तेरे मूरख मुगध इआना ॥ हे ईश्वर ! हम आपके मूर्ख, नासमझ एवं नादान बालक हैं और आपकी गति एवं महिमा कुछ भी नहीं जानते।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ਦੀਜੈ ਮਤਿ ਊਤਮ ਕਰਿ ਲੀਜੈ ਮੁਗਧੁ ਸਿਆਨਾ ॥੧॥ हरि किरपा धारि दीजै मति ऊतम करि लीजै मुगधु सिआना ॥१॥ हे प्रभु ! कृपा करके उत्तम मति प्रदान कीजिए और मुझ मूर्ख को चतुर बना दीजिए ॥१॥
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਆਲਸੀਆ ਉਘਲਾਨਾ ॥ मेरा मनु आलसीआ उघलाना ॥ मेरा मन बड़ा आलसी एवं निद्रा मग्न वाला है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਨਿ ਮਿਲਾਇਓ ਗੁਰੁ ਸਾਧੂ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਕਪਟ ਖੁਲਾਨਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि हरि आनि मिलाइओ गुरु साधू मिलि साधू कपट खुलाना ॥ रहाउ ॥ मेरे प्रभु ने मुझे साधु रूपी गुरु से मिला दिया है और साधु रूपी गुरु से मिलकर मेरे मन के कपाट खुल गए हैं।॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਵਹੁ ਮੇਰੈ ਹੀਅਰੈ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਨਾਮੁ ਪਰਾਨਾ ॥ गुर खिनु खिनु प्रीति लगावहु मेरै हीअरै मेरे प्रीतम नामु पराना ॥ हे गुरुदेव ! मेरे हृदय में क्षण-क्षण ऐसी प्रीति लगा दो, जो सदैव बढ़ती रहे और प्रियतम का नाम ही प्राण बन जाएँ।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਮਰਿ ਜਾਈਐ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਜਿਉ ਅਮਲੀ ਅਮਲਿ ਲੁਭਾਨਾ ॥੨॥ बिनु नावै मरि जाईऐ मेरे ठाकुर जिउ अमली अमलि लुभाना ॥२॥ हे मेरे ठाकुर ! नाम के बिना तो ऐसे मर जाता हूँ, जैसे कोई नशा करने वाला नशे के बिना उत्तेजित हो रहा है॥ २॥
ਜਿਨ ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੀ ਹਰਿ ਕੇਰੀ ਤਿਨ ਧੁਰਿ ਭਾਗ ਪੁਰਾਨਾ ॥ जिन मनि प्रीति लगी हरि केरी तिन धुरि भाग पुराना ॥ जिनके मन में भगवान् की प्रीति पैदा हो गई है, उनका प्रारम्भ से भाग्योदय हो गया है।
ਤਿਨ ਹਮ ਚਰਣ ਸਰੇਵਹ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਜਿਨ ਹਰਿ ਮੀਠ ਲਗਾਨਾ ॥੩॥ तिन हम चरण सरेवह खिनु खिनु जिन हरि मीठ लगाना ॥३॥ जिन महापुरुषों को भगवान् का नाम बड़ा मीठा लगता है, मैं क्षण-क्षण उनके चरणों की पूजा करता हूँ॥ ३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਧਾਰੀ ਮੇਰੈ ਠਾਕੁਰਿ ਜਨੁ ਬਿਛੁਰਿਆ ਚਿਰੀ ਮਿਲਾਨਾ ॥ हरि हरि क्रिपा धारी मेरै ठाकुरि जनु बिछुरिआ चिरी मिलाना ॥ मेरे ठाकुर हरि-परमेश्वर ने मुझ पर बड़ी कृपा की है और चिरकाल से बिछुड़े हुए सेवक को अपने साथ मिला लिया है।
ਧਨੁ ਧਨੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਿਨਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਤਿਸੁ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥੪॥੩॥ धनु धनु सतिगुरु जिनि नामु द्रिड़ाइआ जनु नानकु तिसु कुरबाना ॥४॥३॥ वह सतगुरु धन्य है, जिसने मेरे हृदय में नाम दृढ़ किया है। नानक तो उस गुरु पर बलिहारी जाता है।॥ ४॥ ३॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ जैतसरी महला ४ ॥ राग जैतश्री, चौथे गुरु: ४ ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਾਜਨੁ ਪੁਰਖੁ ਵਡ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਰਸਕਿ ਰਸਕਿ ਫਲ ਲਾਗਿਬਾ ॥ सतिगुरु साजनु पुरखु वड पाइआ हरि रसकि रसकि फल लागिबा ॥ मुझे सज्जन एवं महापुरुष सतगुरु मिल गए है और अब स्वाद ले-लेकर हरि-नाम रूपी फल खाने लग गया हूँ अर्थात् नाम जपने लग गया हूँ।
ਮਾਇਆ ਭੁਇਅੰਗ ਗ੍ਰਸਿਓ ਹੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਬਿਸੁ ਹਰਿ ਕਾਢਿਬਾ ॥੧॥ माइआ भुइअंग ग्रसिओ है प्राणी गुर बचनी बिसु हरि काढिबा ॥१॥ माया नागिन ने प्राणी को पकड़ा हुआ है किन्तु भगवान् ने गुरु के उपदेश द्वारा माया के विष को बाहर निकाल दिया है॥१॥
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਰਸਿ ਲਾਗਿਬਾ ॥ मेरा मनु राम नाम रसि लागिबा ॥ मेरा मन राम-नाम के रस में मग्न हो गया है अर्थात् राम-नाम जपने लग गया है।
ਹਰਿ ਕੀਏ ਪਤਿਤ ਪਵਿਤ੍ਰ ਮਿਲਿ ਸਾਧ ਗੁਰ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿਬਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि कीए पतित पवित्र मिलि साध गुर हरि नामै हरि रसु चाखिबा ॥ रहाउ ॥ महापुरुष गुरु से मिला कर भगवान् ने पापियों को पवित्र कर दिया है और अब वे हरिनामामृत को ही चखते हैं॥ रहाउ ॥
ਧਨੁ ਧਨੁ ਵਡਭਾਗ ਮਿਲਿਓ ਗੁਰੁ ਸਾਧੂ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਲਿਵ ਉਨਮਨਿ ਲਾਗਿਬਾ ॥ धनु धनु वडभाग मिलिओ गुरु साधू मिलि साधू लिव उनमनि लागिबा ॥ जिसे साधु-गुरु मिल गया है, वह आदमी धन्य है, भाग्यशाली है। साधु से मिलकर, उसका ध्यान सहजावस्था में प्रभु से लग गया है,
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਬੁਝੀ ਸਾਂਤਿ ਪਾਈ ਹਰਿ ਨਿਰਮਲ ਨਿਰਮਲ ਗੁਨ ਗਾਇਬਾ ॥੨॥ त्रिसना अगनि बुझी सांति पाई हरि निरमल निरमल गुन गाइबा ॥२॥ उसके मन की तृष्णाग्नि बुझ गई है और उसे शान्ति प्राप्त हो गई है। अब वह परमात्मा के निर्मल गुण ही गाता है॥२॥
ਤਿਨ ਕੇ ਭਾਗ ਖੀਨ ਧੁਰਿ ਪਾਏ ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰ ਦਰਸੁ ਨ ਪਾਇਬਾ ॥ तिन के भाग खीन धुरि पाए जिन सतिगुर दरसु न पाइबा ॥ जिन्हें सतगुरु के दर्शन प्राप्त नहीं हुए, उनके भाग्य प्रारम्भ से ही क्षीण लिखे गए हैं।
ਤੇ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਪਵਹਿ ਗ੍ਰਭ ਜੋਨੀ ਸਭੁ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਤਿਨ ਜਾਇਬਾ ॥੩॥ ते दूजै भाइ पवहि ग्रभ जोनी सभु बिरथा जनमु तिन जाइबा ॥३॥ द्वैतभाव के कारण वे गर्भ योनियों में ही पड़ते हैं और उनका समूचा जीवन व्यर्थ ही बीत जाता है।॥३॥
ਹਰਿ ਦੇਹੁ ਬਿਮਲ ਮਤਿ ਗੁਰ ਸਾਧ ਪਗ ਸੇਵਹ ਹਮ ਹਰਿ ਮੀਠ ਲਗਾਇਬਾ ॥ हरि देहु बिमल मति गुर साध पग सेवह हम हरि मीठ लगाइबा ॥ हे ईश्वर ! मुझे पवित्र बुद्धि प्रदान करो ताकि मैं गुरु के चरणों की सेवा कर सकूं और आप मुझे मीठे लगने लगे।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਰੇਣ ਸਾਧ ਪਗ ਮਾਗੈ ਹਰਿ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ਦਿਵਾਇਬਾ ॥੪॥੪॥ जनु नानकु रेण साध पग मागै हरि होइ दइआलु दिवाइबा ॥४॥४॥ नानक संत गुरुदेव की चरण-धूलि की ही कामना करता रहता है और प्रभु दयालु होकर यह देन दिलवा देता है॥४॥४॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ जैतसरी महला ४ ॥ राग जैतश्री, चौथे गुरु: ४ ॥
ਜਿਨ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਨ ਬਸਿਓ ਤਿਨ ਮਾਤ ਕੀਜੈ ਹਰਿ ਬਾਂਝਾ ॥ जिन हरि हिरदै नामु न बसिओ तिन मात कीजै हरि बांझा ॥ जिनके हृदय में ईश्वर का नाम नहीं बसा है, परमेश्वर उनकी माता को बाँझ बना दे तो ही अच्छा है।
ਤਿਨ ਸੁੰਞੀ ਦੇਹ ਫਿਰਹਿ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਓਇ ਖਪਿ ਖਪਿ ਮੁਏ ਕਰਾਂਝਾ ॥੧॥ तिन सुंञी देह फिरहि बिनु नावै ओइ खपि खपि मुए करांझा ॥१॥ क्योंकि उनका सूना शरीर नाम के बिना भटकता ही रहता है और वे अपना जीवन विकारों में ही दुःखी होकर नष्ट कर लेते हैं।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਪਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਮਾਝਾ ॥ मेरे मन जपि राम नामु हरि माझा ॥ हे मेरे मन ! राम-नाम का जाप करो, जो तेरे हृदय में ही बसा हुआ है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਧਾਰੀ ਗੁਰਿ ਗਿਆਨੁ ਦੀਓ ਮਨੁ ਸਮਝਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि हरि क्रिपालि क्रिपा प्रभि धारी गुरि गिआनु दीओ मनु समझा ॥ रहाउ ॥ कृपालु हरि-प्रभु ने मुझ पर बड़ी कृपा की है, जिससे गुरु ने मुझे ज्ञान प्रदान किया है और मेरा मन नाम-स्मरण के लाभ को समझ गया है॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਕਲਜੁਗਿ ਪਦੁ ਊਤਮੁ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਸਤਿਗੁਰ ਮਾਝਾ ॥ हरि कीरति कलजुगि पदु ऊतमु हरि पाईऐ सतिगुर माझा ॥ कलियुग में भगवान् की महिमा उत्तम पदवी रखती है और गुरु की दया से ही भगवान् की प्राप्ति होती है।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਜਿਨਿ ਗੁਪਤੁ ਨਾਮੁ ਪਰਗਾਝਾ ॥੨॥ हउ बलिहारी सतिगुर अपुने जिनि गुपतु नामु परगाझा ॥२॥ मैं अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जिन्होंने गुप्त नाम मेरे हृदय में प्रगट कर दिया है॥ २॥
ਦਰਸਨੁ ਸਾਧ ਮਿਲਿਓ ਵਡਭਾਗੀ ਸਭਿ ਕਿਲਬਿਖ ਗਏ ਗਵਾਝਾ ॥ दरसनु साध मिलिओ वडभागी सभि किलबिख गए गवाझा ॥ मैं बड़ा भाग्यशाली हूँ जो मुझे साधु रूपी गुरु के दर्शन प्राप्त हुए हैं और मेरे सभी पाप नष्ट हो गए हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਾਹੁ ਪਾਇਆ ਵਡ ਦਾਣਾ ਹਰਿ ਕੀਏ ਬਹੁ ਗੁਣ ਸਾਝਾ ॥੩॥ सतिगुरु साहु पाइआ वड दाणा हरि कीए बहु गुण साझा ॥३॥ मैंने बड़े चतुर, शाह गुरु को प्राप्त कर लिया है और उनकी शिक्षाओं का पालन करके भगवान् के अनेक दिव्य गुणों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।॥ ३॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top