Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 696

Page 696

ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ जैतसरी महला ४ घरु १ चउपदे राग जैतश्री, चतुर्थ गुरु, प्रथम ताल, चौ-पद:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮੇਰੈ ਹੀਅਰੈ ਰਤਨੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਬਸਿਆ ਗੁਰਿ ਹਾਥੁ ਧਰਿਓ ਮੇਰੈ ਮਾਥਾ ॥ मेरै हीअरै रतनु नामु हरि बसिआ गुरि हाथु धरिओ मेरै माथा ॥ जब गुरु ने मेरे माथे पर अपना (आशीर्वाद का) हाथ रखा तो मेरे हृदय में हरि-नाम रूपी रत्न बस गया।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਦੁਖ ਉਤਰੇ ਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ਰਿਨੁ ਲਾਥਾ ॥੧॥ जनम जनम के किलबिख दुख उतरे गुरि नामु दीओ रिनु लाथा ॥१॥ मेरे जन्म-जन्मांतरों के दुःख दूर हो गए हैं, क्योंकि गुरु ने मुझे परमात्मा का नाम प्रदान किया है और मेरा ऋण उतर गया है॥१ ॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਭਜੁ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਭਿ ਅਰਥਾ ॥ मेरे मन भजु राम नामु सभि अरथा ॥ हे मेरे मन ! राम-नाम का भजन करो, जिससे तेरे सभी कार्य सिद्ध हो जाएँगे।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਜੀਵਨੁ ਬਿਰਥਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरि पूरै हरि नामु द्रिड़ाइआ बिनु नावै जीवनु बिरथा ॥ रहाउ ॥ पूर्ण गुरु ने मेरे हृदय में भगवान् का नाम दृढ़ कर दिया है और नाम के बिना जीवन व्यर्थ है ॥ रहाउ ॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮੂੜ ਭਏ ਹੈ ਮਨਮੁਖ ਤੇ ਮੋਹ ਮਾਇਆ ਨਿਤ ਫਾਥਾ ॥ बिनु गुर मूड़ भए है मनमुख ते मोह माइआ नित फाथा ॥ गुरु के बिना स्वेच्छाचारी मनुष्य मूर्ख बने हुए हैं और नित्य ही माया के मोह में फँसे रहते हैं।
ਤਿਨ ਸਾਧੂ ਚਰਣ ਨ ਸੇਵੇ ਕਬਹੂ ਤਿਨ ਸਭੁ ਜਨਮੁ ਅਕਾਥਾ ॥੨॥ तिन साधू चरण न सेवे कबहू तिन सभु जनमु अकाथा ॥२॥ जिन्होंने कभी भी संतों के चरणों की सेवा नहीं की, उनका समूचा जीवन व्यर्थ ही चला गया है॥२॥
ਜਿਨ ਸਾਧੂ ਚਰਣ ਸਾਧ ਪਗ ਸੇਵੇ ਤਿਨ ਸਫਲਿਓ ਜਨਮੁ ਸਨਾਥਾ ॥ जिन साधू चरण साध पग सेवे तिन सफलिओ जनमु सनाथा ॥ जिन्होंने संत-महात्मा जैसे महापुरुषों के चरणों की सेवा की है, उनका जीवन सफल हो गया है और प्रभु को पा लिया है।
ਮੋ ਕਉ ਕੀਜੈ ਦਾਸੁ ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੋ ਹਰਿ ਦਇਆ ਧਾਰਿ ਜਗੰਨਾਥਾ ॥੩॥ मो कउ कीजै दासु दास दासन को हरि दइआ धारि जगंनाथा ॥३॥ हे जगन्नाथ ! हे हरि ! मुझ पर दया करो और मुझे अपने दासों का दास बना लो॥३॥
ਹਮ ਅੰਧੁਲੇ ਗਿਆਨਹੀਨ ਅਗਿਆਨੀ ਕਿਉ ਚਾਲਹ ਮਾਰਗਿ ਪੰਥਾ ॥ हम अंधुले गिआनहीन अगिआनी किउ चालह मारगि पंथा ॥ हे प्रभु ! मैं अंधा, ज्ञानहीन एवं अज्ञानी हूँ, फिर भला मैं कैसे सन्मार्ग पर चल सकता हूँ।
ਹਮ ਅੰਧੁਲੇ ਕਉ ਗੁਰ ਅੰਚਲੁ ਦੀਜੈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਚਲਹ ਮਿਲੰਥਾ ॥੪॥੧॥ हम अंधुले कउ गुर अंचलु दीजै जन नानक चलह मिलंथा ॥४॥१॥ नानक कहते हैं कि हे गुरु ! मुझ ज्ञान से अन्धे व्यक्ति को अपना आंचल (सहारा) प्रदान कीजिए चूंकि तेरे साथ मिलकर चल सकूं ॥४॥१॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ जैतसरी महला ४ ॥ राग जैतश्री, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹੀਰਾ ਲਾਲੁ ਅਮੋਲਕੁ ਹੈ ਭਾਰੀ ਬਿਨੁ ਗਾਹਕ ਮੀਕਾ ਕਾਖਾ ॥ हीरा लालु अमोलकु है भारी बिनु गाहक मीका काखा ॥ भगवान् का नाम रूपी हीरा बड़ा अनमोल एवं बहुमूल्य है किन्तु ग्राहक के बिना यह नाम रूपी हीरा तिनके के बराबर है।
ਰਤਨ ਗਾਹਕੁ ਗੁਰੁ ਸਾਧੂ ਦੇਖਿਓ ਤਬ ਰਤਨੁ ਬਿਕਾਨੋ ਲਾਖਾ ॥੧॥ रतन गाहकु गुरु साधू देखिओ तब रतनु बिकानो लाखा ॥१॥ जब नाम-रत्न के ग्राहक साधु रूपी गुरु ने देखा तो यह हीरा लाखों में बिकने लगा ॥१॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਗੁਪਤ ਹੀਰੁ ਹਰਿ ਰਾਖਾ ॥ मेरै मनि गुपत हीरु हरि राखा ॥ भगवान् ने मेरे हृदय में यह हीरा गुप्त रूप से रखा हुआ है।
ਦੀਨ ਦਇਆਲਿ ਮਿਲਾਇਓ ਗੁਰੁ ਸਾਧੂ ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਹੀਰੁ ਪਰਾਖਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ दीन दइआलि मिलाइओ गुरु साधू गुरि मिलिऐ हीरु पराखा ॥ रहाउ ॥ जब दीनदयाल परमेश्वर ने मुझे साधु रूपी गुरु से मिला दिया तो गुरु को मिलकर मैंने हीरे को परख लिया ॥ रहाउ॥
ਮਨਮੁਖ ਕੋਠੀ ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰਾ ਤਿਨ ਘਰਿ ਰਤਨੁ ਨ ਲਾਖਾ ॥ मनमुख कोठी अगिआनु अंधेरा तिन घरि रतनु न लाखा ॥ स्वेच्छाचारी व्यक्तियों के हृदय में अज्ञानता का अन्धेरा ही बना रहता है और उनके हृदय-घर में नाम रूपी हीरा दिखाई नहीं देता।
ਤੇ ਊਝੜਿ ਭਰਮਿ ਮੁਏ ਗਾਵਾਰੀ ਮਾਇਆ ਭੁਅੰਗ ਬਿਖੁ ਚਾਖਾ ॥੨॥ ते ऊझड़ि भरमि मुए गावारी माइआ भुअंग बिखु चाखा ॥२॥ वे मूर्ख वीराने में भटक कर ही मर मिट जाते हैं, चूंकि वे तो माया रूपी नागिन का विष ही चखते रहते हैं।॥२॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਾਧ ਮੇਲਹੁ ਜਨ ਨੀਕੇ ਹਰਿ ਸਾਧੂ ਸਰਣਿ ਹਮ ਰਾਖਾ ॥ हरि हरि साध मेलहु जन नीके हरि साधू सरणि हम राखा ॥ हे परमेश्वर ! मुझे महापुरुषों-संतों की संगति से मिला दो और साधु रूपी गुरु की शरण में ही रखो।
ਹਰਿ ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਪਰੇ ਭਾਗਿ ਤੁਮ ਪਾਖਾ ॥੩॥ हरि अंगीकारु करहु प्रभ सुआमी हम परे भागि तुम पाखा ॥३॥ हे हरि ! मुझे अपना बना लो, हे मेरे स्वामी-प्रभु ! मैं भागकर आपके पास आ गया हूँ॥३॥
ਜਿਹਵਾ ਕਿਆ ਗੁਣ ਆਖਿ ਵਖਾਣਹ ਤੁਮ ਵਡ ਅਗਮ ਵਡ ਪੁਰਖਾ ॥ जिहवा किआ गुण आखि वखाणह तुम वड अगम वड पुरखा ॥ मेरी जिह्वा आपके कौन-कौन से गुणों का वर्णन कर सकती है, क्योंकि आप बड़े अगम्य एवं महान् पुरुष हो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਪਾਖਾਣੁ ਡੁਬਤ ਹਰਿ ਰਾਖਾ ॥੪॥੨॥ जन नानक हरि किरपा धारी पाखाणु डुबत हरि राखा ॥४॥२॥ हे नानक ! भगवान् ने बड़ी कृपा की है और उसने मुझ जैसे डूबते हुए पत्थर को बचा लिया है ॥४॥२॥


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