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ਜਿਨਿ ਮਨੁ ਰਾਖਿਆ ਅਗਨੀ ਪਾਇ ॥
जिसने माँ के गर्भ की अग्नि में पैदा करके हमारे मन की रक्षा की है।
ਵਾਜੈ ਪਵਣੁ ਆਖੈ ਸਭ ਜਾਇ ॥੨॥
उस परमात्मा की कृपा से जीवन-साँसें चलती हैं और जीव परस्पर बातचीत करता है ॥२॥
ਜੇਤਾ ਮੋਹੁ ਪਰੀਤਿ ਸੁਆਦ ॥
जितना भी मोह, प्रेम एवं स्वाद है,
ਸਭਾ ਕਾਲਖ ਦਾਗਾ ਦਾਗ ॥
ये सभी हमारे मन को लगे हुए कालिख के केवल दाग ही हैं।
ਦਾਗ ਦੋਸ ਮੁਹਿ ਚਲਿਆ ਲਾਇ ॥
जो मनुष्य अपने चेहरे पर पापों के धब्बे लगवा कर दुनिया से चल देता है,
ਦਰਗਹ ਬੈਸਣ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥੩॥
उसे प्रभु के दरबार में बैठने हेतु स्थान नहीं मिलता॥३॥
ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਆਖਣੁ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ॥
हे परमात्मा, तेरा नाम तेरी कृपा से ही सिमरन हेतु मिलता है,
ਜਿਤੁ ਲਗਿ ਤਰਣਾ ਹੋਰੁ ਨਹੀ ਥਾਉ ॥
जिससे लग कर जीव भवसागर से पार हो जाता है और इस भवसागर में डूबने से बचने के लिए नाम के अतिरिक्त दूसरा कोई सहारा नहीं है।
ਜੇ ਕੋ ਡੂਬੈ ਫਿਰਿ ਹੋਵੈ ਸਾਰ ॥
यदि कोई भवसागर में डूब भी जाए तो नाम द्वारा उसकी पुनः संभाल हो जाती है।
ਨਾਨਕ ਸਾਚਾ ਸਰਬ ਦਾਤਾਰ ॥੪॥੩॥੫॥
हे नानक ! परम-सत्य परमेश्वर सब जीवों को देने वाला है ॥४॥३॥५॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
धनासरी महला १ ॥
ਚੋਰੁ ਸਲਾਹੇ ਚੀਤੁ ਨ ਭੀਜੈ ॥
यदि चोर किसी व्यक्ति की सराहना करे तो उसका चित्त प्रसन्न नहीं होता।
ਜੇ ਬਦੀ ਕਰੇ ਤਾ ਤਸੂ ਨ ਛੀਜੈ ॥
परन्तु यदि चोर उसकी बुराई करे तो उसकी इज्जत तिनका भर भी कम नहीं होती।
ਚੋਰ ਕੀ ਹਾਮਾ ਭਰੇ ਨ ਕੋਇ ॥
चोर की जिम्मेदारी कोई भी नहीं लेता।
ਚੋਰੁ ਕੀਆ ਚੰਗਾ ਕਿਉ ਹੋਇ ॥੧॥
जिसे भगवान ने चोर बना दिया, वह मनुष्य भला कैसे हो सकता है।॥१॥
ਸੁਣਿ ਮਨ ਅੰਧੇ ਕੁਤੇ ਕੂੜਿਆਰ ॥
हे ज्ञानहीन, लालची एवं झूठे मन ! ध्यानपूर्वक सुन,
ਬਿਨੁ ਬੋਲੇ ਬੂਝੀਐ ਸਚਿਆਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरे बिना बोले ही वह सच्चा परमेश्वर तेरे मन की भावना को जानता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਚੋਰੁ ਸੁਆਲਿਉ ਚੋਰੁ ਸਿਆਣਾ ॥
चोर चाहे सुन्दर एवं अक्लमंद हो परन्तु
ਖੋਟੇ ਕਾ ਮੁਲੁ ਏਕੁ ਦੁਗਾਣਾ ॥
उस दुराचारी का मूल्य एक कौड़ी जितना ही होता है।
ਜੇ ਸਾਥਿ ਰਖੀਐ ਦੀਜੈ ਰਲਾਇ ॥
यदि उसे गुणवानों में मिलाकर रख दिया जाए तो
ਜਾ ਪਰਖੀਐ ਖੋਟਾ ਹੋਇ ਜਾਇ ॥੨॥
परखने पर वह खोटा ही पाया जाता है।॥२॥
ਜੈਸਾ ਕਰੇ ਸੁ ਤੈਸਾ ਪਾਵੈ ॥
सच तो यही है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही उसका फल प्राप्त करता है।
ਆਪਿ ਬੀਜਿ ਆਪੇ ਹੀ ਖਾਵੈ ॥
वह शुभाशुभ कर्मों का बीज बोकर स्वयं ही उसका फल खाता है।
ਜੇ ਵਡਿਆਈਆ ਆਪੇ ਖਾਇ ॥
यदि वह स्वयं ही अपनी प्रशंसा करे तो
ਜੇਹੀ ਸੁਰਤਿ ਤੇਹੈ ਰਾਹਿ ਜਾਇ ॥੩॥
जैसे उसकी समझ होती है, वैसे मार्ग पर वह चलता है॥३॥
ਜੇ ਸਉ ਕੂੜੀਆ ਕੂੜੁ ਕਬਾੜੁ ॥
यदि वह अपने झूठ को छिपाने हेतु सैकड़ों झूठी बातें करे,
ਭਾਵੈ ਸਭੁ ਆਖਉ ਸੰਸਾਰੁ ॥
चाहे सारी दुनिया उसे भला पुरुष कहे तो भी वह सत्य के दरबार में मंजूर नहीं होता।
ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਅਧੀ ਪਰਵਾਣੁ ॥
हे प्रभु ! यदि तुझे उपयुक्त लगे तो एक साधारण पुरुष भी परवान हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਜਾਣੈ ਜਾਣੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥੪॥੪॥੬॥
हे नानक ! वह चतुर एवं अन्तर्यामी प्रभु सर्वज्ञाता है।॥४॥४॥६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
धनासरी महला १ ॥
ਕਾਇਆ ਕਾਗਦੁ ਮਨੁ ਪਰਵਾਣਾ ॥
मानव की यह काया कागज है और मन इस पर लिखा हुक्म उसकी किस्मत है।
ਸਿਰ ਕੇ ਲੇਖ ਨ ਪੜੈ ਇਆਣਾ ॥
परन्तु नादान मानव अपने मस्तक पर लिखी हुई किस्मत के लेख को नहीं पढ़ता।
ਦਰਗਹ ਘੜੀਅਹਿ ਤੀਨੇ ਲੇਖ ॥
उस भगवान के दरबार में तीन प्रकार की किस्मत के लेख लिखे जाते हैं।
ਖੋਟਾ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ਵੇਖੁ ॥੧॥
देख लो, खोटा सिक्का वहाँ किसी काम नहीं आता ॥१॥
ਨਾਨਕ ਜੇ ਵਿਚਿ ਰੁਪਾ ਹੋਇ ॥
हे नानक ! यदि सिक्के पर चाँदी हो तो
ਖਰਾ ਖਰਾ ਆਖੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हर कोई उस सिक्के को खरा-खरा कहता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਕਾਦੀ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਮਲੁ ਖਾਇ ॥
काजी कचहरी में झूठा न्याय सुना कर हराम का धन खाता है।
ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਨਾਵੈ ਜੀਆ ਘਾਇ ॥
ब्राह्मण अपने इष्ट देवता को बलि देने के लिए जीव-हत्या करके अपने पाप उतारने हेतु तीर्थ पर जाकर स्नान करता है।
ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਨ ਜਾਣੈ ਅੰਧੁ ॥
अन्धा अर्थात् ज्ञानहीन योगी योग साधना की युक्ति नहीं जानता।
ਤੀਨੇ ਓਜਾੜੇ ਕਾ ਬੰਧੁ ॥੨॥
काजी, ब्राह्मण एवं योगी यह तीनों ही जीवों हेतु विनाश का बंधन हैं॥ २॥
ਸੋ ਜੋਗੀ ਜੋ ਜੁਗਤਿ ਪਛਾਣੈ ॥
सच्चा योगी वही है, जो प्रभु-मिलन की युक्ति को समझता है और
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥
जो गुरु की कृपा से एक ईश्वर को जानता है।
ਕਾਜੀ ਸੋ ਜੋ ਉਲਟੀ ਕਰੈ ॥
काजी वही है, जो अपनी मनोवृति को विकारों से बदल लेता है और
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ॥
जो गुरु की कृपा से अपने अहंत्व को मार देता है।
ਸੋ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਜੋ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰੈ ॥
वास्तविक ब्राह्मण वही है, जो ब्रह्म का चिंतन करता है।
ਆਪਿ ਤਰੈ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਤਾਰੈ ॥੩॥
वह भवसागर में से स्वयं तो पार होता ही है और अपने समस्त वंश को भी पार करवा देता है ॥३॥
ਦਾਨਸਬੰਦੁ ਸੋਈ ਦਿਲਿ ਧੋਵੈ ॥
वही आदमी अक्लमंद है, जो अपने मन को स्वच्छ करता है।
ਮੁਸਲਮਾਣੁ ਸੋਈ ਮਲੁ ਖੋਵੈ ॥
वास्तविक मुसलमान वही है, जो अपने मन की अपवित्रता को दूर करता है।
ਪੜਿਆ ਬੂਝੈ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥
वही मनुष्य विद्वान है, जो सत्य को समझता है और ऐसा मनुष्य प्रभु को स्वीकार हो जाता है।
ਜਿਸੁ ਸਿਰਿ ਦਰਗਹ ਕਾ ਨੀਸਾਣੁ ॥੪॥੫॥੭॥
ऐसा मनुष्य वही होता है, जिसके माथे पर सत्य के दरबार की स्वीकृति का चिन्ह लगा होता ॥४॥५॥७॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੩
धनासरी महला १ घरु ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕਾਲੁ ਨਾਹੀ ਜੋਗੁ ਨਾਹੀ ਨਾਹੀ ਸਤ ਕਾ ਢਬੁ ॥
यह योग्य समय नहीं है, इस युग में योग-साधना नहीं हो सकती और सत्य-साधना के मार्ग पर भी चला नहीं जा सकता।
ਥਾਨਸਟ ਜਗ ਭਰਿਸਟ ਹੋਏ ਡੂਬਤਾ ਇਵ ਜਗੁ ॥੧॥
जगत के सभी पूजा-स्थल भ्रष्ट हो गए हैं और यूं समूचा जगत ही तृष्णाग्नि के समुद्र में डूबता जा रहा है॥१॥
ਕਲ ਮਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਾਰੁ ॥
इस कलियुग में राम का नाम सभी धर्म-कर्मों से श्रेष्ठ साधन है।
ਅਖੀ ਤ ਮੀਟਹਿ ਨਾਕ ਪਕੜਹਿ ਠਗਣ ਕਉ ਸੰਸਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुनिया को धोखा देने के लिए पाखण्डी ब्राह्मण अपनी ऑखे मिटकर अपना नाक पकड़ कर कहता है।॥१॥ रहाउ ॥
ਆਂਟ ਸੇਤੀ ਨਾਕੁ ਪਕੜਹਿ ਸੂਝਤੇ ਤਿਨਿ ਲੋਅ ॥
समाधिस्थ होकर पाखण्डी अपने अँगूठे एवं दोनो ऊंगलियों से अपने नाक को पकड़ कर कहता है कि मुझे आकाश, पाताल एवं पृथ्वी ये तीनों लोक दिखाई देते हैं।