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ਮਗਰ ਪਾਛੈ ਕਛੁ ਨ ਸੂਝੈ ਏਹੁ ਪਦਮੁ ਅਲੋਅ ॥੨॥
मगर, उसे अपनी पीठ के पीछे कुछ भी दिखाई नहीं देता। उसका यह पद्मासन कितना अदभुत है ॥२॥
ਖਤ੍ਰੀਆ ਤ ਧਰਮੁ ਛੋਡਿਆ ਮਲੇਛ ਭਾਖਿਆ ਗਹੀ ॥
क्षत्रिय हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करते थे परन्तु अब क्षत्रियों ने अपना धर्म त्याग दिया है और वह मुस्लमानों की भाषा पढ़ने लग गए हैं।
ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਭ ਇਕ ਵਰਨ ਹੋਈ ਧਰਮ ਕੀ ਗਤਿ ਰਹੀ ॥੩॥
सारी सृष्टि एक ही वर्ण की हो गई है और धर्म की प्राचीन प्रचलित मर्यादा मिट गई है॥ ३॥
ਅਸਟ ਸਾਜ ਸਾਜਿ ਪੁਰਾਣ ਸੋਧਹਿ ਕਰਹਿ ਬੇਦ ਅਭਿਆਸੁ ॥
पाणनी ऋषि की रचित व्याकरण के आठ अध्याय एवं वेद व्यास के रचित अठारह पुराणों का विद्वान ध्यानपूर्वक चिंतन करते हैं और वे वेदों का भी अभ्यास करते रहते हैं।
ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਹਰਿ ਕੇ ਮੁਕਤਿ ਨਾਹੀ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ॥੪॥੧॥੬॥੮॥
परन्तु दास नानक यही कहता है कि हरिनाम के बिना मुक्ति संभव नहीं ॥४॥१॥६॥८॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਆਰਤੀ
धनासरी महला १ आरती
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਗਗਨ ਮੈ ਥਾਲੁ ਰਵਿ ਚੰਦੁ ਦੀਪਕ ਬਨੇ ਤਾਰਿਕਾ ਮੰਡਲ ਜਨਕ ਮੋਤੀ ॥
सम्पूर्ण गगन रूपी थाल में सूर्य व चंद्रमा दीपक बने हुए हैं, तारों का समूह जैसे थाल में मोती जड़े हुए हों।
ਧੂਪੁ ਮਲਆਨਲੋ ਪਵਣੁ ਚਵਰੋ ਕਰੇ ਸਗਲ ਬਨਰਾਇ ਫੂਲੰਤ ਜੋਤੀ ॥੧॥
मलय पर्वत की ओर से आने वाली चंदन की सुगंध धूप के समान है, वायु चंवर कर रही है, समस्त वनस्पति जो फूल आदि खिलते हैं, ज्योति स्वरूप अकाल पुरुष की आरती के लिए समर्पित हैं।॥१॥
ਕੈਸੀ ਆਰਤੀ ਹੋਇ ॥ ਭਵ ਖੰਡਨਾ ਤੇਰੀ ਆਰਤੀ ॥
सृष्टि के जीवों का जन्म-मरण नाश करने वाले हे प्रभु ! प्रकृति में तेरी कैसी अलौकिक आरती हो रही है कि
ਅਨਹਤਾ ਸਬਦ ਵਾਜੰਤ ਭੇਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो एक रस वेद ध्वनि हो रही है वह मानो नगारे बज रहे हों ॥१॥ रहाउ॥
ਸਹਸ ਤਵ ਨੈਨ ਨਨ ਨੈਨ ਹਹਿ ਤੋਹਿ ਕਉ ਸਹਸ ਮੂਰਤਿ ਨਨਾ ਏਕ ਤੋੁਹੀ ॥
हे सर्वव्यापक निराकार ईश्वर ! तुम्हारी हज़ारों आँखें हैं, लेकिन निर्गुण स्वरूप में तुम्हारी कोई भी आँख नहीं है, इसी प्रकार हज़ारों तुम्हारी मूर्तियाँ हैं, परंतु तुम्हारा एक भी रूप नहीं है क्योंकि तुम निर्गुण स्वरूप हो,
ਸਹਸ ਪਦ ਬਿਮਲ ਨਨ ਏਕ ਪਦ ਗੰਧ ਬਿਨੁ ਸਹਸ ਤਵ ਗੰਧ ਇਵ ਚਲਤ ਮੋਹੀ ॥੨॥
सर्गुण स्वरूप में तुम्हारे हज़ारों निर्मल चरण-कंवल हैं किंतु तुम्हारा निर्गुण स्वरूप होने के कारण एक भी चरण नहीं है, तुम धाणेन्द्रिय (नासिका) रहित भी हो और तुम्हारी हजारों ही नासिकाएँ हैं; तुम्हारा यह आश्चर्यजनक स्वरूप मुझे मोहित कर रहा है ॥२॥
ਸਭ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਜੋਤਿ ਹੈ ਸੋਇ ॥
सृष्टि के समस्त प्राणियों में उस ज्योति-स्वरूप की ज्योति ही प्रकाशमान है।
ਤਿਸ ਦੈ ਚਾਨਣਿ ਸਭ ਮਹਿ ਚਾਨਣੁ ਹੋਇ ॥
उसी की प्रकाश रूपी कृपा से सभी में जीवन का प्रकाश है।
ਗੁਰ ਸਾਖੀ ਜੋਤਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥
किंतु गुरु उपदेश द्वारा ही इस ज्योति का बोध होता है।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੁ ਆਰਤੀ ਹੋਇ ॥੩॥
जो उस ईश्वर को भला लगता है वही उसकी आरती होती है ॥३॥
ਹਰਿ ਚਰਣ ਕਵਲ ਮਕਰੰਦ ਲੋਭਿਤ ਮਨੋ ਅਨਦਿਨੋੁ ਮੋਹਿ ਆਹੀ ਪਿਆਸਾ ॥
हरि के चरण रूपी पुष्पों के रस को मेरा मन लालायित है, नित्य-प्रति मुझे इसी रस की प्यास रहती है।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਜਲੁ ਦੇਹਿ ਨਾਨਕ ਸਾਰਿੰਗ ਕਉ ਹੋਇ ਜਾ ਤੇ ਤੇਰੈ ਨਾਇ ਵਾਸਾ ॥੪॥੩॥
हे निरंकार ! मुझ नानक पपीहे को अपना कृपा-जल दो, जिससे मेरे मन का टिकाव तुम्हारे नाम में हो जाए ॥४॥१॥७॥९॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੨ ਚਉਪਦੇ
धनासरी महला ३ घरु २ चउपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਇਹੁ ਧਨੁ ਅਖੁਟੁ ਨ ਨਿਖੁਟੈ ਨ ਜਾਇ ॥
यह नाम-धन कदापि खत्म होने वाला नहीं है अर्थात् यह तो अक्षय है, न यह कभी खत्म होता है और न ही यह चोरी होता है।
ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਦਿਖਾਇ ॥
पूर्ण सतगुरु ने मुझे यह दिखा दिया है।
ਅਪੁਨੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕਉ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
मैं अपने पूर्ण सतगुरु पर सदैव ही कुर्बान जाता हूँ।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈ ॥੧॥
गुरु की कृपा से मैंने भगवान को अपने मन में बसा लिया है ॥१॥
ਸੇ ਧਨਵੰਤ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
केवल वही धनवान है, जो हरि-नाम में ध्यान लगाकर रखता हैं।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਧਨੁ ਪਰਗਾਸਿਆ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
पूर्ण गुरु ने मेरे हृदय में हरि-नाम धन का प्रकाश कर दिया है और भगवान की कृपा से यह नाम-धन मेरे मन में आकर बस गया है ॥ रहाउ॥
ਅਵਗੁਣ ਕਾਟਿ ਗੁਣ ਰਿਦੈ ਸਮਾਇ ॥
अवगुण मिटकर गुण आकर उसके हृदय में बस गए हैं जो की
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
पूर्ण गुरु के प्रेम द्वारा सहज स्वभाव ही हुआ है।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ॥
पूर्ण गुरु की वाणी सत्य एवं शाश्वत है और
ਸੁਖ ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਣੀ ॥੨॥
इससे मन में सुख एवं सहजावस्था उत्पन्न हो जाती है।॥ २॥
ਏਕੁ ਅਚਰਜੁ ਜਨ ਦੇਖਹੁ ਭਾਈ ॥
हे लोगो ! हे भाई ! एक आश्चर्य देखो
ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਰਿ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈ ॥
मैंने अपनी दुविधा को मारकर भगवान को अपने हृदय में बसा लिया है।
ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਕੁ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
यह नाम बड़ा अमूल्य है और यह किसी भी मूल्य पर पाया नहीं जा सकता।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥੩॥
यह तो गुरु की कृपा से ही मन में आकर बसता है॥३॥
ਸਭ ਮਹਿ ਵਸੈ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੋ ਸੋਇ ॥
एक प्रभु ही समस्त जीवों में निवास करता है और
ਗੁਰਮਤੀ ਘਟਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥
गुरु के उपदेश द्वारा वह हृदय में ही प्रगट हो जाता है।
ਸਹਜੇ ਜਿਨਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣਿ ਪਛਾਣਿਆ ॥
जिसने सहजावस्था में प्रभु को जान कर पहचान लिया है,