Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 610

Page 610

ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਓ ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਬਿਨਾਸੇ ॥੪॥੫॥ नानक कउ गुरु पूरा भेटिओ सगले दूख बिनासे ॥४॥५॥ नानक की पूर्ण गुरु से भेंट हो गई है और उसके सभी दुःख-क्लेश नष्ट हो गए हैं।॥४॥५॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਸੁਖੀਏ ਕਉ ਪੇਖੈ ਸਭ ਸੁਖੀਆ ਰੋਗੀ ਕੈ ਭਾਣੈ ਸਭ ਰੋਗੀ ॥ सुखीए कउ पेखै सभ सुखीआ रोगी कै भाणै सभ रोगी ॥ आध्यात्मिक रूप से प्रसन्न व्यक्ति को हर कोई प्रसन्न दिखता है; जो व्यक्ति स्वयं विकारों से ग्रस्त है, उसके लिए सारा संसार पापी है।
ਕਰਣ ਕਰਾਵਨਹਾਰ ਸੁਆਮੀ ਆਪਨ ਹਾਥਿ ਸੰਜੋਗੀ ॥੧॥ करण करावनहार सुआमी आपन हाथि संजोगी ॥१॥ भगवान् सब कुछ करने एवं कराने वाला है और सारे संयोग उसके हाथ में हैं॥ १॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਜਿਨਿ ਅਪੁਨਾ ਭਰਮੁ ਗਵਾਤਾ ॥ मन मेरे जिनि अपुना भरमु गवाता ॥ हे मेरे मन ! जिस व्यक्ति ने अपना भ्रम दूर कर दिया है,
ਤਿਸ ਕੈ ਭਾਣੈ ਕੋਇ ਨ ਭੂਲਾ ਜਿਨਿ ਸਗਲੋ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਤਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ तिस कै भाणै कोइ न भूला जिनि सगलो ब्रहमु पछाता ॥ रहाउ ॥ जिसने सबमें विद्यमान ब्रह्म, को पहचान लिया है, उसके अनुसार कोई भी भटका हुआ नहीं है ॥ रहाउ ॥
ਸੰਤ ਸੰਗਿ ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਸੀਤਲੁ ਓਹੁ ਜਾਣੈ ਸਗਲੀ ਠਾਂਢੀ ॥ संत संगि जा का मनु सीतलु ओहु जाणै सगली ठांढी ॥ जिसका मन संतों की सभा में सम्मिलित होकर शीतल हुआ है, वह सबको शांतचित ही जानता है।
ਹਉਮੈ ਰੋਗਿ ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਬਿਆਪਿਤ ਓਹੁ ਜਨਮਿ ਮਰੈ ਬਿਲਲਾਤੀ ॥੨॥ हउमै रोगि जा का मनु बिआपित ओहु जनमि मरै बिललाती ॥२॥ जिसका मन अहंकार के रोग से ग्रस्त है, वह जीवन-मृत्यु में फँसकर रोता रहता है।॥ २॥
ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਜਾ ਕੀ ਨੇਤ੍ਰੀ ਪੜਿਆ ਤਾ ਕਉ ਸਰਬ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ॥ गिआन अंजनु जा की नेत्री पड़िआ ता कउ सरब प्रगासा ॥ जिसके नेत्रों में ब्रह्म-ज्ञान का अञ्जन (सुरमा) पड़ा है, उसे हर तरफ उजाला ही नज़र आता है।
ਅਗਿਆਨਿ ਅੰਧੇਰੈ ਸੂਝਸਿ ਨਾਹੀ ਬਹੁੜਿ ਬਹੁੜਿ ਭਰਮਾਤਾ ॥੩॥ अगिआनि अंधेरै सूझसि नाही बहुड़ि बहुड़ि भरमाता ॥३॥ अज्ञानता के अन्धकार में फँसे अज्ञानी को कुछ भी सूझ नहीं आती और वह बार-बार आवागमन में भटकता है॥ ३॥
ਸੁਣਿ ਬੇਨੰਤੀ ਸੁਆਮੀ ਅਪੁਨੇ ਨਾਨਕੁ ਇਹੁ ਸੁਖੁ ਮਾਗੈ ॥ सुणि बेनंती सुआमी अपुने नानकु इहु सुखु मागै ॥ हे स्वामी ! मेरी विनती सुनो; नानक आपसे यही सुख माँगता है कि
ਜਹ ਕੀਰਤਨੁ ਤੇਰਾ ਸਾਧੂ ਗਾਵਹਿ ਤਹ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਲਾਗੈ ॥੪॥੬॥ जह कीरतनु तेरा साधू गावहि तह मेरा मनु लागै ॥४॥६॥ जहाँ साधु आपकी कीर्ति-गान करते हैं, मेरा मन वहाँ ही लगा रहे ॥४॥६॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਤਨੁ ਸੰਤਨ ਕਾ ਧਨੁ ਸੰਤਨ ਕਾ ਮਨੁ ਸੰਤਨ ਕਾ ਕੀਆ ॥ तनु संतन का धनु संतन का मनु संतन का कीआ ॥ मैंने अपना यह तन, धन एवं मन सब कुछ संतों को सौंप दिया है।
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਸਰਬ ਕੁਸਲ ਤਬ ਥੀਆ ॥੧॥ संत प्रसादि हरि नामु धिआइआ सरब कुसल तब थीआ ॥१॥ संतों के प्रसाद से जब मैंने हरि-नाम का ध्यान किया तो सर्व सुख प्राप्त हो गए ॥१॥
ਸੰਤਨ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦਾਤਾ ਬੀਆ ॥ संतन बिनु अवरु न दाता बीआ ॥ संतों के अतिरिक्त, दूसरा कोई नाम का दान देने वाला नहीं।
ਜੋ ਜੋ ਸਰਣਿ ਪਰੈ ਸਾਧੂ ਕੀ ਸੋ ਪਾਰਗਰਾਮੀ ਕੀਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जो जो सरणि परै साधू की सो पारगरामी कीआ ॥ रहाउ ॥ जो कोई भी संतों की शरण में आता है, वह भवसागर से पार हो जाता है ॥ रहाउ ॥
ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਮਿਟਹਿ ਜਨ ਸੇਵਾ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਰਸਿ ਗਾਈਐ ॥ कोटि पराध मिटहि जन सेवा हरि कीरतनु रसि गाईऐ ॥ भगवान् के भक्तों की निष्काम सेवा करने एवं हरि का रसपूर्वक भजन-कीर्तन करने से करोड़ों अपराध मिट जाते हैं।
ਈਹਾ ਸੁਖੁ ਆਗੈ ਮੁਖ ਊਜਲ ਜਨ ਕਾ ਸੰਗੁ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਈਐ ॥੨॥ ईहा सुखु आगै मुख ऊजल जन का संगु वडभागी पाईऐ ॥२॥ भक्त की संगति करने से इहलोक में सुख प्राप्त होता है और परलोक में मुख उज्ज्वल हो जाता है परन्तु भक्त की संगति बड़े भाग्य से मिलती है।॥२॥
ਰਸਨਾ ਏਕ ਅਨੇਕ ਗੁਣ ਪੂਰਨ ਜਨ ਕੀ ਕੇਤਕ ਉਪਮਾ ਕਹੀਐ ॥ रसना एक अनेक गुण पूरन जन की केतक उपमा कहीऐ ॥ मैं नहीं जानता कि गुरु की महिमा का वर्णन कहाँ तक करूँ, क्योंकि मेरी तो केवल एक जिह्वा है और गुरु में तो अनगिनत दिव्य गुण समाए हुए हैं।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਸਦ ਅਬਿਨਾਸੀ ਸਰਣਿ ਸੰਤਨ ਕੀ ਲਹੀਐ ॥੩॥ अगम अगोचर सद अबिनासी सरणि संतन की लहीऐ ॥३॥ उस अगम्य, अगोचर एवं सदा अनश्वर परमात्मा की प्राप्ति संतों की शरण में आने से ही होती है।॥३॥
ਨਿਰਗੁਨ ਨੀਚ ਅਨਾਥ ਅਪਰਾਧੀ ਓਟ ਸੰਤਨ ਕੀ ਆਹੀ ॥ निरगुन नीच अनाथ अपराधी ओट संतन की आही ॥ मैं निर्गुण, नीच, अनाथ एवं अपराधी संतों की शरण की ही कामना करता हूँ।
ਬੂਡਤ ਮੋਹ ਗ੍ਰਿਹ ਅੰਧ ਕੂਪ ਮਹਿ ਨਾਨਕ ਲੇਹੁ ਨਿਬਾਹੀ ॥੪॥੭॥ बूडत मोह ग्रिह अंध कूप महि नानक लेहु निबाही ॥४॥७॥ दास नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! मैं तो पारिवारिक मोह के अन्धे कुएँ में ही डूब रहा हूँ, इसलिए मेरा साथ निभाकर मेरी रक्षा करो॥ ४॥ ७॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ॥ सोरठि महला ५ घरु १ ॥ राग सोरठ, पंचम गुरु, प्रथम ताल: १ ॥
ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਆ ਤੂ ਕਰਤੇ ਤਾ ਕੀ ਤੈਂ ਆਸ ਪੁਜਾਈ ॥ जा कै हिरदै वसिआ तू करते ता की तैं आस पुजाई ॥ हे सृष्टिकर्ता! आप जिसके हृदय में भी निवास करते हैं, आपने उसकी मनोकामनाएँ पूरी कर दी है।
ਦਾਸ ਅਪੁਨੇ ਕਉ ਤੂ ਵਿਸਰਹਿ ਨਾਹੀ ਚਰਣ ਧੂਰਿ ਮਨਿ ਭਾਈ ॥੧॥ दास अपुने कउ तू विसरहि नाही चरण धूरि मनि भाई ॥१॥ हे प्रभु, आप अपने भक्तों के हृदय से कभी विलग नहीं होते, क्योंकि आपकी प्रेममयी भक्ति उनके मन को परम सुख प्रदान करती है।॥ १॥
ਤੇਰੀ ਅਕਥ ਕਥਾ ਕਥਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥ तेरी अकथ कथा कथनु न जाई ॥ आपकी अकथनीय कथा कथन नहीं की जा सकती।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਸੁਖਦਾਤੇ ਸੁਆਮੀ ਸਭ ਤੇ ਊਚ ਬਡਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ गुण निधान सुखदाते सुआमी सभ ते ऊच बडाई ॥ रहाउ ॥ हे गुणनिधान ! हे सुखदाता स्वामी ! आपकी प्रतिष्ठा सर्वोच्च है॥ रहाउ॥
ਸੋ ਸੋ ਕਰਮ ਕਰਤ ਹੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜੈਸੀ ਤੁਮ ਲਿਖਿ ਪਾਈ ॥ सो सो करम करत है प्राणी जैसी तुम लिखि पाई ॥ प्राणी वही कर्म करता है, जैसा कर्म आपने उसके भाग्य में लिख दिया है।
ਸੇਵਕ ਕਉ ਤੁਮ ਸੇਵਾ ਦੀਨੀ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਅਘਾਈ ॥੨॥ सेवक कउ तुम सेवा दीनी दरसनु देखि अघाई ॥२॥ अपने सेवक को आपने सेवा-भक्ति दी हुई है और आपके दर्शन प्राप्त करके वह तृप्त हो गया है॥ २॥
ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਤੁਮਹਿ ਸਮਾਨੇ ਜਾ ਕਉ ਤੁਧੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਈ ॥ सरब निरंतरि तुमहि समाने जा कउ तुधु आपि बुझाई ॥ हे भगवान् ! समस्त जीवों में निरन्तर आप ही विद्यमान है और जिसे आप सूझ प्रदान करते है वही इसे समझता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਮਿਟਿਓ ਅਗਿਆਨਾ ਪ੍ਰਗਟ ਭਏ ਸਭ ਠਾਈ ॥੩॥ गुर परसादि मिटिओ अगिआना प्रगट भए सभ ठाई ॥३॥ गुरु की अपार कृपा से उसका अज्ञान मिट गया है और वह सर्वत्र प्रख्यात हो गया है॥ ३॥
ਸੋਈ ਗਿਆਨੀ ਸੋਈ ਧਿਆਨੀ ਸੋਈ ਪੁਰਖੁ ਸੁਭਾਈ ॥ सोई गिआनी सोई धिआनी सोई पुरखु सुभाई ॥ नानक कहते हैं कि वही ज्ञानी है, वही ध्यानी है और वही पुरुष भद्र स्वभाव वाला है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਭਏ ਦਇਆਲਾ ਤਾ ਕਉ ਮਨ ਤੇ ਬਿਸਰਿ ਨ ਜਾਈ ॥੪॥੮॥ कहु नानक जिसु भए दइआला ता कउ मन ते बिसरि न जाई ॥४॥८॥ जिस पर ईश्वर दया करते हैं, वह उसे अपने मन से कभी नहीं भुलाता ॥४॥८॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਮੋਹਿ ਵਿਆਪੀ ਕਬ ਊਚੇ ਕਬ ਨੀਚੇ ॥ सगल समग्री मोहि विआपी कब ऊचे कब नीचे ॥ सारी दुनिया मोह में फँसी हुई है, परिणामस्वरूप मनुष्य कभी ऊँचा हो जाता है और कभी निम्न हो जाता है।
ਸੁਧੁ ਨ ਹੋਈਐ ਕਾਹੂ ਜਤਨਾ ਓੜਕਿ ਕੋ ਨ ਪਹੂਚੇ ॥੧॥ सुधु न होईऐ काहू जतना ओड़कि को न पहूचे ॥१॥ हम अपने प्रयत्नों मात्र से सांसारिक मोह-माया से मुक्त नहीं हो सकते; इसीलिए कोई भी व्यक्ति केवल अपने बलबूते जीवन के परम उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर सकता।


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