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ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਭਾਈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੩॥
वडभागी गुरु पाइआ भाई हरि हरि नामु धिआइ ॥३॥
हे भाई ! वह व्यक्ति वास्तव में भाग्यशाली होता है जिसे सद्गुरु का सान्निध्य प्राप्त होता है और जो उनकी शिक्षाओं का पालन करता है। ऐसा भक्त सदा प्रेमपूर्वक भगवान् के नाम का स्मरण करता है। ॥ ३॥
ਸਚੁ ਸਦਾ ਹੈ ਨਿਰਮਲਾ ਭਾਈ ਨਿਰਮਲ ਸਾਚੇ ਸੋਇ ॥
सचु सदा है निरमला भाई निरमल साचे सोइ ॥
हे भाई ! परम-सत्य प्रभु हमेशा पवित्र है और वही पवित्र हैं जो सच्चे हैं।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਆਪਣੀ ਭਾਈ ਤਿਸੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥
नदरि करे जिसु आपणी भाई तिसु परापति होइ ॥
हे भाई ! जिस पर प्रभु की करुणा-दृष्टि होती है, उसे वह प्राप्त हो जाता है।
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਜਨੁ ਪਾਈਐ ਭਾਈ ਵਿਰਲਾ ਕੋਈ ਕੋਇ ॥
कोटि मधे जनु पाईऐ भाई विरला कोई कोइ ॥
करोड़ों में से कोई विरला पुरुष ही प्रभु-भक्त मिलता है।
ਨਾਨਕ ਰਤਾ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਭਾਈ ਸੁਣਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥੪॥੨॥
नानक रता सचि नामि भाई सुणि मनु तनु निरमलु होइ ॥४॥२॥
नानक कहते हैं कि हे भाई ! भक्त तो सत्य-नाम में ही मग्न रहता है और जिसे सुनकर मन, तन पावन हो जाता है॥ ४॥ २॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਤੁਕੇ ॥
सोरठि महला ५ दुतुके ॥
राग सोरठ, पांचवें गुरु, दोहे: ॥
ਜਉ ਲਉ ਭਾਉ ਅਭਾਉ ਇਹੁ ਮਾਨੈ ਤਉ ਲਉ ਮਿਲਣੁ ਦੂਰਾਈ ॥
जउ लउ भाउ अभाउ इहु मानै तउ लउ मिलणु दूराई ॥
यह मन जब तक किसी से स्नेह एवं वैर-विरोध करता है, तब तक उसके लिए भगवान् से मिलन करना असंभव है।
ਆਨ ਆਪਨਾ ਕਰਤ ਬੀਚਾਰਾ ਤਉ ਲਉ ਬੀਚੁ ਬਿਖਾਈ ॥੧॥
आन आपना करत बीचारा तउ लउ बीचु बिखाई ॥१॥
जब तक मनुष्य अपने-पराए पर ही विचार करता है, तब तक उसके और ईश्वर के बीच सांसारिक आसक्तियों का विषैला आवरण बना रहता है।॥ १॥
ਮਾਧਵੇ ਐਸੀ ਦੇਹੁ ਬੁਝਾਈ ॥
माधवे ऐसी देहु बुझाई ॥
हे भगवान् ! मुझे ऐसी सुमति दीजिए कि
ਸੇਵਉ ਸਾਧ ਗਹਉ ਓਟ ਚਰਨਾ ਨਹ ਬਿਸਰੈ ਮੁਹਤੁ ਚਸਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
सेवउ साध गहउ ओट चरना नह बिसरै मुहतु चसाई ॥ रहाउ ॥
मैं संतों की सेवा में ही तल्लीन रहूँ, उनके चरणों का आश्रय लूं और आप मुझे एक क्षण एवं पल भर के लिए विस्मृत न हो सको ॥ रहाउ ॥
ਰੇ ਮਨ ਮੁਗਧ ਅਚੇਤ ਚੰਚਲ ਚਿਤ ਤੁਮ ਐਸੀ ਰਿਦੈ ਨ ਆਈ ॥
रे मन मुगध अचेत चंचल चित तुम ऐसी रिदै न आई ॥
हे मेरे मूर्ख, अचेत एवं चंचल मन ! तेरे चित्त को ऐसी बात नहीं सूझी कि
ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਤਿਆਗਿ ਆਨ ਤੂ ਰਚਿਆ ਉਰਝਿਓ ਸੰਗਿ ਬੈਰਾਈ ॥੨॥
प्रानपति तिआगि आन तू रचिआ उरझिओ संगि बैराई ॥२॥
प्राणपति प्रभु को त्याग कर तू द्वैतभाव में मगन है और तू अपने शत्रुओं-कामवासना, अहंकार, लोभ, क्रोध, मोह के संग उलझा रहता है॥ २॥
ਸੋਗੁ ਨ ਬਿਆਪੈ ਆਪੁ ਨ ਥਾਪੈ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਬੁਧਿ ਪਾਈ ॥
सोगु न बिआपै आपु न थापै साधसंगति बुधि पाई ॥
संतों की पावन संगति में मुझे यह बुद्धि प्राप्त हुई है कि आत्माभिमान को स्थापित न करने से कोई शोक व्याप्त नहीं होता।
ਸਾਕਤ ਕਾ ਬਕਨਾ ਇਉ ਜਾਨਉ ਜੈਸੇ ਪਵਨੁ ਝੁਲਾਈ ॥੩॥
साकत का बकना इउ जानउ जैसे पवनु झुलाई ॥३॥
भगवान् से विमुख मनुष्य की वार्ता को यूं समझो जैसे कोई हवा का झोंका कहीं उड़ जाता है ॥३॥
ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਅਛਾਦਿਓ ਇਹੁ ਮਨੁ ਕਹਣਾ ਕਛੂ ਨ ਜਾਈ ॥
कोटि पराध अछादिओ इहु मनु कहणा कछू न जाई ॥
यह चंचल मन करोड़ों ही अपराधों से ढ़का हुआ है, इसकी दुर्दशा के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਦੀਨ ਸਰਨਿ ਆਇਓ ਪ੍ਰਭ ਸਭੁ ਲੇਖਾ ਰਖਹੁ ਉਠਾਈ ॥੪॥੩॥
जन नानक दीन सरनि आइओ प्रभ सभु लेखा रखहु उठाई ॥४॥३॥
हे प्रभु ! नानक तो दीन होकर आपकी शरण में आया है, आप उसके कर्मो का प्रत्येक लेखा खत्म कर दे ॥ ४॥ ३॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਲੋਕ ਗ੍ਰਿਹ ਬਨਿਤਾ ਮਾਇਆ ਸਨਬੰਧੇਹੀ ॥
पुत्र कलत्र लोक ग्रिह बनिता माइआ सनबंधेही ॥
पुत्र, पत्नी, घर के सदस्य तथा अन्य महिला इत्यादि सभी धन-दौलत के संबंधी ही हैं।
ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਕੋ ਖਰਾ ਨ ਹੋਸੀ ਸਭ ਮਿਥਿਆ ਅਸਨੇਹੀ ॥੧॥
अंत की बार को खरा न होसी सभ मिथिआ असनेही ॥१॥
जीवन के अन्तिम क्षणों में इन में से किसी ने भी साथ नहीं देना, क्योंकि ये सभी झूठे हमदर्दी ही हैं॥ १॥
ਰੇ ਨਰ ਕਾਹੇ ਪਪੋਰਹੁ ਦੇਹੀ ॥
रे नर काहे पपोरहु देही ॥
हे मानव ! तुम क्यों शरीर से ही दुलार करते रहते हो ?
ਊਡਿ ਜਾਇਗੋ ਧੂਮੁ ਬਾਦਰੋ ਇਕੁ ਭਾਜਹੁ ਰਾਮੁ ਸਨੇਹੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
ऊडि जाइगो धूमु बादरो इकु भाजहु रामु सनेही ॥ रहाउ ॥
यह तो धुएं के बादल की तरह उड़ जाएगा। इसलिए एक ईश्वर का ही भजन कर, जो तेरा सच्चा हमदर्द है ॥ रहाउ ॥
ਤੀਨਿ ਸੰਙਿਆ ਕਰਿ ਦੇਹੀ ਕੀਨੀ ਜਲ ਕੂਕਰ ਭਸਮੇਹੀ ॥
तीनि संङिआ करि देही कीनी जल कूकर भसमेही ॥
स्रष्टा ने शरीर का निर्माण करते समय उसका अन्त तीन प्रकार से नियत किया है। १. शरीर का जल प्रवाह, २. शरीर को कुत्तों के हवाले करना ३. शरीर को जलाकर भस्म करना।
ਹੋਇ ਆਮਰੋ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਬੈਠਾ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਬਿਸਰੋਹੀ ॥੨॥
होइ आमरो ग्रिह महि बैठा करण कारण बिसरोही ॥२॥
परंतु तुम स्वयं को अमर समझकर, समस्त कारणों और कर्ता ईश्वर को भुला बैठे हो, और अहंकारवश अपने ही घर में जड़वत बैठे हो। ॥२॥
ਅਨਿਕ ਭਾਤਿ ਕਰਿ ਮਣੀਏ ਸਾਜੇ ਕਾਚੈ ਤਾਗਿ ਪਰੋਹੀ ॥
अनिक भाति करि मणीए साजे काचै तागि परोही ॥
भगवान् ने अनेक विधियों से जीव रूपी मोती बनाए हैं और उन्हें जीवन रूपी कमजोर धागे में पिरो दिया है।
ਤੂਟਿ ਜਾਇਗੋ ਸੂਤੁ ਬਾਪੁਰੇ ਫਿਰਿ ਪਾਛੈ ਪਛੁਤੋਹੀ ॥੩॥
तूटि जाइगो सूतु बापुरे फिरि पाछै पछुतोही ॥३॥
हे बेचारे मनुष्य ! धागा टूट जाएगा और तू उसके उपरांत पछताता रहेगा ॥३॥
ਜਿਨਿ ਤੁਮ ਸਿਰਜੇ ਸਿਰਜਿ ਸਵਾਰੇ ਤਿਸੁ ਧਿਆਵਹੁ ਦਿਨੁ ਰੈਨੇਹੀ ॥
जिनि तुम सिरजे सिरजि सवारे तिसु धिआवहु दिनु रैनेही ॥
हे मानव ! जिसने तुझे बनाया है और बनाकर तुझे संवारा है, दिन-रात उस परमात्मा का सिमरन कर।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰ ਓਟ ਗਹੇਹੀ ॥੪॥੪॥
जन नानक प्रभ किरपा धारी मै सतिगुर ओट गहेही ॥४॥४॥
भक्त नानक कहते हैं कि, "परमात्मा ने मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि की है और मैं दृढ़ता से गुरु की शरण में हूं।" ॥४॥४॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਓ ਵਡਭਾਗੀ ਮਨਹਿ ਭਇਆ ਪਰਗਾਸਾ ॥
गुरु पूरा भेटिओ वडभागी मनहि भइआ परगासा ॥
बड़े ही सौभाग्य से मुझे पूर्ण गुरु का सान्निध्य प्राप्त हुआ है, मैंने श्रद्धापूर्वक उनकी शिक्षाओं का पालन किया है; और अब मेरा मन दिव्य ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हो उठा है।
ਕੋਇ ਨ ਪਹੁਚਨਹਾਰਾ ਦੂਜਾ ਅਪੁਨੇ ਸਾਹਿਬ ਕਾ ਭਰਵਾਸਾ ॥੧॥
कोइ न पहुचनहारा दूजा अपुने साहिब का भरवासा ॥१॥
मैं तो अपने मालिक पर ही आश्वस्त हूँ, कोई अन्य उसके तुल्य पहुँचने वाला नहीं है ॥१॥
ਅਪੁਨੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਬਲਿਹਾਰੈ ॥
अपुने सतिगुर कै बलिहारै ॥
मैं अपने सतगुरु पर बलिहारी हूँ।
ਆਗੈ ਸੁਖੁ ਪਾਛੈ ਸੁਖ ਸਹਜਾ ਘਰਿ ਆਨੰਦੁ ਹਮਾਰੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
आगै सुखु पाछै सुख सहजा घरि आनंदु हमारै ॥ रहाउ ॥
इस संसार में मैं शांत हूँ, और परलोक में दिव्य शांति का अनुभव करूँगा, इसी विश्वास में मेरे मन में गहन आनंद की अनुभूति है। ॥ रहाउ ॥
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਕਰਣੈਹਾਰਾ ਸੋਈ ਖਸਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥
अंतरजामी करणैहारा सोई खसमु हमारा ॥
वह अन्तर्यामी स्रष्टा प्रभु ही हमारे स्वामी हैं।
ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਾਗੇ ਇਕ ਰਾਮ ਨਾਮ ਆਧਾਰਾ ॥੨॥
निरभउ भए गुर चरणी लागे इक राम नाम आधारा ॥२॥
गुरु के चरणों में आने से मैं निर्भीक हो गया हूँ और एक राम नाम ही हमारा आधार बन चुका है ॥२॥
ਸਫਲ ਦਰਸਨੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਹੈ ਭੀ ਹੋਵਨਹਾਰਾ ॥
सफल दरसनु अकाल मूरति प्रभु है भी होवनहारा ॥
उस अकालमूर्ति प्रभु के दर्शन फलदायक हैं, वह वर्तमान में भी स्थित है और भविष्य में भी विद्यमान रहेगा।
ਕੰਠਿ ਲਗਾਇ ਅਪੁਨੇ ਜਨ ਰਾਖੇ ਅਪੁਨੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰਾ ॥੩॥
कंठि लगाइ अपुने जन राखे अपुनी प्रीति पिआरा ॥३॥
वह अपने भक्तों को अपनी प्रीति प्यार द्वारा गले से लगाकर उनकी रक्षा करता है॥ ३॥
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਅਚਰਜ ਸੋਭਾ ਕਾਰਜੁ ਆਇਆ ਰਾਸੇ ॥
वडी वडिआई अचरज सोभा कारजु आइआ रासे ॥
सतगुरु की बड़ी बड़ाई एवं अद्भुत शोभा है, जिसके द्वारा मेरे समस्त कार्य सम्पूर्ण हो गए हैं।