Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 611

Page 611

ਮੇਰੇ ਮਨ ਸਾਧ ਸਰਣਿ ਛੁਟਕਾਰਾ ॥ मेरे मन साध सरणि छुटकारा ॥ हे मेरे मन ! साधुओं की शरण में आने से ही सांसारिक मोह-माया से छुटकारा मिल सकता है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਜਨਮ ਮਰਣੁ ਨ ਰਹਈ ਫਿਰਿ ਆਵਤ ਬਾਰੋ ਬਾਰਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ बिनु गुर पूरे जनम मरणु न रहई फिरि आवत बारो बारा ॥ रहाउ ॥ पूर्ण गुरु बिना जन्म-मरण का चक्र समाप्त नहीं होता अपितु जीव बार-बार दुनिया में आता जाता (जन्मता-मरता) रहता है॥ रहाउ॥
ਓਹੁ ਜੁ ਭਰਮੁ ਭੁਲਾਵਾ ਕਹੀਅਤ ਤਿਨ ਮਹਿ ਉਰਝਿਓ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰਾ ॥ ओहु जु भरमु भुलावा कहीअत तिन महि उरझिओ सगल संसारा ॥ समस्त संसार संशय और भ्रम के जाल में उलझा हुआ है।
ਪੂਰਨ ਭਗਤੁ ਪੁਰਖ ਸੁਆਮੀ ਕਾ ਸਰਬ ਥੋਕ ਤੇ ਨਿਆਰਾ ॥੨॥ पूरन भगतु पुरख सुआमी का सरब थोक ते निआरा ॥२॥ सर्वव्यापी भगवान् का परम भक्त वही है, जो सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर परम सत्य में लीन रहता है।॥ २॥
ਨਿੰਦਉ ਨਾਹੀ ਕਾਹੂ ਬਾਤੈ ਏਹੁ ਖਸਮ ਕਾ ਕੀਆ ॥ निंदउ नाही काहू बातै एहु खसम का कीआ ॥ दुनिया की किसी भी बात से निन्दा मत करो क्योंकि यह सब प्रभु की ही रचना है।
ਜਾ ਕਉ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੀ ਪ੍ਰਭਿ ਮੇਰੈ ਮਿਲਿ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਨਾਉ ਲੀਆ ॥੩॥ जा कउ क्रिपा करी प्रभि मेरै मिलि साधसंगति नाउ लीआ ॥३॥ जिस पर मेरे प्रभु ने कृपा की हुई है, वह संतों की पावन सभा में प्रभु-नाम का भजन करता है॥ ३॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਸਭਨਾ ਕਰਤ ਉਧਾਰਾ ॥ पारब्रहम परमेसुर सतिगुर सभना करत उधारा ॥ परब्रह्म, परमेश्वर सतगुरु सबका उद्धार करता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਨਹੀ ਤਰੀਐ ਇਹੁ ਪੂਰਨ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥੪॥੯॥ कहु नानक गुर बिनु नही तरीऐ इहु पूरन ततु बीचारा ॥४॥९॥ हे नानक ! गुरु बिना भवसागर से पार नहीं हुआ जा सकता, यही पूर्ण तत्व विचार है॥ ४॥ ६॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਖੋਜਿ ਬੀਚਾਰਿਓ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਤਤੁ ਸਾਰਾ ॥ खोजत खोजत खोजि बीचारिओ राम नामु ततु सारा ॥ खोजते-खोजते खोजकर मैंने इस बात पर निष्कर्ष किया है कि राम का नाम ही श्रेष्ठ है।
ਕਿਲਬਿਖ ਕਾਟੇ ਨਿਮਖ ਅਰਾਧਿਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ॥੧॥ किलबिख काटे निमख अराधिआ गुरमुखि पारि उतारा ॥१॥ एक क्षण भर भी इसकी आराधना करने से सब पाप मिट जाते हैं और गुरुमुख बनकर व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है॥ १॥
ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਵਹੁ ਪੁਰਖ ਗਿਆਨੀ ॥ हरि रसु पीवहु पुरख गिआनी ॥ हे ज्ञानी पुरुषो ! हरि रस का पान करो।
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਮਹਾ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਮਨੁ ਪਾਵੈ ਸਾਧੂ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਨੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥ सुणि सुणि महा त्रिपति मनु पावै साधू अम्रित बानी ॥ रहाउ ॥ साधु रूपी गुरु की अमृतवाणी सुन-सुनकर मन को महा-तृप्ति प्राप्त होती है॥ रहाउ॥
ਮੁਕਤਿ ਭੁਗਤਿ ਜੁਗਤਿ ਸਚੁ ਪਾਈਐ ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਕਾ ਦਾਤਾ ॥ मुकति भुगति जुगति सचु पाईऐ सरब सुखा का दाता ॥ अमृतवाणी के फलस्वरूप ही मुक्ति, भुक्ति, युक्ति एवं सत्य की प्राप्ति होती है, जो सर्व सुख देने वाला है।
ਅਪੁਨੇ ਦਾਸ ਕਉ ਭਗਤਿ ਦਾਨੁ ਦੇਵੈ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥੨॥ अपुने दास कउ भगति दानु देवै पूरन पुरखु बिधाता ॥२॥ सर्वव्यापक अकालपुरुष विधाता अपने दास को अपनी भक्ति का दान देता है॥ २॥
ਸ੍ਰਵਣੀ ਸੁਣੀਐ ਰਸਨਾ ਗਾਈਐ ਹਿਰਦੈ ਧਿਆਈਐ ਸੋਈ ॥ स्रवणी सुणीऐ रसना गाईऐ हिरदै धिआईऐ सोई ॥ उस प्रभु की महिमा को अपने कानों से सुनना चाहिए, अपनी जिह्वा से उसका गुणगान करना चाहिए और हृदय में भी उसका ही ध्यान-मनन करना चाहिए जो
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਸੁਆਮੀ ਜਾ ਤੇ ਬ੍ਰਿਥਾ ਨ ਕੋਈ ॥੩॥ करण कारण समरथ सुआमी जा ते ब्रिथा न कोई ॥३॥ सर्वशक्तिमान और समस्त कारणों के मूल ईश्वर के घर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता॥ ३॥
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਪਾਇਆ ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਿਰਪਾਲਾ ॥ वडै भागि रतन जनमु पाइआ करहु क्रिपा किरपाला ॥ हे कृपानिधि ! बड़े सौभाग्य से मुझे मनुष्य जन्म रूपी रत्न प्राप्त हुआ है, मुझ पर कृपा करो।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸਿਮਰੈ ਸਦਾ ਗੋੁਪਾਲਾ ॥੪॥੧੦॥ साधसंगि नानकु गुण गावै सिमरै सदा गोपाला ॥४॥१०॥ नानक कहते हैं - संतजनों की संगति में रहकर ही प्रभु की स्तुति गाई जा सकती है, और समस्त ब्रह्मांड के पालनकर्ता ईश्वर को प्रेमपूर्वक सदा स्मरण किया जा सकता है।॥ ४॥ १०॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਕਰਿ ਇਸਨਾਨੁ ਸਿਮਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਮਨ ਤਨ ਭਏ ਅਰੋਗਾ ॥ करि इसनानु सिमरि प्रभु अपना मन तन भए अरोगा ॥ स्नान करके अपने प्रभु को स्मरण करने से मन एवं तन आरोग्य हो गए हैं।
ਕੋਟਿ ਬਿਘਨ ਲਾਥੇ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾ ਪ੍ਰਗਟੇ ਭਲੇ ਸੰਜੋਗਾ ॥੧॥ कोटि बिघन लाथे प्रभ सरणा प्रगटे भले संजोगा ॥१॥ प्रभु की शरण लेने से करोड़ों विध्न समाप्त हो गए हैं और भले संयोग उदय हो गए हैं।॥ १॥
ਪ੍ਰਭ ਬਾਣੀ ਸਬਦੁ ਸੁਭਾਖਿਆ ॥ प्रभ बाणी सबदु सुभाखिआ ॥ प्रभु की वाणी एवं शब्द शोभनीय है।
ਗਾਵਹੁ ਸੁਣਹੁ ਪੜਹੁ ਨਿਤ ਭਾਈ ਗੁਰ ਪੂਰੈ ਤੂ ਰਾਖਿਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥ गावहु सुणहु पड़हु नित भाई गुर पूरै तू राखिआ ॥ रहाउ ॥ हे भाई ! इसे नित्य गाओ, सुनो एवं पढ़ो; पूर्ण गुरु ने तुझे भवसागर में डूबने से बचा लिया है॥ रहाउ॥
ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਅਮਿਤਿ ਵਡਾਈ ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਦਇਆਲਾ ॥ साचा साहिबु अमिति वडाई भगति वछल दइआला ॥ असीम महिमा से युक्त, दयालु और शाश्वत भगवान्, सच्ची भक्ति के प्रेमी हैं।
ਸੰਤਾ ਕੀ ਪੈਜ ਰਖਦਾ ਆਇਆ ਆਦਿ ਬਿਰਦੁ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥੨॥ संता की पैज रखदा आइआ आदि बिरदु प्रतिपाला ॥२॥ अपने विरद् का पालन करने वाला प्रभु आदि से ही अपने संतों-भक्तों की लाज रखते आए हैं॥ २॥
ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਭੋਜਨੁ ਨਿਤ ਭੁੰਚਹੁ ਸਰਬ ਵੇਲਾ ਮੁਖਿ ਪਾਵਹੁ ॥ हरि अम्रित नामु भोजनु नित भुंचहु सरब वेला मुखि पावहु ॥ नित्य ही हरिनामामृत का भोजन खाओ और हर समय इसे अपने मुँह में डालो।
ਜਰਾ ਮਰਾ ਤਾਪੁ ਸਭੁ ਨਾਠਾ ਗੁਣ ਗੋਬਿੰਦ ਨਿਤ ਗਾਵਹੁ ॥੩॥ जरा मरा तापु सभु नाठा गुण गोबिंद नित गावहु ॥३॥ नित्य गोविन्द का गुणगान करो, वृद्ध अवस्था, मृत्यु एवं समस्त दुःख-संकट भाग जाएँगे ॥ ३॥
ਸੁਣੀ ਅਰਦਾਸਿ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰੈ ਸਰਬ ਕਲਾ ਬਣਿ ਆਈ ॥ सुणी अरदासि सुआमी मेरै सरब कला बणि आई ॥ मेरे स्वामी ने मेरी प्रार्थना सुन ली है और मन में पूर्ण बल पैदा हो गया है।
ਪ੍ਰਗਟ ਭਈ ਸਗਲੇ ਜੁਗ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥੪॥੧੧॥ प्रगट भई सगले जुग अंतरि गुर नानक की वडिआई ॥४॥११॥ गुरु नानक की महिमा समस्त युगों में प्रगट हो गई है॥ ४॥ ११॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਚਉਪਦੇ सोरठि महला ५ घरु २ चउपदे राग सोरठ, पाँचवें गुरु, दूसरा ताल, चौ-पद:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਏਕੁ ਪਿਤਾ ਏਕਸ ਕੇ ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਤੂ ਮੇਰਾ ਗੁਰ ਹਾਈ ॥ एकु पिता एकस के हम बारिक तू मेरा गुर हाई ॥ एक (परमेश्वर) ही हमारे पिता है और हम सब एक पिता-परमेश्वर की ही संतान हैं। आप ही मेरे गुरु भी है।
ਸੁਣਿ ਮੀਤਾ ਜੀਉ ਹਮਾਰਾ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਸੀ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਦੇਹੁ ਦਿਖਾਈ ॥੧॥ सुणि मीता जीउ हमारा बलि बलि जासी हरि दरसनु देहु दिखाई ॥१॥ हे मेरे मित्र ! सुनो, यदि आप मुझे हरि-दर्शन करवा दे तो मेरा मन आप पर बार-बार न्यौछावर होगा ॥ १॥


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