Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 501

Page 501

ਧੰਧਾ ਕਰਤ ਬਿਹਾਨੀ ਅਉਧਹਿ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਨ ਗਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ धंधा करत बिहानी अउधहि गुण निधि नामु न गाइओ ॥१॥ रहाउ ॥ उसका समस्त जीवन सांसारिक कार्यों में ही व्यतीत हो गया है और उसने कभी भी गुणों के भंडार भगवान् की स्तुति नहीं की है। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਉਡੀ ਕਉਡੀ ਜੋਰਤ ਕਪਟੇ ਅਨਿਕ ਜੁਗਤਿ ਕਰਿ ਧਾਇਓ ॥ कउडी कउडी जोरत कपटे अनिक जुगति करि धाइओ ॥ वह छल से एक-एक पैसा जोड़ता है, सांसारिक धन अर्जित करने हेतु असंख्य उपाय अपनाता है और इधर-उधर भाग-दौड़ करता रहता है।
ਬਿਸਰਤ ਪ੍ਰਭ ਕੇਤੇ ਦੁਖ ਗਨੀਅਹਿ ਮਹਾ ਮੋਹਨੀ ਖਾਇਓ ॥੧॥ बिसरत प्रभ केते दुख गनीअहि महा मोहनी खाइओ ॥१॥ प्रभु का नाम विस्मृत करने से तुझे अनेकों ही दु:ख पीड़ित करते हैं जो गिने नहीं जा सकते और प्रबल महा मोहिनी ने तुझे निगल लिया है। १॥
ਕਰਹੁ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰੇ ਗਨਹੁ ਨ ਮੋਹਿ ਕਮਾਇਓ ॥ करहु अनुग्रहु सुआमी मेरे गनहु न मोहि कमाइओ ॥ हे स्वामी ! अनुग्रह करो और मेरे कर्मों को मत गिन।
ਗੋਬਿੰਦ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸਰਣਾਇਓ ॥੨॥੧੬॥੨੫॥ गोबिंद दइआल क्रिपाल सुख सागर नानक हरि सरणाइओ ॥२॥१६॥२५॥ हे गोविन्द ! आप बड़े दयालु, कृपालु एवं सुखों के सागर है। नानक की यही प्रार्थना है कि हे हरि ! मैं आपकी शरण में आया हूँ ॥२॥१६॥२५॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गूजरी महला ५ ॥ राग गूजरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਵੰਤ ॥ रसना राम राम रवंत ॥ हे भाई ! अपनी रसना से राम-राम ही जपो।
ਛੋਡਿ ਆਨ ਬਿਉਹਾਰ ਮਿਥਿਆ ਭਜੁ ਸਦਾ ਭਗਵੰਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ छोडि आन बिउहार मिथिआ भजु सदा भगवंत ॥१॥ रहाउ ॥ तू अन्य मिथ्या व्यवसाय छोड़कर सदा भगवान् का ही भजन कर ॥१॥ रहाउ ॥
ਨਾਮੁ ਏਕੁ ਅਧਾਰੁ ਭਗਤਾ ਈਤ ਆਗੈ ਟੇਕ ॥ नामु एकु अधारु भगता ईत आगै टेक ॥ एक ईश्वर का नाम उसके भक्तों के जीवन का आधार है और इहलोक एवं परलोक में यही उनका सहारा है।
ਕਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਗੋਬਿੰਦ ਦੀਆ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਬੁਧਿ ਬਿਬੇਕ ॥੧॥ करि क्रिपा गोबिंद दीआ गुर गिआनु बुधि बिबेक ॥१॥ गोविन्द ने कृपा करके गुरु-ज्ञान एवं विवेक-बुद्धि प्रदान की है ॥१॥
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸੰਮ੍ਰਥ ਸ੍ਰੀਧਰ ਸਰਣਿ ਤਾ ਕੀ ਗਹੀ ॥ करण कारण सम्रथ स्रीधर सरणि ता की गही ॥ सब कुछ करने कराने में समर्थ श्रीधर प्रभु की ही मैंने शरण ली है।
ਮੁਕਤਿ ਜੁਗਤਿ ਰਵਾਲ ਸਾਧੂ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਿਧਿ ਲਹੀ ॥੨॥੧੭॥੨੬॥ मुकति जुगति रवाल साधू नानक हरि निधि लही ॥२॥१७॥२६॥ हे नानक! सांसारिक बंधनों से मुक्त होने का एकमात्र मार्ग यही है कि मनुष्य गुरु की शिक्षाओं पर चलकर नाम-धन को प्राप्त करे।॥२॥१७॥२६॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪ ਚਉਪਦੇ गूजरी महला ५ घरु ४ चउपदे राग गूजरी, पाँचवें गुरु, चार-पद (चार पंक्तियाँ), चौथा ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਛਾਡਿ ਸਗਲ ਸਿਆਣਪਾ ਸਾਧ ਸਰਣੀ ਆਉ ॥ छाडि सगल सिआणपा साध सरणी आउ ॥ अपनी समस्त चतुराइयाँ छोड़ कर साधुओं की शरण में आओ और
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸਰੋ ਪ੍ਰਭੂ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੧॥ पारब्रहम परमेसरो प्रभू के गुण गाउ ॥१॥ ब्रहा परमेश्वर प्रभु का गुणगान करो ॥१॥
ਰੇ ਚਿਤ ਚਰਣ ਕਮਲ ਅਰਾਧਿ ॥ रे चित चरण कमल अराधि ॥ हे मेरे मन ! भगवान् के चरण-कमल की आराधना कर।
ਸਰਬ ਸੂਖ ਕਲਿਆਣ ਪਾਵਹਿ ਮਿਟੈ ਸਗਲ ਉਪਾਧਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सरब सूख कलिआण पावहि मिटै सगल उपाधि ॥१॥ रहाउ ॥ आराधना करने से तुझे सर्व सुख एवं कल्याण की प्राप्ति होगी और सभी दुःख-क्लेश मिट जाएँगे ॥१॥ रहाउ॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਮੀਤ ਭਾਈ ਤਿਸੁ ਬਿਨਾ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥ मात पिता सुत मीत भाई तिसु बिना नही कोइ ॥ परमात्मा के बिना यह माता-पिता, पुत्र, मित्र एवं भाई-कोई भी तेरा सहायक नहीं है।
ਈਤ ਊਤ ਜੀਅ ਨਾਲਿ ਸੰਗੀ ਸਰਬ ਰਵਿਆ ਸੋਇ ॥੨॥ ईत ऊत जीअ नालि संगी सरब रविआ सोइ ॥२॥ जो ईश्वर सर्वव्यापक है, वही इहलोक एवं परलोक में आत्मा का साथी है ॥२॥
ਕੋਟਿ ਜਤਨ ਉਪਾਵ ਮਿਥਿਆ ਕਛੁ ਨ ਆਵੈ ਕਾਮਿ ॥ कोटि जतन उपाव मिथिआ कछु न आवै कामि ॥ करोड़ों ही यत्न एवं उपाय निष्फल हैं और किसी काम नहीं आते।
ਸਰਣਿ ਸਾਧੂ ਨਿਰਮਲਾ ਗਤਿ ਹੋਇ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਨਾਮਿ ॥੩॥ सरणि साधू निरमला गति होइ प्रभ कै नामि ॥३॥ लेकिन साधुओं की शरण में आने से प्राणी निर्मल हो जाता है और प्रभु के नाम द्वारा उसकी गति हो जाती है ॥३॥
ਅਗਮ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭੂ ਊਚਾ ਸਰਣਿ ਸਾਧੂ ਜੋਗੁ ॥ अगम दइआल प्रभू ऊचा सरणि साधू जोगु ॥ प्रभु अगम्य, दयालु एवं सर्वोपरि है, वह साधुओं को शरण देने में समर्थवान है।
ਤਿਸੁ ਪਰਾਪਤਿ ਨਾਨਕਾ ਜਿਸੁ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਸੰਜੋਗੁ ॥੪॥੧॥੨੭॥ तिसु परापति नानका जिसु लिखिआ धुरि संजोगु ॥४॥१॥२७॥ हे नानक ! केवल उसे ही ईश्वर की प्राप्ति होती है, जिसके लिए जन्म से पूर्व ही उसका संयोग लिखा होता है ॥४॥१॥२७॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गूजरी महला ५ ॥ राग गूजरी, पाँचवें गुरु ५ ॥
ਆਪਨਾ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਦ ਹੀ ਰਮਹੁ ਗੁਣ ਗੋਬਿੰਦ ॥ आपना गुरु सेवि सद ही रमहु गुण गोबिंद ॥ अपने गुरुदेव की सदा ही सेवा करो तथा गोविन्द का गुणानुवाद करते रहो।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਅਰਾਧਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਹਿ ਜਾਇ ਮਨ ਕੀ ਚਿੰਦ ॥੧॥ सासि सासि अराधि हरि हरि लहि जाइ मन की चिंद ॥१॥ श्वास-श्वास से भगवान् की आराधना करने से मन की चिंता दूर हो जाती है।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਾਪਿ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਨਾਉ ॥ मेरे मन जापि प्रभ का नाउ ॥ हे मेरे मन ! प्रभु के नाम का जाप कर;
ਸੂਖ ਸਹਜ ਅਨੰਦ ਪਾਵਹਿ ਮਿਲੀ ਨਿਰਮਲ ਥਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सूख सहज अनंद पावहि मिली निरमल थाउ ॥१॥ रहाउ ॥ इससे तुझे सहज सुख एवं आनंद की उपलब्धि होगी और निर्मल स्थान मिल जाएगा।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਉਧਾਰਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਆਠ ਪਹਰ ਆਰਾਧਿ ॥ साधसंगि उधारि इहु मनु आठ पहर आराधि ॥ साधु की संगति में रहकर अपने इस मन का उद्धार कर और आठ प्रहर परमेश्वर की आराधना कर।
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਬਿਨਸੈ ਮਿਟੈ ਸਗਲ ਉਪਾਧਿ ॥੨॥ कामु क्रोधु अहंकारु बिनसै मिटै सगल उपाधि ॥२॥ तेरा काम, क्रोध एवं अहंकार नष्ट हो जाएँगे और समस्त रोग मिट जाएँगे ॥२॥
ਅਟਲ ਅਛੇਦ ਅਭੇਦ ਸੁਆਮੀ ਸਰਣਿ ਤਾ ਕੀ ਆਉ ॥ अटल अछेद अभेद सुआमी सरणि ता की आउ ॥ हे मन ! तुम उस स्वामी की शरण में आओ, जो अटल, अछेद एवं अभेद है।
ਚਰਣ ਕਮਲ ਅਰਾਧਿ ਹਿਰਦੈ ਏਕ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਉ ॥੩॥ चरण कमल अराधि हिरदै एक सिउ लिव लाउ ॥३॥ उसके चरण-कमल को अपने हृदय में आराधना करो और एक ईश्वर से ही ध्यान लगाओ ॥३ ॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਪ੍ਰਭਿ ਦਇਆ ਧਾਰੀ ਬਖਸਿ ਲੀਨ੍ਹ੍ਹੇ ਆਪਿ ॥ पारब्रहमि प्रभि दइआ धारी बखसि लीन्हे आपि ॥ पारब्रह्म-प्रभु ने दया करके स्वयं ही मुझे क्षमा कर दिया है।
ਸਰਬ ਸੁਖ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਆ ਨਾਨਕ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਪਿ ॥੪॥੨॥੨੮॥ सरब सुख हरि नामु दीआ नानक सो प्रभु जापि ॥४॥२॥२८॥ हे नानक ! परमात्मा ने सर्व सुखों का भण्डार अपना हरि-नाम मुझे दिया है और तू भी उस प्रभु का जाप कर ॥ ४॥ २॥ २८ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गूजरी महला ५ ॥ राग गूजरी, पाँचवें गुरु ५ ॥
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦੀ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਇਆ ਗਈ ਸੰਕਾ ਤੂਟਿ ॥ गुर प्रसादी प्रभु धिआइआ गई संका तूटि ॥ गुरु की कृपा से प्रभु का ध्यान करने से मेरी शंका मिट गई है।


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