Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 502

Page 502

ਦੁਖ ਅਨੇਰਾ ਭੈ ਬਿਨਾਸੇ ਪਾਪ ਗਏ ਨਿਖੂਟਿ ॥੧॥ दुख अनेरा भै बिनासे पाप गए निखूटि ॥१॥ मेरे दु:ख, अज्ञानता का अंधेरा एवं भय विनष्ट हो गए हैं और मेरे पाप भी नाश हो गए हैं। १
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕੀ ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ हरि हरि नाम की मनि प्रीति ॥ मेरे मन में हरि-नाम की प्रीति लगी हुई है।
ਮਿਲਿ ਸਾਧ ਬਚਨ ਗੋਬਿੰਦ ਧਿਆਏ ਮਹਾ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मिलि साध बचन गोबिंद धिआए महा निरमल रीति ॥१॥ रहाउ ॥ साधुओं को मिलकर उनके उपदेश से मैं गोविंद का ध्यान करता रहता हूँ, यही मेरी जीवन की निर्मल रीति हो गई है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾਪ ਤਾਪ ਅਨੇਕ ਕਰਣੀ ਸਫਲ ਸਿਮਰਤ ਨਾਮ ॥ जाप ताप अनेक करणी सफल सिमरत नाम ॥ नाम-सिमरन से जन्म सफल हो जाता है और यह कर्म ही अनेक प्रकार के जप एवं तपस्या है।
ਕਰਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਆਪਿ ਰਾਖੇ ਭਏ ਪੂਰਨ ਕਾਮ ॥੨॥ करि अनुग्रहु आपि राखे भए पूरन काम ॥२॥ प्रभु ने स्वयं ही अनुग्रह करके मेरी रक्षा की है और मेरे समस्त कार्य सम्पूर्ण हो गए हैं।॥ २॥
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਨ ਬਿਸਰੁ ਕਬਹੂੰ ਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭ ਸਮਰਥ ॥ सासि सासि न बिसरु कबहूं ब्रहम प्रभ समरथ ॥ मैं श्वास-श्वास से समर्थवान, सर्वव्यापक ब्रह्म का सिमरन करता रहूँ और उसे कभी भी विस्मृत न करूँ।
ਗੁਣ ਅਨਿਕ ਰਸਨਾ ਕਿਆ ਬਖਾਨੈ ਅਗਨਤ ਸਦਾ ਅਕਥ ॥੩॥ गुण अनिक रसना किआ बखानै अगनत सदा अकथ ॥३॥ उस प्रभु के अनंत गुण हैं और रसना किस प्रकार उनका वर्णन कर सकती है? उसके गुण अनंत एवं सदा अकथनीय हैं।॥ ३॥
ਦੀਨ ਦਰਦ ਨਿਵਾਰਿ ਤਾਰਣ ਦਇਆਲ ਕਿਰਪਾ ਕਰਣ ॥ दीन दरद निवारि तारण दइआल किरपा करण ॥ हे प्रभु ! आप गरीबों के दर्द दूर करने वाले, मुक्तिदाता, दयालु, एवं कृपालु हैं।
ਅਟਲ ਪਦਵੀ ਨਾਮ ਸਿਮਰਣ ਦ੍ਰਿੜੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਰਣ ॥੪॥੩॥੨੯॥ अटल पदवी नाम सिमरण द्रिड़ु नानक हरि हरि सरण ॥४॥३॥२९॥ हे नानक ! नाम-सिमरन करने से अटल पदवी प्राप्त हो जाती है। अतः हरि-परमेश्वर की शरण दृढ़ करो॥४॥३॥२९॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गूजरी महला ५ ॥ राग गूजरी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਅਹੰਬੁਧਿ ਬਹੁ ਸਘਨ ਮਾਇਆ ਮਹਾ ਦੀਰਘ ਰੋਗੁ ॥ अह्मबुधि बहु सघन माइआ महा दीरघ रोगु ॥ अहंबुद्धि एवं माया से सघन प्रेम महा दीर्घ रोग है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਉਖਧੁ ਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਨੋ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਜੋਗੁ ॥੧॥ हरि नामु अउखधु गुरि नामु दीनो करण कारण जोगु ॥१॥ इस रोग की औषधि हरि-नाम है। करने एवं करवाने में समर्थ हरि-नाम गुरु ने मुझे दिया है॥ १॥
ਮਨਿ ਤਨਿ ਬਾਛੀਐ ਜਨ ਧੂਰਿ ॥ मनि तनि बाछीऐ जन धूरि ॥ अपने मन-तन से हमें संतों की चरण-धूलि की अभिलाषा करनी चाहिए,
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਲਹਹਿ ਪਾਤਿਕ ਗੋਬਿੰਦ ਲੋਚਾ ਪੂਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कोटि जनम के लहहि पातिक गोबिंद लोचा पूरि ॥१॥ रहाउ ॥ उससे करोड़ों जन्मों के पाप मिट जाते हैं। हे गोविन्द ! मेरी मनोकामना पूर्ण कीजिए॥ १॥ रहाउ॥
ਆਦਿ ਅੰਤੇ ਮਧਿ ਆਸਾ ਕੂਕਰੀ ਬਿਕਰਾਲ ॥ आदि अंते मधि आसा कूकरी बिकराल ॥ आशा एक ऐसी प्रबल प्रवृत्ति है, जो जीवन के आदिकाल से लेकर अंत तक - बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था - प्रत्येक चरण में मनुष्य से अविच्छिन्न रूप से जुड़ी रहती है।
ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਕੀਰਤਨ ਗੋਬਿੰਦ ਰਮਣੰ ਕਾਟੀਐ ਜਮ ਜਾਲ ॥੨॥ गुर गिआन कीरतन गोबिंद रमणं काटीऐ जम जाल ॥२॥ गुरु के ज्ञान द्वारा प्रभु का कीर्ति-गान करने से मृत्यु का जाल कट जाता है॥ २॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਮੋਹ ਮੂਠੇ ਸਦਾ ਆਵਾ ਗਵਣ ॥ काम क्रोध लोभ मोह मूठे सदा आवा गवण ॥ जिस प्राणी को काम, क्रोध, लोभ एवं मोह ने छल लिया है, वह सदा जन्म-मरण के चक्र में पड़ा रहता है।
ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਗੁਪਾਲ ਸਿਮਰਣ ਮਿਟਤ ਜੋਨੀ ਭਵਣ ॥੩॥ प्रभ प्रेम भगति गुपाल सिमरण मिटत जोनी भवण ॥३॥ प्रभु की प्रेम-भक्ति एवं उसके सिमरन से मनुष्य का योनियों का चक्र मिट जाता है॥ ३॥
ਮਿਤ੍ਰ ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਸੁਰ ਰਿਦ ਤੀਨਿ ਤਾਪ ਜਲੰਤ ॥ मित्र पुत्र कलत्र सुर रिद तीनि ताप जलंत ॥ मानव के मित्र, पुत्र, पत्नी एवं शुभचिंतक तीन तापों (आधि, व्याधि एवं उपाधि) में जल रहे हैं।
ਜਪਿ ਰਾਮ ਰਾਮਾ ਦੁਖ ਨਿਵਾਰੇ ਮਿਲੈ ਹਰਿ ਜਨ ਸੰਤ ॥੪॥ जपि राम रामा दुख निवारे मिलै हरि जन संत ॥४॥ जो व्यक्ति हरि के भक्तजनों एवं संतजनों से मिल जाते हैं, वे राम नाम जपकर अपने दु:ख दूर कर लेते हैं।॥ ४॥
ਸਰਬ ਬਿਧਿ ਭ੍ਰਮਤੇ ਪੁਕਾਰਹਿ ਕਤਹਿ ਨਾਹੀ ਛੋਟਿ ॥ सरब बिधि भ्रमते पुकारहि कतहि नाही छोटि ॥ लोग सब विधियों द्वारा हर तरफ भटकते रहते हैं और दुःखी होकर विलाप करते हैं लेकिन कहीं भी उनका छुटकारा नहीं होता।
ਹਰਿ ਚਰਣ ਸਰਣ ਅਪਾਰ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਦ੍ਰਿੜੁ ਗਹੀ ਨਾਨਕ ਓਟ ॥੫॥੪॥੩੦॥ हरि चरण सरण अपार प्रभ के द्रिड़ु गही नानक ओट ॥५॥४॥३०॥ हे नानक ! मैंने हरि-चरणों की शरण ली है और अपार प्रभु की आोट भली भांति पकड़ ली है॥ ५॥ ४॥ ३० ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪ ਦੁਪਦੇ॥ गूजरी महला ५ घरु ४ दुपदे राग गूजरी, पाँचवें गुरु, चौथा ताल, दो-पद (दो पंक्तियाँ):
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਰਾਧਿ ਸ੍ਰੀਧਰ ਸਫਲ ਮੂਰਤਿ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਜੋਗੁ ॥ आराधि स्रीधर सफल मूरति करण कारण जोगु ॥ भगवान् की आराधना करो, उसके दर्शन जीवन को सफल कर देते हैं, वह करने-कराने में सम्पूर्ण समर्थ है।
ਗੁਣ ਰਮਣ ਸ੍ਰਵਣ ਅਪਾਰ ਮਹਿਮਾ ਫਿਰਿ ਨ ਹੋਤ ਬਿਓਗੁ ॥੧॥ गुण रमण स्रवण अपार महिमा फिरि न होत बिओगु ॥१॥ उसका गुणानुवाद करने एवं अपार महिमा श्रवण करने से फिर कभी वियोग नहीं होता। १॥
ਮਨ ਚਰਣਾਰਬਿੰਦ ਉਪਾਸ ॥ मन चरणारबिंद उपास ॥ हे मन ! ईश्वर के 'चरणारविंद की उपासना करो।
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਮਿਟੰਤ ਸਿਮਰਣਿ ਕਾਟਿ ਜਮਦੂਤ ਫਾਸ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कलि कलेस मिटंत सिमरणि काटि जमदूत फास ॥१॥ रहाउ ॥ उसके सिमरन से तमाम दुःख-क्लेश मिट जाते हैं और यमदूत के बन्धन कट जाते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਤ੍ਰੁ ਦਹਨ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕਹਨ ਅਵਰ ਕਛੁ ਨ ਉਪਾਉ ॥ सत्रु दहन हरि नाम कहन अवर कछु न उपाउ ॥ हरि-नाम का जाप ही शत्रु के दहन हेतु एक साधन है तथा दूसरा कोई उपाय नहीं।
ਕਰਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਪ੍ਰਭੂ ਮੇਰੇ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਸੁਆਉ ॥੨॥੧॥੩੧॥ करि अनुग्रहु प्रभू मेरे नानक नाम सुआउ ॥२॥१॥३१॥ नानक की प्रार्थना है कि हे मेरे प्रभु ! मुझ पर अनुग्रह करो ताकि आपके नाम का स्वाद प्राप्त हो सके। ॥२॥१॥३१॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गूजरी महला ५ ॥ राग गूजरी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਤੂੰ ਸਮਰਥੁ ਸਰਨਿ ਕੋ ਦਾਤਾ ਦੁਖ ਭੰਜਨੁ ਸੁਖ ਰਾਇ ॥ तूं समरथु सरनि को दाता दुख भंजनु सुख राइ ॥ हे दाता ! आप सर्व कला समर्थ है, अपने भक्तों को शरण देने वाले एवं दुःखों का नाश करने वाले सुखों के राजा हैं।
ਜਾਹਿ ਕਲੇਸ ਮਿਟੇ ਭੈ ਭਰਮਾ ਨਿਰਮਲ ਗੁਣ ਪ੍ਰਭ ਗਾਇ ॥੧॥ जाहि कलेस मिटे भै भरमा निरमल गुण प्रभ गाइ ॥१॥ प्रभु का निर्मल गुणानुवाद करने से दु:ख क्लेश दूर हो जाते हैं और भय-भ्रम मिट जाते हैं।॥ १॥
ਗੋਵਿੰਦ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਠਾਉ ॥ गोविंद तुझ बिनु अवरु न ठाउ ॥ हे गोविन्द ! आपके अतिरिक्त मेरा दूसरा कोई सहारा नहीं।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸੁਆਮੀ ਜਪੀ ਤੁਮਾਰਾ ਨਾਉ ॥ ਰਹਾਉ ॥ करि किरपा पारब्रहम सुआमी जपी तुमारा नाउ ॥ रहाउ ॥ हे पारब्रह्म स्वामी ! मुझ पर ऐसी कृपा करो ताकि आपके नाम का जाप करता रहूँ॥ रहाउ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਿ ਲਗੇ ਹਰਿ ਚਰਨੀ ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥ सतिगुर सेवि लगे हरि चरनी वडै भागि लिव लागी ॥ सतगुरु की सेवा से मैं हरि के चरणों में लग गया हूँ और सौभाग्य से प्रभु से लगन लग गई है।


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