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ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
राग गूजरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨਾ ਦਰਸੁ ਦੀਜੈ ਜਸੁ ਗਾਵਉ ਨਿਸਿ ਅਰੁ ਭੋਰ ॥
करि किरपा अपना दरसु दीजै जसु गावउ निसि अरु भोर ॥
हे परमेश्वर ! कृपा करके मुझे अपने दर्शन दीजिए, मैं दिन-रात आपका ही यशोगान करता रहूँ।
ਕੇਸ ਸੰਗਿ ਦਾਸ ਪਗ ਝਾਰਉ ਇਹੈ ਮਨੋਰਥ ਮੋਰ ॥੧॥
केस संगि दास पग झारउ इहै मनोरथ मोर ॥१॥
अपने केशों से मैं आपके सेवकों के चरण साफ करूँ अर्थात् उनकी सेवा करता रहूँ, यही मेरे जीवन का मनोरथ है॥ १॥
ਠਾਕੁਰ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਬੀਆ ਨ ਹੋਰ ॥
ठाकुर तुझ बिनु बीआ न होर ॥
हे ठाकुर ! आपके बिना अन्य दूसरा कोई मेरा नहीं।
ਚਿਤਿ ਚਿਤਵਉ ਹਰਿ ਰਸਨ ਅਰਾਧਉ ਨਿਰਖਉ ਤੁਮਰੀ ਓਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चिति चितवउ हरि रसन अराधउ निरखउ तुमरी ओर ॥१॥ रहाउ ॥
हे हरि ! मैं अपने चित्त में आपको ही याद करता हूँ एवं अपनी जिह्वा से आपकी ही आराधना करता हूँ तथा अपने नेत्रों से मैं आपको ही देखता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਸਰਬ ਕੇ ਠਾਕੁਰ ਬਿਨਉ ਕਰਉ ਕਰ ਜੋਰਿ ॥
दइआल पुरख सरब के ठाकुर बिनउ करउ कर जोरि ॥
हे दयालु अकालपुरुष ! आप सभी के ठाकुर हो और हाथ जोड़ कर मैं आपके समक्ष विनती करता हूँ।
ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਤੁਮਰੋ ਉਧਰਸਿ ਆਖੀ ਫੋਰ ॥੨॥੧੧॥੨੦॥
नामु जपै नानकु दासु तुमरो उधरसि आखी फोर ॥२॥११॥२०॥
आपका दास नानक आपके नाम का जाप करता रहे और पलक झपकने मात्र के समय में उसका उद्धार हो जाए॥ २ ॥ ११ ॥ २० ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
राग गूजरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਬ੍ਰਹਮ ਲੋਕ ਅਰੁ ਰੁਦ੍ਰ ਲੋਕ ਆਈ ਇੰਦ੍ਰ ਲੋਕ ਤੇ ਧਾਇ ॥
ब्रहम लोक अरु रुद्र लोक आई इंद्र लोक ते धाइ ॥
माया ब्रह्मलोक, रुद्रलोक और इन्द्रलोक को प्रभावित करती हुई (इहलोक में) दौड़ी आई है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕਉ ਜੋਹਿ ਨ ਸਾਕੈ ਮਲਿ ਮਲਿ ਧੋਵੈ ਪਾਇ ॥੧॥
साधसंगति कउ जोहि न साकै मलि मलि धोवै पाइ ॥१॥
परन्तु यह साधु की संगति को स्पर्श तक नहीं कर सकती एवं साधुओं के चरणों को मल-मल कर भली भांति धोती है॥ १॥
ਅਬ ਮੋਹਿ ਆਇ ਪਰਿਓ ਸਰਨਾਇ ॥
अब मोहि आइ परिओ सरनाइ ॥
अब मैं गुरु की शरण में आ गया हूँ।
ਗੁਹਜ ਪਾਵਕੋ ਬਹੁਤੁ ਪ੍ਰਜਾਰੈ ਮੋ ਕਉ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਓ ਹੈ ਬਤਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुहज पावको बहुतु प्रजारै मो कउ सतिगुरि दीओ है बताइ ॥१॥ रहाउ ॥
सतगुरु ने मुझे यह बता दिया है कि माया की इस गुप्त अग्नि ने अनेकों को बुरी तरह जला दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਅਰੁ ਜਖ੍ਯ੍ਯ ਕਿੰਨਰ ਨਰ ਰਹੀ ਕੰਠਿ ਉਰਝਾਇ ॥
सिध साधिक अरु जख्य किंनर नर रही कंठि उरझाइ ॥
यह प्रचंड माया सिद्ध, साधक, यक्ष, किन्नर तथा मनुष्यों के गले से लिपटकर उलझी हुई है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਅੰਗੁ ਕੀਆ ਪ੍ਰਭਿ ਕਰਤੈ ਜਾ ਕੈ ਕੋਟਿ ਐਸੀ ਦਾਸਾਇ ॥੨॥੧੨॥੨੧॥
जन नानक अंगु कीआ प्रभि करतै जा कै कोटि ऐसी दासाइ ॥२॥१२॥२१॥
हे नानक ! उस जगत-रचयिता ने मेरा ही पक्ष लिया है, जिस प्रभु की करोड़ों ही ऐसी दासियाँ हैं।॥ २॥ १२॥ २१॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
राग गूजरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਪਜਸੁ ਮਿਟੈ ਹੋਵੈ ਜਗਿ ਕੀਰਤਿ ਦਰਗਹ ਬੈਸਣੁ ਪਾਈਐ ॥
अपजसु मिटै होवै जगि कीरति दरगह बैसणु पाईऐ ॥
भगवान् का सिमरन करने से अपयश मिट जाता है, जगत में कीर्ति हो जाती है तथा सत्य के दरबार में मान-सम्मान प्राप्त हो जाता है।
ਜਮ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸ ਨਾਸ ਹੋਇ ਖਿਨ ਮਹਿ ਸੁਖ ਅਨਦ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਜਾਈਐ ॥੧॥
जम की त्रास नास होइ खिन महि सुख अनद सेती घरि जाईऐ ॥१॥
मृत्यु का भय क्षण में नाश हो जाता है और मनुष्य सुख एवं आनंद से सच्चे घर को जाता है।॥ १॥
ਜਾ ਤੇ ਘਾਲ ਨ ਬਿਰਥੀ ਜਾਈਐ ॥
जा ते घाल न बिरथी जाईऐ ॥
इसलिए उसकी नाम-सिमरन की सेवा व्यर्थ नहीं जाती।
ਆਠ ਪਹਰ ਸਿਮਰਹੁ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਮਨਿ ਤਨਿ ਸਦਾ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आठ पहर सिमरहु प्रभु अपना मनि तनि सदा धिआईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
आठों प्रहर अपने प्रभु का सिमरन करो और अपने मन एवं तन से सदैव उसका ध्यान करो।॥ १॥ रहाउ॥
ਮੋਹਿ ਸਰਨਿ ਦੀਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਸੋਈ ਪ੍ਰਭ ਪਾਈਐ ॥
मोहि सरनि दीन दुख भंजन तूं देहि सोई प्रभ पाईऐ ॥
हे दीनों के दु:ख भंजक ! मैं आपकी शरण में आया हूँ और मैं केवल वही प्राप्त करता हूँ जो आप मुझे देते हैं।
ਚਰਣ ਕਮਲ ਨਾਨਕ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਹਰਿ ਦਾਸਹ ਪੈਜ ਰਖਾਈਐ ॥੨॥੧੩॥੨੨॥
चरण कमल नानक रंगि राते हरि दासह पैज रखाईऐ ॥२॥१३॥२२॥
हे हरि !आपके चरण-कमल की प्रीति से नानक अनुरक्त हो गया है। आप ही अपने सेवकों की लाज रखते हैं॥ २॥ १३॥ २२ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
राग गूजरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਬਿਸ੍ਵੰਭਰ ਜੀਅਨ ਕੋ ਦਾਤਾ ਭਗਤਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥
बिस्व्मभर जीअन को दाता भगति भरे भंडार ॥
ईश्वर सब जीवों का दाता है और उसकी भक्ति के भण्डार भरे हुए हैं।
ਜਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਨਿਫਲ ਨ ਹੋਵਤ ਖਿਨ ਮਹਿ ਕਰੇ ਉਧਾਰ ॥੧॥
जा की सेवा निफल न होवत खिन महि करे उधार ॥१॥
उसकी सेवा-भक्ति कभी निष्फल नहीं होती और एक क्षण में ही वह जीव का उद्धार कर देता है॥ १॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸੰਗਿ ਰਾਚੁ ॥
मन मेरे चरन कमल संगि राचु ॥
हे मन ! तू प्रभु के चरण-कमल के संग लीन रह।
ਸਗਲ ਜੀਅ ਜਾ ਕਉ ਆਰਾਧਹਿ ਤਾਹੂ ਕਉ ਤੂੰ ਜਾਚੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल जीअ जा कउ आराधहि ताहू कउ तूं जाचु ॥१॥ रहाउ ॥
समस्त जीव उसकी ही आराधना करते हैं, तू उससे ही याचना कर॥ १॥ रहाउ ॥
ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ਕਰਤੇ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ॥
नानक सरणि तुम्हारी करते तूं प्रभ प्रान अधार ॥
हे सृष्टिकर्ता ! नानक आपकी शरण में आया है। हे प्रभु ! इसलिए आप मेरे प्राणों का आधार हैं।
ਹੋਇ ਸਹਾਈ ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਰਾਖਹਿ ਤਿਸੁ ਕਹਾ ਕਰੇ ਸੰਸਾਰੁ ॥੨॥੧੪॥੨੩॥
होइ सहाई जिसु तूं राखहि तिसु कहा करे संसारु ॥२॥१४॥२३॥
संसार उसका क्या बिगाड़ सकता है, जिसके आप सहायक बन कर स्वयं रक्षा करते हैं ॥ २ ॥ १४॥ २३ ।।
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
राग गूजरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਨ ਕੀ ਪੈਜ ਸਵਾਰੀ ਆਪ ॥
जन की पैज सवारी आप ॥
प्रभु ने स्वयं अपने सेवक की लाज रखी है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ਗੁਰਿ ਅਵਖਧੁ ਉਤਰਿ ਗਇਓ ਸਭੁ ਤਾਪ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि नामु दीओ गुरि अवखधु उतरि गइओ सभु ताप ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु ने हरि-नाम की औषधि प्रदान की है और सारा ताप दूर हो गया है॥ १॥
ਹਰਿਗੋਬਿੰਦੁ ਰਖਿਓ ਪਰਮੇਸਰਿ ਅਪੁਨੀ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥
हरिगोबिंदु रखिओ परमेसरि अपुनी किरपा धारि ॥
परमेश्वर ने अपनी कृपा धारण करके हरिगोविन्द (छठी पातशाही) की रक्षा की है।
ਮਿਟੀ ਬਿਆਧਿ ਸਰਬ ਸੁਖ ਹੋਏ ਹਰਿ ਗੁਣ ਸਦਾ ਬੀਚਾਰਿ ॥੧॥
मिटी बिआधि सरब सुख होए हरि गुण सदा बीचारि ॥१॥
उसकी सारी व्याधि मिट गई है और सर्व सुख हो गया। हम सदैव हरि के गुणों का चिंतन करते रहते हैं।॥ १॥
ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਓ ਮੇਰੈ ਕਰਤੈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
अंगीकारु कीओ मेरै करतै गुर पूरे की वडिआई ॥
यह पूर्णगुरु की बड़ाई है कि मेरे सृजनहार प्रभु ने हमारी प्रार्थना स्वीकार की है।
ਅਬਿਚਲ ਨੀਵ ਧਰੀ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਨਿਤ ਨਿਤ ਚੜੈ ਸਵਾਈ ॥੨॥੧੫॥੨੪॥
अबिचल नीव धरी गुर नानक नित नित चड़ै सवाई ॥२॥१५॥२४॥
गुरु नानक देव ने धर्म की अटल नींव रखी है, जो नित्य ही प्रगति कर रहा है॥ २ ॥ १५ ॥ २४ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
राग गूजरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕਬਹੂ ਹਰਿ ਸਿਉ ਚੀਤੁ ਨ ਲਾਇਓ ॥
कबहू हरि सिउ चीतु न लाइओ ॥
हे मानव ! तूने कभी भी भगवान् के साथ अपना चित्त नहीं लगाया।