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ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਫੁਨਿ ਹੋਇ ॥
जो कुछ उसे अच्छा लगता है, संसार में वही होता है।
ਸੁਣਿ ਭਰਥਰਿ ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਬੀਚਾਰੁ ॥
हे भर्तृहरि योगी ! सुन, बहुत विचार-विमर्श के बाद नानक यह कहते हैं,
ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਮੇਰਾ ਆਧਾਰੁ ॥੮॥੧॥
उस प्रभु का निर्मल नाम मेरे जीवन का सहारा है॥ ८ ॥ १॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਸਭਿ ਜਪ ਸਭਿ ਤਪ ਸਭ ਚਤੁਰਾਈ ॥
यदि कोई व्यक्ति विविध प्रकार की पूजा-पद्धतियाँ अपनाता हो, कठोर तप करता हो और सांसारिक चतुराइयों में प्रवीण हो
ਊਝੜਿ ਭਰਮੈ ਰਾਹਿ ਨ ਪਾਈ ॥
वह जीवन के सत्य मार्ग से विमुख होकर अज्ञान के वन में भटक रहा है।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਕੋ ਥਾਇ ਨ ਪਾਈ ॥
सत्य मार्ग को जाने बिना ही कोई व्यक्ति प्रयास करता है, तो उसके समस्त प्रयास निष्फल हो जाते हैं, और वह भगवान के दरबार में स्वीकृति नहीं पाता।
ਨਾਮ ਬਿਹੂਣੈ ਮਾਥੇ ਛਾਈ ॥੧॥
नामविहीन मनुष्य के सिर पर धूल ही पड़ती है॥ १॥
ਸਾਚ ਧਣੀ ਜਗੁ ਆਇ ਬਿਨਾਸਾ ॥
संसार जन्मता मरता रहता है लेकिन सृष्टि का स्वामी सत्यस्वरूप है।
ਛੂਟਸਿ ਪ੍ਰਾਣੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਦਾਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो मनुष्य गुरु की शरणागत प्रभु का सेवक बनता है, वह जन्म-मरण से छूट जाता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਗੁ ਮੋਹਿ ਬਾਧਾ ਬਹੁਤੀ ਆਸਾ ॥
यह जगत सांसारिक मोह एवं अनेक आशाओं में बंधा हुआ है।
ਗੁਰਮਤੀ ਇਕਿ ਭਏ ਉਦਾਸਾ ॥
लेकिन कई मनुष्य गुरमति के माध्यम से मोह से निर्लिप्त हो जाते हैं।
ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਕਮਲੁ ਪਰਗਾਸਾ ॥
उनके अन्तर्मन में नाम विद्यमान है और उनका हृदय कमल खिल जाता है।
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕਉ ਨਾਹੀ ਜਮ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸਾ ॥੨॥
उन्हें मृत्यु का कोई डर नहीं रहता ॥ २॥
ਜਗੁ ਤ੍ਰਿਅ ਜਿਤੁ ਕਾਮਣਿ ਹਿਤਕਾਰੀ ॥
वासना ने मनुष्य के हृदय को आच्छादित कर लिया है;
ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਲਗਿ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰੀ ॥
पुत्रों एवं पत्नी के मोह में फँसकर मनुष्य ने प्रभु-नाम को भुला दिया है।
ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ॥
इस प्रकार मनुष्य जीवन निरर्थक गंवा देता है और जीवन की बाजी हार जाता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਕਰਣੀ ਸਾਰੀ ॥੩॥
जो व्यक्ति गुरु की शिक्षाओं का श्रद्धापूर्वक पालन करता है और निरंतर प्रभु-स्मरण में लीन रहता है, उसका जीवन आचरण और व्यवहार की दृष्टि से आदर्श बन जाता है। ॥ ३॥
ਬਾਹਰਹੁ ਹਉਮੈ ਕਹੈ ਕਹਾਏ ॥
यद्यपि कोई व्यक्ति स्वयं को गुरुमुख कहता है, किंतु यदि वह सार्वजनिक रूप से अभिमानपूर्ण वचनों का उच्चारण करता है,
ਅੰਦਰਹੁ ਮੁਕਤੁ ਲੇਪੁ ਕਦੇ ਨ ਲਾਏ ॥
उसके हृदय को मोक्ष का लेपन कदाचित नहीं होता।
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
जो मनुष्य गुरु के शब्द में लीन होकर माया का मोह जला देता है,
ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਸਦ ਹਿਰਦੈ ਧਿਆਏ ॥੪॥
वह निर्मल नाम का सदैव ही हृदय में सिमरन करता है॥ ४॥
ਧਾਵਤੁ ਰਾਖੈ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ॥
वह अपने भटकते हुए मन पर अंकुश लगाता है और इसे जकड़ कर बांधकर रखता है।
ਸਿਖ ਸੰਗਤਿ ਕਰਮਿ ਮਿਲਾਏ ॥
ऐसे सद्गुणी गुरु और उनके सच्चे शिष्य का संग भगवान की विशेष कृपा से ही प्राप्त होता है।
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਭੂਲੋ ਆਵੈ ਜਾਏ ॥
गुरु के बिना मनुष्य कुमार्गगामी हो जाता है और जन्म मरण के चक्र में फँस जाता है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੰਜੋਗਿ ਮਿਲਾਏ ॥੫॥
यदि प्रभु कृपा-दृष्टि करे तो वह मनुष्य को अपने संयोग में मिला लेता है॥ ५॥
ਰੂੜੋ ਕਹਉ ਨ ਕਹਿਆ ਜਾਈ ॥
हे भगवान् ! आप अति सुन्दर है लेकिन यदि मैं बताने का प्रयास करूँ तो उसका वर्णन नहीं कर सकता।
ਅਕਥ ਕਥਉ ਨਹ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈ ॥
यदि मैं अकथनीय प्रभु का कथन करूँ तो मैं उसका मूल्यांकन नहीं कर सकता।
ਸਭ ਦੁਖ ਤੇਰੇ ਸੂਖ ਰਜਾਈ ॥
हे प्रभु ! सभी दुःख एवं सुख आपकी इच्छा अनुसार ही मिलते हैं।
ਸਭਿ ਦੁਖ ਮੇਟੇ ਸਾਚੈ ਨਾਈ ॥੬॥
सत्यनाम में सभी दुःख मिट जाते हैं।॥ ६ ॥
ਕਰ ਬਿਨੁ ਵਾਜਾ ਪਗ ਬਿਨੁ ਤਾਲਾ ॥
जब शब्द की सूझ होती है तो प्राणी हाथों के बिना ही बाजा बजाता है और पैरों के बिना ही नृत्य किए ताल बना रहता है।
ਜੇ ਸਬਦੁ ਬੁਝੈ ਤਾ ਸਚੁ ਨਿਹਾਲਾ ॥
यदि वह शब्द के भेद को समझ ले तो सत्य को देख लेगा।
ਅੰਤਰਿ ਸਾਚੁ ਸਭੇ ਸੁਖ ਨਾਲਾ ॥
जब सच्चा परमात्मा अन्तर्मन में विद्यमान है तो सभी सुख मनुष्य के साथ हैं।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਰਾਖੈ ਰਖਵਾਲਾ ॥੭॥
अपनी दया करके सबका रक्षक प्रभु प्राणी की रक्षा करते हैं॥ ७॥
ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੂਝੈ ਆਪੁ ਗਵਾਵੈ ॥
जो मनुष्य अपना अहंत्व मिटा देता है, उसे तीन लोकों की सूझ हो जाती है।
ਬਾਣੀ ਬੂਝੈ ਸਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥
जो मनुष्य वाणी को समझता है, वह सत्य में समा जाता है।
ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੇ ਏਕ ਲਿਵ ਤਾਰਾ ॥
हे प्राणी ! निरन्तर प्रीति के साथ एक शब्द का ध्यान करो।
ਨਾਨਕ ਧੰਨੁ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥੮॥੨॥
हे नानक ! अपने भक्तों का जीवन संवारने वाला प्रभु धन्य है॥ ८ ॥ २॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਲੇਖ ਅਸੰਖ ਲਿਖਿ ਲਿਖਿ ਮਾਨੁ ॥
ईश्वर पर अनगिनत लेख लिखे गए हैं, परंतु प्रायः लेखक अपने ज्ञान के गर्व में पड़कर अहंकार के जाल में फँस जाते हैं।
ਮਨਿ ਮਾਨਿਐ ਸਚੁ ਸੁਰਤਿ ਵਖਾਨੁ ॥
ईश्वर को जानने और उस पर बोलने की योग्यता तभी उत्पन्न होती है, जब हृदय पूर्णतः उसे स्वीकार करता है,
ਕਥਨੀ ਬਦਨੀ ਪੜਿ ਪੜਿ ਭਾਰੁ ॥
जो केवल वाणी से ईश्वर के गुणों का उच्चारण करता है, पर उन्हें आत्मा में नहीं उतारता, वह बाह्य श्रद्धा का प्रदर्शन तो करता है, किंतु भीतर अहंकार ही पुष्ट होता है।"
ਲੇਖ ਅਸੰਖ ਅਲੇਖੁ ਅਪਾਰੁ ॥੧॥
असंख्य धार्मिक ग्रंथ हैं परन्तु अपार प्रभु अकथनीय ही रहता है॥ १॥
ਐਸਾ ਸਾਚਾ ਤੂੰ ਏਕੋ ਜਾਣੁ ॥
हे प्राणी ! तू समझ ले कि एक सत्यस्वरूप परमात्मा ही ऐसा है।
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣਾ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
यह जन्म-मरण भी उस प्रभु की इच्छा ही समझ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਜਗੁ ਬਾਧਾ ਜਮਕਾਲਿ ॥
इस दुनिया को मृत्यु ने माया के मोह में फँसा कर बांधा हुआ है।
ਬਾਂਧਾ ਛੂਟੈ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥
नाम-सिमरन करने से बन्धनों में फँसा हुआ मनुष्य मोह-माया से छूट सकता है।
ਗੁਰੁ ਸੁਖਦਾਤਾ ਅਵਰੁ ਨ ਭਾਲਿ ॥
गुरु ही सुखों के दाता हैं इसलिए किसी अन्य की खोज मत कर।
ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਨਿਬਹੀ ਤੁਧੁ ਨਾਲਿ ॥੨॥
इस लोक एवं परलोक में वह तेरा साथ निभाएगा ॥ २॥
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਤਾਂ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
यदि मनुष्य शब्द-गुरु द्वारा मोह-माया से निर्लिप्त हो जाए तो उसकी लगन एक ईश्वर से लग जाती है।
ਅਚਰੁ ਚਰੈ ਤਾਂ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
केवल वही व्यक्ति संसार की मोह-माया से मुक्त हो सकता है, जो अपनी अदम्य वासनाओं और बुरी इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण पा लेता है
ਜੀਵਨ ਮੁਕਤੁ ਮਨਿ ਨਾਮੁ ਵਸਾਏ ॥
नाम को हृदय में बसाने से मनुष्य जीवनमुक्त हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਤ ਸਚਿ ਸਮਾਏ ॥੩॥
यदि मनुष्य गुरुमुख बन जाए तो वह सत्य में समा जाता है॥ ३॥
ਜਿਨਿ ਧਰ ਸਾਜੀ ਗਗਨੁ ਅਕਾਸੁ ॥
जिसं प्रभु ने धरती, गगन, आकाश की सृजना की है और
ਜਿਨਿ ਸਭ ਥਾਪੀ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥
जिसने सारी दुनिया बनाई है, जो निर्माण करके स्वयं ही नाश कर देता है,
ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥
वह रचयिता प्रभु स्वयं ही सवके भीतर व्यापत है।
ਕਿਸੈ ਨ ਪੂਛੇ ਬਖਸੇ ਆਪਿ ॥੪॥
वह किसी से परामर्श नहीं करता और स्वयं ही क्षमा कर देता है॥ ४॥
ਤੂ ਪੁਰੁ ਸਾਗਰੁ ਮਾਣਕ ਹੀਰੁ ॥
हे भगवान, आप स्वयं अनमोल गुणों से परिपूर्ण संसार-सागर हैं।।
ਤੂ ਨਿਰਮਲੁ ਸਚੁ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰੁ ॥
आप निष्कलंक, शाश्वत और गुणों के भंडार हैं।