Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 413

Page 413

ਸੁਖੁ ਮਾਨੈ ਭੇਟੈ ਗੁਰ ਪੀਰੁ ॥ जिसे गुरु-पीर मिल जाता है, वह सदा सुख भोगता है।
ਏਕੋ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕੁ ਵਜੀਰੁ ॥੫॥ परमात्मा स्वयं ही दुनिया के सम्राट और वजीर हैं। ॥ ५ ॥
ਜਗੁ ਬੰਦੀ ਮੁਕਤੇ ਹਉ ਮਾਰੀ ॥ यह समूचा जगत मोह-माया की कैद में है। जो अपना अभिमान मिटा देता है, वह मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
ਜਗਿ ਗਿਆਨੀ ਵਿਰਲਾ ਆਚਾਰੀ ॥ जगत् में कोई विरला ही ज्ञानी है, जिसका आचरण उस ज्ञान के अनुसार है।
ਜਗਿ ਪੰਡਿਤੁ ਵਿਰਲਾ ਵੀਚਾਰੀ ॥ जगत् में पण्डित भी कोई विरला है, जो सही विचारक है
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਸਭ ਫਿਰੈ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥੬॥ सतगुरु को मिले बिना सभी अहंकार में भटकते हैं।॥ ६॥
ਜਗੁ ਦੁਖੀਆ ਸੁਖੀਆ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥ सकल जगत् दुःखी है परन्तु कोई विरला पुरुष ही इस संसार में सुखी है।
ਜਗੁ ਰੋਗੀ ਭੋਗੀ ਗੁਣ ਰੋਇ ॥ जगत् भोगी होने के कारण रोगी है और अपने गुणों को गंवा कर रोता है।
ਜਗੁ ਉਪਜੈ ਬਿਨਸੈ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥ मानवता ने जबसे अपने मूल्यों और आत्म-सम्मान को त्यागा है, तभी से वह जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र में भटकती चली जा रही है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਬੂਝੈ ਸੋਇ ॥੭॥ जो गुरुमुख बन जाता है, वह इस तथ्य को समझ लेता है।७॥
ਮਹਘੋ ਮੋਲਿ ਭਾਰਿ ਅਫਾਰੁ ॥ प्रभु मूल्य में महंगा एवं भार में अनन्त है।
ਅਟਲ ਅਛਲੁ ਗੁਰਮਤੀ ਧਾਰੁ ॥ हे प्राणी ! गुरु की मति से अटल एवं अछल प्रभु को अपने हृदय में धारण कर।
ਭਾਇ ਮਿਲੈ ਭਾਵੈ ਭਇਕਾਰੁ ॥ प्रेम द्वारा मनुष्य उससे मिल जाता है जो प्रभु के भय में कार्य करता है, वह उसे अच्छा लगने लग जाता है।
ਨਾਨਕੁ ਨੀਚੁ ਕਹੈ ਬੀਚਾਰੁ ॥੮॥੩॥ नानक यह बात विचार करके कहते हैं॥ ८ ॥ ३ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਏਕੁ ਮਰੈ ਪੰਚੇ ਮਿਲਿ ਰੋਵਹਿ ॥ जब एक मरता है तो पाँचों संबंधी मिलकर रोते हैं।
ਹਉਮੈ ਜਾਇ ਸਬਦਿ ਮਲੁ ਧੋਵਹਿ ॥ यह अहंत्व की मैल तब दूर होती है, जब जीव यह मैल शब्द द्वारा शुद्ध कर लेता है।
ਸਮਝਿ ਸੂਝਿ ਸਹਜ ਘਰਿ ਹੋਵਹਿ ॥ जो इस तथ्य को समझता है वह सहज घर में प्रवेश कर जाता है।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਸਗਲੀ ਪਤਿ ਖੋਵਹਿ ॥੧॥ ज्ञान के बिना मनुष्य सारी प्रतिष्ठा गंवा लेता है॥ १॥
ਕਉਣੁ ਮਰੈ ਕਉਣੁ ਰੋਵੈ ਓਹੀ ॥ कौन मरता है और कौन उसे रोता है।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਭਸੈ ਸਿਰਿ ਤੋਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे प्रभु ! एक आप ही जग के रचयिता है, सब जीवों के ऊपर आप ही हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਮੂਏ ਕਉ ਰੋਵੈ ਦੁਖੁ ਕੋਇ ॥ यदि कोई मृतक को रोता है, वह वास्तव में अपना दुःख व्यक्त करता है।
ਸੋ ਰੋਵੈ ਜਿਸੁ ਬੇਦਨ ਹੋਇ ॥ केवल रोता वही है जिस पर मृतक के मरने से कोई विपदा आ जाती है।
ਜਿਸੁ ਬੀਤੀ ਜਾਣੈ ਪ੍ਰਭ ਸੋਇ ॥ जिसके साथ बीतती है, उसकी दशा वह प्रभु ही जानता है।
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੨॥ जो कुछ कर्ता प्रभु स्वयं करता है, वही कुछ होता है॥ २॥
ਜੀਵਤ ਮਰਣਾ ਤਾਰੇ ਤਰਣਾ ॥ अहंकार को मारकर जीना ही भवसागर से पार करने के लिए एक नाव का काम करता है।
ਜੈ ਜਗਦੀਸ ਪਰਮ ਗਤਿ ਸਰਣਾ ॥ उस जगदीश की जय करो, जिसकी शरण लेने से परमगति प्राप्त होती है।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣਾ ॥ मैं सतगुरु के चरणों पर बलिहारी जाता हूँ।
ਗੁਰੁ ਬੋਹਿਥੁ ਸਬਦਿ ਭੈ ਤਰਣਾ ॥੩॥ गुरु जहाज है और उसके शब्द द्वारा भयानक संसार सागर से पार हुआ जा सकता है॥ ३॥
ਨਿਰਭਉ ਆਪਿ ਨਿਰੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ॥ प्रभु स्वयं निर्भय है और उसकी ज्योति सबमें विद्यमान रहती है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸੂਤਕੁ ਜਗਿ ਛੋਤਿ ॥ नाम के बिना संसार में कहीं सूतक एवं कहीं छूत का वहम है।
ਦੁਰਮਤਿ ਬਿਨਸੈ ਕਿਆ ਕਹਿ ਰੋਤਿ ॥ दुर्बुद्धि से मनुष्य नष्ट हो गया है इसलिए वह क्यों पुकार करता रोता है ?
ਜਨਮਿ ਮੂਏ ਬਿਨੁ ਭਗਤਿ ਸਰੋਤਿ ॥੪॥ प्रभु-भक्ति एवं भजन सुने बिना मनुष्य जन्म-मरण के चक्र में फँसकर आता-जाता रहता है।॥ ४
ਮੂਏ ਕਉ ਸਚੁ ਰੋਵਹਿ ਮੀਤ ॥ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਰੋਵਹਿ ਨੀਤਾ ਨੀਤ ॥ मरे हुए को असल में सच्चे मित्र ही रोते हैं। तीन गुणों (रजो, सतो, तमो) वाले मनुष्य सदैव ही रोते रहते हैं।
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਪਰਹਰਿ ਸਹਜਿ ਸੁਚੀਤ ॥ दुःख-सुख को त्याग कर अपने हृदय में प्रभु को धारण करो।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਉਪਉ ਕ੍ਰਿਸਨ ਪਰੀਤਿ ॥੫॥ अपना तन-मन भगवान् के प्रेम में समर्पित कर दो ॥ ५॥
ਭੀਤਰਿ ਏਕੁ ਅਨੇਕ ਅਸੰਖ ॥ अनेक प्रकार के असंख्य जीव हैं पर सबके भीतर एक परमात्मा ही बसते हैं।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਬਹੁ ਸੰਖ ਅਸੰਖ ॥ बहुत सारे कर्म धर्म हैं, जिनकी संख्या असंख्य है।
ਬਿਨੁ ਭੈ ਭਗਤੀ ਜਨਮੁ ਬਿਰੰਥ ॥ प्रभु के भय एवं भक्ति के बिना मनुष्य जन्म निरर्थक है।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਮਿਲਿ ਪਰਮਾਰੰਥ ॥੬॥ हरि का गुणगान करने से परमार्थ मिल जाता है।॥ ६॥
ਆਪਿ ਮਰੈ ਮਾਰੇ ਭੀ ਆਪਿ ॥ किसी प्राणी की मृत्यु में मानो वही मरता है और उस प्राणी को प्रभु ही मारता है।
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥ प्रभु स्वयं पैदा करता है और पैदा करके वह स्वयं ही नाश कर देता है।
ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ਜੋਤੀ ਤੂ ਜਾਤਿ ॥ हे ज्योतिस्वरूप भगवान् ! आपने स्वयं ही सृष्टि की रचना की है और स्वयं ही अपनी ज्योति स्थापित कर दी है।
ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ਮਿਲਣੁ ਨਹੀ ਭ੍ਰਾਤਿ ॥੭॥ जो शब्द का चिन्तन करता है, वह प्रभु से मिल जाता है, इसमें कोई भ्रांति नहीं ॥ ७॥
ਸੂਤਕੁ ਅਗਨਿ ਭਖੈ ਜਗੁ ਖਾਇ ॥ अग्नि में भी सूतक है, जब अग्नि भड़कती है तो वह जगत को भस्म कर देती है।
ਸੂਤਕੁ ਜਲਿ ਥਲਿ ਸਭ ਹੀ ਥਾਇ ॥ जल, धरती हर कहीं सूतक विद्यमान है।
ਨਾਨਕ ਸੂਤਕਿ ਜਨਮਿ ਮਰੀਜੈ ॥ हे नानक ! सूतक में प्राणी जन्मते-मरते रहते हैं,
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੮॥੪॥ गुरु की कृपा से हरि रस का पान करते रहना चाहिए॥८॥ ४॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਆਪੁ ਵੀਚਾਰੈ ਸੁ ਪਰਖੇ ਹੀਰਾ ॥ जो मनुष्य आप विचार करता है वह नाम रूपी हीरे की परख कर लेता है।
ਏਕ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਤਾਰੇ ਗੁਰ ਪੂਰਾ ॥ पूर्ण गुरु अपनी एक कृपादृष्टि से ही मनुष्य का (संसार सागर से) उद्धार कर देता है।
ਗੁਰੁ ਮਾਨੈ ਮਨ ਤੇ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥੧॥ जो जीव सच्चे दिल से गुरु पर श्रद्धा धारण करता है, उसका मन चंचल नहीं होता ॥ १॥
ਐਸਾ ਸਾਹੁ ਸਰਾਫੀ ਕਰੈ ॥ गुरु ऐसे साहुकार है जो अपने शिष्यों को परखता है।
ਸਾਚੀ ਨਦਰਿ ਏਕ ਲਿਵ ਤਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उसकी अचूक दयादृष्टि से मनुष्य को प्रभु-प्रेम की देन मिल जाती है और उसका उद्धार हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਪੂੰਜੀ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਸਾਰੁ ॥ निरंजन प्रभु के नाम की राशि-पूंजी सर्वोत्तम है।
ਨਿਰਮਲੁ ਸਾਚਿ ਰਤਾ ਪੈਕਾਰੁ ॥ जो सत्य से रंगा हुआ है, वह महापुरुष पवित्र है।
ਸਿਫਤਿ ਸਹਜ ਘਰਿ ਗੁਰੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥੨॥ उसकी प्रशंसा गान करने से वह गुरु-कर्तार को सहज ही अपने हृदय-घर में बसा लेता है॥ २॥
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥ जो अपनी आशा एवं तृष्णा को शब्द द्वारा जला देता है,
ਰਾਮ ਨਰਾਇਣੁ ਕਹੈ ਕਹਾਏ ॥ वह राम-नारायण के नाम का स्वयं भजन करता है और दूसरों से भी भजन करवाता है।
ਗੁਰ ਤੇ ਵਾਟ ਮਹਲੁ ਘਰੁ ਪਾਏ ॥੩॥ वह गुरु के माध्यम से प्रभु के महल एवं घर का मार्ग खोज लेता है॥ ३॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top