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ਤਜਿ ਮਾਨ ਮੋਹ ਵਿਕਾਰ ਮਿਥਿਆ ਜਪਿ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ॥
अपना अभिमान, मोह, पाप एवं झूठ को छोड़कर राम-नाम का जाप किया करो।
ਮਨ ਸੰਤਨਾ ਕੈ ਚਰਨਿ ਲਾਗੁ ॥੧॥
हे मन ! संतों के चरणों से लग जाओ॥ १॥
ਪ੍ਰਭ ਗੋਪਾਲ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਹਰਿ ਚਰਣ ਸਿਮਰਿ ਜਾਗੁ ॥
हे भाई ! गोपाल प्रभु बड़ा दीनदयाल, पतित पावन एवं पारब्रह्म है। इसलिए निद्रा से जागकर हरि-चरणों की आराधना करो।
ਕਰਿ ਭਗਤਿ ਨਾਨਕ ਪੂਰਨ ਭਾਗੁ ॥੨॥੪॥੧੫੫॥
हे नानक ! प्रभु की भक्ति करो, तेरा भाग्य पूर्ण उदय हो जायेगा ॥२॥४॥१५५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਖ ਸੋਗ ਬੈਰਾਗ ਅਨੰਦੀ ਖੇਲੁ ਰੀ ਦਿਖਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मित्र, आनंद स्वरूप भगवान ने मुझे यह संसार-लीला दिखाई है, जहाँ सुख, दुःख और वैराग्य की स्थितियाँ निरंतर परिवर्तित होती रहती हैं। ॥ १॥ रहाउ॥
ਖਿਨਹੂੰ ਭੈ ਨਿਰਭੈ ਖਿਨਹੂੰ ਖਿਨਹੂੰ ਉਠਿ ਧਾਇਓ ॥
एक क्षण में ही मनुष्य भयभीत हो जाता है, एक क्षण में ही निडर एवं एक क्षण में ही वह उठकर दौड़ जाता है।
ਖਿਨਹੂੰ ਰਸ ਭੋਗਨ ਖਿਨਹੂੰ ਖਿਨਹੂ ਤਜਿ ਜਾਇਓ ॥੧॥
एक क्षण में ही वह रस भोगता है और एक क्षण एवं पल में ही वह छोड़कर चला जाता है। १॥
ਖਿਨਹੂੰ ਜੋਗ ਤਾਪ ਬਹੁ ਪੂਜਾ ਖਿਨਹੂੰ ਭਰਮਾਇਓ ॥
एक क्षण में ही योग, तपस्या एवं बहुत प्रकार की पूजा करता है और एक क्षण में ही वह भ्रम में भटकता है।
ਖਿਨਹੂੰ ਕਿਰਪਾ ਸਾਧੂ ਸੰਗ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਲਾਇਓ ॥੨॥੫॥੧੫੬॥
हे नानक ! एक क्षण में ही प्रभु अपनी कृपा द्वारा मनुष्य को सत्संगति में रखकर अपने रंग में लगा लेते हैं॥ २ ॥ ५॥ १५६॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧੭ ਆਸਾਵਰੀ
राग आसा, आसावरी, सत्रहवीं ताल, पाँचवें गुरु:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਗੋਬਿੰਦ ਗੋਬਿੰਦ ਕਰਿ ਹਾਂ ॥
हे मेरी सखी ! मैं गोबिंद-गोबिंद ही करती हूँ और
ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਪਿਆਰਿ ਹਾਂ ॥
अपने मन में हरि-नाम से प्यार करती हूँ।
ਗੁਰਿ ਕਹਿਆ ਸੁ ਚਿਤਿ ਧਰਿ ਹਾਂ ॥
गुरु ने जो कुछ कहा है, उसे मैं अपने चित्त में धारण करती हूँ,
ਅਨ ਸਿਉ ਤੋਰਿ ਫੇਰਿ ਹਾਂ ॥
मैं दूसरों से अपने प्रेम को तोड़कर अपने मन को उनकी तरफ से हटा रही हूँ।
ਐਸੇ ਲਾਲਨੁ ਪਾਇਓ ਰੀ ਸਖੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इस तरह मैंने प्रियतम-प्रभु को पा लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਪੰਕਜ ਮੋਹ ਸਰਿ ਹਾਂ ॥
संसार-सरोवर में मोह रूपी कीचड़ विद्यमान है।
ਪਗੁ ਨਹੀ ਚਲੈ ਹਰਿ ਹਾਂ ॥
मनुष्य के चरण इसलिए हरि की ओर नहीं चलते।
ਗਹਡਿਓ ਮੂੜ ਨਰਿ ਹਾਂ ॥
मूर्ख मनुष्य इस मोह के कीचड़ में फँसा हुआ है।
ਅਨਿਨ ਉਪਾਵ ਕਰਿ ਹਾਂ ॥
कोई दूसरा समाधान नहीं करता।
ਤਉ ਨਿਕਸੈ ਸਰਨਿ ਪੈ ਰੀ ਸਖੀ ॥੧॥
हे सखी ! यदि मैं प्रभु की शरण में जाऊँगी तभी संसार-सरोवर के मोह रूपी कीचड़ से बाहर निकलूंगी॥ १॥
ਥਿਰ ਥਿਰ ਚਿਤ ਥਿਰ ਹਾਂ ॥
इस तरह मेरा हृदय अटल एवं दृढ़ है।
ਬਨੁ ਗ੍ਰਿਹੁ ਸਮਸਰਿ ਹਾਂ ॥
जंगल एवं घर मेरे लिए एक समान हैं।
ਅੰਤਰਿ ਏਕ ਪਿਰ ਹਾਂ ॥
मेरे अन्तर्मन में एक प्रियतम प्रभु ही बसते हैं।
ਬਾਹਰਿ ਅਨੇਕ ਧਰਿ ਹਾਂ ॥
बाहरी स्तर पर मैं भले ही अनेक सांसारिक कार्य करती रहूँ।
ਰਾਜਨ ਜੋਗੁ ਕਰਿ ਹਾਂ ॥
इस प्रकार, सांसारिक सुखों का भोग करते हुए भी ईश्वर से मिलन के दिव्य आनंद का अनुभव करो।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਲੋਗ ਅਲੋਗੀ ਰੀ ਸਖੀ ॥੨॥੧॥੧੫੭॥
नानक कहते हैं कि हे सखी ! सुन, यही उपाय है कि संसार में रहते हुए भी उससे अलिप्त रहा जाए। ॥ २॥ १॥ १५७॥
ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसावरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਨਸਾ ਏਕ ਮਾਨਿ ਹਾਂ ॥
हे मन ! केवल एक ईश्वर की ही अभिलाषा करो।
ਗੁਰ ਸਿਉ ਨੇਤ ਧਿਆਨਿ ਹਾਂ ॥
नित्य गुरु के चरणों में ध्यान लगाकर रखो।
ਦ੍ਰਿੜੁ ਸੰਤ ਮੰਤ ਗਿਆਨਿ ਹਾਂ ॥
संतों के मंत्र के ज्ञान को अपने हृदय में बसाओ।
ਸੇਵਾ ਗੁਰ ਚਰਾਨਿ ਹਾਂ ॥
गुरु के चरणों की श्रद्धापूर्वक सेवा करो।
ਤਉ ਮਿਲੀਐ ਗੁਰ ਕ੍ਰਿਪਾਨਿ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मेरे मन ! तभी गुरु की कृपा से तुम अपने स्वामी से मिल जाओगे ॥ १॥ रहाउ॥
ਟੂਟੇ ਅਨ ਭਰਾਨਿ ਹਾਂ ॥
मेरे सारे भ्रम समाप्त हो गए हैं।
ਰਵਿਓ ਸਰਬ ਥਾਨਿ ਹਾਂ ॥
अब मुझे हर जगह पर भगवान् विद्यमान दिखते हैं।
ਲਹਿਓ ਜਮ ਭਇਆਨਿ ਹਾਂ ॥
अब मौत का डर मेरे मन से दूर हो गया है।
ਪਾਇਓ ਪੇਡ ਥਾਨਿ ਹਾਂ ॥
जब इस जगत रूपी पेड़ के मूल नाम को पा लिया
ਤਉ ਚੂਕੀ ਸਗਲ ਕਾਨਿ ॥੧॥
तब व्यक्ति की सभी निर्भरताएँ समाप्त हो जाती हैं ॥ १॥
ਲਹਨੋ ਜਿਸੁ ਮਥਾਨਿ ਹਾਂ ॥
केवल वही प्रभु नाम को पाता है जिस मनुष्य के मस्तक पर भाग्य उदय हो जाता है और
ਭੈ ਪਾਵਕ ਪਾਰਿ ਪਰਾਨਿ ਹਾਂ ॥
वह भयानक अग्नि सागर से पार हो जाता है।
ਨਿਜ ਘਰਿ ਤਿਸਹਿ ਥਾਨਿ ਹਾਂ ॥
वह अपने आत्मस्वरूप में बसेरा प्राप्त कर लेता है और
ਹਰਿ ਰਸ ਰਸਹਿ ਮਾਨਿ ਹਾਂ ॥
हरि रस के रस का आनंद प्राप्त करता है।
ਲਾਥੀ ਤਿਸ ਭੁਖਾਨਿ ਹਾਂ ॥
उसकी भूख-प्यास मिट जाती है।
ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਓ ਰੇ ਮਨਾ ॥੨॥੨॥੧੫੮॥
नानक कहते हैं कि हे मेरे मन ! वह प्रभु में सहज ही समा जाता है॥ २॥ २॥ १५८ ॥
ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसावरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਨੀ ਹਾਂ ॥
हे मेरे मन ! गुणों के भण्डार परमात्मा का नाम
ਜਪੀਐ ਸਹਜ ਧੁਨੀ ਹਾਂ ॥
सहज ही मधुर ध्वनि में जपते रहना चाहिए।
ਸਾਧੂ ਰਸਨ ਭਨੀ ਹਾਂ ॥
साधुओं की ही रसना प्रभु नाम का जाप करती रहती है।
ਛੂਟਨ ਬਿਧਿ ਸੁਨੀ ਹਾਂ ॥
मैंने सुना है कि मुक्ति पाने का एकमात्र यही मार्ग है।
ਪਾਈਐ ਵਡ ਪੁਨੀ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लेकिन बड़े पुण्य-कर्म करने से ही यह मार्ग प्राप्त होता है॥ १॥ रहाउ॥
ਖੋਜਹਿ ਜਨ ਮੁਨੀ ਹਾਂ ॥
मुनिजन भी उसे खोजते हैं।
ਸ੍ਰਬ ਕਾ ਪ੍ਰਭ ਧਨੀ ਹਾਂ ॥
जो सबका स्वामी है
ਦੁਲਭ ਕਲਿ ਦੁਨੀ ਹਾਂ ॥
कलियुगी दुनिया में प्रभु को प्राप्त करना बड़ा दुर्लभ है।
ਦੂਖ ਬਿਨਾਸਨੀ ਹਾਂ ॥
वह दुःख नाशक है।
ਪ੍ਰਭ ਪੂਰਨ ਆਸਨੀ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥
हे मेरे मन ! प्रभु सभी आशाएँ पूर्ण करने वाला है॥ १॥
ਮਨ ਸੋ ਸੇਵੀਐ ਹਾਂ ॥
हे मेरे मन ! उस प्रभु की सेवा करो।