Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 395

Page 395

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨੈ ਨਾਇ ਲਾਏ ਸਰਬ ਸੂਖ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰੀ ਰਜਾਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ हे स्वामी ! जिन पर आप अपनी कृपा दृष्टि डालते हैं, उन्हें अपने पावन नाम से जोड़ लेते हैं। ऐसे भक्त आपकी इच्छा में समर्पित होकर सच्चे सुख और शांति का अनुभव करते हैं।॥ रहाउ॥
ਸੰਗਿ ਹੋਵਤ ਕਉ ਜਾਨਤ ਦੂਰਿ ॥ जो पुरुष समीप रहने वाले भगवान् को दूर समझते हैं,"
ਸੋ ਜਨੁ ਮਰਤਾ ਨਿਤ ਨਿਤ ਝੂਰਿ ॥੨॥ वह सदैव दुःखी रहते हुए मर जात हैं।॥ २॥
ਜਿਨਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਦੀਆ ਤਿਸੁ ਚਿਤਵਤ ਨਾਹਿ ॥ जिस भगवान् ने सब कुछ दिया है, उसे मनुष्य याद नहीं करता।
ਮਹਾ ਬਿਖਿਆ ਮਹਿ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਜਾਹਿ ॥੩॥ उसके दिन और रात घातक माया के जाल में डूबे हुए व्यर्थ ही बीत जाते हैं।॥ ३ ॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰਹੁ ਏਕ ॥ हे नानक ! केवल प्रभु नाम का सिमरन करो।
ਗਤਿ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਟੇਕ ॥੪॥੩॥੯੭॥ पूर्ण गुरु की शिक्षाओं का अनुसरण करके ही हम परमात्मा की परम और सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं।॥ ४ ॥ ३ ॥ ६७ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸਭੁ ਹਰਿਆ ॥ भगवान् का नाम जपने से मन-तन हर्षित हो गया है।
ਕਲਮਲ ਦੋਖ ਸਗਲ ਪਰਹਰਿਆ ॥੧॥ उसके सभी पाप एवं दोष दूर हो गए हैं।॥ १॥
ਸੋਈ ਦਿਵਸੁ ਭਲਾ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥ हे मेरे भाई ! वह दिन बड़ा शुभ है,"
ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਇ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जब भगवान् का गुणगान करने से परमगति मिल जाती है॥ रहाउ॥
ਸਾਧ ਜਨਾ ਕੇ ਪੂਜੇ ਪੈਰ ॥ साधजनों के चरणों की पूजा करने से
ਮਿਟੇ ਉਪਦ੍ਰਹ ਮਨ ਤੇ ਬੈਰ ॥੨॥ मन से हर प्रकार की मुसीबतें एवं वैर मिट गए हैं।॥ २॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਮਿਲਿ ਝਗਰੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥ पूर्ण गुरु को मिलने से विकारों का झगड़ा मिट गया है और
ਪੰਚ ਦੂਤ ਸਭਿ ਵਸਗਤਿ ਆਇਆ ॥੩॥ सभी कामादिक पाँच शत्रु-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार वश में आ गए हैं।॥ ३॥
ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ॥ जिसके मन में हरि का नाम निवास करता है
ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਊਪਰਿ ਕੁਰਬਾਨ ॥੪॥੪॥੯੮॥ नानक उस पर बलिहारी जाता है ॥ ४ ॥ ४ ॥ ६८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਗਾਵਿ ਲੇਹਿ ਤੂ ਗਾਵਨਹਾਰੇ ॥ ऐ मेरे मित्र! जब तक तुम्हारे भीतर स्वर है, तब तक उस परमात्मा की स्तुति गाते रहो,"
ਜੀਅ ਪਿੰਡ ਕੇ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੇ ॥ जो सब की आत्मा, शरीर एवं प्राणों का आधार है।
ਜਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਵਹਿ ॥ जिसकी सेवा करने से सर्व-सुख प्राप्त हो जाते हैं।
ਅਵਰ ਕਾਹੂ ਪਹਿ ਬਹੁੜਿ ਨ ਜਾਵਹਿ ॥੧॥ तब तुझे किसी दूसरे के पास जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।॥ १॥
ਸਦਾ ਅਨੰਦ ਅਨੰਦੀ ਸਾਹਿਬੁ ਗੁਨ ਨਿਧਾਨ ਨਿਤ ਨਿਤ ਜਾਪੀਐ ॥ मेरा मालिक सदैव आनंद में आनंदित रहता है। उस गुणों के भण्डार प्रभु का नित्य जाप करते रहना चाहिए।
ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਸੁ ਸੰਤ ਪਿਆਰੇ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮਨਿ ਵਾਸੀਐ ॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं उस प्रिय संत पर बलिहारी जाता हूँ, जिसकी दया से प्रभु हृदय में निवास कर लेता है॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕਾ ਦਾਨੁ ਨਿਖੂਟੈ ਨਾਹੀ ॥ जिसका दिया हुआ दान कभी कम नहीं होता,"
ਭਲੀ ਭਾਤਿ ਸਭ ਸਹਜਿ ਸਮਾਹੀ ॥ उसे याद करने वाले जीव भलीभांति सहज सुख में लीन हो सकते हैं।
ਜਾ ਕੀ ਬਖਸ ਨ ਮੇਟੈ ਕੋਈ ॥ जिसके दिए गए उपहारों को कोई भी मिटा नहीं सकता,"
ਮਨਿ ਵਾਸਾਈਐ ਸਾਚਾ ਸੋਈ ॥੨॥ उस सत्यस्वरूप प्रभु को अपने मन में बसाओ ॥ २॥
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਗ੍ਰਿਹ ਜਾ ਕੈ ਪੂਰਨ ॥ जिसके घर में समस्त सामग्री भरपूर है,"
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਦੂਖ ਨ ਝੂਰਨ ॥ उस प्रभु के सेवक कभी दु:ख में पश्चाताप नहीं करते।
ਓਟਿ ਗਹੀ ਨਿਰਭਉ ਪਦੁ ਪਾਈਐ ॥ उसकी शरण लेने से निर्भय पद प्राप्त हो जाता है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸੋ ਗੁਨ ਨਿਧਿ ਗਾਈਐ ॥੩॥ हे प्राणी ! श्वास-श्वास से उस गुणों के भण्डार प्रभु की स्तुति करनी चाहिए॥ ३॥
ਦੂਰਿ ਨ ਹੋਈ ਕਤਹੂ ਜਾਈਐ ॥ ईश्वर हमसे दूर नहीं है; उसे पाने के लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ॥ यदि वह अपनी कृपा-दृष्टि करे तो ही हरि-परमेश्वर का नाम प्राप्त होता है।
ਅਰਦਾਸਿ ਕਰੀ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥ मैं पूर्ण गुरु के पास प्रार्थना करता हूँ कि
ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਹਰਿ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ॥੪॥੫॥੯੯॥ भक्त नानक आपसे हरि-नाम रूपी धन की पूँजी माँगता है॥ ४॥ ५॥ ६६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਮਿਟਿਆ ਤਨ ਕਾ ਦੂਖ ॥ सर्वप्रथम मेरे तन का दु:ख मिटा है और
ਮਨ ਸਗਲ ਕਉ ਹੋਆ ਸੂਖੁ ॥ तदुपरांत मन को सर्व सुख प्राप्त हो गया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰ ਦੀਨੋ ਨਾਉ ॥ गुरु ने कृपा करके मुझे हरि का नाम दिया है।
ਬਲਿ ਬਲਿ ਤਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕਉ ਜਾਉ ॥੧॥ मैं उस सच्चे गुरु पर बलिहारी जाता हूँ॥ १॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਓ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥ हे मेरे भाई ! मैंने पूर्ण गुरु को पा लिया है।
ਰੋਗ ਸੋਗ ਸਭ ਦੂਖ ਬਿਨਾਸੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ सच्चे गुरु की शरण लेने से मेरे सभी रोग, शोक एवं दुःख विनष्ट हो गए हैं। रहाउ॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਹਿਰਦੈ ਵਸਾਏ ॥ गुरु के चरण मैंने अपने हृदय में बसाए हैं और
ਮਨ ਚਿੰਤਤ ਸਗਲੇ ਫਲ ਪਾਏ ॥ मुझे मनोवांछित फल प्राप्त हो गए हैं।
ਅਗਨਿ ਬੁਝੀ ਸਭ ਹੋਈ ਸਾਂਤਿ ॥ मेरी तृष्णाग्नि बुझ गई है और मेरे अन्तर्मन में सम्पूर्ण शांति है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰਿ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ॥੨॥ गुरु ने कृपा करके मुझे प्रभु-नाम की देन प्रदान की है॥ २॥
ਨਿਥਾਵੇ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਨੋ ਥਾਨੁ ॥ गुरु ने निराश्रित को आश्रय दिया है।
ਨਿਮਾਨੇ ਕਉ ਗੁਰਿ ਕੀਨੋ ਮਾਨੁ ॥ मानहीन को गुरु ने सम्मान प्रदान किया है।
ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਸੇਵਕ ਕਰਿ ਰਾਖੇ ॥ गुरु ने बन्धन काट कर अपने सेवक की हर प्रकार से रक्षा की है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਨੀ ਰਸਨਾ ਚਾਖੇ ॥੩॥ अमृत वाणी अब मैं अपनी रसना से चखता हूँ॥ ३॥
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਪੂਜ ਗੁਰ ਚਰਨਾ ॥ अहोभाग्य से ही मैंने गुरु के चरणों की पूजा की है।
ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਪਾਈ ਪ੍ਰਭ ਸਰਨਾ ॥ सब कुछ त्याग कर मैंने प्रभु की शरण ली है।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top