Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 396

Page 396

ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕਉ ਭਇਆ ਦਇਆਲਾ हे नानक ! जिस पर गुरु दयालु हो गए है,"
ਸੋ ਜਨੁ ਹੋਆ ਸਦਾ ਨਿਹਾਲਾ ॥੪॥੬॥੧੦੦॥ वह मनुष्य सदैव प्रसन्नचित्त रहता है॥ ४॥ ६ ॥ १०० ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਸਾਚੈ ਦੀਆ ਭੇਜਿ ॥ मेरे सच्चे सतगुरु नानक ने बालक हरिगोविन्द को मेरे घर में भेज दिया है।
ਚਿਰੁ ਜੀਵਨੁ ਉਪਜਿਆ ਸੰਜੋਗਿ ॥ अच्छे भाग्य से यह दीर्घ आयु वाला बालक पैदा होता है।
ਉਦਰੈ ਮਾਹਿ ਆਇ ਕੀਆ ਨਿਵਾਸੁ ॥ जब इस बालक ने आकर अपनी माता के उदर में निवास किया था तो
ਮਾਤਾ ਕੈ ਮਨਿ ਬਹੁਤੁ ਬਿਗਾਸੁ ॥੧॥ उसकी माता के मन में बड़ा आनंद उत्पन्न हुआ था। १॥
ਜੰਮਿਆ ਪੂਤੁ ਭਗਤੁ ਗੋਵਿੰਦ ਕਾ ॥ जिस पुत्र ने हमारे घर जन्म लिया है, यह गोविन्द का भक्त है।
ਪ੍ਰਗਟਿਆ ਸਭ ਮਹਿ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰ ਕਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ पूर्वनिर्धारित नियति सभी को ज्ञात हो गई है ||विराम|| ॥ रहाउ ॥
ਦਸੀ ਮਾਸੀ ਹੁਕਮਿ ਬਾਲਕ ਜਨਮੁ ਲੀਆ ॥ जब प्रभु के आदेश से दसवें महीने बालक हरिगोविंद ने जन्म लिया तो
ਮਿਟਿਆ ਸੋਗੁ ਮਹਾ ਅਨੰਦੁ ਥੀਆ ॥ सारी चिंता मिट गई और सर्वत्र महा आनंद (हर्षोंलास ही) हो गया।
ਗੁਰਬਾਣੀ ਸਖੀ ਅਨੰਦੁ ਗਾਵੈ ॥ आनंद में सखियाँ गुरुवाणी द्वारा मंगल गान करती हैं।
ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਕੈ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥੨॥ यह वाणी सच्चे साहिब के मन को बहुत अच्छी लगती है। ॥२॥
ਵਧੀ ਵੇਲਿ ਬਹੁ ਪੀੜੀ ਚਾਲੀ ॥ बालक के जन्म लेने से हमारी पीढ़ी लता की भांति बढ़ने लग गई है और अब पीढ़ियों तक निरंतर चलता रहेगा।
ਧਰਮ ਕਲਾ ਹਰਿ ਬੰਧਿ ਬਹਾਲੀ ॥ प्रभु ने धर्म की कला बालक में दृढ़ तौर पर स्थापित कर दी है।
ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦਿਵਾਇਆ ॥ सतगुरु ने मुझे मनोवांछित बालक प्रभु से दिलवाया है।
ਭਏ ਅਚਿੰਤ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਇਆ ॥੩॥ मैं निश्चिंत हो गया हूँ और मैंने अपनी लगन एक ईश्वर में लगा ली है। ॥३॥
ਜਿਉ ਬਾਲਕੁ ਪਿਤਾ ਊਪਰਿ ਕਰੇ ਬਹੁ ਮਾਣੁ ॥ जैसे बालक अपने पिता पर बहुत गर्व करता है वैसे ही
ਬੁਲਾਇਆ ਬੋਲੈ ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਣਿ ॥ मैं वह कुछ बोलता हूँ जो गुरु जी को मुझ से कहलवाना भला लगता है।
ਗੁਝੀ ਛੰਨੀ ਨਾਹੀ ਬਾਤ ॥ यह कोई छिपी हुई बात नहीं।
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਤੁਠਾ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ॥੪॥੭॥੧੦੧॥ गुरु नानक ने प्रसन्नचित होकर मुझे यह बालक की देन प्रदान की है। ४ ॥ ७ ॥ १०१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਰਾਖਿਆ ਦੇ ਹਾਥ ॥ पूर्ण गुरु ने अपना हाथ देकर मुझे बचा लिया है।
ਪ੍ਰਗਟੁ ਭਇਆ ਜਨ ਕਾ ਪਰਤਾਪੁ ॥੧॥ अब उसके सेवक का प्रताप अर्थात् शोभा दुनिया में प्रगट हो गई है॥ १ ॥
ਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਜਪੀ ਗੁਰੂ ਗੁਰੁ ਧਿਆਈ ॥ मैं गुरु-गुरु ही मुँह से जपता रहता हूँ और गुरु-गुरु नाम मन से याद करता रहता हूँ।
ਜੀਅ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਗੁਰੂ ਪਹਿ ਪਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जिस पदार्थ हेतु मैं गुरु के समक्ष प्रार्थना करता हूँ वह मनोवांछित फल मैं गुरु से पा लेता हूँ॥ रहाउ॥
ਸਰਨਿ ਪਰੇ ਸਾਚੇ ਗੁਰਦੇਵ ॥ मैंने सच्चे गुरुदेव की शरण ली है।
ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਸੇਵਕ ਸੇਵ ॥੨॥ उसके सेवक की सेवा पूरी हो गई है। ॥२॥
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਜੋਬਨੁ ਰਾਖੈ ਪ੍ਰਾਨ ॥ उसने मेरी आत्मा, शरीर, यौवन एवं प्राणों की रक्षा की है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕਉ ਕੁਰਬਾਨ ॥੩॥੮॥੧੦੨॥ हे नानक ! में अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ॥ ३॥ ८॥ १०२॥
ਆਸਾ ਘਰੁ ੮ ਕਾਫੀ ਮਹਲਾ ੫॥ राग आसा, आठवां ताल, काफी, पांचवें गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮੈ ਬੰਦਾ ਬੈ ਖਰੀਦੁ ਸਚੁ ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ॥ हे प्रभु ! मेरा स्वामी शाश्वत परमेश्वर है, और मैं उसका प्रेमपूर्वक खरीदा हुआ सेवक हूँ।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਦਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੈ ਤੇਰਾ ॥੧॥ मेरा मन एवं तन सब उसके दिए हुए हैं, मेरा जीवन इत्यादि सब कुछ तेरा ही दिया हुआ है॥ १॥
ਮਾਣੁ ਨਿਮਾਣੇ ਤੂੰ ਧਣੀ ਤੇਰਾ ਭਰਵਾਸਾ ॥ हे मालिक ! आप मुझ मानहीन का सम्मान हो और मुझे आपका ही भरोसा है।
ਬਿਨੁ ਸਾਚੇ ਅਨ ਟੇਕ ਹੈ ਸੋ ਜਾਣਹੁ ਕਾਚਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसे सच्चे परमात्मा के अतिरिक्त किसी दूसरे का सहारा है, वह आध्यात्मिक रूप से दुर्बल माना जाता है। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਤੇਰਾ ਹੁਕਮੁ ਅਪਾਰ ਹੈ ਕੋਈ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਏ ॥ हे प्रभु, आपकी शक्ति असीम और अनंत है; कोई भी प्राणी उसकी सीमा को नहीं समझ सकता।
ਜਿਸੁ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਸੀ ਸੋ ਚਲੈ ਰਜਾਏ ॥੨॥ पूर्ण गुरु की शिक्षाओं को अपनाने वाला भक्त, प्रभु की इच्छा के मार्ग पर सहज ही चल पड़ता है।॥ २॥
ਚਤੁਰਾਈ ਸਿਆਣਪਾ ਕਿਤੈ ਕਾਮਿ ਨ ਆਈਐ ॥ चतुराई एवं बुद्धिमत्ता से प्राप्त की गई शांति किसी काम नहीं आती।
ਤੁਠਾ ਸਾਹਿਬੁ ਜੋ ਦੇਵੈ ਸੋਈ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥੩॥ ईश्वर अपनी प्रसन्नता से मुझे जो देते हैं, उसी में मेरा सुख है॥ ३॥
ਜੇ ਲਖ ਕਰਮ ਕਮਾਈਅਹਿ ਕਿਛੁ ਪਵੈ ਨ ਬੰਧਾ ॥ हज़ारों कर्मकाण्ड करने पर भी दुःख और पीड़ा से मुक्ति नहीं मिलती।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੀਤਾ ਨਾਮੁ ਧਰ ਹੋਰੁ ਛੋਡਿਆ ਧੰਧਾ ॥੪॥੧॥੧੦੩॥ दास नानक ने प्रभु-नाम को अपना सहारा बनाया है और शेष कार्य-व्यवहार छोड़ दिए हैं।॥४॥१॥१०३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਮੈ ਭਾਲਿਆ ਹਰਿ ਜੇਵਡੁ ਨ ਕੋਈ ॥ मैंने जगत के सर्व सुखों की खोज करके देख ली है परन्तु हरि जैसा सुख कहीं नहीं है।
ਗੁਰ ਤੁਠੇ ਤੇ ਪਾਈਐ ਸਚੁ ਸਾਹਿਬੁ ਸੋਈ ॥੧॥ यदि गुरु प्रसन्नचित्त हो जाए तो सच्चा मालिक मिल जाता है॥ १॥
ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਸਦ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥ मैं अपने गुरु पर हमेशा बलिहारी जाता हूँ।
ਨਾਮੁ ਨ ਵਿਸਰਉ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਚਸਾ ਇਹੁ ਕੀਜੈ ਦਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे मालिक ! मुझे यह दान प्रदान कीजिए कि मैं तेरे नाम को एक क्षण एवं निमेष मात्र भी विस्मृत न करूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਭਾਗਠੁ ਸਚਾ ਸੋਇ ਹੈ ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਧਨੁ ਅੰਤਰਿ ॥ सच्चा धनवान वही है जिसके हृदय में हरि नाम का धन विद्यमान है।


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