Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 394

Page 394

ਲਾਲ ਜਵੇਹਰ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥ लाल जवेहर भरे भंडार ॥ व्यक्ति का हृदय रत्नों के समान बहुमूल्य दिव्य और श्रेष्ठ गुण उत्पन्न हो जाते हैं।
ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਜਪਿ ਨਿਰੰਕਾਰ ॥ तोटि न आवै जपि निरंकार ॥ निरंकार प्रभु का जाप करने से वह गुण कभी कम नहीं होते।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਬਦੁ ਪੀਵੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥ अम्रित सबदु पीवै जनु कोइ ॥ हे नानक ! जब कोई भक्तजन नाम-अमृत का पान करता है
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੀ ਪਰਮ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥੨॥੪੧॥੯੨॥ नानक ता की परम गति होइ ॥२॥४१॥९२॥ तो उसकी परमगति हो जाती है॥ २॥ ४१ ॥ ६२ ॥
ਆਸਾ ਘਰੁ ੭ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा घरु ७ महला ५ ॥ राग आसा, सातवाँ ताल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਨਿਤ ਧਿਆਈ ॥ हरि का नामु रिदै नित धिआई ॥ मैं नित्य ही अपने हृदय में हरि का नाम स्मरण करता रहता हूँ।
ਸੰਗੀ ਸਾਥੀ ਸਗਲ ਤਰਾਂਈ ॥੧ संगी साथी सगल तरांई ॥१॥ इस तरह मैं अपने समस्त संगी-साथियों को बचा लेता हूँ॥ १॥
ਗੁਰੁ ਮੇਰੈ ਸੰਗਿ ਸਦਾ ਹੈ ਨਾਲੇ ॥ गुरु मेरै संगि सदा है नाले ॥ गुरु सदैव ही मेरे साथ एवं निकट है।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਤਿਸੁ ਸਦਾ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सिमरि सिमरि तिसु सदा सम्हाले ॥१॥ रहाउ ॥ मैं उस भगवान् को सदा याद करके अपने हृदय में बसाकर रखता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੇਰਾ ਕੀਆ ਮੀਠਾ ਲਾਗੈ ॥ तेरा कीआ मीठा लागै ॥ हे भगवान् ! आपका किया हुआ प्रत्येक कार्य मेरे लिए सर्वोत्तम हैं।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਾਨਕੁ ਮਾਂਗੈ ॥੨॥੪੨॥੯੩॥ हरि नामु पदारथु नानकु मांगै ॥२॥४२॥९३॥ भक्त नानक आप से हरिनाम रूपी पदार्थ ही माँगता है॥ २॥ ४२॥ ६३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पाँचवें गुरु ५ ॥
ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਤਰਿਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮਨਹਿ ਆਧਾਰੁ ॥੧॥ साधू संगति तरिआ संसारु ॥ हरि का नामु मनहि आधारु ॥१॥ जो व्यक्ति भगवान् के नाम का आश्रय है और सहारा लेता है, वह सतगुरु की संगति और मार्गदर्शन से संसार रूपी कठिन सागर को पार कर लेता है।॥ १॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰਦੇਵ ਪਿਆਰੇ ॥ ਪੂਜਹਿ ਸੰਤ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चरन कमल गुरदेव पिआरे ॥ पूजहि संत हरि प्रीति पिआरे ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्यारे गुरुदेव ! तेरे चरण कमल बड़े कोमल हैं। हरि के संतजन बड़े प्रेम से तेरे चरणों की पूजा करते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਾ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਿਆ ਭਾਗੁ ॥ जा कै मसतकि लिखिआ भागु ॥ हे नानक ! जिसके मस्तक पर सौभाग्य लिखा हुआ है,"
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕਾ ਥਿਰੁ ਸੋਹਾਗੁ ॥੨॥੪੩॥੯੪॥ कहु नानक ता का थिरु सोहागु ॥२॥४३॥९४॥ तो उसका ईश्वर मिलन सदा के लिए अटूट और शाश्वत (स्थायी) हो जाता है। ॥ २॥ ४३॥ ६४ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पाँचवें गुरु ५ ॥
ਮੀਠੀ ਆਗਿਆ ਪਿਰ ਕੀ ਲਾਗੀ ॥ मीठी आगिआ पिर की लागी ॥ जब से मुझे प्राणनाथ प्रभु की आज्ञा मीठी लगने लगी है।
ਸਉਕਨਿ ਘਰ ਕੀ ਕੰਤਿ ਤਿਆਗੀ ॥ सउकनि घर की कंति तिआगी ॥ मेरे पति-परमेश्वर ने मेरी सौतन (माया) को हृदय-घर से बाहर निकाल दिया है।
ਪ੍ਰਿਅ ਸੋਹਾਗਨਿ ਸੀਗਾਰਿ ਕਰੀ ॥ प्रिअ सोहागनि सीगारि करी ॥ मेरे प्रियवर ने मुझे सुहागिन बनाकर सुन्दर बना दिया है।
ਮਨ ਮੇਰੇ ਕੀ ਤਪਤਿ ਹਰੀ ॥੧॥ मन मेरे की तपति हरी ॥१॥ उन्होंने मेरे मन की जलन को शीतल कर दिया है॥ १॥
ਭਲੋ ਭਇਓ ਪ੍ਰਿਅ ਕਹਿਆ ਮਾਨਿਆ ॥ भलो भइओ प्रिअ कहिआ मानिआ ॥ भला हुआ कि मैंने अपने प्रियतम प्रभु का कहना मान लिया।
ਸੂਖੁ ਸਹਜੁ ਇਸੁ ਘਰ ਕਾ ਜਾਨਿਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥ सूखु सहजु इसु घर का जानिआ ॥ रहाउ ॥ मैंने इस घर में सहज सुख की अनुभूति कर ली है ॥रहाउ ॥
ਹਉ ਬੰਦੀ ਪ੍ਰਿਅ ਖਿਜਮਤਦਾਰ ॥ हउ बंदी प्रिअ खिजमतदार ॥ मैं अपने प्रिय-प्रभु की दासी एवं सेविका हूँ।
ਓਹੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥ ओहु अबिनासी अगम अपार ॥ वह अविनाशी, अगम्य एवं अपार है।
ਲੇ ਪਖਾ ਪ੍ਰਿਅ ਝਲਉ ਪਾਏ ॥ ले पखा प्रिअ झलउ पाए ॥ मैं अपने हाथ में पंखा लेकर एवं उसके चरणों में बैठकर अपने प्रियतम को पंखा करती हूँ।
ਭਾਗਿ ਗਏ ਪੰਚ ਦੂਤ ਲਾਵੇ ॥੨॥ भागि गए पंच दूत लावे ॥२॥ मुझे काटने वाले पाँच शत्रु-काम, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान भाग गए हैं।॥ २॥
ਨਾ ਮੈ ਕੁਲੁ ਨਾ ਸੋਭਾਵੰਤ ॥ ना मै कुलु ना सोभावंत ॥ न ही मैं उच्च वंश से हूँ और न ही शोभावान हूँ।
ਕਿਆ ਜਾਨਾ ਕਿਉ ਭਾਨੀ ਕੰਤ ॥ किआ जाना किउ भानी कंत ॥ मैं नहीं जानती कि मैं अपने पति-परमेश्वर को क्यों प्रसन्न अच्छी लगने लगी हूँ?
ਮੋਹਿ ਅਨਾਥ ਗਰੀਬ ਨਿਮਾਨੀ ॥ ਕੰਤ ਪਕਰਿ ਹਮ ਕੀਨੀ ਰਾਨੀ ॥੩॥ मोहि अनाथ गरीब निमानी ॥ कंत पकरि हम कीनी रानी ॥३॥ मेरे स्वामी ने मुझ अनाथ, गरीब एवं मानहीन को अपनी रानी बना लिया है॥ ३॥
ਜਬ ਮੁਖਿ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਸਾਜਨੁ ਲਾਗਾ ॥ जब मुखि प्रीतमु साजनु लागा ॥ जब से मुझे मेरा साजन प्रीतम मिले हैं,"
ਸੂਖ ਸਹਜ ਮੇਰਾ ਧਨੁ ਸੋਹਾਗਾ ॥ सूख सहज मेरा धनु सोहागा ॥ मुझे सहज सुख प्राप्त हो गया है और मेरा सुहाग धन्य हो गया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੋਰੀ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ॥ कहु नानक मोरी पूरन आसा ॥ हे नानक ! मेरी अभिलाषा पूर्ण हो गई है।
ਸਤਿਗੁਰ ਮੇਲੀ ਪ੍ਰਭ ਗੁਣਤਾਸਾ ॥੪॥੧॥੯੫॥ सतिगुर मेली प्रभ गुणतासा ॥४॥१॥९५॥ सतगुरु ने मुझे गुणों के भण्डार प्रभु से मिला दिया है॥ ४ ॥ १॥ ६५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पाँचवें गुरु ५ ॥
ਮਾਥੈ ਤ੍ਰਿਕੁਟੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਕਰੂਰਿ ॥ माथै त्रिकुटी द्रिसटि करूरि ॥ माया उस ऐसी स्त्री के समान है, जिसके चेहरे पर हमेशा चिंता और क्रोध की रेखाएँ रहती हैं।
ਬੋਲੈ ਕਉੜਾ ਜਿਹਬਾ ਕੀ ਫੂੜਿ ॥ बोलै कउड़ा जिहबा की फूड़ि ॥ उसकी वाणी भी कड़वी है और जिह्वा कठोर वचन बोलती है।
ਸਦਾ ਭੂਖੀ ਪਿਰੁ ਜਾਨੈ ਦੂਰਿ ॥੧॥ सदा भूखी पिरु जानै दूरि ॥१॥ वह सदैव भूखी रहती है और अपने प्रिय-प्रभु को दूर समझती है॥ १॥
ਐਸੀ ਇਸਤ੍ਰੀ ਇਕ ਰਾਮਿ ਉਪਾਈ ॥ ऐसी इसत्री इक रामि उपाई ॥ हे मेरे भाई ! प्रभु राम ने एक ऐसी माया रूपी स्त्री सृष्टि में उत्पन्न की है।
ਉਨਿ ਸਭੁ ਜਗੁ ਖਾਇਆ ਹਮ ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ उनि सभु जगु खाइआ हम गुरि राखे मेरे भाई ॥ रहाउ ॥ उसने समूचा जगत निगल लिया लेकिन गुरु ने मेरी रक्षा की है॥ रहाउ॥
ਪਾਇ ਠਗਉਲੀ ਸਭੁ ਜਗੁ ਜੋਹਿਆ ॥ पाइ ठगउली सभु जगु जोहिआ ॥ उस माया-स्त्री ने ठग-बूटी खिलाकर सारी दुनिया को वश में कर लिया है।
ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹਾਦੇਉ ਮੋਹਿਆ ॥ ब्रहमा बिसनु महादेउ मोहिआ ॥ उसने ब्रह्मा, विष्णु एवं महादेव को भी अपने मोह में फँसाकर मोहित कर लिया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਲਗੇ ਸੇ ਸੋਹਿਆ ॥੨॥ गुरमुखि नामि लगे से सोहिआ ॥२॥ जो गुरुमुख प्रभु-नाम से संलग्न हुए हैं, वह सुन्दर दिखाई देते हैं।॥ २॥
ਵਰਤ ਨੇਮ ਕਰਿ ਥਾਕੇ ਪੁਨਹਚਰਨਾ ॥ वरत नेम करि थाके पुनहचरना ॥ मनुष्य व्रत, नियम एवं प्रायश्चित कर्म करते हुए थक चुके हैं।
ਤਟ ਤੀਰਥ ਭਵੇ ਸਭ ਧਰਨਾ ॥ तट तीरथ भवे सभ धरना ॥ वह समूचे जगत् के पवित्र तीर्थों एवं तटों पर भटकते फिरते हैं।
ਸੇ ਉਬਰੇ ਜਿ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਨਾ ॥੩॥ से उबरे जि सतिगुर की सरना ॥३॥ जो सतगुरु की शरण में आए हैं, वे भवसागर से पार हो गए हैं।॥ ३॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਸਭੋ ਜਗੁ ਬਾਧਾ ॥ माइआ मोहि सभो जगु बाधा ॥ माया के मोह में सारा जगत् फँसा हुआ है।
ਹਉਮੈ ਪਚੈ ਮਨਮੁਖ ਮੂਰਾਖਾ ॥ हउमै पचै मनमुख मूराखा ॥ मनमुख मूर्ख मनुष्य अहंकार में दुःखी होते हैं।
ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਹਮ ਰਾਖਾ ॥੪॥੨॥੯੬॥ गुर नानक बाह पकरि हम राखा ॥४॥२॥९६॥ हे नानक ! गुरु ने बाँह से पकड़ कर मुझे बचा लिया है॥ ४॥ २॥ ६६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पाँचवें गुरु ५ ॥
ਸਰਬ ਦੂਖ ਜਬ ਬਿਸਰਹਿ ਸੁਆਮੀ ॥ सरब दूख जब बिसरहि सुआमी ॥ जब मनुष्य को परमात्मा भूल जाता है तो उसे हर प्रकार के दुःख घेर लेते हैं।
ਈਹਾ ਊਹਾ ਕਾਮਿ ਨ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥੧॥ ईहा ऊहा कामि न प्रानी ॥१॥ ऐसा प्राणी लोक-परलोक में किसी काम का नहीं ॥ १॥
ਸੰਤ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧ੍ਯ੍ਯਾਇ ॥ संत त्रिपतासे हरि हरि ध्याइ ॥ हरि-परमेश्वर का ध्यान करते हुए संतजन तृप्त हो गए हैं।


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