Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 385

Page 385

ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਏਕੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥੪॥੩॥੫੪॥ भीतर एवं बाहर अब उन्होंने मुझे एक ईश्वर दिखा दिया है॥ ४॥ ३॥ ५४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪਾਵਤੁ ਰਲੀਆ ਜੋਬਨਿ ਬਲੀਆ ॥ जवानी के जोश में मनुष्य अनेक आनन्द भोगता है।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਮਾਟੀ ਸੰਗਿ ਰਲੀਆ ॥੧॥ परन्तु प्रभु-नाम के बिना अन्त में मिट्टी के साथ मिल जाता है॥ १॥
ਕਾਨ ਕੁੰਡਲੀਆ ਬਸਤ੍ਰ ਓਢਲੀਆ ॥ हे भाई! मनुष्य कानों में कुण्डल एवं सुन्दर वस्त्र पहनता है।
ਸੇਜ ਸੁਖਲੀਆ ਮਨਿ ਗਰਬਲੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कोमल सुखदायक सेज पर सोता है परन्तु वह अपने चित्त में इन सुख के साधनों का अभिमान करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਤਲੈ ਕੁੰਚਰੀਆ ਸਿਰਿ ਕਨਿਕ ਛਤਰੀਆ ॥ मनुष्य के पास सवारी के लिए हाथी एवं सिर पर सोने का छत्र झूल रहा है परन्तु
ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਬਿਨਾ ਲੇ ਧਰਨਿ ਗਡਲੀਆ ॥੨॥ भगवान् की भक्ति के बिना वह धरती के नीचे दफना दिया जाता है। २॥
ਰੂਪ ਸੁੰਦਰੀਆ ਅਨਿਕ ਇਸਤਰੀਆ ॥ मनुष्य चाहे रूपवान सुन्दरियों एवं अनेक स्त्रियों के साथ भोग-विलास करता है
ਹਰਿ ਰਸ ਬਿਨੁ ਸਭਿ ਸੁਆਦ ਫਿਕਰੀਆ ॥੩॥ परन्तु हरि रस के बिना ये सभी आस्वादन फीके हैं॥३॥
ਮਾਇਆ ਛਲੀਆ ਬਿਕਾਰ ਬਿਖਲੀਆ ॥ यह माया तो धोखेबाज ही है और काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार इत्यादि विकार विष समान हैं।
ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਪੁਰਖ ਦਇਅਲੀਆ ॥੪॥੪॥੫੫॥ नानक कहते हैं कि हे दया के सागर, हे सर्वशक्तिमान प्रभु ! मै आपकी ही शरण में हूँ॥ ४॥ ४॥ ५५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਏਕੁ ਬਗੀਚਾ ਪੇਡ ਘਨ ਕਰਿਆ ॥ यह दुनिया एक बगीचा है जिसमें बहुत सारे पेड़ लगे हुए हैं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਤਹਾ ਮਹਿ ਫਲਿਆ ॥੧॥ पेड़ों में नामामृत रूपी फल लगा हुआ है॥ १॥
ਐਸਾ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ਗਿਆਨੀ ॥ हे ज्ञानी ! कोई ऐसा विचार करो,"
ਜਾ ਤੇ ਪਾਈਐ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਨੀ ॥ जिससे तुझे निर्वाण पद प्राप्त हो।
ਆਸਿ ਪਾਸਿ ਬਿਖੂਆ ਕੇ ਕੁੰਟਾ ਬੀਚਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹੈ ਭਾਈ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे भाई ! तुम्हारे भीतर तो नाम-रूपी अमृत बह रहा है, परंतु तुम बाहर से धन और सत्ता के विषैले झरनों में डूबे हुए हो।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਿੰਚਨਹਾਰੇ ਏਕੈ ਮਾਲੀ ॥ गुरु अपने शिष्यों की आध्यात्मिक आवश्यकताओं की उसी प्रकार देखभाल करते हैं, जैसे एक माली अपने बगीचे को सींचते हुए हर पौधे की आवश्यकता का ध्यान रखता है।
ਖਬਰਿ ਕਰਤੁ ਹੈ ਪਾਤ ਪਤ ਡਾਲੀ ॥੨॥ गुरु अपने शिष्यों को सांसारिक माया और झूठे प्रलोभनों से सावधान करते हैं, उसी प्रकार जैसे एक माली बगीचे की हर शाखा और पत्ते की सूक्ष्मता से देखभाल करता है। ॥२॥
ਸਗਲ ਬਨਸਪਤਿ ਆਣਿ ਜੜਾਈ ॥ गुरु ने अपने अनुयायियों को एकत्रित कर उन्हें इस प्रकार सुशोभित किया है, जैसे कोई माली अपने बगीचे में विभिन्न प्रकार के वृक्ष लगाकर उसे सुंदरता और सौंदर्य से भर देता है।
ਸਗਲੀ ਫੂਲੀ ਨਿਫਲ ਨ ਕਾਈ ॥੩॥ ये सभी संत आत्मज्ञान के फल से परिपक्व हैं, मानो बगीचे के सभी वृक्षों पर फल लगते हों, कोई भी वृक्ष फल के बिना नहीं। ३॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਫਲੁ ਨਾਮੁ ਜਿਨਿ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥ हे दास नानक ! जिसने गुरु से नामामृत का फल प्राप्त किया है,"
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤਰੀ ਤਿਨਿ ਮਾਇਆ ॥੪॥੫॥੫੬॥ वह माया रूपी भवसागर से पार हो गया है॥ ४ ॥ ५॥ ५६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਰਾਜ ਲੀਲਾ ਤੇਰੈ ਨਾਮਿ ਬਨਾਈ ॥ हे सत्य के पुंज ! आपके नाम-धन ने ही मुझे राज-सुख प्रदान किए हैं।
ਜੋਗੁ ਬਨਿਆ ਤੇਰਾ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਈ ॥੧॥ आपकी कीर्ति-गान करने से मुझे योग प्राप्त हो गया है॥ १॥
ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਬਨੇ ਤੇਰੈ ਓਲ੍ਹ੍ਹੈ ॥ ਭ੍ਰਮ ਕੇ ਪਰਦੇ ਸਤਿਗੁਰ ਖੋਲ੍ਹ੍ਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ आपकी शरण में मुझे सर्व सुख प्राप्त होते हैं। सतगुरु ने भ्रम के पर्दे खोल दिए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਹੁਕਮੁ ਬੂਝਿ ਰੰਗ ਰਸ ਮਾਣੇ ॥ हे परमेश्वर ! आपकी इच्छा को समझकर मैं आत्मिक आनंद भोगता हूँ।
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਮਹਾ ਨਿਰਬਾਣੇ ॥੨॥ सतगुरु की सेवा करने से मुझे महानिर्वाण पद प्राप्त हो गया है॥ २ ॥
ਜਿਨਿ ਤੂੰ ਜਾਤਾ ਸੋ ਗਿਰਸਤ ਉਦਾਸੀ ਪਰਵਾਣੁ ॥ जो आपको समझता है, वह चाहे गृहस्थी हो अथवा त्यागी वह आपके द्वार पर स्वीकृत है।
ਨਾਮਿ ਰਤਾ ਸੋਈ ਨਿਰਬਾਣੁ ॥੩॥ जो मनुष्य हरि-नाम में अनुरक्त है, वही संन्यासी है॥ ३॥
ਜਾ ਕਉ ਮਿਲਿਓ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨਾ ॥ गुरु नानक कहते हैं कि हे मेरे मालिक ! जिसे आपका नाम-भण्डार मिल गया है,"
ਭਨਤਿ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕਾ ਪੂਰ ਖਜਾਨਾ ॥੪॥੬॥੫੭॥ उसके भण्डार सदैव भरे रहते हैं॥ ४॥ ६॥ ५७ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਤੀਰਥਿ ਜਾਉ ਤ ਹਉ ਹਉ ਕਰਤੇ ॥ हे सज्जन ! यदि मैं किसी तीर्थ पर जाता हूँ तो वहाँ मुझे ‘मैं’ ‘मैं अहंकार करते हुए बहुत सारे लोग मिलते हैं।
ਪੰਡਿਤ ਪੂਛਉ ਤ ਮਾਇਆ ਰਾਤੇ ॥੧॥ जब मैं पंडितों से आत्मिक मार्ग पूछता हूँ तो वे भी माया में ही लीन देखता हूँ॥ १॥
ਸੋ ਅਸਥਾਨੁ ਬਤਾਵਹੁ ਮੀਤਾ ॥ हे मित्र ! मुझे वह पावन स्थान बताओ
ਜਾ ਕੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਨੀਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जहाँ नित्य भगवान् का भजन-कीर्तन होता है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਸਤ੍ਰ ਬੇਦ ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਵੀਚਾਰ ॥ शास्त्र एवं वेद पाप-पुण्य का विचार वर्णन करते हैं और कहते हैं कि
ਨਰਕਿ ਸੁਰਗਿ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਅਉਤਾਰ ॥੨॥ मनुष्य पाप-पुण्य कर्म करने से ही बार-बार नरक-स्वर्ग में जन्म लेता है॥ २॥
ਗਿਰਸਤ ਮਹਿ ਚਿੰਤ ਉਦਾਸ ਅਹੰਕਾਰ ॥ गृहस्थ जीवन में चिन्ता है और विरक्त में अहंकार है।
ਕਰਮ ਕਰਤ ਜੀਅ ਕਉ ਜੰਜਾਰ ॥੩॥ कर्मकाण्डों के संस्कार करना तो जीव हेतु एक जंजाल ही है॥३॥
ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਮਨੁ ਵਸਿ ਆਇਆ ॥ जिस मनुष्य का मन प्रभु की कृपा से वश में आ जाता है,"
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਰੀ ਤਿਨਿ ਮਾਇਆ ॥੪॥ हे नानक ! वह गुरुमुख बनकर माया के सागर से पार हो जाता है॥ ४॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਈਐ ॥ सुसंगति में हरि का कीर्ति-गान करना चाहिए और
ਇਹੁ ਅਸਥਾਨੁ ਗੁਰੂ ਤੇ ਪਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੭॥੫੮॥  यह स्थान गुरु द्वारा ही मिलता है। १॥ रहाउ दूसरा ॥ ७॥ ५८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਘਰ ਮਹਿ ਸੂਖ ਬਾਹਰਿ ਫੁਨਿ ਸੂਖਾ ॥ मेरे हृदय-घर में सुख ही सुख है और घर के बाहर भी (दुनिया में निर्वाह करते हुए) सुख ही सुख है।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਸਗਲ ਬਿਨਾਸੇ ਦੂਖਾ ॥੧॥ हरि का सिमरन करने से सभी दुःख-क्लेश नाश हो गए हैं।॥ १॥
ਸਗਲ ਸੂਖ ਜਾਂ ਤੂੰ ਚਿਤਿ ਆਂਵੈਂ ॥ हे हरि ! जब आप मेरे मन में याद आते हैं तो मुझे सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं।


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