Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 386

Page 386

ਸੋ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਜੋ ਜਨੁ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ केवल वही उपासक हरि-नाम का जाप करता है जो आपको अच्छा लगता हो। ॥ १॥ रहाउ॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਸੀਤਲੁ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ॥ हे प्रभु ! आपके नाम का जाप करने से तन-मन शीतल हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਤ ਢਹੈ ਦੁਖ ਡੇਰਾ ॥੨॥ भगवान् का ध्यान करने से दुःखों का डेरा ही नष्ट हो जाता है॥ २॥
ਹੁਕਮੁ ਬੂਝੈ ਸੋਈ ਪਰਵਾਨੁ ॥ जो मनुष्य प्रभु की इच्छा को समझता है, वही सत्य के दरबार में स्वीकार होता है।
ਸਾਚੁ ਸਬਦੁ ਜਾ ਕਾ ਨੀਸਾਨੁ ॥੩॥ उस स्वीकृत मनुष्य पर सत्य शब्द का निशान अंकित होता है॥ ३॥
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥ पूर्ण गुरु ने मेरे मन में हरि का नाम बसा दिया है।
ਭਨਤਿ ਨਾਨਕੁ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੮॥੫੯॥ नानक कहते हैं कि मेरे मन को प्रभु-नाम से सुख प्राप्त हुआ है॥ ४॥ ८॥ ५६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਹਾ ਪਠਾਵਹੁ ਤਹ ਤਹ ਜਾਈ ॥ हे प्रभु ! जहाँ कहीं भी आप मुझे भेजते हैं, वहीं मैं (सुखपूर्वक) जाता हूँ।
ਜੋ ਤੁਮ ਦੇਹੁ ਸੋਈ ਸੁਖੁ ਪਾਈ ॥੧॥ जो कुछ आप मुझे देते हैं, उसमें ही मैं सुख मानता हूँ॥ १॥
ਸਦਾ ਚੇਰੇ ਗੋਵਿੰਦ ਗੋਸਾਈ ॥ हे गोविंद गोसाई ! मैं सदा आपका शिष्य हूँ।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ आपकी कृपा से मैं तृप्त एवं संतुष्ट रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮਰਾ ਦੀਆ ਪੈਨ੍ਹ੍ਹਉ ਖਾਈ ॥ हे प्रभु ! जो कुछ आप मुझे देते हो, वही मैं पहनता और खाता हूँ।
ਤਉ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪ੍ਰਭ ਸੁਖੀ ਵਲਾਈ ॥੨॥ आपकी कृपा से मैं सुखी जीवन बिता रहा हूँ॥ २॥
ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਤੁਝੈ ਧਿਆਈ ॥ अपने मन एवं तन के भीतर मैं आपको ही याद करता हूँ।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੈ ਲਵੈ ਨ ਕੋਊ ਲਾਈ ॥੩॥ आपके बराबर मैं किसी को नहीं समझता ॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਿਤ ਇਵੈ ਧਿਆਈ ॥ हे नानक ! मैं सदा ही इस तरह आपको याद करता हूँ ।
ਗਤਿ ਹੋਵੈ ਸੰਤਹ ਲਗਿ ਪਾਈ ॥੪॥੯॥੬੦॥ संतों के चरणों से लगने पर शायद मेरी भी गति हो जाए ॥ ४॥ ६॥ ६०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਸੋਵਤ ਧਿਆਈਐ ॥ हे भाई ! उठते-बैठते, सोते हर समय भगवान् का ध्यान करते रहना चाहिए।
ਮਾਰਗਿ ਚਲਤ ਹਰੇ ਹਰਿ ਗਾਈਐ ॥੧॥ मार्ग में चलते समय भी हरि का यशोगान करना चाहिए॥ १॥
ਸ੍ਰਵਨ ਸੁਨੀਜੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਥਾ ॥ अपने कानों से हरि की अमृत कथा सुननी चाहिए,"
ਜਾਸੁ ਸੁਨੀ ਮਨਿ ਹੋਇ ਅਨੰਦਾ ਦੂਖ ਰੋਗ ਮਨ ਸਗਲੇ ਲਥਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसे सुनने से मन प्रसन्न हो जाता है एवं मेरे सभी दुःख-रोग दूर हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਾਰਜਿ ਕਾਮਿ ਬਾਟ ਘਾਟ ਜਪੀਜੈ ॥ प्रत्येक कार्य करते हुए, मार्ग पर चलते हुए एवं घाट पार करते समय प्रभु का जाप करना चाहिए।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ॥੨॥ गुरु की कृपा से हरि-नामामृत का पान करना चाहिए॥ २॥
ਦਿਨਸੁ ਰੈਨਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਈਐ ॥ दिन-रात हरि-कीर्तन गाते रहना चाहिए,"
ਸੋ ਜਨੁ ਜਮ ਕੀ ਵਾਟ ਨ ਪਾਈਐ ॥੩॥ क्योंकि कीर्तन गाने वाला भक्त मृत्यु के मार्ग में नहीं पड़ता ॥ ३॥
ਆਠ ਪਹਰ ਜਿਸੁ ਵਿਸਰਹਿ ਨਾਹੀ ॥ जो पुरुष आठों प्रहर परमात्मा को विस्मृत नहीं करता,"
ਗਤਿ ਹੋਵੈ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਲਗਿ ਪਾਈ ॥੪॥੧੦॥੬੧॥ हे नानक ! उसके चरण-स्पर्श करने से गति प्राप्त हो जाती है। ॥४॥१०॥६१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਸੂਖ ਨਿਵਾਸੁ ॥ जिस प्रभु का सिमरन करने से मनुष्य सुख में निवास करता है,"
ਭਈ ਕਲਿਆਣ ਦੁਖ ਹੋਵਤ ਨਾਸੁ ॥੧॥ उसका कल्याण हो जाता है और उसके दुःख का नाश हो जाता है। १॥
ਅਨਦੁ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵਹੁ ॥ हे भाई ! प्रभु का गुणगान करो और आनंद प्राप्त करो।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਪਨਾ ਸਦ ਸਦਾ ਮਨਾਵਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सदा-सर्वदा अपने गुरु को प्रसन्न करते रहो ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਸਚੁ ਸਬਦੁ ਕਮਾਵਹੁ ॥ सतगुरु के सच्चे शब्द को अपने अन्तर्मन में धारण करो।
ਥਿਰੁ ਘਰਿ ਬੈਠੇ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਪਾਵਹੁ ॥੨॥ अपने हृदय घर में स्थिर बैठ कर अपने प्रभु को पा लो॥ २॥
ਪਰ ਕਾ ਬੁਰਾ ਨ ਰਾਖਹੁ ਚੀਤ ॥ हे मित्र ! अपने हृदय में किसी का बुरा मत सोचो,"
ਤੁਮ ਕਉ ਦੁਖੁ ਨਹੀ ਭਾਈ ਮੀਤ ॥੩॥ इससे तुझे कोई दु:ख नहीं होगा ॥ ३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਤੰਤੁ ਮੰਤੁ ਗੁਰਿ ਦੀਨ੍ਹ੍ਹਾ ॥ गुरु ने मुझे हरि नाम का तंत्र-मंत्र प्रदान किया है।
ਇਹੁ ਸੁਖੁ ਨਾਨਕ ਅਨਦਿਨੁ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹਾ ॥੪॥੧੧॥੬੨॥ भक्त नानक रात-दिन हमेशा ही इस सुख को जानते हैं॥ ४॥ ११॥ ६२ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਿਸੁ ਨੀਚ ਕਉ ਕੋਈ ਨ ਜਾਨੈ ॥ हे दीनदयाल ! जिस नीच मनुष्य को कोई नहीं जानता,"
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਉਹੁ ਚਹੁ ਕੁੰਟ ਮਾਨੈ ॥੧॥ आपका नाम जपने से यह चारों दिशाओं में लोकप्रिय हो जाता है।॥ १॥
ਦਰਸਨੁ ਮਾਗਉ ਦੇਹਿ ਪਿਆਰੇ ॥ हे मेरे प्रियतम ! मैं आपके दर्शन माँगता हूँ। मुझे दर्शन दीजिए।
ਤੁਮਰੀ ਸੇਵਾ ਕਉਨ ਕਉਨ ਨ ਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे प्रभु ! आपकी उपासना करने से कौन-कौन पार नहीं हुआ है? ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਾ ਕੈ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ਕੋਈ ॥ हे प्रभु ! जिस के निकट भी कोई नहीं आता था,"
ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਆ ਕੇ ਚਰਨ ਮਲਿ ਧੋਈ ॥੨॥ तेरा सेवक बनने से सारी सृष्टि उस (सेवक) के चरण मल-मल कर धोती है॥ २॥
ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਕਾਹੂ ਨ ਆਵਤ ਕਾਮ ॥ जो प्राणी किसी भी काम नहीं आता,"
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤਾ ਕੋ ਜਪੀਐ ਨਾਮ ॥੩॥ यदि संत उस पर कृपादृष्टि धारण करें तो सभी उसके नाम को जपते हैं।॥ ३॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਨ ਸੋਵਤ ਜਾਗੇ ॥ साधुओं की संगति में सोया हुआ मन (भी) जाग जाता है तब,"
ਤਬ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਮੀਠੇ ਲਾਗੇ ॥੪॥੧੨॥੬੩॥ हे नानक ! प्रभु बड़ा मीठे लगते हैं॥ ४॥ १२॥ ६३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਏਕੋ ਏਕੀ ਨੈਨ ਨਿਹਾਰਉ ॥| मैं अपने नयनों से एक परमात्मा को ही सर्वत्र विद्यमान देखता हूँ।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰਉ ॥੧॥ मैं हमेशा ही हरि के नाम को याद करता हूँ॥ १॥


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