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ਵਡਾ ਵਡਾ ਹਰਿ ਭਾਗ ਕਰਿ ਪਾਇਆ ॥
बड़े सौभाग्य से मनुष्य को सबसे महान ईश्वर से मिलन का अवसर प्राप्त होता है,
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਦਿਵਾਇਆ ॥੪॥੪॥੫੬॥
हे नानक ! हरि ने मुझे अपना नाम गुरु से दिलवाया है॥ ४॥ ४॥ ५६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, चौथे गुरु: ४ ॥
ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਗੁਣ ਬੋਲੀ ਬਾਣੀ ॥
मैं हरि का गुणानुवाद करता हूँ और गुरुवाणी के माध्यम से हरि के गुणों का ही वर्णन करता हूँ।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀ ॥੧॥
गुरुमुख बनकर ही मैं हरि के गुणों का उच्चारण करता हूँ॥ १॥
ਜਪਿ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਭਇਆ ਅਨੰਦਾ ॥
हरिनाम का जाप जपने से मेरे हृदय में आनंद आ गया है।
ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦਿੜਾਇਆ ਰਸਿ ਗਾਏ ਗੁਣ ਪਰਮਾਨੰਦਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सत्यस्वरूप प्रभु का सच्चा नाम सतगुरु ने मेरे अन्तर्मन में बसा दिया है। मैं प्रेमपूर्वक परम आनंद के स्रोत भगवान की स्तुति करता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਹਰਿ ਜਨ ਲੋਗਾ ॥
हरि के भक्त हरि के ही गुण गाते रहते हैं।
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਪਾਏ ਹਰਿ ਨਿਰਜੋਗਾ ॥੨॥
सौभाग्य से ही निर्लिप्त प्रभु पाया जाता है॥ २॥
ਗੁਣ ਵਿਹੂਣ ਮਾਇਆ ਮਲੁ ਧਾਰੀ ॥
हे बन्धु ! गुणविहीन लोग माया-मोह की मैल अपने चित्त में टिकाए रखते हैं।
ਵਿਣੁ ਗੁਣ ਜਨਮਿ ਮੁਏ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥੩॥
इसलिए गुणहीन अहंकारी लोग जन्म-मरण के चक्र में पड़े रहते हैं।॥ ३॥
ਸਰੀਰਿ ਸਰੋਵਰਿ ਗੁਣ ਪਰਗਟਿ ਕੀਏ ॥
देहि रूपी सरोवर में से गुणों के मोती प्रकट होते रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਥਿ ਤਤੁ ਕਢੀਏ ॥੪॥੫॥੫੭॥
हे नानक ! गुरु के सम्मुख होकर सरोवर का मन्थन करके ये तत्व निकाल लिए जाते हैं। ४॥ ५॥ ५७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, चौथे गुरु: ४ ॥
ਨਾਮੁ ਸੁਣੀ ਨਾਮੋ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥
मैं नाम सुनता हूँ और नाम ही मेरे मन को अच्छा लगता है।
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਪਾਵੈ ॥੧॥
बड़े भाग्य से ही गुरु की शिक्षाओं का पालन करने वाला व्यक्ति भगवान् के नाम का अमूल्य उपहार प्राप्त करता है। ॥ १॥
ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਗਾਸਾ ॥
हे बन्धु ! नाम का जाप करो, गुरुमुख बनने से अन्तर्मन में प्रकाश हो जाएगा।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਮੈ ਧਰ ਨਹੀ ਕਾਈ ਨਾਮੁ ਰਵਿਆ ਸਭ ਸਾਸ ਗਿਰਾਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम के अतिरिक्त मेरा दूसरा कोई सहारा नहीं। हरि का नाम ही मेरी सांसों एवं ग्रासों में समाया हुआ है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੈ ਸੁਰਤਿ ਸੁਨੀ ਮਨਿ ਭਾਈ ॥
मेरी वृति नाम-सुमिरन में लगी रहती है और मेरे चित को यही लुभाता है।
ਜੋ ਨਾਮੁ ਸੁਨਾਵੈ ਸੋ ਮੇਰਾ ਮੀਤੁ ਸਖਾਈ ॥੨॥
जो मुझे हरि-नाम सुनाता है वही मेरा मीत एवं साथी है॥ २॥
ਨਾਮਹੀਣ ਗਏ ਮੂੜ ਨੰਗਾ ॥
भगवान् के नाम से वंचित मूर्ख, खाली हाथ और निरर्थक शब्दों के साथ ही इस संसार से चले जाते हैं।
ਪਚਿ ਪਚਿ ਮੁਏ ਬਿਖੁ ਦੇਖਿ ਪਤੰਗਾ ॥੩॥
वे माया के प्रेम में स्वयं को बर्बाद कर लेते हैं और आध्यात्मिक रूप से वैसे ही मर जाते हैं, जैसे पतंगा लौ की ओर आकर्षित होकर भस्म हो जाता है। ॥ ३॥
ਆਪੇ ਥਾਪੇ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੇ ॥
प्रभु स्वयं ही पैदा करते हैं और पैदा करके स्वयं ही नाश कर देते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਦੇਵੈ ਹਰਿ ਆਪੇ ॥੪॥੬॥੫੮॥
हे नानक ! हरि स्वयं ही हरि-नाम की देन प्रदान करते हैं॥ ४॥ ६॥ ५८॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, चौथे गुरु:४ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਵੇਲਿ ਵਧਾਈ ॥
गुरुमुख ने हरि-प्रभु की बेल को दूसरों को सुख देने हेतु प्रफुल्लित किया है।
ਫਲ ਲਾਗੇ ਹਰਿ ਰਸਕ ਰਸਾਈ ॥੧॥
इस बेल को हरि-प्रभु का फल लगा है, और रसिक जन इसके रस का आनन्द प्राप्त करते हैं।॥१॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਅਨਤ ਤਰੰਗਾ ॥
तू हरि-परमेश्वर के नाम का जाप कर जिसमें प्रसन्नता की अनन्त लहरें विद्यमान हैं।
ਜਪਿ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਲਾਹੀ ਮਾਰਿਆ ਕਾਲੁ ਜਮਕੰਕਰ ਭੁਇਅੰਗਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु की मति द्वारा नाम जपकर और प्रभु का गुणगान करके मैंने यमकाल रूपी सर्प का वध कर दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਰ ਮਹਿ ਭਗਤਿ ਰਖਾਈ ॥
हे मेरे भाई ! हरि-प्रभु ने अपनी भक्ति गुरु के हृदय में स्थापित की है।
ਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ਸਿਖ ਦੇਵੈ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥੨॥
यदि गुरु प्रसन्न हो जाए तो यह भक्ति अपने शिष्य को प्रदान करते हैं॥ २॥
ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਿਛੁ ਬਿਧਿ ਨਹੀ ਜਾਣੈ ॥
जो मनुष्य अहंकार में धर्म-कर्म करता है, उसे कुछ भी ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
ਜਿਉ ਕੁੰਚਰੁ ਨਾਇ ਖਾਕੁ ਸਿਰਿ ਛਾਣੈ ॥੩॥
वह उसी प्रकार का मनुष्य है जैसे हाथी स्नान करके अपने सिर पर फिर मिट्टी डाल लेता है॥ ३॥
ਜੇ ਵਡ ਭਾਗ ਹੋਵਹਿ ਵਡ ਊਚੇ ॥
हे नानक ! यदि ऊँचे और उत्तम भाग्य हों तो
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਜਪਹਿ ਸਚਿ ਸੂਚੇ ॥੪॥੭॥੫੯॥
जीव सच्चे प्रभु का नाम जपकर सत्यवादी एवं शुद्ध हो जाता है॥ ४॥ ७ ॥ ५६
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕੀ ਮਨਿ ਭੂਖ ਲਗਾਈ ॥
हे मेरे भाई ! हरि ने मेरे मन को हरि नाम की भूख लगा दी है।
ਨਾਮਿ ਸੁਨਿਐ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤੈ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥੧॥
हरि-नाम सुनकर मेरा मन तृप्त हो जाता है॥ १॥
ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮੇਰੇ ਗੁਰਸਿਖ ਮੀਤਾ ॥
हे मेरे गुरसिक्ख मित्रो ! प्रभु के नाम का जाप करो।
ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਨਾਮੇ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ਨਾਮੁ ਰਖਹੁ ਗੁਰਮਤਿ ਮਨਿ ਚੀਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम का जाप करो, प्रभु के नाम द्वारा सुख प्राप्त करो और गुरु की मति द्वारा नाम को अपने मन एवं चित्त में टिकाकर रखो॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੋ ਨਾਮੁ ਸੁਣੀ ਮਨੁ ਸਰਸਾ ॥
बार-बार प्रभु का नाम सुनने से मेरा चित्त सरस हो गया है।
ਨਾਮੁ ਲਾਹਾ ਲੈ ਗੁਰਮਤਿ ਬਿਗਸਾ ॥੨॥
गुरु की मति से नाम का लाभ कमाकर मेरा चित्त खिल गया है॥ २॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੁਸਟੀ ਮੋਹ ਅੰਧਾ ॥
नाम के बिना मनुष्य कुष्ठी एवं मोह में अन्धा हो जाता है।
ਸਭ ਨਿਹਫਲ ਕਰਮ ਕੀਏ ਦੁਖੁ ਧੰਧਾ ॥੩॥
उसके सभी कर्म निष्फल एवं दुःखदायक कार्य हैं॥ ३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਜਪੈ ਵਡਭਾਗੀ ॥
भाग्यशाली मनुष्य ही हरि-परमेश्वर की महिमा का जाप करते हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥੪॥੮॥੬੦॥
हे नानक ! गुरु की मति द्वारा ही प्रभु के नाम में लगन लगती है॥ ४॥ ८ ॥ ६० ॥