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ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਘਰੁ ੨ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, दूसरा ताल, चौथे गुरु: ४ ॥
ਕਿਸ ਹੀ ਧੜਾ ਕੀਆ ਮਿਤ੍ਰ ਸੁਤ ਨਾਲਿ ਭਾਈ ॥
किसी ने अपने मित्र, पुत्र अथवा भाई के साथ सम्बन्ध बनाया हुआ है और
ਕਿਸ ਹੀ ਧੜਾ ਕੀਆ ਕੁੜਮ ਸਕੇ ਨਾਲਿ ਜਵਾਈ ॥
किसी ने अपने सगे-सम्बन्धी एवं दामाद के साथ सम्बन्ध बनाया हुआ है।
ਕਿਸ ਹੀ ਧੜਾ ਕੀਆ ਸਿਕਦਾਰ ਚਉਧਰੀ ਨਾਲਿ ਆਪਣੈ ਸੁਆਈ ॥
किसी मनुष्य ने स्वार्थपूर्ति हेतु सरदारों एवं चौधरियों से रिश्तेदारी की हुई है।
ਹਮਾਰਾ ਧੜਾ ਹਰਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥੧॥
लेकिन मेरा सम्बन्ध सर्वव्यापक प्रभु के साथ है॥ १॥
ਹਮ ਹਰਿ ਸਿਉ ਧੜਾ ਕੀਆ ਮੇਰੀ ਹਰਿ ਟੇਕ ॥
मैंने हरि के साथ सम्बन्ध जोड़ा है और हरि ही मेरा सहारा है।
ਮੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਪਖੁ ਧੜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਹਉ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਅਸੰਖ ਅਨੇਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि के बिना मेरा अन्य कोई भी पक्ष एवं सम्बन्ध नहीं है। मैं हरि के असंख्य गुणों का ही यशोगान करता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਸਿਉ ਧੜੇ ਕਰਹਿ ਸੇ ਜਾਹਿ ॥
जिनके साथ रिश्तेदारी की जाती है, वह मर जाते हैं।
ਝੂਠੁ ਧੜੇ ਕਰਿ ਪਛੋਤਾਹਿ ॥
झूठा नाता बनाकर मनुष्य अंतत: पश्चाताप करते हैं।
ਥਿਰੁ ਨ ਰਹਹਿ ਮਨਿ ਖੋਟੁ ਕਮਾਹਿ ॥
जो मनुष्य झूठ का आचरण करते हैं, वे स्थिर नहीं रहते।
ਹਮ ਹਰਿ ਸਿਉ ਧੜਾ ਕੀਆ ਜਿਸ ਕਾ ਕੋਈ ਸਮਰਥੁ ਨਾਹਿ ॥੨॥
मैंने हरि से नाता बनाया है, जिसके समान कोई भी समर्थशाली नहीं ॥ २॥
ਏਹ ਸਭਿ ਧੜੇ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਪਸਾਰੀ ॥
यह सभी सम्बन्ध माया के मोह का प्रसार है।
ਮਾਇਆ ਕਉ ਲੂਝਹਿ ਗਾਵਾਰੀ ॥
मूर्ख लोग माया के लिए लड़ते झगड़ते हैं।
ਜਨਮਿ ਮਰਹਿ ਜੂਐ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ॥
वह जन्म-मरण के वश में हैं और जुए में अपनी जीवन बाजी हार जाते हैं।
ਹਮਰੈ ਹਰਿ ਧੜਾ ਜਿ ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਸਭੁ ਸਵਾਰੀ ॥੩॥
हरि से ही मेरा नाता है, जो मेरे लोक-परलोक सब संवार देता है॥ ३॥
ਕਲਿਜੁਗ ਮਹਿ ਧੜੇ ਪੰਚ ਚੋਰ ਝਗੜਾਏ ॥
कलियुग में जितने भी रिश्ते हैं ये पाँच विकार-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अभिमान द्वारा उत्पन्न होते हैं।
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ਵਧਾਏ ॥
परिणामस्वरूप काम, क्रोध,लोभ, मोह एवं अभिमान अधिकतर बढ़ गए हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਸਤਸੰਗਿ ਮਿਲਾਏ ॥
जिस मनुष्य पर परमात्मा कृपा करते हैं, उसे सत्संगति में सम्मिलित कर देते हैं।
ਹਮਰਾ ਹਰਿ ਧੜਾ ਜਿਨਿ ਏਹ ਧੜੇ ਸਭਿ ਗਵਾਏ ॥੪॥
मेरा गठबंधन उस ईश्वर से है, जिसने मुझे समस्त सांसारिक गुटों, बंधनों और मोह को त्यागने की प्रेरणा दी है।॥ ४॥
ਮਿਥਿਆ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਧੜੇ ਬਹਿ ਪਾਵੈ ॥
झूठे सांसारिक मोह के माध्यम से लोग बैठकर गुटबन्दी करते हैं।
ਪਰਾਇਆ ਛਿਦ੍ਰੁ ਅਟਕਲੈ ਆਪਣਾ ਅਹੰਕਾਰੁ ਵਧਾਵੈ ॥
वह दूसरों की कमजोरियों की निन्दा करते हैं और अपना अहंकार बढ़ाते हैं।
ਜੈਸਾ ਬੀਜੈ ਤੈਸਾ ਖਾਵੈ ॥
वे जैसा बीज बोते हैं, वैसा ही फल खाते हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਾ ਹਰਿ ਧੜਾ ਧਰਮੁ ਸਭ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਜਿਣਿ ਆਵੈ ॥੫॥੨॥੫੪॥
नानक ने हरि से नातेदारी की है, यह धर्म का नाता समूचे जगत को जीत लेता है॥५॥२॥५४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹਿਰਦੈ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਮਨਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਭਾਇਆ ॥
मेरा मन बार-बार गुरु के वचन सुनकर भगवान् के नाम के अमृत से तृप्त और आनंदित हो गया है।
ਗੁਰਬਾਣੀ ਹਰਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ॥੧॥
गुरुवाणी ने मुझे अदृश्य हरि के दर्शन करवा दिए हैं।॥ १॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸੁਨਹੁ ਮੇਰੀ ਭੈਨਾ ॥
हे मेरी सत्संगी बहनो ! गुरुमुख बनकर हरि का नाम सुनो।
ਏਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਮੁਖਿ ਬੋਲਹੁ ਗੁਰ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬੈਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनन्त प्रभु प्रत्येक हृदय में समा रहा है। अपने मुख से तुम सब अमृत वचन गुरुवाणी का जाप करो ॥ १॥ रहाउ॥
ਮੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਮਹਾ ਬੈਰਾਗੁ ॥
मेरे मन एवं तन में प्रभु प्रेम एवं महा वैराग्य है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਪਾਇਆ ਵਡਭਾਗੁ ॥੨॥
सौभाग्य से मुझे महापुरुष सतगुरु मिल गए हैं॥ २॥
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਭਵਹਿ ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ॥ ਭਾਗਹੀਨ ਨਹੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥੩॥
द्वैतभाव के कारण मनुष्य का मन विषैली माया के पीछे भटकता है। भाग्यहीन व्यक्ति को सतगुरु नहीं मिलते।॥ ३॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਹਰਿ ਆਪਿ ਪੀਆਇਆ ॥
परमात्मा स्वयं ही मनुष्य को अमृत रूपी हरि-रस का पान करवाते हैं।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ॥੪॥੩॥੫੫॥
हे नानक ! पूर्ण गुरु के द्वारा मैंने ईश्वर को पा लिया है॥ ४॥ ३॥५५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, चौथे गुरु: ४ ॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ॥
मेरे मन एवं तन में हरि नाम का ही प्रेम बना हुआ है, जो मेरे जीवन का आधार है।
ਨਾਮੁ ਜਪੀ ਨਾਮੋ ਸੁਖ ਸਾਰੁ ॥੧॥
मैं नाम का सिमरन करता हूँ, क्योंकि हरि का नाम सुखों का सार-तत्व है॥ १॥
ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮੇਰੇ ਸਾਜਨ ਸੈਨਾ ॥
हे मेरे मित्रो एवं सज्जनो ! हरि-नाम का जाप करो।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਲੈਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि-नाम के बिना मेरे पास कुछ भी नहीं। बड़े सौभाग्य से मुझे गुरु के सम्मुख होकर हरि का नाम प्राप्त हुआ है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਹੀ ਜੀਵਿਆ ਜਾਇ ॥
नाम के बिना जीना असंभव है।
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਪਾਇ ॥੨॥
बड़े भाग्य से ही गुरु के माध्यम से ईश्वर प्राप्त होता है॥ २॥
ਨਾਮਹੀਨ ਕਾਲਖ ਮੁਖਿ ਮਾਇਆ ॥
जो लोग ईश्वर के नाम का ध्यान नहीं करते, वे माया के आकर्षण में फँसकर अंततः अपमान और पछतावे का जीवन जीते हैं।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਾਇਆ ॥੩॥
हरि नाम के बिना यह जीवन धिक्कार योग्य है॥ ३॥