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ਓਰੈ ਕਛੂ ਨ ਕਿਨਹੂ ਕੀਆ ॥
ओरै कछू न किनहू कीआ ॥
यहाँ इस लोक में कोई भी जीव स्वयं से कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाता।
ਨਾਨਕ ਸਭੁ ਕਛੁ ਪ੍ਰਭ ਤੇ ਹੂਆ ॥੫੧॥
नानक सभु कछु प्रभ ते हूआ ॥५१॥
हे नानक ! जो कुछ भी होता है वह ईश्वर की इच्छा के अनुसार है।॥ ५१॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਲੇਖੈ ਕਤਹਿ ਨ ਛੂਟੀਐ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਭੂਲਨਹਾਰ ॥
लेखै कतहि न छूटीऐ खिनु खिनु भूलनहार ॥
हे परमेश्वर, यदि आप हमारे कर्मों के आधार पर हमारा न्याय करेंगे, तो हम कभी भी नहीं बच सकेंगे, क्योंकि हम हर समय भूल ही करते रहते हैं।
ਬਖਸਨਹਾਰ ਬਖਸਿ ਲੈ ਨਾਨਕ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰ ॥੧॥
बखसनहार बखसि लै नानक पारि उतार ॥१॥
हे क्षमाशील ईश्वर ! आप स्वयं ही हमारी भूल क्षमा करके हमें भवसागर से पार कर दो ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी॥
ਲੂਣ ਹਰਾਮੀ ਗੁਨਹਗਾਰ ਬੇਗਾਨਾ ਅਲਪ ਮਤਿ ॥
लूण हरामी गुनहगार बेगाना अलप मति ॥
मूर्ख एवं अल्पबुद्धि वाला जीव पापों में लिप्त प्राणी है, जो स्वयं को ईश्वर से अलग मान बैठा है।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਜਿਨਿ ਸੁਖ ਦੀਏ ਤਾਹਿ ਨ ਜਾਨਤ ਤਤ ॥
जीउ पिंडु जिनि सुख दीए ताहि न जानत तत ॥
जिस प्रभु ने उसे यह आत्मा, शरीर एवं सुख प्रदान किया है, उससे वह अपरिचित ही रहता है, उसे पहचानता ही नहीं।
ਲਾਹਾ ਮਾਇਆ ਕਾਰਨੇ ਦਹ ਦਿਸਿ ਢੂਢਨ ਜਾਇ ॥
लाहा माइआ कारने दह दिसि ढूढन जाइ ॥
माया के लिए वह दसों दिशाओं में खोज करने हेतु जाता है
ਦੇਵਨਹਾਰ ਦਾਤਾਰ ਪ੍ਰਭ ਨਿਮਖ ਨ ਮਨਹਿ ਬਸਾਇ ॥
देवनहार दातार प्रभ निमख न मनहि बसाइ ॥
लेकिन सब कुछ देने वाले दाता-प्रभु को वह क्षण भर के लिए भी अपने हृदय में नहीं बसाता।
ਲਾਲਚ ਝੂਠ ਬਿਕਾਰ ਮੋਹ ਇਆ ਸੰਪੈ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
लालच झूठ बिकार मोह इआ स्मपै मन माहि ॥
लालच, झूठ, विकार एवं सांसारिक मोह इनको वह अपने हृदय में एकत्र करता है।
ਲੰਪਟ ਚੋਰ ਨਿੰਦਕ ਮਹਾ ਤਿਨਹੂ ਸੰਗਿ ਬਿਹਾਇ ॥
ल्मपट चोर निंदक महा तिनहू संगि बिहाइ ॥
वह अपना अमूल्यल जीवन दुष्टों, चोरों और निंदकों की संगति में व्यर्थ गंवा देता है।
ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਬਖਸਿ ਲੈਹਿ ਖੋਟੇ ਸੰਗਿ ਖਰੇ ॥
तुधु भावै ता बखसि लैहि खोटे संगि खरे ॥
हे परमात्मा ! यदि आपको उपयुक्त लगे तो आप स्वयं ही बुरे लोगों को भले लोगों की संगति में रखकर क्षमा कर देते हो।
ਨਾਨਕ ਭਾਵੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਾਹਨ ਨੀਰਿ ਤਰੇ ॥੫੨॥
नानक भावै पारब्रहम पाहन नीरि तरे ॥५२॥
हे नानक ! यदि पारब्रह्म प्रभु को उपयुक्त लगे तो पत्थर भी जल में तैरने लग जाता है॥ ५२ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਖਾਤ ਪੀਤ ਖੇਲਤ ਹਸਤ ਭਰਮੇ ਜਨਮ ਅਨੇਕ ॥
खात पीत खेलत हसत भरमे जनम अनेक ॥
नानक कहते हैं कि हे ईश्वर ! हम प्राणी माया से संबंधित पदार्थ ही खाते-पीते एवं माया के विलासों में ही हंसते-खेलते कितनी ही योनियों में भटकते आ रहे हैं।
ਭਵਜਲ ਤੇ ਕਾਢਹੁ ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਨਕ ਤੇਰੀ ਟੇਕ ॥੧॥
भवजल ते काढहु प्रभू नानक तेरी टेक ॥१॥
हे प्रभु ! हम जीवों को भवसागर से बाहर निकाल, क्योंकि हमें तो आपका ही सहारा है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी॥
ਖੇਲਤ ਖੇਲਤ ਆਇਓ ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਦੁਖ ਪਾਇ ॥
खेलत खेलत आइओ अनिक जोनि दुख पाइ ॥
जीव माया के विलासों में मन लगाता, अनगिनत योनियों से गुजरता हुआ, दु:ख सहन करता आता है।
ਖੇਦ ਮਿਟੇ ਸਾਧੂ ਮਿਲਤ ਸਤਿਗੁਰ ਬਚਨ ਸਮਾਇ ॥
खेद मिटे साधू मिलत सतिगुर बचन समाइ ॥
संतों को मिलने एवं सतगुरु के उपदेश में लीन होने से दुःख-क्लेश नष्ट हो जाते हैं।
ਖਿਮਾ ਗਹੀ ਸਚੁ ਸੰਚਿਓ ਖਾਇਓ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮ ॥
खिमा गही सचु संचिओ खाइओ अम्रितु नाम ॥
सहनशीलता को धारण करने और सत्य को एकत्र करने से मनुष्य नाम रूपी अमृत का सेवन करता है।
ਖਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਠਾਕੁਰ ਭਈ ਅਨਦ ਸੂਖ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥
खरी क्रिपा ठाकुर भई अनद सूख बिस्राम ॥
जब प्रभु अपनी कृपा करते हैं तो हमें आनन्द एवं प्रसन्नता में सुख का निवास मिल जाता है।
ਖੇਪ ਨਿਬਾਹੀ ਬਹੁਤੁ ਲਾਭ ਘਰਿ ਆਏ ਪਤਿਵੰਤ ॥
खेप निबाही बहुतु लाभ घरि आए पतिवंत ॥
जो मनुष्य श्रद्धा और प्रेम से प्रभु के नाम का सच्चा धन अर्जित करता है, वही इस दुर्लभ मानव जीवन के परम उद्देश्य को यथार्थ में प्राप्त करता है।
ਖਰਾ ਦਿਲਾਸਾ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ਆਇ ਮਿਲੇ ਭਗਵੰਤ ॥
खरा दिलासा गुरि दीआ आइ मिले भगवंत ॥
गुरु ने जब उसे सच्चा सहारा दिया, तभी उसे ईश्वर का वास्तविक बोध हुआ।
ਆਪਨ ਕੀਆ ਕਰਹਿ ਆਪਿ ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਆਪਿ ॥
आपन कीआ करहि आपि आगै पाछै आपि ॥
हे ईश्वर ! यह सारी लीला आपने ही रची है, अब भी आप स्वयं ही सब कुछ कर रहे हो। लोक-परलोक में प्राणियों के रक्षक तुम स्वयं हो।
ਨਾਨਕ ਸੋਊ ਸਰਾਹੀਐ ਜਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਹਿਆ ਬਿਆਪਿ ॥੫੩॥
नानक सोऊ सराहीऐ जि घटि घटि रहिआ बिआपि ॥५३॥
हे नानक ! केवल उस भगवान् की महिमा-स्तुति करते रहो, जो प्रत्येक हृदय में समाया हुआ है॥ ५३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਆਏ ਪ੍ਰਭ ਸਰਨਾਗਤੀ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਦਇਆਲ ॥
आए प्रभ सरनागती किरपा निधि दइआल ॥
हे कृपा के भण्डार, हे दया के घर प्रभु ! हम जीव आपकी ही शरण में आए हैं।
ਏਕ ਅਖਰੁ ਹਰਿ ਮਨਿ ਬਸਤ ਨਾਨਕ ਹੋਤ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥
एक अखरु हरि मनि बसत नानक होत निहाल ॥१॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति के अन्तर्मन में एक अनश्वर परमात्मा है, वह कृतार्थ हो जाता है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी॥
ਅਖਰ ਮਹਿ ਤ੍ਰਿਭਵਨ ਪ੍ਰਭਿ ਧਾਰੇ ॥
अखर महि त्रिभवन प्रभि धारे ॥
परमेश्वर ने अपने दिव्य वाक्य के माध्यम से ही इस सृष्टि की उत्पत्ति की।
ਅਖਰ ਕਰਿ ਕਰਿ ਬੇਦ ਬੀਚਾਰੇ ॥
अखर करि करि बेद बीचारे ॥
ईश्वर की आज्ञानुसार वेद रचे गए और अध्ययन किए गए।
ਅਖਰ ਸਾਸਤ੍ਰ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਪੁਰਾਨਾ ॥
अखर सासत्र सिम्रिति पुराना ॥
समस्त शास्त्र, स्मृतियां एवं पुराण भगवान् की आज्ञा का प्रकट रूप हैं।
ਅਖਰ ਨਾਦ ਕਥਨ ਵਖ੍ਯ੍ਯਾਨਾ ॥
अखर नाद कथन वख्याना ॥
इन पुराणों, शास्त्रों एवं स्मृतियों के भजन, कथन एवं व्याख्या भी भगवान् की आज्ञा का ही प्रकाश है।
ਅਖਰ ਮੁਕਤਿ ਜੁਗਤਿ ਭੈ ਭਰਮਾ ॥
अखर मुकति जुगति भै भरमा ॥
संसार के भय एवं दुविधा से मुक्ति पाना भी भगवान् की आज्ञा का प्रकाश है।
ਅਖਰ ਕਰਮ ਕਿਰਤਿ ਸੁਚ ਧਰਮਾ ॥
अखर करम किरति सुच धरमा ॥
धार्मिक संस्कारों, सांसारिक कर्मो, पवित्रता एवं धर्म का वर्णन भी भगवान् की आज्ञा हैं।
ਦ੍ਰਿਸਟਿਮਾਨ ਅਖਰ ਹੈ ਜੇਤਾ ॥
द्रिसटिमान अखर है जेता ॥
हे नानक ! जितना भी यह दृष्टिगोचर जगत् है,
ਨਾਨਕ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਨਿਰਲੇਪਾ ॥੫੪॥
नानक पारब्रहम निरलेपा ॥५४॥
इसमें अनश्वर प्रभु की आज्ञा सक्रिय है, फिर भी पारब्रह्म प्रभु निर्लिप्त है॥ ५४॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਹਥਿ ਕਲੰਮ ਅਗੰਮ ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਾਵਤੀ ॥
हथि कलम अगम मसतकि लिखावती ॥
उस अगम्य ईश्वर के हाथ में कलम है। वह समस्त जीवों के मस्तक पर कर्मों के अनुसार भाग्य लिख रहे हैं।
ਉਰਝਿ ਰਹਿਓ ਸਭ ਸੰਗਿ ਅਨੂਪ ਰੂਪਾਵਤੀ ॥
उरझि रहिओ सभ संगि अनूप रूपावती ॥
अनूप सुन्दरता वाला प्रभु समस्त प्राणियों के साथ मिला हुआ है।
ਉਸਤਤਿ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਇ ਮੁਖਹੁ ਤੁਹਾਰੀਆ ॥
उसतति कहनु न जाइ मुखहु तुहारीआ ॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं आपकी महिमा अपने मुख से व्यक्त नहीं कर सकता।
ਮੋਹੀ ਦੇਖਿ ਦਰਸੁ ਨਾਨਕ ਬਲਿਹਾਰੀਆ ॥੧॥
मोही देखि दरसु नानक बलिहारीआ ॥१॥
आपके दर्शन करके मैं मुग्ध हो गया हूँ और आप पर न्योछावर हो रहा हूँ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी ॥
ਹੇ ਅਚੁਤ ਹੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਅਬਿਨਾਸੀ ਅਘਨਾਸ ॥
हे अचुत हे पारब्रहम अबिनासी अघनास ॥
नानक कहते हैं कि हे अच्युत ! हे पारब्रह्म ! हे अविनाशी ! हे पापनाशक !
ਹੇ ਪੂਰਨ ਹੇ ਸਰਬ ਮੈ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਗੁਣਤਾਸ ॥
हे पूरन हे सरब मै दुख भंजन गुणतास ॥
हे सर्वव्यापक ! हे दुःखनाशक ! हे गुणों के भण्डार !
ਹੇ ਸੰਗੀ ਹੇ ਨਿਰੰਕਾਰ ਹੇ ਨਿਰਗੁਣ ਸਭ ਟੇਕ ॥
हे संगी हे निरंकार हे निरगुण सभ टेक ॥
हे निरंकार प्रभु ! हे निर्गुण ! हे समस्त प्राणियों के सहारे !
ਹੇ ਗੋਬਿਦ ਹੇ ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਜਾ ਕੈ ਸਦਾ ਬਿਬੇਕ ॥
हे गोबिद हे गुण निधान जा कै सदा बिबेक ॥
हे गोबिन्द ! हे गुणों के खजाने ! आपके पास सदैव विवेक है।
ਹੇ ਅਪਰੰਪਰ ਹਰਿ ਹਰੇ ਹਹਿ ਭੀ ਹੋਵਨਹਾਰ ॥
हे अपर्मपर हरि हरे हहि भी होवनहार ॥
हे अपरम्पार प्रभु ! आप अब भी उपस्थित हो, आप सदा सत्यस्वरूप हो।
ਹੇ ਸੰਤਹ ਕੈ ਸਦਾ ਸੰਗਿ ਨਿਧਾਰਾ ਆਧਾਰ ॥
हे संतह कै सदा संगि निधारा आधार ॥
हे संतों के सदा सहायक ! आप ही निराश्रितो का आश्रय है।
ਹੇ ਠਾਕੁਰ ਹਉ ਦਾਸਰੋ ਮੈ ਨਿਰਗੁਨ ਗੁਨੁ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥
हे ठाकुर हउ दासरो मै निरगुन गुनु नही कोइ ॥
हे ठाकुर ! मैं आपका छोटा-सा (निम्न) सेवक हूँ। मैं गुणविहीन हूँ, मुझ में कोई भी गुण नहीं।