Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 260

Page 260

ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਹਉ ਹਉ ਕਰਤ ਬਿਹਾਨੀਆ ਸਾਕਤ ਮੁਗਧ ਅਜਾਨ ॥ शाक्त, मूर्ख एवं नासमझ जीव अहंकार करता हुआ अपनी आयु बिता देता है।
ੜੜਕਿ ਮੁਏ ਜਿਉ ਤ੍ਰਿਖਾਵੰਤ ਨਾਨਕ ਕਿਰਤਿ ਕਮਾਨ ॥੧॥ हे नानक ! दुःख में वह प्यासे पुरुष की भाँति मर जाता है और अपने किए कर्मों का फल भोगता है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ੜਾੜਾ ੜਾੜਿ ਮਿਟੈ ਸੰਗਿ ਸਾਧੂ ॥ रार्रा’ अर्थात् वह मानसिक कलह, जो अहंकार से उत्पन्न होता है — वह तब शांत हो जाता है जब आत्मा सत्संग, साधु-संग या गुरु-स्मरण जैसे पवित्र वातावरण में प्रविष्ट होती है।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਤਤੁ ਨਾਮ ਅਰਾਧੂ ॥ भगवान् के नाम की आराधना करनी ही कर्म एवं धर्म का मूल है।
ਰੂੜੋ ਜਿਹ ਬਸਿਓ ਰਿਦ ਮਾਹੀ ॥ जिसके हृदय में सुन्दर प्रभु निवास करता है,
ਉਆ ਕੀ ੜਾੜਿ ਮਿਟਤ ਬਿਨਸਾਹੀ ॥ उसका झगड़ा नाश हो जाता है।
ੜਾੜਿ ਕਰਤ ਸਾਕਤ ਗਾਵਾਰਾ ॥ भगवान् से विमुख मूर्ख व्यक्ति के हृदय में अहंबुद्धि का पाप निवास करता है
ਜੇਹ ਹੀਐ ਅਹੰਬੁਧਿ ਬਿਕਾਰਾ ॥ और वह विवाद उत्पन्न कर लेता है।
ੜਾੜਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ੜਾੜਿ ਮਿਟਾਈ ॥ हे नानक ! गुरमुख का एक क्षण में ही झगड़ा मिट जाता है
ਨਿਮਖ ਮਾਹਿ ਨਾਨਕ ਸਮਝਾਈ ॥੪੭॥ और उसे सुख उपलब्ध हो जाता है ॥४७॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਸਾਧੂ ਕੀ ਮਨ ਓਟ ਗਹੁ ਉਕਤਿ ਸਿਆਨਪ ਤਿਆਗੁ ॥ हे मेरे मन ! अपनी युक्ति एवं चतुराई को त्याग कर संतों की शरण ले।
ਗੁਰ ਦੀਖਿਆ ਜਿਹ ਮਨਿ ਬਸੈ ਨਾਨਕ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ॥੧॥ हे नानक ! जिस व्यक्ति के हृदय में गुरु-उपदेश का वास हो जाता है, उसके माथे पर भाग्य उदय हो जाता है ॥१॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी॥
ਸਸਾ ਸਰਨਿ ਪਰੇ ਅਬ ਹਾਰੇ ॥ हे परमात्मा ! अब हारकर आपकी शरण में आए हैं।
ਸਾਸਤ੍ਰ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਬੇਦ ਪੂਕਾਰੇ ॥ विद्वान लोग शास्त्र, स्मृतियों का उच्च स्वर में अध्ययन करते हैं,
ਸੋਧਤ ਸੋਧਤ ਸੋਧਿ ਬੀਚਾਰਾ ॥ जांच-पड़ताल एवं निर्णय करने से अनुभव कर लिया है कि
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਜਨ ਨਹੀ ਛੁਟਕਾਰਾ ॥ भगवान् के भजन के अतिरिक्त मनुष्य को मुक्ति नहीं मिलती।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਹਮ ਭੂਲਨਹਾਰੇ ॥ हम हर श्वास में भूल करते रहते हैं।
ਤੁਮ ਸਮਰਥ ਅਗਨਤ ਅਪਾਰੇ ॥ हे प्रभु! आप सर्वशक्तिमान, गणना-रहित एवं अनन्त हो।
ਸਰਨਿ ਪਰੇ ਕੀ ਰਾਖੁ ਦਇਆਲਾ ॥ हे दया के घर ! शरण में आए हुओं की रक्षा करो।
ਨਾਨਕ ਤੁਮਰੇ ਬਾਲ ਗੁਪਾਲਾ ॥੪੮॥ नानक कहते हैं कि हे गोपाल ! हम तो आपकी ही संतान हैं॥ ४८ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक।
ਖੁਦੀ ਮਿਟੀ ਤਬ ਸੁਖ ਭਏ ਮਨ ਤਨ ਭਏ ਅਰੋਗ ॥ जब अहंकार मिट जाता है तो सुख-शांति उत्पन्न हो जाती है और मन एवं तन स्वस्थ हो जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਦ੍ਰਿਸਟੀ ਆਇਆ ਉਸਤਤਿ ਕਰਨੈ ਜੋਗੁ ॥੧॥ हे नानक ! अहंकार के मिटने से ही प्राणी को प्रशंसनीय प्रभु हर जगह दिखाई देते हैं,
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ਖਖਾ ਖਰਾ ਸਰਾਹਉ ਤਾਹੂ ॥ उस परमात्मा की एकाग्रचित होकर प्रशंसा करते रहो,
ਜੋ ਖਿਨ ਮਹਿ ਊਨੇ ਸੁਭਰ ਭਰਾਹੂ ॥ जो एक क्षण में ही उन हृदयों को शुभ गुणों से भरपूर कर देते हैं, जो पहले गुणों से शून्य थे।
ਖਰਾ ਨਿਮਾਨਾ ਹੋਤ ਪਰਾਨੀ ॥ जब प्राणी भली प्रकार से विनीत हो जाता है
ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਪੈ ਪ੍ਰਭ ਨਿਰਬਾਨੀ ॥ तो वह रात-दिन निर्मल प्रभु का भजन करता रहता है।
ਭਾਵੈ ਖਸਮ ਤ ਉਆ ਸੁਖੁ ਦੇਤਾ ॥ यदि ईश्वर को भला लगे तो वह सुख प्रदान करते हैं।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਐਸੋ ਆਗਨਤਾ ॥ पारब्रह्म प्रभु ऐसे अनन्त हैं।
ਅਸੰਖ ਖਤੇ ਖਿਨ ਬਖਸਨਹਾਰਾ ॥ वह असंख्य पाप एक क्षण में क्षमा कर देते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਸਦਾ ਦਇਆਰਾ ॥੪੯॥ हे नानक प्रभु सदैव ही दयावान है ॥४९॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक ॥
ਸਤਿ ਕਹਉ ਸੁਨਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਰਨਿ ਪਰਹੁ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥ हे मेरे मन ! मैं तुझे सत्य कहता हूँ, जरा ध्यानपूर्वक सुन। हरि-परमेश्वर की शरण में आओ।
ਉਕਤਿ ਸਿਆਨਪ ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਨਾਨਕ ਲਏ ਸਮਾਇ ॥੧॥ हे नानक ! अपनी समस्त युक्तियाँ एवं चतुरता त्याग दे, फिर ईश्वर तुझे अपने भीतर लीन कर लेगें ॥१॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ਸਸਾ ਸਿਆਨਪ ਛਾਡੁ ਇਆਨਾ ॥ हे मूर्ख प्राणी ! अपनी चतुरता को त्याग दे।
ਹਿਕਮਤਿ ਹੁਕਮਿ ਨ ਪ੍ਰਭੁ ਪਤੀਆਨਾ ॥ ईश्वर चतुराइयों एवं उपदेश करने से प्रसन्न नहीं होते।
ਸਹਸ ਭਾਤਿ ਕਰਹਿ ਚਤੁਰਾਈ ॥ चाहे तू हजारों प्रकार की चतुरता भी करे परन्तु
ਸੰਗਿ ਤੁਹਾਰੈ ਏਕ ਨ ਜਾਈ ॥ एक भी चतुराई तेरा साथ नहीं देगी।
ਸੋਊ ਸੋਊ ਜਪਿ ਦਿਨ ਰਾਤੀ ॥ हे मेरे मन ! उस ईश्वर को ही दिन-रात स्मरण करता रह,
ਰੇ ਜੀਅ ਚਲੈ ਤੁਹਾਰੈ ਸਾਥੀ ॥ ईश्वर की याद ने ही तेरे साथ जाना है।
ਸਾਧ ਸੇਵਾ ਲਾਵੈ ਜਿਹ ਆਪੈ ॥ हे नानक ! जिस व्यक्ति को ईश्वर स्वयं संतों की सेवा में लगाता है,
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕਉ ਦੂਖੁ ਨ ਬਿਆਪੈ ॥੫੦॥ उसे कोई भी मुसीबत प्रभावित नहीं करती ॥ ५० ॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੁਖ ਤੇ ਬੋਲਨਾ ਮਨਿ ਵੂਠੈ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥ हरि-परमेश्वर के नाम को मुख से बोलने एवं इसको हृदय में बसाने से सुख प्राप्त होता है।
ਨਾਨਕ ਸਭ ਮਹਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਸੋਇ ॥੧॥ हे नानक ! प्रभु सर्वव्यापक है और प्रत्येक स्थान के भीतर वह उपस्थित है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी॥
ਹੇਰਉ ਘਟਿ ਘਟਿ ਸਗਲ ਕੈ ਪੂਰਿ ਰਹੇ ਭਗਵਾਨ ॥ देखो ! भगवान् सबके हृदय में परिपूर्ण हो रहे हैं।
ਹੋਵਤ ਆਏ ਸਦ ਸਦੀਵ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ॥ गुरु की शिक्षा से यह ज्ञान प्रकट होता है कि दुःखों का नाश करने वाला ईश्वर सदैव से सर्वत्र विद्यमान है।
ਹਉ ਛੁਟਕੈ ਹੋਇ ਅਨੰਦੁ ਤਿਹ ਹਉ ਨਾਹੀ ਤਹ ਆਪਿ ॥ अपना अहंकार नष्ट करने से मनुष्य प्रसन्नता प्राप्त कर लेता है। जहाँ अहंकार नहीं वहाँ ईश्वर स्वयं उपस्थित हैं।
ਹਤੇ ਦੂਖ ਜਨਮਹ ਮਰਨ ਸੰਤਸੰਗ ਪਰਤਾਪ ॥ संतों की संगति के प्रताप द्वारा जन्म-मरण की पीड़ा निवृत्त हो जाती है।
ਹਿਤ ਕਰਿ ਨਾਮ ਦ੍ਰਿੜੈ ਦਇਆਲਾ ॥ दयावान ईश्वर उन पर कृपालु हो जाते हैं जो लोग
ਸੰਤਹ ਸੰਗਿ ਹੋਤ ਕਿਰਪਾਲਾ ॥ संतों की संगति में रहकर प्रभु के नाम को प्रेमपूर्वक अपने हृदय में स्थित करते हैं,


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