Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 262

Page 262

ਨਾਨਕ ਦੀਜੈ ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਰਾਖਉ ਹੀਐ ਪਰੋਇ ॥੫੫॥ मुझे अपने नाम का दान प्रदान कीजिए चूंकि जिसे मैं अपने हृदय में पिरोकर रखूं ॥५५॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਗੁਰਦੇਵ ਮਾਤਾ ਗੁਰਦੇਵ ਪਿਤਾ ਗੁਰਦੇਵ ਸੁਆਮੀ ਪਰਮੇਸੁਰਾ ॥ गुरु ही माता है, गुरु ही पिता है और गुरु ही जगत् का स्वामी परमेश्वर है।
ਗੁਰਦੇਵ ਸਖਾ ਅਗਿਆਨ ਭੰਜਨੁ ਗੁਰਦੇਵ ਬੰਧਿਪ ਸਹੋਦਰਾ ॥ गुरु ही अज्ञानता का अँधेरा नाश करने वाला मित्र है। गुरु ही रिश्तेदार एवं भाई है।
ਗੁਰਦੇਵ ਦਾਤਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਪਦੇਸੈ ਗੁਰਦੇਵ ਮੰਤੁ ਨਿਰੋਧਰਾ ॥ गुरु ही दाता एवं हरि नाम का उपदेशक है और गुरु ही मेरा अचूक मन्त्र है।
ਗੁਰਦੇਵ ਸਾਂਤਿ ਸਤਿ ਬੁਧਿ ਮੂਰਤਿ ਗੁਰਦੇਵ ਪਾਰਸ ਪਰਸ ਪਰਾ ॥ गुरु सुख-शांति, सत्य एवं बुद्धि की मूर्ति है। गुरु ही ऐसा पारस है, जिसे स्पर्श करके प्राणी का भवसागर से उद्धार हो जाता है।
ਗੁਰਦੇਵ ਤੀਰਥੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰੁ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਮਜਨੁ ਅਪਰੰਪਰਾ ॥ गुरु ही तीर्थ एवं अमृत का सरोवर है। गुरु के ज्ञान में स्नान करने से मनुष्य अपरम्पार प्रभु को मिल जाता है।
ਗੁਰਦੇਵ ਕਰਤਾ ਸਭਿ ਪਾਪ ਹਰਤਾ ਗੁਰਦੇਵ ਪਤਿਤ ਪਵਿਤ ਕਰਾ ॥ गुरु ही सृष्टिकर्ता एवं समूचे पापों का नाश करने वाले हैं और गुरु पतितों को पवित्र-पावन करने वाले हैं।
ਗੁਰਦੇਵ ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਗੁਰਦੇਵ ਮੰਤੁ ਹਰਿ ਜਪਿ ਉਧਰਾ ॥ जब से संसार की रचना हुई है, गुरु आदिकाल से ही हरेक युग में है। गुरु ईश्वर के नाम का मंत्र है, जिसका जाप करने से प्राणी का उद्धार हो जाता है।
ਗੁਰਦੇਵ ਸੰਗਤਿ ਪ੍ਰਭ ਮੇਲਿ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਮ ਮੂੜ ਪਾਪੀ ਜਿਤੁ ਲਗਿ ਤਰਾ ॥ हे प्रभु ! कृपा करके हमें गुरु की संगति प्रदान करो तांकि हम मूर्ख एवं पापी उसकी संगति में रहकर भवसागर से पार हो जाएँ।
ਗੁਰਦੇਵ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਗੁਰਦੇਵ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਮਸਕਰਾ ॥੧॥ गुरु स्वयं ही पारब्रह्म एवं परमेश्वर है। हे नानक ! भगवान् के रूप गुरु की वन्दना करनी चाहिए॥ १॥
ਏਹੁ ਸਲੋਕੁ ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਪੜਣਾ ॥ यह श्लोक शुरु से लेकर अंत तक पढ़ना है।
ਗਉੜੀ ਸੁਖਮਨੀ ਮਃ ੫ ॥ गउड़ी सुखमनी मः ५ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਦਿ ਗੁਰਏ ਨਮਹ ॥ मैं आदि गुरु को प्रणाम करता हूँ।
ਜੁਗਾਦਿ ਗੁਰਏ ਨਮਹ ॥ मैं पहले युगों के गुरु को प्रणाम करता हूँ।
ਸਤਿਗੁਰਏ ਨਮਹ ॥ मैं सतगुरु को प्रणाम करता हूँ।
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰਦੇਵਏ ਨਮਹ ॥੧॥ मैं श्री गुरुदेव जी को प्रणाम करता हूँ॥ १॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥ अष्टपदी।
ਸਿਮਰਉ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਖੁ ਪਾਵਉ ॥ परमात्मा का नाम सिमरन करो और नाम-सिमरन करके सुख प्राप्त करो।
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਤਨ ਮਾਹਿ ਮਿਟਾਵਉ ॥ इस तन में जो दुःख-क्लेश हैं, उन्हें मिटा लो।
ਸਿਮਰਉ ਜਾਸੁ ਬਿਸੁੰਭਰ ਏਕੈ ॥ केवल, एक जगत् के पालनहार प्रभु के यश को स्मरण करो।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਅਗਨਤ ਅਨੇਕੈ ॥ असंख्य लोग प्रभु के अनेक नामों का जाप करते हैं।
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸੁਧਾਖ੍ਯ੍ਯਰ ॥ पवित्र अक्षर वाले वेद, पुराण एवं स्मृतियां
ਕੀਨੇ ਰਾਮ ਨਾਮ ਇਕ ਆਖ੍ਯ੍ਯਰ ॥ प्रभु के नाम के एक अक्षर की रचना है।
ਕਿਨਕਾ ਏਕ ਜਿਸੁ ਜੀਅ ਬਸਾਵੈ ॥ ਤਾ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਗਨੀ ਨ ਆਵੈ ॥ जिसके हृदय में राम का नाम थोड़ा-सा भी वास करता है, उसकी महिमा व्यक्त नहीं की जा सकती।
ਕਾਂਖੀ ਏਕੈ ਦਰਸ ਤੁਹਾਰੋ ॥ ਨਾਨਕ ਉਨ ਸੰਗਿ ਮੋਹਿ ਉਧਾਰੋ ॥੧॥ हे प्रभु ! जो लोग तेरे दर्शनों के अभिलाषी हैं, उनकी संगति में रखकर मुझ नानक का भी उद्धार कर दो ॥१॥
ਸੁਖਮਨੀ ਸੁਖ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮੁ ॥ सुखमणि प्रभु का सुख रूपी मणि के समान अमृत नाम है।
ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੈ ਮਨਿ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसका भक्तजनों के मन में निवास होता है। रहाउ॥
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਗਰਭਿ ਨ ਬਸੈ ॥ प्रभु को स्मरण करने से प्राणी गर्भ में नहीं आता।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਦੂਖੁ ਜਮੁ ਨਸੈ ॥ प्रभु को स्मरण करने से दुःख एवं मृत्यु का भय निवृत्त हो जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਕਾਲੁ ਪਰਹਰੈ ॥ प्रभु का स्मरण करने से काल भी दूर हो जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਦੁਸਮਨੁ ਟਰੈ ॥ प्रभु का स्मरण करने से शत्रु टल जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰਤ ਕਛੁ ਬਿਘਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥ प्रभु को स्मरण करने से कोई विध्न नहीं पड़ता।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੈ ॥ प्रभु को स्मरण करने से मनुष्य रात-दिन जाग्रत रहता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਭਉ ਨ ਬਿਆਪੈ ॥ प्रभु को स्मरण करने से भय प्रभावित नहीं करता।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਦੁਖੁ ਨ ਸੰਤਾਪੈ ॥ प्रभु को स्मरण करने से दुःख-क्लेश प्रभावित नहीं करता।
ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਸਿਮਰਨੁ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥ ईश्वर को स्मरण करने से संतों की संगति प्राप्त होती है।
ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ॥੨॥ हे नानक ! समस्त निधियाँ ईश्वर की प्रीति में है॥ २ ॥
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਨਉ ਨਿਧਿ ॥ प्रभु के स्मरण में ऋद्धि, सिद्धि एवं नौ निधियाँ हैं।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਤਤੁ ਬੁਧਿ ॥ प्रभु के स्मरण से ही मनुष्य ज्ञान, ध्यान, दिव्यदृष्टि एवं बुद्धि का सार प्राप्त करता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਜਪ ਤਪ ਪੂਜਾ ॥ प्रभु के स्मरण में ही, जप, तपस्या एवं पूजा है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਬਿਨਸੈ ਦੂਜਾ ॥ प्रभु को स्मरण करने से द्वेतभाव दूर हो जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਤੀਰਥ ਇਸਨਾਨੀ ॥ प्रभु को स्मरण करने से तीर्थ स्नान का फल प्राप्त हो जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਦਰਗਹ ਮਾਨੀ ॥ प्रभु को स्मरण करने से प्राणी उसके दरबार में मान-सम्मान प्राप्त कर लेता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਹੋਇ ਸੁ ਭਲਾ ॥ प्रभु को स्मरण करने से प्राणी उसकी इच्छा को मीठा (भला) मानता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਸੁਫਲ ਫਲਾ ॥ प्रभु को स्मरण करने से मनुष्य-जन्म का मनोरथ सफल हो जाता है।
ਸੇ ਸਿਮਰਹਿ ਜਿਨ ਆਪਿ ਸਿਮਰਾਏ ॥ केवल वही जीव उसे स्मरण करते हैं, जिन्हें वह स्वयं स्मरण करवाता है।
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