Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 258

Page 258

ਨਿਧਿ ਨਿਧਾਨ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਪੂਰੇ ॥ निधि निधान हरि अम्रित पूरे ॥ हे नानक ! जिनका अन्तर्मन सर्वगुणों के भण्डार हरि-नाम के अमृत से भरा रहता है,
ਤਹ ਬਾਜੇ ਨਾਨਕ ਅਨਹਦ ਤੂਰੇ ॥੩੬॥ तह बाजे नानक अनहद तूरे ॥३६॥ उनके भीतर एक ऐसा आनन्द स्थापित होता है, जिस तरह लगातार अनहद ध्वनि के सर्व प्रकार के संगीत मिले-जुले स्वर में गूंज रहे हों। ३६॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਪਤਿ ਰਾਖੀ ਗੁਰਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਤਜਿ ਪਰਪੰਚ ਮੋਹ ਬਿਕਾਰ ॥ पति राखी गुरि पारब्रहम तजि परपंच मोह बिकार ॥ जिस पुरुष ने छल, मोह एवं पाप सब कुछ छोड़ दिए हैं, ऐसेपुरुष का मान-सम्मान गुरु पारब्रह्म ने बचाया है।
ਨਾਨਕ ਸੋਊ ਆਰਾਧੀਐ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥੧॥ नानक सोऊ आराधीऐ अंतु न पारावारु ॥१॥ हे नानक ! हमें उस पारब्रह्म-प्रभु की आराधना करनी चाहिए, जिसकी महिमा का अंत नहीं मिल सकता तथा जिसके अस्तित्व का ओर-छोर भी प्राप्त नहीं हो सकता। ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਪਪਾ ਪਰਮਿਤਿ ਪਾਰੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ पपा परमिति पारु न पाइआ ॥ परमेश्वर अपरंपार है और उसका अंत नहीं पाया जा सकता।
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਅਗਮ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥ पतित पावन अगम हरि राइआ ॥ हरि-परमेश्वर अगम्य एवं पतितपावन है।
ਹੋਤ ਪੁਨੀਤ ਕੋਟ ਅਪਰਾਧੂ ॥ होत पुनीत कोट अपराधू ॥ ऐसे करोड़ों ही अपराधी पवित्र हो जाते हैं,
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਜਪਹਿ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ॥ अम्रित नामु जपहि मिलि साधू ॥ जो संतों की संगति में मिलकर भगवान् के अमृत नाम का जाप करते रहते हैं।
ਪਰਪਚ ਧ੍ਰੋਹ ਮੋਹ ਮਿਟਨਾਈ ॥ परपच ध्रोह मोह मिटनाई ॥ उसका छल-कपट, धोखा एवं सांसारिक मोह मिट जाते हैं,
ਜਾ ਕਉ ਰਾਖਹੁ ਆਪਿ ਗੁਸਾਈ ॥ जा कउ राखहु आपि गुसाई ॥ हे गुसाई ! जिसकी आप स्वयं रक्षा करते हो।
ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਛਤ੍ਰ ਸਿਰ ਸੋਊ ॥ पातिसाहु छत्र सिर सोऊ ॥ हे नानक ! ईश्वर सर्वोपरि बादशाह है, वहीं वास्तविक छत्रधारी है,
ਨਾਨਕ ਦੂਸਰ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਊ ॥੩੭॥ नानक दूसर अवरु न कोऊ ॥३७॥ कोई दूसरा उसकी समानता करने योग्य नहीं है॥ ३७॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਫਾਹੇ ਕਾਟੇ ਮਿਟੇ ਗਵਨ ਫਤਿਹ ਭਈ ਮਨਿ ਜੀਤ ॥ फाहे काटे मिटे गवन फतिह भई मनि जीत ॥ हे नानक! यदि मन पर विजय प्राप्त कर ली जाए, तो समस्त वासनाएँ शांत हो जाती हैं, मोह-माया के बंधन टूट जाते हैं और माया के पीछे जो भ्रम या शंका है, वह स्वतः नष्ट हो जाती है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਤੇ ਥਿਤ ਪਾਈ ਫਿਰਨ ਮਿਟੇ ਨਿਤ ਨੀਤ ॥੧॥ नानक गुर ते थित पाई फिरन मिटे नित नीत ॥१॥ जिस व्यक्ति को गुरु द्वारा मन की स्थिरता प्राप्त हो जाती है, उस व्यक्ति के जन्म-मरण के चक्र हमेशा के लिए मिट जाते हैं॥ १ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਫਫਾ ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਤੂ ਆਇਆ ॥ फफा फिरत फिरत तू आइआ ॥ हे जीव ! तू कितनी ही योनियों में भटकता आया है
ਦ੍ਰੁਲਭ ਦੇਹ ਕਲਿਜੁਗ ਮਹਿ ਪਾਇਆ ॥ द्रुलभ देह कलिजुग महि पाइआ ॥ तथा इस कलियुग में तुझे दुर्लभ मनुष्य देह प्राप्त हुई है।
ਫਿਰਿ ਇਆ ਅਉਸਰੁ ਚਰੈ ਨ ਹਾਥਾ ॥ फिरि इआ अउसरु चरै न हाथा ॥ यदि तू मोह-माया के बन्धनों में फँसा रहा तो ऐसा सुनहरी अवसर दुबारा नहीं मिलेगा।
ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਤਉ ਕਟੀਅਹਿ ਫਾਸਾ ॥ नामु जपहु तउ कटीअहि फासा ॥ ईश्वर के नाम की स्तुति करता रह, मृत्यु का बन्धन कट जाएगा।
ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਆਵਨ ਜਾਨੁ ਨ ਹੋਈ ॥ फिरि फिरि आवन जानु न होई ॥ तेरा बार-बार जन्म-मरण का चक्र मिट जाएगा
ਏਕਹਿ ਏਕ ਜਪਹੁ ਜਪੁ ਸੋਈ ॥ एकहि एक जपहु जपु सोई ॥ केवल एक ईश्वर के नाम का चिन्तन कर।
ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਪ੍ਰਭ ਕਰਨੈਹਾਰੇ ॥ करहु क्रिपा प्रभ करनैहारे ॥ हे सृष्टिकर्ता प्रभु ! अपनी कृपा करें
ਮੇਲਿ ਲੇਹੁ ਨਾਨਕ ਬੇਚਾਰੇ ॥੩੮॥ मेलि लेहु नानक बेचारे ॥३८॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि,हे प्रभु ! निसहाय जीव को अपने साथ मिला लो ॥३८॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਬਿਨਉ ਸੁਨਹੁ ਤੁਮ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਗੁਪਾਲ ॥ बिनउ सुनहु तुम पारब्रहम दीन दइआल गुपाल ॥ हे दीनदयाल ! हे गोपाल ! हे पारब्रह्म ! आप मेरी एक विनती सुनो।
ਸੁਖ ਸੰਪੈ ਬਹੁ ਭੋਗ ਰਸ ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਰਵਾਲ ॥੧॥ सुख स्मपै बहु भोग रस नानक साध रवाल ॥१॥ हे नानक ! संतजनों की चरण धूल ही विभिन्न सुखों, धन-पदार्थों एवं अनेक रसों के भोग के समान है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਬਬਾ ਬ੍ਰਹਮੁ ਜਾਨਤ ਤੇ ਬ੍ਰਹਮਾ ॥ बबा ब्रहमु जानत ते ब्रहमा ॥ जो ब्रह्म को समझता है, वही वास्तविक ब्राह्मण है।
ਬੈਸਨੋ ਤੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੁਚ ਧਰਮਾ ॥ बैसनो ते गुरमुखि सुच धरमा ॥ वैष्णव वही है जो गुरु का सान्निध्य लेकर आत्मिक शुद्धता के धर्म का पालन करता है।
ਬੀਰਾ ਆਪਨ ਬੁਰਾ ਮਿਟਾਵੈ ॥ बीरा आपन बुरा मिटावै ॥ जो व्यक्ति अपनी बुराई का नाश कर देता है, वही शूरवीर होता है।
ਤਾਹੂ ਬੁਰਾ ਨਿਕਟਿ ਨਹੀ ਆਵੈ ॥ ताहू बुरा निकटि नही आवै ॥ तथा फिर बुराई उसके निकट नहीं आती।
ਬਾਧਿਓ ਆਪਨ ਹਉ ਹਉ ਬੰਧਾ ॥ बाधिओ आपन हउ हउ बंधा ॥ मनुष्य स्वयं ही अहंकार के बन्धनों में फँसा हुआ है।
ਦੋਸੁ ਦੇਤ ਆਗਹ ਕਉ ਅੰਧਾ ॥ दोसु देत आगह कउ अंधा ॥ परन्तु ज्ञानहीन मनुष्य दूसरों पर दोष लगाता है।
ਬਾਤ ਚੀਤ ਸਭ ਰਹੀ ਸਿਆਨਪ ॥ बात चीत सभ रही सिआनप ॥ बातचीत एवं चतुरता किसी योग्य नहीं।
ਜਿਸਹਿ ਜਨਾਵਹੁ ਸੋ ਜਾਨੈ ਨਾਨਕ ॥੩੯॥ जिसहि जनावहु सो जानै नानक ॥३९॥ हे नानक ! जिसको ईश्वर ज्ञान प्रदान करता है, वही उसको समझता है॥ ३६॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਭੈ ਭੰਜਨ ਅਘ ਦੂਖ ਨਾਸ ਮਨਹਿ ਅਰਾਧਿ ਹਰੇ ॥ भै भंजन अघ दूख नास मनहि अराधि हरे ॥ हे जीव ! अपने मन में उस भगवान् की आराधना कर, जो भय को नष्ट करने वाला और सर्व प्रकार के पाप एवं दु:खों का नाश करने वाला है।
ਸੰਤਸੰਗ ਜਿਹ ਰਿਦ ਬਸਿਓ ਨਾਨਕ ਤੇ ਨ ਭ੍ਰਮੇ ॥੧॥ संतसंग जिह रिद बसिओ नानक ते न भ्रमे ॥१॥ हे नानक ! संतों की संगति में रहकर जिन लोगों के हृदय में प्रभु निवास करते हैं, उनके हर प्रकार के भ्रम समाप्त हो जाते है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਭਭਾ ਭਰਮੁ ਮਿਟਾਵਹੁ ਅਪਨਾ ॥ भभा भरमु मिटावहु अपना ॥ अपना भ्रम मिटा दो,
ਇਆ ਸੰਸਾਰੁ ਸਗਲ ਹੈ ਸੁਪਨਾ ॥ इआ संसारु सगल है सुपना ॥ क्योंकि यह समूचे संसार का साथ स्वप्न के तुल्य है।
ਭਰਮੇ ਸੁਰਿ ਨਰ ਦੇਵੀ ਦੇਵਾ ॥ भरमे सुरि नर देवी देवा ॥ स्वर्ग निवासी पुरुष और देवी-देवता भी भ्रम में पड़ते रहे हैं।
ਭਰਮੇ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਬ੍ਰਹਮੇਵਾ ॥ भरमे सिध साधिक ब्रहमेवा ॥ सिद्ध, साधक एवं ब्रह्मा भी भ्रम में भटकाए हुए हैं।
ਭਰਮਿ ਭਰਮਿ ਮਾਨੁਖ ਡਹਕਾਏ ॥ भरमि भरमि मानुख डहकाए ॥ भटक-भटक कर मनुष्य नष्ट हो गए हैं।
ਦੁਤਰ ਮਹਾ ਬਿਖਮ ਇਹ ਮਾਏ ॥ दुतर महा बिखम इह माए ॥ यह माया का सागर बड़ा विषम एवं तैरने के लिए कठिन है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭ੍ਰਮ ਭੈ ਮੋਹ ਮਿਟਾਇਆ ॥ गुरमुखि भ्रम भै मोह मिटाइआ ॥ हे नानक ! जिसने गुरु की शरण में अपना भ्रम, भय एवं सांसारिक मोह को नष्ट कर दिया है,
ਨਾਨਕ ਤੇਹ ਪਰਮ ਸੁਖ ਪਾਇਆ ॥੪੦॥ नानक तेह परम सुख पाइआ ॥४०॥ वह परम सुख प्राप्त कर लेता है ॥४०॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਮਾਇਆ ਡੋਲੈ ਬਹੁ ਬਿਧੀ ਮਨੁ ਲਪਟਿਓ ਤਿਹ ਸੰਗ ॥ माइआ डोलै बहु बिधी मनु लपटिओ तिह संग ॥ मनुष्य का चंचल मन बहुत प्रकार से माया हेतु डगमगाता रहता है और माया से ही लिपटता रहता है।
ਮਾਗਨ ਤੇ ਜਿਹ ਤੁਮ ਰਖਹੁ ਸੁ ਨਾਨਕ ਨਾਮਹਿ ਰੰਗ ॥੧॥ मागन ते जिह तुम रखहु सु नानक नामहि रंग ॥१॥ नानक कहते हैं कि हे ईश्वर ! जिसे तुम माया माँगने से रोकते हो, उसका नाम से प्रेम हो जाता है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਮਮਾ ਮਾਗਨਹਾਰ ਇਆਨਾ ॥ ਦੇਨਹਾਰ ਦੇ ਰਹਿਓ ਸੁਜਾਨਾ ॥ ममा मागनहार इआना ॥ देनहार दे रहिओ सुजाना ॥ माँगने वाला जीव मूर्ख है। देने वाला दाता देता जा रहा है।
ਜੋ ਦੀਨੋ ਸੋ ਏਕਹਿ ਬਾਰ ॥ जो दीनो सो एकहि बार ॥ जो कुछ भी प्रभु ने देना होता है, वह उसको एक बार ही दे देता है।
ਮਨ ਮੂਰਖ ਕਹ ਕਰਹਿ ਪੁਕਾਰ ॥ मन मूरख कह करहि पुकार ॥ हे मूर्ख मन ! तुम क्यों ऊँची-ऊँची पुकार कर रहे हो ?
ਜਉ ਮਾਗਹਿ ਤਉ ਮਾਗਹਿ ਬੀਆ ॥ जउ मागहि तउ मागहि बीआ ॥ जब कभी भी तुम माँगते हो, तब तुम सांसारिक पदार्थ ही माँगते हो,
ਜਾ ਤੇ ਕੁਸਲ ਨ ਕਾਹੂ ਥੀਆ ॥ जा ते कुसल न काहू थीआ ॥ जिन से किसी को भी प्रसन्नता प्राप्त नहीं हुई।
ਮਾਗਨਿ ਮਾਗ ਤ ਏਕਹਿ ਮਾਗ ॥ मागनि माग त एकहि माग ॥ नानक कहते है कि हे मूर्ख मन ! यदि तूने माँगना ही है तो एक ईश्वर के नाम दान माँग,
ਨਾਨਕ ਜਾ ਤੇ ਪਰਹਿ ਪਰਾਗ ॥੪੧॥ नानक जा ते परहि पराग ॥४१॥ जिससे तेरा संसार सागर पार हो जाएगा ॥ ४१ ॥


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