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ਸਲੋਕ ॥
श्लोक ॥
ਮਤਿ ਪੂਰੀ ਪਰਧਾਨ ਤੇ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਮਨ ਮੰਤ ॥
उत्तम बुद्धि और सबसे श्रेष्ठ प्रतिष्ठा उन्हीं की होती है, जो पूर्ण गुरु की वाणी को अपने हृदय में दृढ़ता से धारण करते हैं।
ਜਿਹ ਜਾਨਿਓ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੁਨਾ ਨਾਨਕ ਤੇ ਭਗਵੰਤ ॥੧॥
हे नानक ! वे जीव बड़े भाग्यशाली हैं, जो अपने प्रभु को जान लेते हैं।॥१॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਮਮਾ ਜਾਹੂ ਮਰਮੁ ਪਛਾਨਾ ॥
जिसने ईश्वर का भेद पा लिया है,
ਭੇਟਤ ਸਾਧਸੰਗ ਪਤੀਆਨਾ ॥
वह संतों की संगति में मिलकर तृप्त हो जाता है।
ਦੁਖ ਸੁਖ ਉਆ ਕੈ ਸਮਤ ਬੀਚਾਰਾ ॥
ऐसा व्यक्ति दुःख-सुख को एक समान समझता है।
ਨਰਕ ਸੁਰਗ ਰਹਤ ਅਉਤਾਰਾ ॥
वह नरक-स्वर्ग में फँसने से बच जाता है।
ਤਾਹੂ ਸੰਗ ਤਾਹੂ ਨਿਰਲੇਪਾ ॥
वह संसार के साथ रहता है, लेकिन फिर भी इससे निर्लिप्त रहता है।
ਪੂਰਨ ਘਟ ਘਟ ਪੁਰਖ ਬਿਸੇਖਾ ॥
उसे श्रेष्ठ प्रभु प्रत्येक हृदय में परिपूर्ण दिखते हैं।
ਉਆ ਰਸ ਮਹਿ ਉਆਹੂ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
हे नानक ! ईश्वर के उस प्रेम में ही उसे सुख प्राप्त होता है
ਨਾਨਕ ਲਿਪਤ ਨਹੀ ਤਿਹ ਮਾਇਆ ॥੪੨॥
और माया उसको प्रभावित नहीं कर सकती ॥ ४२ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਯਾਰ ਮੀਤ ਸੁਨਿ ਸਾਜਨਹੁ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਛੂਟਨੁ ਨਾਹਿ ॥
हे सज्जनों ! ध्यानपूर्वक सुनो। भगवान् के सिमरन बिना किसी को भी मुक्ति प्राप्त नहीं होती।
ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਬੰਧਨ ਕਟੇ ਗੁਰ ਕੀ ਚਰਨੀ ਪਾਹਿ ॥੧॥
हे नानक ! जो लोग गुरु के चरण-स्पर्श करते हैं, उनके (मोह-माया के) बन्धन मिट जाते हैं ॥ १॥
ਪਵੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਯਯਾ ਜਤਨ ਕਰਤ ਬਹੁ ਬਿਧੀਆ ॥
मनुष्य (मोक्ष की प्राप्ति हेतु) अनेक प्रकार के यत्न करता रहता है
ਏਕ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਹ ਲਉ ਸਿਧੀਆ ॥
किन्तु भगवान् का नाम-सिमरन किए बिना उसे सफलता नहीं मिलती।
ਯਾਹੂ ਜਤਨ ਕਰਿ ਹੋਤ ਛੁਟਾਰਾ ॥
जिन यत्नों द्वारा मोक्ष मिल सकता है,
ਉਆਹੂ ਜਤਨ ਸਾਧ ਸੰਗਾਰਾ ॥
वह यत्न यही है कि संतों की संगति की जाए।
ਯਾ ਉਬਰਨ ਧਾਰੈ ਸਭੁ ਕੋਊ ॥
यद्यपि हर कोई अपने मन में सांसारिक बंधनों से मुक्ति का विचार रखता है
ਉਆਹਿ ਜਪੇ ਬਿਨੁ ਉਬਰ ਨ ਹੋਊ ॥
परन्तु उस ईश्वर को स्मरण किए बिना मोक्ष नहीं मिल सकता।
ਯਾਹੂ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਸਮਰਾਥਾ ॥
इस भवसागर को पार करने के लिए ईश्वर ही जहाज के समान है।
ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਨਿਰਗੁਨ ਨਰਨਾਥਾ ॥
हे प्रभु ! गुणविहीन प्राणियों की रक्षा कीजिए।
ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮ ਜਿਹ ਆਪਿ ਜਨਾਈ ॥
हे नानक ! जिन लोगों के मन, कर्म, वचन में ईश्वर स्वयं सूझ उत्पन्न कर देता है,
ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਮਤਿ ਪ੍ਰਗਟੀ ਆਈ ॥੪੩॥
उनकी मति उज्जवल हो जाती है ॥४३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਰੋਸੁ ਨ ਕਾਹੂ ਸੰਗ ਕਰਹੁ ਆਪਨ ਆਪੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥
हे मानव ! किसी अन्य पर क्रोध मत करो और अपने आप पर विचार करो।
ਹੋਇ ਨਿਮਾਨਾ ਜਗਿ ਰਹਹੁ ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਪਾਰਿ ॥੧॥
हे नानक ! यदि तुम इस संसार में विनम्रता सहित रहे तो ईश्वर की कृपा से तेरा भवसागर से उद्धार हो जाएगा ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਰਾਰਾ ਰੇਨ ਹੋਤ ਸਭ ਜਾ ਕੀ ॥ ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਛੁਟੈ ਤੇਰੀ ਬਾਕੀ ॥
गुरु के चरणों में अपना अहंकार समर्पित कर दो। वही गुरु हैं, जिनके सामने पूरी सृष्टि विनम्र हो जाती है। जब तुम अपने अभिमान का त्याग करते हो, तभी तुम्हारे संचित पापों का लेखा-जोखा मिटने लगता है।
ਰਣਿ ਦਰਗਹਿ ਤਉ ਸੀਝਹਿ ਭਾਈ ॥
हे भाई ! इस संसार-रूपी रणभूमि में एवं ईश्वर के दरबार में तभी तुझे सफलता मिल सकती है,
ਜਉ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਾਮ ਨਾਮ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
यदि गुरु के सान्निध्य में रहकर ईश्वर के नाम में वृत्ति लगाएगा।
ਰਹਤ ਰਹਤ ਰਹਿ ਜਾਹਿ ਬਿਕਾਰਾ ॥
तेरे पाप धीरे-धीरे मिट जाएँगे
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੈ ਸਬਦਿ ਅਪਾਰਾ ॥
पूर्ण गुरु के अपार शब्द के चिंतन द्वारा ।
ਰਾਤੇ ਰੰਗ ਨਾਮ ਰਸ ਮਾਤੇ ॥
हे नानक ! वे नाम के प्रेम में मग्न रहते हैं और ईश्वर नाम के रस में मस्त हो जाते हैं ।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਰ ਕੀਨੀ ਦਾਤੇ ॥੪੪॥
नानक कहते हैं, जिन लोगों को गुरु ने ईश्वर का नाम दान प्रदान किया है, उनके समस्त विकार धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं। ॥४४॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਲਾਲਚ ਝੂਠ ਬਿਖੈ ਬਿਆਧਿ ਇਆ ਦੇਹੀ ਮਹਿ ਬਾਸ ॥
इस तन में लोभ, झूठ एवं पापों-विकारों के रोग वास करते हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪੀਆ ਨਾਨਕ ਸੂਖਿ ਨਿਵਾਸ ॥੧॥
हे नानक ! जिस गुरमुख ने हरि-परमेश्वर के नाम का अमृत पान किया है, वह सुखपूर्वक निवास करता है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਲਲਾ ਲਾਵਉ ਅਉਖਧ ਜਾਹੂ ॥
हे ईश्वर ! जिसे भी आप अपने नाम की औषधि लगाते हो,
ਦੂਖ ਦਰਦ ਤਿਹ ਮਿਟਹਿ ਖਿਨਾਹੂ ॥
एक क्षण में ही उसके दुःख-दर्द समाप्त हो जाते हैं।
ਨਾਮ ਅਉਖਧੁ ਜਿਹ ਰਿਦੈ ਹਿਤਾਵੈ ॥
जो व्यक्ति अपने हृदय में ईश्वर के नाम की औषधि से प्रेम करता है,
ਤਾਹਿ ਰੋਗੁ ਸੁਪਨੈ ਨਹੀ ਆਵੈ ॥
स्वप्न में भी रोग उसको नहीं सताते।
ਹਰਿ ਅਉਖਧੁ ਸਭ ਘਟ ਹੈ ਭਾਈ ॥
हे भाई ! ईश्वर के नाम की औषधि प्रत्येक हृदय में विद्यमान है।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਬਿਨੁ ਬਿਧਿ ਨ ਬਨਾਈ ॥
पूर्ण गुरु के अतिरिक्त किसी को भी इसे तैयार करने की विधि नहीं आती।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਸੰਜਮੁ ਕਰਿ ਦੀਆ ॥
हे नानक ! जो इसका ठीक प्रकार से उपयोग करता है और पूरी सावधानी और श्रद्धा से उसके नियमों का पालन करता है,
ਨਾਨਕ ਤਉ ਫਿਰਿ ਦੂਖ ਨ ਥੀਆ ॥੪੫॥
उसे जीवन में फिर कभी कोई दुःख सहन नहीं करना पड़ता। ॥ ४५ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਵਾਸੁਦੇਵ ਸਰਬਤ੍ਰ ਮੈ ਊਨ ਨ ਕਤਹੂ ਠਾਇ ॥
हे नानक ! वासुदेव तो सर्वत्र हैं, ऐसा कोई भी स्थान नहीं है, जहाँ वह उपस्थित न हो।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸੰਗਿ ਹੈ ਨਾਨਕ ਕਾਇ ਦੁਰਾਇ ॥੧॥
समस्त प्राणियों के भीतर एवं बाहर ईश्वर है, उनसे क्या छिपा रह सकता है?॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी।
ਵਵਾ ਵੈਰੁ ਨ ਕਰੀਐ ਕਾਹੂ ॥
किसी से भी वैर मत करो।
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮ ਸਮਾਹੂ ॥
क्योंकि परमात्मा कण-कण में प्रत्येक हृदय में विद्यमान है,
ਵਾਸੁਦੇਵ ਜਲ ਥਲ ਮਹਿ ਰਵਿਆ ॥
वासुदेव सागर एवं धरती में व्यापत है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਵਿਰਲੈ ਹੀ ਗਵਿਆ ॥
गुरु की कृपा से कोई विरला पुरुष ही उनका यशोगान करता है।
ਵੈਰ ਵਿਰੋਧ ਮਿਟੇ ਤਿਹ ਮਨ ਤੇ ॥
उनके मन से वैर-विरोध मिट जाते हैं।
ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੋ ਸੁਨਤੇ ॥
जो व्यक्ति गुरु के सान्निध्य में रहकर भगवान् का भजन-कीर्तन सुनते हैं,
ਵਰਨ ਚਿਹਨ ਸਗਲਹ ਤੇ ਰਹਤਾ ॥
हे नानक ! वे जात-पात एवं रूपरेखा से मुक्त हो जाते हैं
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੋ ਕਹਤਾ ॥੪੬॥
जो व्यक्ति गुरु के माध्यम से भगवान् के नाम का चिन्तन करते हैं। ४६ ॥