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ਤ੍ਰਾਸ ਮਿਟੈ ਜਮ ਪੰਥ ਕੀ ਜਾਸੁ ਬਸੈ ਮਨਿ ਨਾਉ ॥
जिसके हृदय में प्रभु का नाम निवास करता है, उसको मृत्यु का भय नहीं सताता।
ਗਤਿ ਪਾਵਹਿ ਮਤਿ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸ ਮਹਲੀ ਪਾਵਹਿ ਠਾਉ ॥
वह अंततः परम आध्यात्मिक अवस्था को प्राप्त करता है। उसकी बुद्धि दिव्य ज्ञान से प्रकाशित हो जाती है और चित्त एकाग्र होकर सदा ईश्वर के ध्यान में स्थित रहता है।
ਤਾਹੂ ਸੰਗਿ ਨ ਧਨੁ ਚਲੈ ਗ੍ਰਿਹ ਜੋਬਨ ਨਹ ਰਾਜ ॥
अन्तकाल जीव के साथ न ही धन साथ जाता है, न ही घर, जवानी एवं राज्य साथ जाता है।
ਸੰਤਸੰਗਿ ਸਿਮਰਤ ਰਹਹੁ ਇਹੈ ਤੁਹਾਰੈ ਕਾਜ ॥
हे जीव ! संतों की संगति में ईश्वर का भजन करता रह, केवल वही परलोक में तेरे काम आएगा।
ਤਾਤਾ ਕਛੂ ਨ ਹੋਈ ਹੈ ਜਉ ਤਾਪ ਨਿਵਾਰੈ ਆਪ ॥
जब ईश्वर स्वयं तेरे ताप का निवारण करेगा तो तुझे निश्चित ही कोई जलन नहीं होगी।
ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੈ ਨਾਨਕ ਹਮਹਿ ਆਪਹਿ ਮਾਈ ਬਾਪ ॥੩੨॥
हे नानक ! ईश्वर स्वयं ही हमारा पालन-पोषण करते हैं, वहीं हमारे माता-पिता है।॥ ३२ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਥਾਕੇ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਘਾਲਤੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਲਾਥ ॥
स्वेच्छाचारी जीव अनेक विधियों से परिश्रम करके हार-थक गए हैं। उनकी तृप्ति नहीं हुई और न ही उनकी तृष्णा मिटी है।
ਸੰਚਿ ਸੰਚਿ ਸਾਕਤ ਮੂਏ ਨਾਨਕ ਮਾਇਆ ਨ ਸਾਥ ॥੧॥
हे नानक ! शाक्त जीव धन संचित करते-करते मर जाते हैं परन्तु धन-दौलत उनके साथ नहीं जाता ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਥਥਾ ਥਿਰੁ ਕੋਊ ਨਹੀ ਕਾਇ ਪਸਾਰਹੁ ਪਾਵ ॥
कोई भी जीव स्थिर नहीं, तुम क्यों अपने चरण फैलाते हो ?
ਅਨਿਕ ਬੰਚ ਬਲ ਛਲ ਕਰਹੁ ਮਾਇਆ ਏਕ ਉਪਾਵ ॥
केवल धन प्राप्ति तुम बहुत धोखे एवं छल-कपट करते हो।
ਥੈਲੀ ਸੰਚਹੁ ਸ੍ਰਮੁ ਕਰਹੁ ਥਾਕਿ ਪਰਹੁ ਗਾਵਾਰ ॥
हे मूर्ख ! तुम थैली भरने के लिए परिश्रम करते हो और फिर हार-थक कर गिर जाते हो।
ਮਨ ਕੈ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵਈ ਅੰਤੇ ਅਉਸਰ ਬਾਰ ॥
लेकिन अंत में यह सांसारिक धन आपकी आत्मा के लिए किसी काम का नहीं रहेगा।
ਥਿਤਿ ਪਾਵਹੁ ਗੋਬਿਦ ਭਜਹੁ ਸੰਤਹ ਕੀ ਸਿਖ ਲੇਹੁ ॥
इसलिए गोविन्द का भजन संतों के उपदेश का अनुसरण कर जिससे स्थिरता प्राप्त हो जाएगी।
ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਹੁ ਸਦ ਏਕ ਸਿਉ ਇਆ ਸਾਚਾ ਅਸਨੇਹੁ ॥
सदैव एक ईश्वर से प्रेम करो। यही (तेरा) सच्चा प्रेम है।
ਕਾਰਨ ਕਰਨ ਕਰਾਵਨੋ ਸਭ ਬਿਧਿ ਏਕੈ ਹਾਥ ॥
ईश्वर सब कुछ करने वाला एवं जीव से कराने वाला है। समस्त युक्तियाँ केवल उसके वश में है।
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਲਾਵਹੁ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗਹਿ ਨਾਨਕ ਜੰਤ ਅਨਾਥ ॥੩੩॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! जीव तो असहाय एवं विवश हैं, आप उन्हें जिस भी कार्य में लगा देते हो, वे उस तरफ ही लग जाते हैं ॥३३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਦਾਸਹ ਏਕੁ ਨਿਹਾਰਿਆ ਸਭੁ ਕਛੁ ਦੇਵਨਹਾਰ ॥
उसके दासों ने एक ईश्वर को देखा है, जो सब कुछ देने वाला है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਿਮਰਤ ਰਹਹਿ ਨਾਨਕ ਦਰਸ ਅਧਾਰ ॥੧॥
हे नानक ! वह श्वाश-श्वाश से ईश्वर का चिन्तन करते जाते हैं और उसके दर्शन ही उनके जीवन का आधार है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਦਦਾ ਦਾਤਾ ਏਕੁ ਹੈ ਸਭ ਕਉ ਦੇਵਨਹਾਰ ॥
एक परमात्मा ही वह दाता है जो समस्त जीवों को भोजन-पदार्थ देने वाला है।
ਦੇਂਦੇ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵਈ ਅਗਨਤ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥
जीवों को देते समय उसके खजाने में कोई कमी नहीं आती, क्योंकि उसके अक्षय भण्डार भरपूर हैं।
ਦੈਨਹਾਰੁ ਸਦ ਜੀਵਨਹਾਰਾ ॥
वह देने वाला सदैव जीवित है।
ਮਨ ਮੂਰਖ ਕਿਉ ਤਾਹਿ ਬਿਸਾਰਾ ॥
हे मूर्ख मन ! तू उस देने वाले दाता को क्यों भूल रहा है ?
ਦੋਸੁ ਨਹੀ ਕਾਹੂ ਕਉ ਮੀਤਾ ॥
हे मेरे मित्र ! इसमें किसी का दोष नहीं।
ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਬੰਧੁ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਤਾ ॥
क्योंकि माया-मोह के बन्धन ईश्वर ने ही रचे हैं।
ਦਰਦ ਨਿਵਾਰਹਿ ਜਾ ਕੇ ਆਪੇ ॥
हे नानक ! जिस गुरमुख का प्रभु स्वयं दुःख दूर कर देते हैं,
ਨਾਨਕ ਤੇ ਤੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਧ੍ਰਾਪੇ ॥੩੪॥
वह कृतार्थ हो जाता है।॥ ३४॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक।
ਧਰ ਜੀਅਰੇ ਇਕ ਟੇਕ ਤੂ ਲਾਹਿ ਬਿਡਾਨੀ ਆਸ ॥
हे मेरे मन ! तू केवल ईश्वर का सहारा ले तथा किसी दूसरे की आशा को त्याग दे।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਕਾਰਜੁ ਆਵੈ ਰਾਸਿ ॥੧॥
हे नानक ! भगवान् के नाम का ध्यान करने से समस्त कार्य संवर जाते हैं॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਧਧਾ ਧਾਵਤ ਤਉ ਮਿਟੈ ਸੰਤਸੰਗਿ ਹੋਇ ਬਾਸੁ ॥
यदि संतों-महापुरुषों की संगति में निवास हो जाए तो मन की भटकना मिट जाती है।
ਧੁਰ ਤੇ ਕਿਰਪਾ ਕਰਹੁ ਆਪਿ ਤਉ ਹੋਇ ਮਨਹਿ ਪਰਗਾਸੁ ॥
यदि ईश्वर स्वयं आदि से ही कृपा करे तो मन में ज्ञान का प्रकाश हो जाता है।
ਧਨੁ ਸਾਚਾ ਤੇਊ ਸਚ ਸਾਹਾ ॥
जिनके पास सच्चा नाम-धन है, वही सच्चे साहूकार हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਪੂੰਜੀ ਨਾਮ ਬਿਸਾਹਾ ॥
हरि-परमेश्वर का नाम उनकी जीवन-पूंजी होती है और वह उसके नाम का व्यापार करते रहते हैं।
ਧੀਰਜੁ ਜਸੁ ਸੋਭਾ ਤਿਹ ਬਨਿਆ ॥
वही आदमी धैर्यवान होता है और उसे बड़ा यश एवं शोभा मिलती है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸ੍ਰਵਨ ਜਿਹ ਸੁਨਿਆ ॥
जो आदमी अपने कानों से हरि-परमेश्वर का नाम सुनता रहता है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਹ ਘਟਿ ਰਹੇ ਸਮਾਈ ॥
हे नानक ! जिस गुरमुख के अन्तर्मन में भगवान् का नाम निवास कर लेता है,
ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਜਨ ਮਿਲੀ ਵਡਾਈ ॥੩੫॥
उसे ही संसार में यश प्राप्त होता है॥ ३५॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨਾਮੁ ਜਪੁ ਜਪਿਆ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਰੰਗਿ ॥
हे नानक ! जो व्यक्ति भीतर एवं बाहर एकाग्रचित होकर ईश्वर के नाम का जाप करता रहता है,
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਉਪਦੇਸਿਆ ਨਰਕੁ ਨਾਹਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ॥੧॥
पूर्ण गुरु से उपदेश प्राप्त करता है और संतों की सभा में शामिल होता है, ऐसा व्यक्ति कभी नरक में नहीं जाता ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਨੰਨਾ ਨਰਕਿ ਪਰਹਿ ਤੇ ਨਾਹੀ ॥
वह नरक में नहीं पड़ता,
ਜਾ ਕੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਨਾਮੁ ਬਸਾਹੀ ॥
जिस व्यक्ति के मन एवं तन में भगवान् का नाम निवास करता है।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੋ ਜਪਤੇ ॥
जो गुरमुख नाम के खजाने का भजन करते रहते हैं,
ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਨਾ ਓਇ ਖਪਤੇ ॥
वे माया के विष में नष्ट नहीं होते।
ਨੰਨਾਕਾਰੁ ਨ ਹੋਤਾ ਤਾ ਕਹੁ ॥
उनके जीवन-मार्ग में कोई बाधा नहीं आती,
ਨਾਮੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਗੁਰਿ ਦੀਨੋ ਜਾ ਕਹੁ ॥
जिन जिज्ञासुओं को गुरु ने नाम-मंत्र दिया है।