Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 255

Page 255

ਅਪਨੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਭਗਵੰਤਾ ॥ हे भगवान् ! मुझ पर अपनी ऐसी कृपा कर दो ।
ਛਾਡਿ ਸਿਆਨਪ ਬਹੁ ਚਤੁਰਾਈ ॥ मैंने अपनी अधिकतर बुद्धिमत्ता एवं चतुरता त्याग दी है
ਸੰਤਨ ਕੀ ਮਨ ਟੇਕ ਟਿਕਾਈ ॥ और संतों के सहारे पर भरोसा रखो।
ਛਾਰੁ ਕੀ ਪੁਤਰੀ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥ हे नानक ! यहां तक कि एक असहाय, निर्बल व्यक्ति — जो मानो मिट्टी की कठपुतली ही हो, यदि ईश्वर की शरण में आ जाए, तो वह भी परम आध्यात्मिक अवस्था को प्राप्त कर सकता है।
ਨਾਨਕ ਜਾ ਕਉ ਸੰਤ ਸਹਾਈ ॥੨੩॥ संत जिस व्यक्ति की सहायता करते हैं ॥२३॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਜੋਰ ਜੁਲਮ ਫੂਲਹਿ ਘਨੋ ਕਾਚੀ ਦੇਹ ਬਿਕਾਰ ॥ मासूम लोगों पर अत्याचार एवं जुल्म करके मनुष्य बड़ा ही अभिमान करता है और अपने नश्वर शरीर से पाप करता है।
ਅਹੰਬੁਧਿ ਬੰਧਨ ਪਰੇ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਛੁਟਾਰ ॥੧॥ हे नानक ! ऐसा व्यक्ति अहंबुद्धि के कारण बंधनों में फंस जाता है लेकिन उस व्यक्ति की परमेश्वर के नाम से ही मुक्ति होती है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी॥
ਜਜਾ ਜਾਨੈ ਹਉ ਕਛੁ ਹੂਆ ॥ यदि कोई मनुष्य यह सोचता है कि मैं कुछ बन गया हूँ,"
ਬਾਧਿਓ ਜਿਉ ਨਲਿਨੀ ਭ੍ਰਮਿ ਸੂਆ ॥ वह इस अभिमान में यूँ फंस जाता है जिस तरह कोई तोता (दाने के) भ्रम में कमलिनी के साथ फँस जाता है।
ਜਉ ਜਾਨੈ ਹਉ ਭਗਤੁ ਗਿਆਨੀ ॥ यदि कोई व्यक्ति अपने आपको भक्त एवं ज्ञानी समझता है
ਆਗੈ ਠਾਕੁਰਿ ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਮਾਨੀ ॥ तो परलोक में प्रभु उसको थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं देते।
ਜਉ ਜਾਨੈ ਮੈ ਕਥਨੀ ਕਰਤਾ ॥ यदि कोई व्यक्ति अपने आपको धार्मिक प्रचारक समझाता है
ਬਿਆਪਾਰੀ ਬਸੁਧਾ ਜਿਉ ਫਿਰਤਾ ॥ जो व्यक्ति आध्यात्मिक चेतना से शून्य है, वह इस संसार में केवल एक फेरीवाले की भांति घूमता रहता है — चलता तो है, पर पहुंचता कहीं नहीं।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਿਹ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀ ॥ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕਉ ਮਿਲੇ ਮੁਰਾਰੀ ॥੨੪॥ हे नानक ! जो व्यक्ति संतों को संगति में अपने अहंकार का नाश कर देता है, उसे मुरारी प्रभु मिल जाते हैं।॥२४॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक ॥
ਝਾਲਾਘੇ ਉਠਿ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਨਿਸਿ ਬਾਸੁਰ ਆਰਾਧਿ ॥ नानक का कथन है कि (हे जीव !) प्रातःकाल उठकर ईश्वर का नाम जप और रात-दिन उसकी आराधना कर।
ਕਾਰ੍ਹਾ ਤੁਝੈ ਨ ਬਿਆਪਈ ਨਾਨਕ ਮਿਟੈ ਉਪਾਧਿ ॥੧॥ हे नानक! ईश्वर पर अटल विश्वास रखने वाले को कोई चिंता नहीं घेरती और उसका दुर्भाग्य भी प्रभु-कृपा से दूर हो जाता है। ॥१॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ਝਝਾ ਝੂਰਨੁ ਮਿਟੈ ਤੁਮਾਰੋ ॥ ਰਾਮ ਨਾਮ ਸਿਉ ਕਰਿ ਬਿਉਹਾਰੋ ॥ हे भाई, तेरा पश्चाताप मिट जाएगा,अगर तू परमेश्वर के नाम का व्यापार करेगा ।
ਝੂਰਤ ਝੂਰਤ ਸਾਕਤ ਮੂਆ ॥ शाक्त मनुष्य बड़ी चिन्ता एवं दुःख से मर जाता है
ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਹੋਤ ਭਾਉ ਬੀਆ ॥ जिसके हृदय में मोह-माया की प्रीति है।
ਝਰਹਿ ਕਸੰਮਲ ਪਾਪ ਤੇਰੇ ਮਨੂਆ ॥ हे मेरे मन ! तेरे समस्त पाप-विकार एवं दोष मिट जाएँगे
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਥਾ ਸੰਤਸੰਗਿ ਸੁਨੂਆ ॥ जो तू संतों की संगति में अमृत कथा सुनें ।
ਝਰਹਿ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਦ੍ਰੁਸਟਾਈ ॥ हे नानक ! उसके काम-क्रोध इत्यादि समूचे दुष्ट नष्ट हो जाते हैं
ਨਾਨਕ ਜਾ ਕਉ ਕ੍ਰਿਪਾ ਗੁਸਾਈ ॥੨੫॥ जिस व्यक्ति पर परमात्मा कृपा कर देते हैं ॥२५॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक ॥
ਞਤਨ ਕਰਹੁ ਤੁਮ ਅਨਿਕ ਬਿਧਿ ਰਹਨੁ ਨ ਪਾਵਹੁ ਮੀਤ ॥ हे मेरे मित्र ! चाहे तू अनेक प्रकार के उपाय कर ले, परन्तु इस संसार में सदा के लिए नहीं रह सकेगा।
ਜੀਵਤ ਰਹਹੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਜਹੁ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਪਰੀਤਿ ॥੧॥ हे नानक ! यदि हरि-परमेश्वर का भजन करोगे और नाम से प्रेम करोगे तो सदा के लिए आत्मिक जीवन प्राप्त हो जाएगा ॥१॥
ਪਵੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ਞੰਞਾ ਞਾਣਹੁ ਦ੍ਰਿੜੁ ਸਹੀ ਬਿਨਸਿ ਜਾਤ ਏਹ ਹੇਤ ॥ यह बात निश्चित तौर पर समझ ले कि सांसारिक प्रेम का मोह नाश हो जाएगा।
ਗਣਤੀ ਗਣਉ ਨ ਗਣਿ ਸਕਉ ਊਠਿ ਸਿਧਾਰੇ ਕੇਤ ॥ चाहे मैं गणना करता रहूँ किन्तु मैं गिन नहीं सकता कि कितने प्राणी संसार त्याग कर चले गए हैं ?
ਞੋ ਪੇਖਉ ਸੋ ਬਿਨਸਤਉ ਕਾ ਸਿਉ ਕਰੀਐ ਸੰਗੁ ॥ जिस किसी को भी मैं देखता हूँ, वह नाश होने वाला है। इसलिए मैं किससे संगति करूं ?
ਞਾਣਹੁ ਇਆ ਬਿਧਿ ਸਹੀ ਚਿਤ ਝੂਠਉ ਮਾਇਆ ਰੰਗੁ ॥ इस प्रकार अपने मन में उचित समझ ले कि दुनिया के पदार्थों की प्रीति झूठी है।
ਞਾਣਤ ਸੋਈ ਸੰਤੁ ਸੁਇ ਭ੍ਰਮ ਤੇ ਕੀਚਿਤ ਭਿੰਨ ॥ इस तथ्य को वही जानता है और वही संत है, जिसको प्रभु ने दुविधा से खाली किया है।
ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਤਿਹ ਕਢਹੁ ਜਿਹ ਹੋਵਹੁ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ॥ हे ईश्वर ! जिस मनुष्य पर तुम सुप्रसन्न होते हो, उसे तुम अन्धे कुएँ से बाहर निकाल लेते हो।
ਞਾ ਕੈ ਹਾਥਿ ਸਮਰਥ ਤੇ ਕਾਰਨ ਕਰਨੈ ਜੋਗ ॥ ईश्वर, जो सर्वशक्तिमान है और कारणों का कारण है।
ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਉਸਤਤਿ ਕਰਉ ਞਾਹੂ ਕੀਓ ਸੰਜੋਗ ॥੨੬॥ हे नानक ! उस प्रभु की गुणस्तुति करते रहो, जो संयोग बनाने वाला है, ॥२६॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਟੂਟੇ ਬੰਧਨ ਜਨਮ ਮਰਨ ਸਾਧ ਸੇਵ ਸੁਖੁ ਪਾਇ ॥ संतों की निष्काम सेवा करने से जन्म-मरण के चक्र मिट जाते हैं और सुख उपलब्ध हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਮਨਹੁ ਨ ਬੀਸਰੈ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਗੋਬਿਦ ਰਾਇ ॥੧॥ हे नानक ! गुणों का भण्डार गोविन्द-प्रभु उसके मन से कभी भी विस्मृत न हो ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ਟਹਲ ਕਰਹੁ ਤਉ ਏਕ ਕੀ ਜਾ ਤੇ ਬ੍ਰਿਥਾ ਨ ਕੋਇ ॥ केवल ईश्वर का ध्यान करो; जिसके दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਮੁਖਿ ਹੀਐ ਬਸੈ ਜੋ ਚਾਹਹੁ ਸੋ ਹੋਇ ॥ यदि प्रभु तेरे मन, शरीर, मुख एवं हृदय में बस जाए तो जो कुछ भी तुम चाहते हो, वही मिल जाएगा।
ਟਹਲ ਮਹਲ ਤਾ ਕਉ ਮਿਲੈ ਜਾ ਕਉ ਸਾਧ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ॥ जिन पर संत कृपा करते हैं, उन्हें भगवान् की सेवा का अवसर मिल जाता है।
ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਤਉ ਬਸੈ ਜਉ ਆਪਨ ਹੋਹਿ ਦਇਆਲ ॥ संतों की संगति में मनुष्य तभी निवास करता है, जब ईश्वर स्वयं दयाल होते हैं।
ਟੋਹੇ ਟਾਹੇ ਬਹੁ ਭਵਨ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸੁਖੁ ਨਾਹਿ ॥ मैंने अनेकों लोक ढूंढ लिए हैं परन्तु ईश्वर के नाम बिना सुख-शांति नहीं।
ਟਲਹਿ ਜਾਮ ਕੇ ਦੂਤ ਤਿਹ ਜੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਸਮਾਹਿ ॥ जो व्यक्ति संतों की संगति में बसता है, यमदूत उससे दूर हट जाते हैं।
ਬਾਰਿ ਬਾਰਿ ਜਾਉ ਸੰਤ ਸਦਕੇ ॥ हे नानक ! मैं बार-बार संतों पर बलिहारी जाता हूँ,
ਨਾਨਕ ਪਾਪ ਬਿਨਾਸੇ ਕਦਿ ਕੇ ॥੨੭॥ जिनके द्वारा मेरे कई जन्मों के किए अशुभ कर्मों के पाप नाश हो गए हैं ॥२७॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਠਾਕ ਨ ਹੋਤੀ ਤਿਨਹੁ ਦਰਿ ਜਿਹ ਹੋਵਹੁ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ॥ हे ईश्वर ! जिन पर आप सुप्रसन्न हो जाते हो, उनके मार्ग में आपके दर पर पहुँचते हुए कोई रुकावट नहीं आती।
ਜੋ ਜਨ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੇ ਕਰੇ ਨਾਨਕ ਤੇ ਧਨਿ ਧੰਨਿ ॥੧॥ हे नानक ! वह पुरुष भाग्यशाली हैं, जिनको ईश्वर ने अपना बना लिया है॥ १॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top