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ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਠਠਾ ਮਨੂਆ ਠਾਹਹਿ ਨਾਹੀ ॥
वह किसी के भी मन को दुःख नहीं पहुँचाते
ਜੋ ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਏਕਹਿ ਲਪਟਾਹੀ ॥
जो मनुष्य सब कुछ त्याग कर एक ईश्वर से जुड़े हुए हैं।
ਠਹਕਿ ਠਹਕਿ ਮਾਇਆ ਸੰਗਿ ਮੂਏ ॥
जो लोग सांसारिक माया से उलझे हुए हैं, वह मृत हैं
ਉਆ ਕੈ ਕੁਸਲ ਨ ਕਤਹੂ ਹੂਏ ॥
और उनको कहीं भी प्रसन्नता नहीं मिलती।
ਠਾਂਢਿ ਪਰੀ ਸੰਤਹ ਸੰਗਿ ਬਸਿਆ ॥
जो व्यक्ति संतों की संगति में वास करता है, उसका मन शीतल हो जाता है
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਤਹਾ ਜੀਅ ਰਸਿਆ ॥
और नाम अमृत उसके हृदय को बड़ा मीठा लगता है।
ਠਾਕੁਰ ਅਪੁਨੇ ਜੋ ਜਨੁ ਭਾਇਆ ॥
हे नानक ! जो व्यक्ति अपने ईश्वर को अच्छा लगता है,
ਨਾਨਕ ਉਆ ਕਾ ਮਨੁ ਸੀਤਲਾਇਆ ॥੨੮॥
उसका मन शीतल हो जाता है ॥ २८ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਡੰਡਉਤਿ ਬੰਦਨ ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਸਰਬ ਕਲਾ ਸਮਰਥ ॥
हे सर्वकला सम्पूर्ण प्रभु ! मैं पूरी विनम्रता से आपके सामने पुनः-पुनः प्रणाम करता हूँ।
ਡੋਲਨ ਤੇ ਰਾਖਹੁ ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਨਕ ਦੇ ਕਰਿ ਹਥ ॥੧॥
कृपा मुझे अपना समर्थन देकर माया के मोह में विचलित होने से बचा ले॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਡਡਾ ਡੇਰਾ ਇਹੁ ਨਹੀ ਜਹ ਡੇਰਾ ਤਹ ਜਾਨੁ ॥
हे जीव ! यह जगत् तेरा निवास स्थान नहीं उस स्थान को पहचान, जहाँ तेरा वास्तविक घर है।
ਉਆ ਡੇਰਾ ਕਾ ਸੰਜਮੋ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨੁ ॥
गुरु शब्द द्वारा तू उस निवास में पहुँचने की विधि को जान ले।
ਇਆ ਡੇਰਾ ਕਉ ਸ੍ਰਮੁ ਕਰਿ ਘਾਲੈ ॥
संसार में निवास हेतु मनुष्य कड़ा परिश्रम करता है,
ਜਾ ਕਾ ਤਸੂ ਨਹੀ ਸੰਗਿ ਚਾਲੈ ॥
किन्तु मृत्यु आने पर इसका थोड़ा-सा भी उसके साथ नहीं जाता।
ਉਆ ਡੇਰਾ ਕੀ ਸੋ ਮਿਤਿ ਜਾਨੈ ॥
उस निवास-स्थान की मर्यादा वही जानता है,
ਜਾ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਪੂਰਨ ਭਗਵਾਨੈ ॥
जिस पर पूर्ण भगवान् अपनी कृपा-दृष्टि करता है।
ਡੇਰਾ ਨਿਹਚਲੁ ਸਚੁ ਸਾਧਸੰਗ ਪਾਇਆ ॥
यह निवास स्थान निश्चित एवं सच्चा है और यह सत्संग द्वारा ही प्राप्त होता है।
ਨਾਨਕ ਤੇ ਜਨ ਨਹ ਡੋਲਾਇਆ ॥੨੯॥
हे नानक ! वह सेवक जो इस शाश्वत निवास को संतों की संगति द्वारा प्राप्त कर लेते हैं, उनका हृदय विचलित नहीं होता। ॥२९ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਢਾਹਨ ਲਾਗੇ ਧਰਮ ਰਾਇ ਕਿਨਹਿ ਨ ਘਾਲਿਓ ਬੰਧ ॥
जब धर्मराज यमराज ध्वस्त करने लगते हैं तो कोई भी उसके मार्ग में रुकावट नहीं डाल सकता।
ਨਾਨਕ ਉਬਰੇ ਜਪਿ ਹਰੀ ਸਾਧਸੰਗਿ ਸਨਬੰਧ ॥੧॥
हे नानक ! जो व्यक्ति सत्संग में संबंध जोड़ कर ईश्वर की आराधना करते हैं, उनका भवसागर से उद्धार हो जाता है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਢਢਾ ਢੂਢਤ ਕਹ ਫਿਰਹੁ ਢੂਢਨੁ ਇਆ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
तुम परमात्मा को ढूंढने के लिए कहाँ फिर रहे हो ? उसकी खोज तुम्हें तो इस हृदय में ही करनी है।
ਸੰਗਿ ਤੁਹਾਰੈ ਪ੍ਰਭੁ ਬਸੈ ਬਨੁ ਬਨੁ ਕਹਾ ਫਿਰਾਹਿ ॥
ईश्वर तेरे साथ ही रहते हैं, तुम वन-वन में क्यों भटकते फिरते हो ?
ਢੇਰੀ ਢਾਹਹੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਅਹੰਬੁਧਿ ਬਿਕਰਾਲ ॥
सत्संग में प्रवेश कर अपनी अहंबुद्धि के विकराल ढेर को ध्वस्त कर दो।
ਸੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ਸਹਜੇ ਬਸਹੁ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਨਿਹਾਲ ॥
इसप्रकार तुम सुख-शांति प्राप्त करोगे तथा प्रभु के दर्शन करके प्रसन्न होगे।
ਢੇਰੀ ਜਾਮੈ ਜਮਿ ਮਰੈ ਗਰਭ ਜੋਨਿ ਦੁਖ ਪਾਇ ॥
जिसके भीतर अहंकार (अहम्) का ढेर जमा हुआ है, वह व्यक्ति जन्म और मरण के चक्र में फंसा रहता है और बार-बार गर्भ में आने का दुःख सहता है।
ਮੋਹ ਮਗਨ ਲਪਟਤ ਰਹੈ ਹਉ ਹਉ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥
जो व्यक्ति दुनिया के मोह में मस्त हुआ है और अहंकार एवं अहंत्व में फँसा है, वह जगत् में जन्मता-मरता रहता है।
ਢਹਤ ਢਹਤ ਅਬ ਢਹਿ ਪਰੇ ਸਾਧ ਜਨਾ ਸਰਨਾਇ ॥
धीरे-धीरे, नियमित अभ्यास और पूर्ण समर्पण के साथ जो जीव गुरु की चरण-शरण में आते हैं, वे मोह-माया से मुक्त होकर दिव्यता को प्राप्त करते हैं।
ਦੁਖ ਕੇ ਫਾਹੇ ਕਾਟਿਆ ਨਾਨਕ ਲੀਏ ਸਮਾਇ ॥੩੦॥
हे नानक ! ईश्वर ने मेरे दुःख-क्लेश के फंदे काट दिए हैं और मुझे अपने में लीन कर लिया है॥ ३०॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਜਹ ਸਾਧੂ ਗੋਬਿਦ ਭਜਨੁ ਕੀਰਤਨੁ ਨਾਨਕ ਨੀਤ ॥
हे नानक ! जहाँ संत-महांपुरुष प्रतिदिन गोबिन्द के नाम का भजन-कीर्त्तन करते रहते हैं।
ਣਾ ਹਉ ਣਾ ਤੂੰ ਣਹ ਛੁਟਹਿ ਨਿਕਟਿ ਨ ਜਾਈਅਹੁ ਦੂਤ ॥੧॥
यमराज ने अपने दूतों से कहा है कि उस निवास के निकट मत जाना, अन्यथा न ही मेरा और न ही तुम्हारा बचाव होगा"॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਣਾਣਾ ਰਣ ਤੇ ਸੀਝੀਐ ਆਤਮ ਜੀਤੈ ਕੋਇ ॥
यदि कोई व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है, तो वह जीवन युद्ध को विजय कर लेता है।
ਹਉਮੈ ਅਨ ਸਿਉ ਲਰਿ ਮਰੈ ਸੋ ਸੋਭਾ ਦੂ ਹੋਇ ॥
जो व्यक्ति अपने अहंत्व एवं द्वैतवाद के साथ लड़ता मर जाता है, वही योद्धा है।
ਮਣੀ ਮਿਟਾਇ ਜੀਵਤ ਮਰੈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਉਪਦੇਸ ॥
जो व्यक्ति अपने अहंत्व को त्याग देता है, वह गुरु के उपदेश द्वारा जीवित ही मोह-माया से विमुख रहता है।
ਮਨੂਆ ਜੀਤੈ ਹਰਿ ਮਿਲੈ ਤਿਹ ਸੂਰਤਣ ਵੇਸ ॥
वह अपने मन को जीत कर ईश्वर से मिल जाता है और उसकी वीरता के लिए उसको सम्मान की वेशभूषा मिलती है।
ਣਾ ਕੋ ਜਾਣੈ ਆਪਣੋ ਏਕਹਿ ਟੇਕ ਅਧਾਰ ॥
किसी पदार्थ को भी वह अपना नहीं समझता। एक ईश्वर ही उसका सहारा एवं आसरा होता है।
ਰੈਣਿ ਦਿਣਸੁ ਸਿਮਰਤ ਰਹੈ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਪੁਰਖੁ ਅਪਾਰ ॥
वह रात-दिन अनन्त ईश्वर की आराधना करता रहता है।
ਰੇਣ ਸਗਲ ਇਆ ਮਨੁ ਕਰੈ ਏਊ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥
जो ऐसा कर्म वह करता है, वह इतना विनम्र हो जाता है कि अपने को सब की धूल ही समझने लगता है
ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਨਾਨਕ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇ ॥੩੧॥
हे नानक ! ईश्वर की आज्ञा को समझ कर वह सदैव सुख प्राप्त करता है और जो कुछ उसके भाग्य में लिखा होता है, उसको प्राप्त कर लेता है ॥३१॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਅਰਪਉ ਤਿਸੈ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲਾਵੈ ਮੋਹਿ ॥
मैं अपना तन, मन एवं धन उसको समर्पित करता हूँ, जो मुझे मेरे प्रभु से मिला दे।
ਨਾਨਕ ਭ੍ਰਮ ਭਉ ਕਾਟੀਐ ਚੂਕੈ ਜਮ ਕੀ ਜੋਹ ॥੧॥
हे नानक ! क्योंकि प्रभु-मिलाप से दुविधा एवं भय नाश हो जाते हैं और मृत्यु का आतंक भी दूर हो जाता है॥१ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਤਤਾ ਤਾ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਿ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਗੋਬਿਦ ਰਾਇ ॥
उस परमात्मा से प्रीति करो जो गुणों का भण्डार एवं सृष्टि का स्वामी है।
ਫਲ ਪਾਵਹਿ ਮਨ ਬਾਛਤੇ ਤਪਤਿ ਤੁਹਾਰੀ ਜਾਇ ॥
तुझे अपने मनोवांछित फल प्राप्त होंगे और तृष्णा मिट जाएगी।