Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 246

Page 246

ਇਸਤਰੀ ਪੁਰਖ ਕਾਮਿ ਵਿਆਪੇ ਜੀਉ ਰਾਮ ਨਾਮ ਕੀ ਬਿਧਿ ਨਹੀ ਜਾਣੀ ॥ इसतरी पुरख कामि विआपे जीउ राम नाम की बिधि नही जाणी ॥ स्त्री एवं पुरुष भोग-विलास में फँसे हुए हैं और राम के नाम का भजन करने की विधि नहीं जानते।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਭਾਈ ਖਰੇ ਪਿਆਰੇ ਜੀਉ ਡੂਬਿ ਮੁਏ ਬਿਨੁ ਪਾਣੀ ॥ मात पिता सुत भाई खरे पिआरे जीउ डूबि मुए बिनु पाणी ॥ वे अपने प्रियजनों माता, पिता, पुत्र एवं भाई से अत्यधिक भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं और आत्मिक रूप से ऐसे मृतप्रायः हो जाते हैं, मानो वे इस भावनात्मक आसक्ति के निर्जल समुद्र में डूब गए हों।
ਡੂਬਿ ਮੁਏ ਬਿਨੁ ਪਾਣੀ ਗਤਿ ਨਹੀ ਜਾਣੀ ਹਉਮੈ ਧਾਤੁ ਸੰਸਾਰੇ ॥ डूबि मुए बिनु पाणी गति नही जाणी हउमै धातु संसारे ॥ जो प्राणी मोक्ष के मार्ग को नहीं जानते और अहंकार में जगत् के अन्दर भटकते रहते हैं, वे जल के बिना ही डूबकर प्राण त्याग देते हैं।
ਜੋ ਆਇਆ ਸੋ ਸਭੁ ਕੋ ਜਾਸੀ ਉਬਰੇ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰੇ ॥ जो आइआ सो सभु को जासी उबरे गुर वीचारे ॥ जो कोई भी इस संसार में आए हैं, वे सभी चले जाएँगे। लेकिन जो गुरु जी का चिन्तन करते हैं, उनका उद्धार हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ਆਪਿ ਤਰੈ ਕੁਲ ਤਾਰੇ ॥ गुरमुखि होवै राम नामु वखाणै आपि तरै कुल तारे ॥ जो व्यक्ति गुरमुख बनकर राम के नाम का भजन करता है, ऐसा व्यक्ति स्वयं पार हो जाता है और अपने समूचे वंश का भी उद्धार कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰਮਤਿ ਮਿਲੇ ਪਿਆਰੇ ॥੨॥ नानक नामु वसै घट अंतरि गुरमति मिले पिआरे ॥२॥ हे नानक ! नाम उसकी अन्तरात्मा में वास कर जाता है और गुरु के उपदेश द्वारा वह प्रियतम से मिल जाता है॥ २॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕੋ ਥਿਰੁ ਨਾਹੀ ਜੀਉ ਬਾਜੀ ਹੈ ਸੰਸਾਰਾ ॥ राम नाम बिनु को थिरु नाही जीउ बाजी है संसारा ॥ राम के नाम बिना कुछ भी स्थिर नहीं यह संसार एक लीला ही है।
ਦ੍ਰਿੜੁ ਭਗਤਿ ਸਚੀ ਜੀਉ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਵਾਪਾਰਾ ॥ द्रिड़ु भगति सची जीउ राम नामु वापारा ॥ भगवान् की भक्ति को अपने हृदय में सुदृढ़ कर और केवल राम के नाम का ही व्यापार कर।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਵਾਪਾਰਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ਗੁਰਮਤੀ ਧਨੁ ਪਾਈਐ ॥ राम नामु वापारा अगम अपारा गुरमती धनु पाईऐ ॥ राम के नाम का व्यापार अगम्य एवं अनन्त है। गुरु के उपदेश द्वारा प्रभु नाम रूपी धन प्राप्त हो जाता है।
ਸੇਵਾ ਸੁਰਤਿ ਭਗਤਿ ਇਹ ਸਾਚੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਈਐ ॥ सेवा सुरति भगति इह साची विचहु आपु गवाईऐ ॥ भगवान् की सेवा, भगवान् में सुरति लगाना और भगवान् की भक्ति ही सत्य है, जिससे हम अपने अन्तर्मन से अहंत्व को दूर कर सकते हैं।
ਹਮ ਮਤਿ ਹੀਣ ਮੂਰਖ ਮੁਗਧ ਅੰਧੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ॥ हम मति हीण मूरख मुगध अंधे सतिगुरि मारगि पाए ॥ हम जीव बुद्धिहीन, मूर्ख, अज्ञानी माया-मोह में अन्धे हैं। सतगुरु ने हमें सन्मार्ग दिखा दिया है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਵੇ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੩॥ नानक गुरमुखि सबदि सुहावे अनदिनु हरि गुण गाए ॥३॥ हे नानक ! गुरुमुख ही शब्द से सुन्दर बने हैं और वे हमेशा ही भगवान् की महिमा-स्तुति करते रहते है ॥३॥
ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਰੇ ਆਪਿ ਜੀਉ ਆਪੇ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰੇ ॥ आपि कराए करे आपि जीउ आपे सबदि सवारे ॥ प्रभु स्वयं ही सब कुछ करता और कराता है। वह स्वयं ही मनुष्य को अपने नाम से संवारता है।
ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਆਪਿ ਸਬਦੁ ਜੀਉ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਭਗਤ ਪਿਆਰੇ ॥ आपे सतिगुरु आपि सबदु जीउ जुगु जुगु भगत पिआरे ॥ ईश्वर स्वयं सतगुरु है और स्वयं ही शब्द है। युग-युग में प्रभु के भक्त उसके प्रिय हैं।
ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਭਗਤ ਪਿਆਰੇ ਹਰਿ ਆਪਿ ਸਵਾਰੇ ਆਪੇ ਭਗਤੀ ਲਾਏ ॥ जुगु जुगु भगत पिआरे हरि आपि सवारे आपे भगती लाए ॥ युग-युग में वह अपने प्रिय भक्तों को स्वयं शोभायमान करता है। वह स्वयं ही उनको अपनी भक्ति में लगाता है।
ਆਪੇ ਦਾਨਾ ਆਪੇ ਬੀਨਾ ਆਪੇ ਸੇਵ ਕਰਾਏ ॥ आपे दाना आपे बीना आपे सेव कराए ॥ वह स्वयं ही परम बुद्धिमान और स्वयं ही सब कुछ देखने वाला है। वह स्वयं ही मनुष्य से अपनी भक्ति कराता है।
ਆਪੇ ਗੁਣਦਾਤਾ ਅਵਗੁਣ ਕਾਟੇ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਸਾਏ ॥ आपे गुणदाता अवगुण काटे हिरदै नामु वसाए ॥ प्रभु स्वयं ही गुणों के दाता हैं और बुराईयों का नाश करते हैं। अपने नाम को वह स्वयं ही मनुष्य के हृदय में बसाते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਚੇ ਵਿਟਹੁ ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ॥੪॥੪॥ नानक सद बलिहारी सचे विटहु आपे करे कराए ॥४॥४॥ हे नानक ! मैं उस सत्य के पुंज ईश्वर पर हमेशा बलिहारी जाता हूँ, जो स्वयं ही सब कुछ करता और जीवों से कराते हैं॥ ४॥ ४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ गउड़ी महला ३ ॥ राग गौड़ी, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਕਰਿ ਪਿਰਾ ਜੀਉ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥ गुर की सेवा करि पिरा जीउ हरि नामु धिआए ॥ हे मेरे प्रिय मन ! गुरु की सेवा और भगवान् के नाम का ध्यान करते रहो।
ਮੰਞਹੁ ਦੂਰਿ ਨ ਜਾਹਿ ਪਿਰਾ ਜੀਉ ਘਰਿ ਬੈਠਿਆ ਹਰਿ ਪਾਏ ॥ मंञहु दूरि न जाहि पिरा जीउ घरि बैठिआ हरि पाए ॥ हे मेरे प्रिय मन ! मुझसे दूर मत जाना और ह्रदय-घर में बैठकर ही तू अपने ईश्वर को प्राप्त कर ले।
ਘਰਿ ਬੈਠਿਆ ਹਰਿ ਪਾਏ ਸਦਾ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ਸਹਜੇ ਸਤਿ ਸੁਭਾਏ ॥ घरि बैठिआ हरि पाए सदा चितु लाए सहजे सति सुभाए ॥ सहज ही सत्य से हमेशा प्रभु से अपनी वृति लगाअपने हृदय-घर में बसाते हुए उसे प्राप्त कर लेगा।
ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਖਰੀ ਸੁਖਾਲੀ ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥ गुर की सेवा खरी सुखाली जिस नो आपि कराए ॥ गुरु की सेवा बड़ी सुखदायक है। गुरु की सेवा केवल वही व्यक्ति करता है, जिससे प्रभु स्वयं कराते है।
ਨਾਮੋ ਬੀਜੇ ਨਾਮੋ ਜੰਮੈ ਨਾਮੋ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ नामो बीजे नामो जमै नामो मंनि वसाए ॥ वह नाम के बीज को बोता है, नाम ही उसके भीतर अंकुरित होता है और नाम को ही वह अपने हृदय में बसा लेता है।
ਨਾਨਕ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਏ ॥੧॥ नानक सचि नामि वडिआई पूरबि लिखिआ पाए ॥१॥ हे नानक ! सत्य नाम से ही शोभा प्राप्त होती है। मनुष्य वही प्राप्त करता है, जो विधाता के विधान द्वारा उसके लिए लिखा होता है ॥१॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੀਠਾ ਪਿਰਾ ਜੀਉ ਜਾ ਚਾਖਹਿ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥ हरि का नामु मीठा पिरा जीउ जा चाखहि चितु लाए ॥ हे मेरे प्रिय मन ! ईश्वर का नाम मधुर है। (लेकिन यह बोध तभी तुझे होगा) जब तू चित्त से लगा कर इसे (नाम-रस) चखोगे।
ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖੁ ਮੁਯੇ ਜੀਉ ਅਨ ਰਸ ਸਾਦ ਗਵਾਏ ॥ रसना हरि रसु चाखु मुये जीउ अन रस साद गवाए ॥ हे मेरी अभागी जीभ, भगवान् के नाम का अमृत चखो और दूसरे रसों के आस्वादन त्याग दे।
ਸਦਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਏ ਜਾ ਹਰਿ ਭਾਏ ਰਸਨਾ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਏ ॥ सदा हरि रसु पाए जा हरि भाए रसना सबदि सुहाए ॥ जब प्रभु को अच्छा लगेगा, तू हरि-रस को सदैव के लिए पा लोगे और तेरी जिह्वा उसके नाम से पवित्र हो जाएगी।
ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਨਾਮਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥ नामु धिआए सदा सुखु पाए नामि रहै लिव लाए ॥ जो व्यक्ति नाम का ध्यान करता है और अपनी वृति नाम पर केन्द्रित रखता है, वह सदैव सुख पाता है।
ਨਾਮੇ ਉਪਜੈ ਨਾਮੇ ਬਿਨਸੈ ਨਾਮੇ ਸਚਿ ਸਮਾਏ ॥ नामे उपजै नामे बिनसै नामे सचि समाए ॥ प्रभु की इच्छा से प्राणी संसार में जन्म लेता है, उसकी इच्छा से ही वह प्राण त्याग देता है और उसकी इच्छा से ही वह सत्य में समा जाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਗੁਰਮਤੀ ਪਾਈਐ ਆਪੇ ਲਏ ਲਵਾਏ ॥੨॥ नानक नामु गुरमती पाईऐ आपे लए लवाए ॥२॥ हे नानक ! नाम गुरु की शिक्षा द्वारा प्राप्त होता है। अपने नाम से वह स्वयं ही मिलाता है॥ २॥
ਏਹ ਵਿਡਾਣੀ ਚਾਕਰੀ ਪਿਰਾ ਜੀਉ ਧਨ ਛੋਡਿ ਪਰਦੇਸਿ ਸਿਧਾਏ ॥ एह विडाणी चाकरी पिरा जीउ धन छोडि परदेसि सिधाए ॥ हे प्रिय मन ! माया के पीछे भागना अत्यंत कष्टप्रद है — ठीक वैसे ही जैसे कोई पराये की सेवा में लगा हो और उसे अपनी प्रिय दुल्हन को अकेला छोड़कर विदेश जाना पड़े।
ਦੂਜੈ ਕਿਨੈ ਸੁਖੁ ਨ ਪਾਇਓ ਪਿਰਾ ਜੀਉ ਬਿਖਿਆ ਲੋਭਿ ਲੁਭਾਏ ॥ दूजै किनै सुखु न पाइओ पिरा जीउ बिखिआ लोभि लुभाए ॥ हे प्रिय मन ! द्वैतवाद में कभी किसी ने सुख नहीं पाया। तुम पाप एवं लालच की तृष्णा करते हो।
ਬਿਖਿਆ ਲੋਭਿ ਲੁਭਾਏ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ਓਹੁ ਕਿਉ ਕਰਿ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥ बिखिआ लोभि लुभाए भरमि भुलाए ओहु किउ करि सुखु पाए ॥ जो विष एवं लोभ के बहकाए हुए हैं और भ्रम में कुमार्गगामी हो गए हैं, वह किस तरह सुख पा सकते हैं?
ਚਾਕਰੀ ਵਿਡਾਣੀ ਖਰੀ ਦੁਖਾਲੀ ਆਪੁ ਵੇਚਿ ਧਰਮੁ ਗਵਾਏ ॥ चाकरी विडाणी खरी दुखाली आपु वेचि धरमु गवाए ॥ सांसारिक धन के पीछे भागना पराए की सेवा करने जैसा अत्यंत पीड़ादायक है; इसमें प्राणी स्वयं को बेच देता है और अपने धर्म से विमुख हो जाता है।


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