Page 245
                    ਗੁਰ ਆਗੈ ਕਰਉ ਬਿਨੰਤੀ ਜੇ ਗੁਰ ਭਾਵੈ ਜਿਉ ਮਿਲੈ ਤਿਵੈ ਮਿਲਾਈਐ ॥
                   
                    
                                              
                        मैं गुरु के समक्ष विनती करती हूँ यदि उनको अच्छा लगे। जैसे भी चाहे मुझे अपने साथ मिला ले।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਲਏ ਸੁਖਦਾਤਾ ਆਪਿ ਮਿਲਿਆ ਘਰਿ ਆਏ ॥
                   
                    
                                              
                        सुखों के दाता, प्रभु ने मुझे अपने साथ मिला लिया है और वह स्वयं ही मेरे हृदय घर में आकर मुझे मिल गया है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਸਦਾ ਸੁਹਾਗਣਿ ਨਾ ਪਿਰੁ ਮਰੈ ਨ ਜਾਏ ॥੪॥੨॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! ऐसी जीव-स्त्री हमेशा सौभाग्यवती रहती है। प्रियतम प्रभु न कभी मरता है और न ही अलग होता है।॥४॥२॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, तीसरे गुरु:३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਾਮਣਿ ਹਰਿ ਰਸਿ ਬੇਧੀ ਜੀਉ ਹਰਿ ਕੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        जीव-स्त्री सहज-स्वभाव ही हरि-रस में लिप्त हो गई है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਮੋਹਨਿ ਮੋਹਿ ਲੀਆ ਜੀਉ ਦੁਬਿਧਾ ਸਹਜਿ ਸਮਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        मनमोहन प्रभु ने उसको मुग्ध कर दिया है और उसकी दुविधा सहज ही नाश हो गई है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਦੁਬਿਧਾ ਸਹਜਿ ਸਮਾਏ ਕਾਮਣਿ ਵਰੁ ਪਾਏ ਗੁਰਮਤੀ ਰੰਗੁ ਲਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        जीव-स्त्री सहज ही अपनी दुविधा निवृत करके और अपने पति-प्रभु को प्राप्त होकर गुरु के उपदेश द्वारा आनन्द प्राप्त करती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਹੁ ਸਰੀਰੁ ਕੂੜਿ ਕੁਸਤਿ ਭਰਿਆ ਗਲ ਤਾਈ ਪਾਪ ਕਮਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        यह शरीर गले तक झूठ एवं असत्य से भरा हुआ है और पाप करता रहता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਜਿਤੁ ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਉਪਜੈ ਬਿਨੁ ਭਗਤੀ ਮੈਲੁ ਨ ਜਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु के माध्यम से भक्ति करने से ही सहज ध्वनि उत्पन्न होती है। प्रभु की भक्ति के बिना विकारों की मैल दूर नहीं होती।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਪਿਰਹਿ ਪਿਆਰੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! जो जीव-स्त्री अपने अहंकार को अपनी अन्तरात्मा से निकाल देती है, वह अपने प्रियतम की प्रिया हो जाती है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਾਮਣਿ ਪਿਰੁ ਪਾਇਆ ਜੀਉ ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਇ ਪਿਆਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु की प्रीति एवं प्रेम द्वारा पत्नी ने अपना प्रियतम स्वामी प्राप्त कर लिया है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰੈਣਿ ਸੁਖਿ ਸੁਤੀ ਜੀਉ ਅੰਤਰਿ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु को अपनी अन्तरात्मा एवं हृदय से लगाने से वह रात को सुख से सोती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅੰਤਰਿ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ਮਿਲੀਐ ਪਿਆਰੇ ਅਨਦਿਨੁ ਦੁਖੁ ਨਿਵਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु को अपनी अन्तरात्मा एवं हृदय में रात-दिन स्थापित करने से वह अपने प्रियतम से मिल जाती है और उसके दुःख दूर हो जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅੰਤਰਿ ਮਹਲੁ ਪਿਰੁ ਰਾਵੇ ਕਾਮਣਿ ਗੁਰਮਤੀ ਵੀਚਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु के उपदेश का चिन्तन करने से अपने हृदय-मंदिर में दुल्हन अपने दूल्हे (प्रभु) का प्रेम पाती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਪੀਆ ਦਿਨ ਰਾਤੀ ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਰਿ ਨਿਵਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        दिन-रात वह नाम अमृत का पान करती है और अपनी दुविधा का नाश करती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਸਚਿ ਮਿਲੀ ਸੋਹਾਗਣਿ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਅਪਾਰੇ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! गुरु के अनन्त प्रेम द्वारा सौभाग्यवती पत्नी अपने सत्यस्वरूप स्वामी को मिल जाती है ॥२॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਵਹੁ ਦਇਆ ਕਰੇ ਜੀਉ ਪ੍ਰੀਤਮ ਅਤਿ ਪਿਆਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        हे मेरे प्रियतम ! मुझ पर अपनी दया करो और अपने दर्शन प्रदान करें।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਾਮਣਿ ਬਿਨਉ ਕਰੇ ਜੀਉ ਸਚਿ ਸਬਦਿ ਸੀਗਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        यह एक सौभाग्यशाली आत्मा-दुल्हन की प्रार्थना है, जो स्वयं को शाश्वत परमात्मा के नाम और गुरु के वचनों से सुशोभित करती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਚਿ ਸਬਦਿ ਸੀਗਾਰੇ ਹਉਮੈ ਮਾਰੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਾਰਜ ਸਵਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        सत्य नाम से श्रृंगारी हुई जीव-स्त्री अपने अहंकार को मिटा देती है और गुरु के माध्यम से उसके काम संवर जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਏਕੋ ਸਚਾ ਸੋਈ ਬੂਝੈ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        युग-युगों में वह एक प्रभु ही सत्य है और गुरु के प्रदान किए हुए विचार द्वारा वह जाना जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨਮੁਖਿ ਕਾਮਿ ਵਿਆਪੀ ਮੋਹਿ ਸੰਤਾਪੀ ਕਿਸੁ ਆਗੈ ਜਾਇ ਪੁਕਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        स्वेच्छाचारी जीव-स्त्री कामवासना के विलास में लीन एवं सांसारिक मोह की पीड़ित की हुई है। वह किसके समक्ष जाकर पुकार करे ?
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਮਨਮੁਖਿ ਥਾਉ ਨ ਪਾਏ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਅਤਿ ਪਿਆਰੇ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! परम प्यारे गुरु के बिना स्वेच्छाचारी नारी को कोई सुख का ठिकाना नहीं मिलता ॥३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮੁੰਧ ਇਆਣੀ ਭੋਲੀ ਨਿਗੁਣੀਆ ਜੀਉ ਪਿਰੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जीव-स्त्री मूर्ख, भोली एवं गुणविहीन है। पति-प्रभु अगम्य एवं अनन्त है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲੀਐ ਜੀਉ ਆਪੇ ਬਖਸਣਹਾਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        ईश्वर स्वयं ही अपने मिलन में मिलाता है और स्वयं ही क्षमाशील है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅਵਗਣ ਬਖਸਣਹਾਰਾ ਕਾਮਣਿ ਕੰਤੁ ਪਿਆਰਾ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥
                   
                    
                                              
                        जीव-स्त्री का प्रियतम पति दोषों को क्षमा करने वाला है और कण-कण में उपस्थित है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪ੍ਰੇਮ ਪ੍ਰੀਤਿ ਭਾਇ ਭਗਤੀ ਪਾਈਐ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु ने मुझे यह बोध करा दिया है कि प्रभु प्रेम, प्रीति एवं भक्ति द्वारा पाया जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਦਾ ਅਨੰਦਿ ਰਹੈ ਦਿਨ ਰਾਤੀ ਅਨਦਿਨੁ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
                   
                    
                                              
                        जो जीव-स्त्री अपने पति के स्नेह में रात-दिन लीन रहती है, वह रात-दिन प्रसन्न रहती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਸਾ ਧਨ ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੪॥੩॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! जो जीव-स्त्री नाम के नौ भण्डार (नवनिधि) प्राप्त कर लेती है, वह सहज ही ईश्वर को अपने पति के तौर पर पा लेती है॥ ४ ॥ ३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, तीसरे गुरु: ३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਾਇਆ ਸਰੁ ਸਬਲੁ ਵਰਤੈ ਜੀਉ ਕਿਉ ਕਰਿ ਦੁਤਰੁ ਤਰਿਆ ਜਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        माया का सागर अत्यधिक हलचल मचा रहा है, भयानक जगत् सागर किस तरह पार किया जा सकता है?
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਕਰਿ ਬੋਹਿਥਾ ਜੀਉ ਸਬਦੁ ਖੇਵਟੁ ਵਿਚਿ ਪਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        हे प्राणी ! ईश्वर के नाम का जहाज बना और गुरु के शब्द को नाविक के रूप में इसमें रख।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਬਦੁ ਖੇਵਟੁ ਵਿਚਿ ਪਾਏ ਹਰਿ ਆਪਿ ਲਘਾਏ ਇਨ ਬਿਧਿ ਦੁਤਰੁ ਤਰੀਐ ॥
                   
                    
                                              
                        जब गुरु के शब्द का नाविक उसमें रख लिया जाता है तो ईश्वर स्वयं भवसागर से पार कर देता है। इस विधि से अगम्य सागर पार किया जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਵੈ ਜੀਵਤਿਆ ਇਉ ਮਰੀਐ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु के माध्यम से ही प्रभु की भक्ति प्राप्त होती है और इस तरह मनुष्य जीवित ही मोह-माया से मृत रहता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਖਿਨ ਮਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਕਿਲਵਿਖ ਕਾਟੇ ਭਏ ਪਵਿਤੁ ਸਰੀਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        एक क्षण में ही राम का नाम उसके पाप मिटा देता है और उसका शरीर पवित्र हो जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ਕੰਚਨ ਭਏ ਮਨੂਰਾ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! राम के नाम द्वारा उद्धार हो जाता है और मन शुद्ध हो जाता है। १॥