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ਤਤੁ ਨ ਚੀਨਹਿ ਬੰਨਹਿ ਪੰਡ ਪਰਾਲਾ ॥੨॥
ततु न चीनहि बंनहि पंड पराला ॥२॥
वह वास्तविकता को नहीं समझते और और अपने आप को धार्मिक विवादों के व्यर्थ गट्ठरों से लादते रहते हैं।॥ २॥
ਮਨਮੁਖ ਅਗਿਆਨਿ ਕੁਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ॥
मनमुख अगिआनि कुमारगि पाए ॥
अज्ञानी स्वेच्छाचारी जीव कुमार्ग पर ही पड़ा रहता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿਆ ਬਹੁ ਕਰਮ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
हरि नामु बिसारिआ बहु करम द्रिड़ाए ॥
वह ईश्वर के नाम को विस्मृत कर देता है और (मोह-माया के) अनेकों कर्म दृढ़ करता है।
ਭਵਜਲਿ ਡੂਬੇ ਦੂਜੈ ਭਾਏ ॥੩॥
भवजलि डूबे दूजै भाए ॥३॥
ऐसे स्वेच्छाचारी द्वैतवाद के कारण भयानक संसार सागर में डूब जाते हैं।॥ ३॥
ਮਾਇਆ ਕਾ ਮੁਹਤਾਜੁ ਪੰਡਿਤੁ ਕਹਾਵੈ ॥
माइआ का मुहताजु पंडितु कहावै ॥
धन-दौलत का अभिलाषी अपने आपको पण्डित कहलवाता है।
ਬਿਖਿਆ ਰਾਤਾ ਬਹੁਤੁ ਦੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥
बिखिआ राता बहुतु दुखु पावै ॥
पापों में अनुरक्त हुआ वे बड़े कष्ट सहन करता है।
ਜਮ ਕਾ ਗਲਿ ਜੇਵੜਾ ਨਿਤ ਕਾਲੁ ਸੰਤਾਵੈ ॥੪॥
जम का गलि जेवड़ा नित कालु संतावै ॥४॥
यमदूत की रस्सी उसकी गर्दन के निकट है और मृत्यु हमेशा ही उसको पीड़ित करती है॥ ४॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਮਕਾਲੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ॥
गुरमुखि जमकालु नेड़ि न आवै ॥
लेकिन गुरमुख के निकट यमदूत नहीं आता।
ਹਉਮੈ ਦੂਜਾ ਸਬਦਿ ਜਲਾਵੈ ॥
हउमै दूजा सबदि जलावै ॥
गुरु के वचन के माध्यम से, उनके अहंकार एवं द्वैतवाद को जला देता है।
ਨਾਮੇ ਰਾਤੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥੫॥
नाम राते हरि गुण गावै ॥५॥
गुरमुख नाम में मग्न होकर प्रभु की महिमा करता रहता है॥ ५॥
ਮਾਇਆ ਦਾਸੀ ਭਗਤਾ ਕੀ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ॥
माइआ दासी भगता की कार कमावै ॥
माया प्रभु के भक्तों की सेविका है और उनकी भरपूर सेवा करती है।
ਚਰਣੀ ਲਾਗੈ ਤਾ ਮਹਲੁ ਪਾਵੈ ॥
चरणी लागै ता महलु पावै ॥
यदि मनुष्य भक्तों के चरण-स्पर्श करता है तो उसे प्रभु का स्वरुप मिल जाता है।
ਸਦ ਹੀ ਨਿਰਮਲੁ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵੈ ॥੬॥
सद ही निरमलु सहजि समावै ॥६॥
ऐसा व्यक्ति सदैव ही पवित्र है और सहज ही सत्य में समा जाता है॥ ६ ॥
ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਣਹਿ ਸੇ ਧਨਵੰਤ ਦਿਸਹਿ ਜੁਗ ਮਾਹੀ ॥
हरि कथा सुणहि से धनवंत दिसहि जुग माही ॥
जो व्यक्ति हरि कथा सुनता है, वह इस संसार में धनवान दिखाई देता है।
ਤਿਨ ਕਉ ਸਭਿ ਨਿਵਹਿ ਅਨਦਿਨੁ ਪੂਜ ਕਰਾਹੀ ॥
तिन कउ सभि निवहि अनदिनु पूज कराही ॥
सभी उसको प्रणाम करते हैं और लोग दिन-रात उसकी पूजा-अर्चना करते हैं।
ਸਹਜੇ ਗੁਣ ਰਵਹਿ ਸਾਚੇ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥੭॥
सहजे गुण रवहि साचे मन माही ॥७॥
वह अपने हृदय में सहज ही सत्य परमेश्वर का यश गायन करते हैं।॥ ७ ॥
ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਇਆ ॥
पूरै सतिगुरि सबदु सुणाइआ ॥
पूर्ण सतगुरु जी ने अपना उपदेश सुनाया है,
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮੇਟੇ ਚਉਥੈ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥
त्रै गुण मेटे चउथै चितु लाइआ ॥
जिससे (माया के) तीन गुणों का प्रभाव लुप्त हो गया है और मनुष्य का मन आत्मिक अवस्था से जुड़ गया है।
ਨਾਨਕ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਬ੍ਰਹਮ ਮਿਲਾਇਆ ॥੮॥੪॥
नानक हउमै मारि ब्रहम मिलाइआ ॥८॥४॥
हे नानक ! अपना अहंकार निवृत्त करके वह ब्रह्म में मिल गया है ॥८॥४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी महला ३ ॥
राग गौड़ी, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਬ੍ਰਹਮਾ ਵੇਦੁ ਪੜੈ ਵਾਦੁ ਵਖਾਣੈ ॥
ब्रहमा वेदु पड़ै वादु वखाणै ॥
पण्डित ब्रह्मा के द्वारा रचित वेदों का अध्ययन करता है और और दार्शनिक वाद-विवाद का वर्णन करता है।
ਅੰਤਰਿ ਤਾਮਸੁ ਆਪੁ ਨ ਪਛਾਣੈ ॥
अंतरि तामसु आपु न पछाणै ॥
उसकी अंतरात्मा में अज्ञान का अंधकार विद्यमान है, जिससे वह अपने आपको नहीं समझता।
ਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਏ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵਖਾਣੈ ॥੧॥
ता प्रभु पाए गुर सबदु वखाणै ॥१॥
ऐसा व्यक्ति केवल गुरु के वचन का उच्चारण और पालन करे तभी उसे प्रभु मिल सकते हैं॥ १॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਕਰਉ ਫਿਰਿ ਕਾਲੁ ਨ ਖਾਇ ॥
गुर सेवा करउ फिरि कालु न खाइ ॥
हे भाई ! गुरु की सेवा करो, तब तुझे मृत्यु अपना ग्रास नहीं बनाएगी।
ਮਨਮੁਖ ਖਾਧੇ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनमुख खाधे दूजै भाइ ॥१॥ रहाउ ॥
क्योंकि माया-मोह की लगन ने स्वेच्छाचारियों को निगल लिया है ॥१॥ रहाउ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰਾਣੀ ਅਪਰਾਧੀ ਸੀਧੇ ॥
गुरमुखि प्राणी अपराधी सीधे ॥
गुरु के आश्रय में आने से पापी पुरुष भी पवित्र-पावन हो गए हैं।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਅੰਤਰਿ ਸਹਜਿ ਰੀਧੇ ॥
गुर कै सबदि अंतरि सहजि रीधे ॥
गुरु के शब्द से आत्मा परमात्मा से जुड़ जाती है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸੀਧੇ ॥੨॥
मेरा प्रभु पाइआ गुर कै सबदि सीधे ॥२॥
गुरु के शब्द से मनुष्य सुधर जाता है और प्रभु को प्राप्त कर लेता है ॥२॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੇਲੇ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ॥
सतिगुरि मेले प्रभि आपि मिलाए ॥
ईश्वर उनको अपने साथ मिला लेता है, जिन्हें सतगुरु जी मिलाना चाहते हैं।
ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਸਾਚੇ ਕੈ ਮਨਿ ਭਾਏ ॥
मेरे प्रभ साचे कै मनि भाए ॥
वे मेरे सत्यस्वरूप ईश्वर के हृदय को अच्छे लगने लगते हैं।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥੩॥
हरि गुण गावहि सहजि सुभाए ॥३॥
वह सहज ही प्रभु की गुणस्तुति करते हैं॥ ३॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਾਚੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥
बिनु गुर साचे भरमि भुलाए ॥
गुरु के बिना प्राणी दुविधा में भूले हुए हैं।
ਮਨਮੁਖ ਅੰਧੇ ਸਦਾ ਬਿਖੁ ਖਾਏ ॥
मनमुख अंधे सदा बिखु खाए ॥
ज्ञानहीन स्वेच्छाचारी पुरुष सदैव ही (मोह-माया का) विष सेवन करते हैं।
ਜਮ ਡੰਡੁ ਸਹਹਿ ਸਦਾ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ॥੪॥
जम डंडु सहहि सदा दुखु पाए ॥४॥
वे यमदूत का दण्ड सहन करते हैं और सदैव ही दुःखी होते हैं।॥ ४॥
ਜਮੂਆ ਨ ਜੋਹੈ ਹਰਿ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ॥
जमूआ न जोहै हरि की सरणाई ॥
लेकिन यदि मनुष्य परमेश्वर की शरण प्राप्त कर ले तो यमदूत उसे दुःखी नहीं करता।
ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਸਚਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
हउमै मारि सचि लिव लाई ॥
अपने अहंत्व से निवृत्ति पाकर मनुष्य की वृति प्रभु के साथ लग जाती है।
ਸਦਾ ਰਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੫॥
सदा रहै हरि नामि लिव लाई ॥५॥
वह सदैव ही अपनी वृति ईश्वर नाम के साथ लगाकर रखता है॥ ५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਜਨ ਨਿਰਮਲ ਪਵਿਤਾ ॥
सतिगुरु सेवहि से जन निरमल पविता ॥
जो पुरुष सतगुरु की सेवा करते हैं, वही पुरुष पवित्र एवं पावन हैं।
ਮਨ ਸਿਉ ਮਨੁ ਮਿਲਾਇ ਸਭੁ ਜਗੁ ਜੀਤਾ ॥
मन सिउ मनु मिलाइ सभु जगु जीता ॥
अपने मन को गुरु के मन के साथ जोड़ने से वे सारे जगत् पर विजय पा लेते हैं।
ਇਨ ਬਿਧਿ ਕੁਸਲੁ ਤੇਰੈ ਮੇਰੇ ਮੀਤਾ ॥੬॥
इन बिधि कुसलु तेरै मेरे मीता ॥६॥
हे मेरे मित्र ! इस विधि से तुझे भी आनन्द प्राप्त होगा।॥ ६॥
ਸਤਿਗੁਰੂ ਸੇਵੇ ਸੋ ਫਲੁ ਪਾਏ ॥
सतिगुरू सेवे सो फलु पाए ॥
जो व्यक्ति सतगुरु की निष्ठापूर्वक सेवा करता है, वह फल प्राप्त कर लेता है।
ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥
हिरदै नामु विचहु आपु गवाए ॥
उसके हृदय में नाम विद्यमान है और उसके भीतर से अहंकार दूर हो जाता है।
ਅਨਹਦ ਬਾਣੀ ਸਬਦੁ ਵਜਾਏ ॥੭॥
अनहद बाणी सबदु वजाए ॥७॥
उसके भीतर अनहद वाणी का शब्द गूंजता रहता है॥ ७॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਕਵਨੁ ਕਵਨੁ ਨ ਸੀਧੋ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
सतिगुर ते कवनु कवनु न सीधो मेरे भाई ॥
हे मेरे भाई ! कौन-कौन सा व्यक्ति सतगुरु की शरण में नहीं सुधरा ?
ਭਗਤੀ ਸੀਧੇ ਦਰਿ ਸੋਭਾ ਪਾਈ ॥
भगती सीधे दरि सोभा पाई ॥
प्रभु की भक्ति द्वारा वह उसके दरबार में शोभा पाते हैं
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ॥੮॥੫॥
नानक राम नामि वडिआई ॥८॥५॥
हे नानक ! राम के नाम से बड़ी प्रशंसा मिलती है ॥८॥५॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी महला ३ ॥
राग गौड़ी, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਵਖਾਣੈ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਇ ॥
त्रै गुण वखाणै भरमु न जाइ ॥
जो व्यक्ति त्रिगुणात्मक माया का वर्णन करता है, उसका भ्रम दूर नहीं होता।
ਬੰਧਨ ਨ ਤੂਟਹਿ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਇ ॥
बंधन न तूटहि मुकति न पाइ ॥
उसके मोह-माया के बंधन समाप्त नहीं होते और उसे मुक्ति नहीं मिलती।
ਮੁਕਤਿ ਦਾਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਜੁਗ ਮਾਹਿ ॥੧॥
मुकति दाता सतिगुरु जुग माहि ॥१॥
इस युग में मुक्ति देने वाला सतगुरु ही है॥ १॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰਾਣੀ ਭਰਮੁ ਗਵਾਇ ॥
गुरमुखि प्राणी भरमु गवाइ ॥
गुरमुख प्राणी का भ्रम दूर हो जाता है।
ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਉਪਜੈ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सहज धुनि उपजै हरि लिव लाइ ॥१॥ रहाउ ॥
परमेश्वर के साथ वृति लगाने से सहज ध्वनि उत्पन्न हो जाती है॥ १॥ रहाउ॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਕਾਲੈ ਕੀ ਸਿਰਿ ਕਾਰਾ ॥
त्रै गुण कालै की सिरि कारा ॥
जो व्यक्ति त्रिगुणात्मक (माया) के वश में होते हैं उनके सिर पर मृत्यु मंडराती रहती है।