Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 232

Page 232

ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਹਿ ਉਪਾਵਣਹਾਰਾ ॥ नामु न चेतहि उपावणहारा ॥ वे सृजनहार प्रभु के नाम को स्मरण नहीं करते।
ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਫਿਰਿ ਵਾਰੋ ਵਾਰਾ ॥੨॥ मरि जमहि फिरि वारो वारा ॥२॥ इसलिए वह बार-बार जीवन मृत्यु के चक्र में फँसकर जन्म लेते और मरते हैं।॥ २॥
ਅੰਧੇ ਗੁਰੂ ਤੇ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਈ ॥ अंधे गुरू ते भरमु न जाई ॥ आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी गुरु अपने अनुयायी के भटकते मन को शांत नहीं कर सकता।
ਮੂਲੁ ਛੋਡਿ ਲਾਗੇ ਦੂਜੈ ਭਾਈ ॥ मूलु छोडि लागे दूजै भाई ॥ संसार के मूल सृष्टिकर्ता को त्याग कर प्राणी द्वैतवाद से जुड़े हुए हैं।
ਬਿਖੁ ਕਾ ਮਾਤਾ ਬਿਖੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਈ ॥੩॥ बिखु का माता बिखु माहि समाई ॥३॥ माया के विष में मग्न हुआ जीव माया के विष में ही समा जाता है॥ ३॥
ਮਾਇਆ ਕਰਿ ਮੂਲੁ ਜੰਤ੍ਰ ਭਰਮਾਏ ॥ माइआ करि मूलु जंत्र भरमाए ॥ माया को मूल सहारा जानकर प्राणी भटकते फिरते हैं।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਵਿਸਰਿਆ ਦੂਜੈ ਭਾਏ ॥ हरि जीउ विसरिआ दूजै भाए ॥ माया के मोह में उन्होंने पूज्य परमेश्वर को विस्मृत कर दिया है।
ਜਿਸੁ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਏ ॥੪॥ जिसु नदरि करे सो परम गति पाए ॥४॥ ईश्वर जिस प्राणी पर कृपा-दृष्टि करता है, वह परमगति प्राप्त कर लेता है॥ ४ ॥
ਅੰਤਰਿ ਸਾਚੁ ਬਾਹਰਿ ਸਾਚੁ ਵਰਤਾਏ ॥ अंतरि साचु बाहरि साचु वरताए ॥ जिसके हृदय में सत्य विद्यमान है, वह बाहर भी सत्य ही बांटता है।
ਸਾਚੁ ਨ ਛਪੈ ਜੇ ਕੋ ਰਖੈ ਛਪਾਏ ॥ साचु न छपै जे को रखै छपाए ॥ सत्य का आनन्द छिपा नहीं रहता चाहे मनुष्य इसको कितना ही छिपा कर ही रखे।
ਗਿਆਨੀ ਬੂਝਹਿ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥੫॥ गिआनी बूझहि सहजि सुभाए ॥५॥ ज्ञानी सहज ही सत्य का ज्ञान प्राप्त कर लेता है॥ ५॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚਿ ਰਹਿਆ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥ गुरमुखि साचि रहिआ लिव लाए ॥ गुरुमुख सत्य में वृति लगाकर रखता है।
ਹਉਮੈ ਮਾਇਆ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥ हउमै माइआ सबदि जलाए ॥ ऐसा व्यक्ति अहंकार एवं माया का मोह ईश्वर के नाम से जला देता है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥੬॥ मेरा प्रभु साचा मेलि मिलाए ॥६॥ मेरा सत्यस्वरूप परमेश्वर गुरुमुख जीव को अपने साथ जोड़ता है।॥ ६॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥ सतिगुरु दाता सबदु सुणाए ॥ नाम की देन देने वाला सतगुरु अपना शब्द ही सुनाता है।
ਧਾਵਤੁ ਰਾਖੈ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ॥ धावतु राखै ठाकि रहाए ॥ वह माया के पीछे भागते मन पर विराम लगाकर उसे नियंत्रित करता है।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਸੋਝੀ ਪਾਏ ॥੭॥ पूरे गुर ते सोझी पाए ॥७॥ पूर्ण गुरु से प्राणी ज्ञान प्राप्त करता है ॥७॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਿਰਜਿ ਜਿਨਿ ਗੋਈ ॥ आपे करता स्रिसटि सिरजि जिनि गोई ॥ सृजनहार प्रभु स्वयं सृष्टि की रचना करता है और स्वयं ही इसका विनाश भी करता है।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥ तिसु बिनु दूजा अवरु न कोई ॥ उस प्रभु के बिना दूसरा कोई नहीं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥੮॥੬॥ नानक गुरमुखि बूझै कोई ॥८॥६॥ हे नानक ! कोई गुरमुख ही इस तथ्य को समझता है ॥८॥ ६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ गउड़ी महला ३ ॥ राग गौड़ी, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਕੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵੈ ॥ नामु अमोलकु गुरमुखि पावै ॥ परमेश्वर का अमूल्य नाम गुरमुख ही प्राप्त करता है।
ਨਾਮੋ ਸੇਵੇ ਨਾਮਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵੈ ॥ नामो सेवे नामि सहजि समावै ॥ वह नाम की सेवा करता रहता है और नाम में सहज ही समा जाता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਰਸਨਾ ਨਿਤ ਗਾਵੈ ॥ अम्रितु नामु रसना नित गावै ॥ वह नित्य ही अपनी जिह्वा से अमृतमयी नाम का जाप करता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਸੋ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਵੈ ॥੧॥ जिस नो क्रिपा करे सो हरि रसु पावै ॥१॥ जिस पर भगवान् अपनी कृपा करते हैं, वही व्यक्ति हरि रस प्राप्त करता है॥१॥
ਅਨਦਿਨੁ ਹਿਰਦੈ ਜਪਉ ਜਗਦੀਸਾ ॥ अनदिनु हिरदै जपउ जगदीसा ॥ हे जिज्ञासु ! अपने मन में रात-दिन सृष्टि के स्वामी जगदीश का जाप करो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵਉ ਪਰਮ ਪਦੁ ਸੂਖਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरमुखि पावउ परम पदु सूखा ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से मैंने परम पद प्राप्त किया है। ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਿਰਦੈ ਸੂਖੁ ਭਇਆ ਪਰਗਾਸੁ ॥ हिरदै सूखु भइआ परगासु ॥ उस गुरमुख के मन में प्रसन्नता प्रकट हो जाती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਵਹਿ ਸਚੁ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥ गुरमुखि गावहि सचु गुणतासु ॥ जो व्यक्ति गुणों के भण्डार सत्यस्वरूप परमेश्वर का भजन करते है,
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ਨਿਤ ਹੋਵਹਿ ਦਾਸੁ ॥ दासनि दास नित होवहि दासु ॥ वह सदा अपने ईश्वर के सेवकों के सेवकों का सेवक बना रहता है।
ਗ੍ਰਿਹ ਕੁਟੰਬ ਮਹਿ ਸਦਾ ਉਦਾਸੁ ॥੨॥ ग्रिह कुट्मब महि सदा उदासु ॥२॥ वह अपने गृह एवं परिवार में रहते हुए भी हमेशा निर्लिप्त रहते हैं॥ २॥
ਜੀਵਨ ਮੁਕਤੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੋ ਹੋਈ ॥ जीवन मुकतु गुरमुखि को होई ॥ कोई विरला गुरमुख ही जीवन में मोह-माया के बन्धनों से मुक्त होता है।
ਪਰਮ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਵੈ ਸੋਈ ॥ परम पदारथु पावै सोई ॥ केवल ऐसे विरक्त व्यक्ति को ही भगवान् के नाम का परम धन प्राप्त होता है।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮੇਟੇ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਈ ॥ त्रै गुण मेटे निरमलु होई ॥ वह माया के त्रिगुणों को मिटा कर पवित्र हो जाता है।
ਸਹਜੇ ਸਾਚਿ ਮਿਲੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥੩॥ सहजे साचि मिलै प्रभु सोई ॥३॥ वह सहज ही उस सत्यस्वरूप परमेश्वर में लीन हो जाता है॥ ३ ॥
ਮੋਹ ਕੁਟੰਬ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥ मोह कुट्मब सिउ प्रीति न होइ ॥ उसका अपने परिवार से मोह एवं प्रेम नहीं रहता।
ਜਾ ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਆ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥ जा हिरदै वसिआ सचु सोइ ॥ जिस व्यक्ति के हृदय में सत्य का निवास हो जाता है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਅਸਥਿਰੁ ਹੋਇ ॥ गुरमुखि मनु बेधिआ असथिरु होइ ॥ उस गुरमुख जीव का मन भगवान् की भक्ति में लग जाता है और वह स्थिर रहता है।
ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਬੂਝੈ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥੪॥ हुकमु पछाणै बूझै सचु सोइ ॥४॥ जो प्रभु की आज्ञा को पहचानता है, वह सत्य को समझ लेता है॥ ४॥
ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ तूं करता मै अवरु न कोइ ॥ हे प्रभु ! आप स्रष्टा हैं, मैं किसी दूसरे को नहीं जानता।
ਤੁਝੁ ਸੇਵੀ ਤੁਝ ਤੇ ਪਤਿ ਹੋਇ ॥ तुझु सेवी तुझ ते पति होइ ॥ हे नाथ ! मैं आपकी ही सेवा करता हूँ और आपके द्वारा ही मैं शोभा पाता हूँ।
ਕਿਰਪਾ ਕਰਹਿ ਗਾਵਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥ किरपा करहि गावा प्रभु सोइ ॥ यदि वह प्रभु दया करे तो मैं उसका यश गायन करता हूँ।
ਨਾਮ ਰਤਨੁ ਸਭ ਜਗ ਮਹਿ ਲੋਇ ॥੫॥ नाम रतनु सभ जग महि लोइ ॥५॥ समूचे जगत् में (प्रभु के) नाम रत्न का ही प्रकाश है॥ ५॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਾਣੀ ਮੀਠੀ ਲਾਗੀ ॥ गुरमुखि बाणी मीठी लागी ॥ गुरुमुख को वाणी बहुत मीठी लगती है।
ਅੰਤਰੁ ਬਿਗਸੈ ਅਨਦਿਨੁ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥ अंतरु बिगसै अनदिनु लिव लागी ॥ उसका हृदय प्रफुल्लित हो जाता है और रात-दिन उसकी वृति इस पर केन्द्रित हुई रहती है।
ਸਹਜੇ ਸਚੁ ਮਿਲਿਆ ਪਰਸਾਦੀ ॥ सहजे सचु मिलिआ परसादी ॥ गुरु की कृपा से सत्य नाम सहज ही मिल जाता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਪੂਰੈ ਵਡਭਾਗੀ ॥੬॥ सतिगुरु पाइआ पूरै वडभागी ॥६॥ पूर्ण सौभाग्य से प्राणी को सतगुरु मिलता है ॥६॥
ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਦੁਰਮਤਿ ਦੁਖ ਨਾਸੁ ॥ हउमै ममता दुरमति दुख नासु ॥ अहंकार, मोह, दुर्बुद्धि एवं दुःख नाश हो जाते हैं,
ਜਬ ਹਿਰਦੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥ जब हिरदै राम नाम गुणतासु ॥ जब गुणों के सागर प्रभु का नाम हृदय में बसता है
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਧਿ ਪ੍ਰਗਟੀ ਪ੍ਰਭ ਜਾਸੁ ॥ गुरमुखि बुधि प्रगटी प्रभ जासु ॥ जब प्रभु के चरण हृदय में बस जाते है,
ਜਬ ਹਿਰਦੈ ਰਵਿਆ ਚਰਣ ਨਿਵਾਸੁ ॥੭॥ जब हिरदै रविआ चरण निवासु ॥७॥ ईश्वर का भजन एवं उसका यश गायन करने से गुरमुख की बुद्धि जागृत हो जाती है।॥७॥
ਜਿਸੁ ਨਾਮੁ ਦੇਇ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ॥ जिसु नामु देइ सोई जनु पाए ॥ जिसे प्रभु नाम प्रदान करते हैं, केवल वही पुरुष ही इसको पाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੇਲੇ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥ गुरमुखि मेले आपु गवाए ॥ जो गुरु के माध्यम से अपने अहंकार को त्याग देता है, उनको प्रभु अपने साथ मिला लेते हैं।
ਹਿਰਦੈ ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਵਸਾਏ ॥ हिरदै साचा नामु वसाए ॥ अपने हृदय में वह सत्य नाम को बसा लेते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਹਜੇ ਸਾਚਿ ਸਮਾਏ ॥੮॥੭॥ नानक सहजे साचि समाए ॥८॥७॥ हे नानक ! वे सहज ही सत्य में समा जाते हैं ॥८॥७॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ गउड़ी महला ३ ॥ राग गौड़ी, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਮਨ ਹੀ ਮਨੁ ਸਵਾਰਿਆ ਭੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥ मन ही मनु सवारिआ भै सहजि सुभाइ ॥ जिस व्यक्ति ने ईश्वर के भय में सहज स्वभाव ही मन को संवार लिया है,


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