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ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਜਾ ਕਉ ਬਿਸਰੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਤਾਹੂ ਕਉ ਪੀਰ ॥
जिस व्यक्ति को राम का नाम भूल जाता है, ऐसे व्यक्ति को ही दुख-क्लेशों की पीड़ा लग जाती है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਰਵਹਿ ਸੇ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो व्यक्ति संतों की संगति में मिलकर प्रभु का चिन्तन करते हैं, वहीं गुणवान एवं उदारचित हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕਉ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਿਦੈ ਬੁਧਿ ॥
गुरु की प्रेरणा से जिसके हृदय में ब्रह्म-ज्ञान विद्यमान है,
ਤਾ ਕੈ ਕਰ ਤਲ ਨਵ ਨਿਧਿ ਸਿਧਿ ॥੧॥
उसके हाथ की हथेली में नवनिधि एवं तमाम सिद्धियाँ विद्यमान हैं।॥ १॥
ਜੋ ਜਾਨਹਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਧਨੀ ॥
जो व्यक्ति गुणों के स्वामी हरि-प्रभु को जान लेता है,
ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਤਾ ਕੈ ਕਮੀ ॥੨॥
उसके घर में किसी पदार्थ की कोई कमी नहीं रहती ॥२॥
ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥
जो सृष्टिकर्ता परमेश्वर की पहचान कर लेता है,
ਸਰਬ ਸੂਖ ਰੰਗ ਮਾਣਿਆ ॥੩॥
वे सर्व सुख एवं आनंद प्राप्त करता है॥ ३॥
ਹਰਿ ਧਨੁ ਜਾ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਵਸੈ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਸੰਗਿ ਦੁਖੁ ਨਸੈ ॥੪॥੯॥੧੪੭॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति के हृदय-घर में हरि नाम रूपी धन बसा रहता है,उसकी संगति में रहने से दुख नाश हो जाते हैं ॥४॥९॥१४७॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਗਰਬੁ ਬਡੋ ਮੂਲੁ ਇਤਨੋ ॥
हे प्राणी ! तेरा अहंकार तो बहुत बड़ा है किन्तु इसका मूल तुच्छ मात्र ही है।
ਰਹਨੁ ਨਹੀ ਗਹੁ ਕਿਤਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इस दुनिया में तेरा निवास अस्थाई है, जितना चाहे माया के प्रति आकर्षित रह ॥ १॥ रहाउ ॥
ਬੇਬਰਜਤ ਬੇਦ ਸੰਤਨਾ ਉਆਹੂ ਸਿਉ ਰੇ ਹਿਤਨੋ ॥
(जिस माया के प्रति) वेदों एवं संतों ने तुझे वर्जित किया है, उसी से तेरा आकर्षण अधिक है।
ਹਾਰ ਜੂਆਰ ਜੂਆ ਬਿਧੇ ਇੰਦ੍ਰੀ ਵਸਿ ਲੈ ਜਿਤਨੋ ॥੧॥
जैसे जुए की बाजी पराजित जुआरी को भी अपने साथ सम्मिलित रखती है, वैसे ही भोग-इन्द्रिय तुझ पर विजय पा कर अपने वश में रखती है॥ १ ॥
ਹਰਨ ਭਰਨ ਸੰਪੂਰਨਾ ਚਰਨ ਕਮਲ ਰੰਗਿ ਰਿਤਨੋ ॥
हे प्राणी ! तू संहारक तथा पालनहार ईश्वर के सुन्दर चरणों के प्रेम से रिक्त है।
ਨਾਨਕ ਉਧਰੇ ਸਾਧਸੰਗਿ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਮੈ ਦਿਤਨੋ ॥੨॥੧੦॥੧੪੮॥
हे नानक ! कृपा के भण्डार प्रभु ने मुझ नानक को संतों की संगति प्रदान की है, जिससे मैं भवसागर से पार हो गया हूँ ॥२॥१०॥१४८॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਮੋਹਿ ਦਾਸਰੋ ਠਾਕੁਰ ਕੋ ॥
मैं अपने ठाकुर जी का तुच्छ मात्र दास हूँ।
ਧਾਨੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਖਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
परमात्मा जो कुछ भी मुझे (भोजन) देता है, मैं वहीं (भोजन) खाता हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਐਸੋ ਹੈ ਰੇ ਖਸਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥
हे सज्जन ! हमारा मालिक-प्रभु ऐसा है,
ਖਿਨ ਮਹਿ ਸਾਜਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥੧॥
जो क्षण में ही सृष्टि-रचना करके उसे संवार देता है॥ १॥
ਕਾਮੁ ਕਰੀ ਜੇ ਠਾਕੁਰ ਭਾਵਾ ॥
मैं वही कार्य करता हूँ जो मेरे ठाकुर जी को लुभाता है।
ਗੀਤ ਚਰਿਤ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵਾ ॥੨॥
मैं प्रभु की गुणस्तुति एवं अदभुत कौतुकों के गीत गायन करता रहता हूँ॥ २ ॥
ਸਰਣਿ ਪਰਿਓ ਠਾਕੁਰ ਵਜੀਰਾ ॥
मैंने ठाकुर जी के मंत्री (गुरु जी) की शरण ली है।
ਤਿਨਾ ਦੇਖਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥੩॥
उनको देखकर मेरा हृदय धैर्यवान हो गया है॥ ३॥
ਏਕ ਟੇਕ ਏਕੋ ਆਧਾਰਾ ॥
हे नानक ! (प्रभु के मंत्री का आश्रय लेकर), मैंने एक ईश्वर को ही आधार एवं सहारा बनाया है
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੀ ਲਾਗਾ ਕਾਰਾ ॥੪॥੧੧॥੧੪੯॥
और ईश्वर की सेवा (गुणस्तुति) र्मे लगा हुआा हूँ॥ ४ ॥ ११ ॥ १४९॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਹੈ ਕੋਈ ਐਸਾ ਹਉਮੈ ਤੋਰੈ ॥
हे सज्जन ! क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो अपने अहंत्व को चकनाचूर कर दे और
ਇਸੁ ਮੀਠੀ ਤੇ ਇਹੁ ਮਨੁ ਹੋਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इस मीठी माया से अपने मन को वर्जित कर ले॥ १॥ रहाउ॥
ਅਗਿਆਨੀ ਮਾਨੁਖੁ ਭਇਆ ਜੋ ਨਾਹੀ ਸੋ ਲੋਰੈ ॥
अज्ञानी मनुष्य अपनी बुद्धि गंवा चुका है, क्योंकि जो नहीं है, उसी को खोजता रहता है।
ਰੈਣਿ ਅੰਧਾਰੀ ਕਾਰੀਆ ਕਵਨ ਜੁਗਤਿ ਜਿਤੁ ਭੋਰੈ ॥੧॥
मनुष्य के हृदय में मोह-माया की काली अन्धेरी रात्रि है। वह कौन-सी विधि हो सकती है, जिस द्वारा इसके भीतर ज्ञान का दिन उदय हो सके॥ १॥
ਭ੍ਰਮਤੋ ਭ੍ਰਮਤੋ ਹਾਰਿਆ ਅਨਿਕ ਬਿਧੀ ਕਰਿ ਟੋਰੈ ॥
मैं अनेक विधियों से खोज करता-करता और घूमता एवं भटकता हुआ थक गया हूँ।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਨਿਧਿ ਮੋਰੈ ॥੨॥੧੨॥੧੫੦॥
हे नानक ! ईश्वर ने मुझ पर कृपा की है और मुझे संतों की संगति का भण्डार मिल गया है॥ २॥ १२॥ १५०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਚਿੰਤਾਮਣਿ ਕਰੁਣਾ ਮਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे करुणामय परमेश्वर ! तू ही वह चिंतामणि है जो तमाम प्राणियों की मनोकामना पूर्ण करती है॥ १॥
ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ॥
हे पारब्रह्म ! तू ही वह दीनदयाल है,
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਣਿ ਸੁਖ ਭਏ ॥੧॥
जिसका सिमरन करने से सुख प्राप्त होता है॥ १॥
ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਅਗਾਧਿ ਬੋਧ ॥
हे अकालपुरुष ! तेरे स्वरूप का बोध अगाध है।
ਸੁਨਤ ਜਸੋ ਕੋਟਿ ਅਘ ਖਏ ॥੨॥
तेरी महिमा सुनने से करोड़ों ही पाप मिट जाते हैं।॥ २॥
ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਪ੍ਰਭ ਮਇਆ ਧਾਰਿ ॥
नानक का कथन है कि हे कृपानिधि प्रभु ! मुझ पर ऐसी कृपा करो कि
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਲਏ ॥੩॥੧੩॥੧੫੧॥
मैं तेरे हरि-परमेश्वर नाम का सिमरन करता रहूं॥ ३॥ १३॥ १५१॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭੂ ਸੁਖ ਪਾਏ ॥
हे मेरे मन ! जो व्यक्ति ईश्वर की शरण में आता है, उसे ही सुख उपलब्ध होता है।
ਜਾ ਦਿਨਿ ਬਿਸਰੈ ਪ੍ਰਾਨ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸੋ ਦਿਨੁ ਜਾਤ ਅਜਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिस दिन प्राणपति, सुखों का दाता प्रभु भूल जाता है, वह दिन व्यर्थ बीत जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਏਕ ਰੈਣ ਕੇ ਪਾਹੁਨ ਤੁਮ ਆਏ ਬਹੁ ਜੁਗ ਆਸ ਬਧਾਏ ॥
हे जीव ! तुम एक रात्रिकाल के अतिथि के तौर पर दुनिया में आए हो परन्तु तुमने अनेक युग रहने की आशा बढ़ा ली है।
ਗ੍ਰਿਹ ਮੰਦਰ ਸੰਪੈ ਜੋ ਦੀਸੈ ਜਿਉ ਤਰਵਰ ਕੀ ਛਾਏ ॥੧॥
घर, मन्दिर एवं धन-दौलत जो कुछ भी दृष्टिमान होता है, वह तो एक पेड़ की छाया की भाँति है॥ १॥
ਤਨੁ ਮੇਰਾ ਸੰਪੈ ਸਭ ਮੇਰੀ ਬਾਗ ਮਿਲਖ ਸਭ ਜਾਏ ॥
मनुष्य कहता है कि यह तन मेरा है, यह धन-दौलत, बाग एवं संपत्ति सब कुछ मेरा है लेकिन अंततः सब कुछ समाप्त हो जाएँगे।
ਦੇਵਨਹਾਰਾ ਬਿਸਰਿਓ ਠਾਕੁਰੁ ਖਿਨ ਮਹਿ ਹੋਤ ਪਰਾਏ ॥੨॥
हे मानव ! तू देने वाले दाता जगत् के ठाकुर प्रभु को भूल गया है। एक क्षण में सब कुछ पराया हो जाता है॥ २॥