Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 210

Page 210

ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੫ रागु गउड़ी पूरबी महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਬਹੂ ਨ ਮਨਹੁ ਬਿਸਾਰੇ ॥ हमें अपने मन से प्रभु-परमेश्वर को कभी भी विस्मृत नहीं करना चाहिए।
ਈਹਾ ਊਹਾ ਸਰਬ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸਗਲ ਘਟਾ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चूंकि वह ईश्वर ही लोक एवं परलोक में प्राणियों का सुखदाता है और तमाम शरीरों का पालन-पोषण करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਮਹਾ ਕਸਟ ਕਾਟੈ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰੇ ॥ यदि मनुष्य की रसना भगवान के नाम का जाप करे तो वह एक क्षण में ही महाकष्ट निवृत कर देता है।
ਸੀਤਲ ਸਾਂਤਿ ਸੂਖ ਹਰਿ ਸਰਣੀ ਜਲਤੀ ਅਗਨਿ ਨਿਵਾਰੇ ॥੧॥ प्रभु की शरण में शीतलता, शांति एवं सुख विद्यमान हैं और वह जलती अग्नि बुझा देता है॥ १॥
ਗਰਭ ਕੁੰਡ ਨਰਕ ਤੇ ਰਾਖੈ ਭਵਜਲੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੇ ॥ प्रभु मनुष्य को गर्भ के नरककुण्ड से बचाता है और उसको भवसागर से पार कर देता है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਆਰਾਧਤ ਮਨ ਮਹਿ ਜਮ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸ ਬਿਦਾਰੇ ॥੨॥ प्रभु के सुन्दर चरणों की मन में आराधना करने से वह मृत्यु का भय दूर कर देता है॥ २ ॥
ਪੂਰਨ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰ ਊਚਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥ पारब्रह्म परमेश्वर सर्वव्यापक है, वह सर्वोपरि, अगम्य एवं अनन्त है।
ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਧਿਆਵਤ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਜੂਏ ਜਨਮੁ ਨ ਹਾਰੇ ॥੩॥ सुखों के सागर प्रभु की महिमा-स्तुति एवं ध्यान करने से प्राणी अपना जन्म व्यर्थ नहीं गंवा कर जाता॥ ३॥
ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਮਨੁ ਲੀਨੋ ਨਿਰਗੁਣ ਕੇ ਦਾਤਾਰੇ ॥ हे निर्गुण के उदारचित दाता ! मेरा मन भोग-विलास, क्रोध, लालच एवं सांसारिक मोह में लीन है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨੋ ਨਾਮੁ ਦੀਜੈ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ॥੪॥੧॥੧੩੮॥ हे प्रभु ! कृपा करके अपने नाम का दान दीजिए। नानक तो सदैव ही तुझ पर कुर्बान जाता है ॥ ४॥ १॥ १३८ ॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਚੇਤੀ ਮਹਲਾ ੫ रागु गउड़ी चेती महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸੁਖੁ ਨਾਹੀ ਰੇ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਬਿਨਾ ॥ भगवान की भक्ति के बिना कोई सुख उपलब्ध नहीं होता।
ਜੀਤਿ ਜਨਮੁ ਇਹੁ ਰਤਨੁ ਅਮੋਲਕੁ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਜਪਿ ਇਕ ਖਿਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साधसंगत में रहकर एक क्षण भर के लिए भी प्रभु का चिन्तन करके मनुष्य जीवन का यह अनमोल रत्न जीत ले॥ १॥ रहाउ॥
ਸੁਤ ਸੰਪਤਿ ਬਨਿਤਾ ਬਿਨੋਦ ॥ ਛੋਡਿ ਗਏ ਬਹੁ ਲੋਗ ਭੋਗ ॥੧॥ हे प्राणी ! पुत्र, सम्पति, पत्नी का प्रेम,और हर्षोल्लास भरे मनोरंजन एवं भोग को त्याग बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो चले गए हैं।॥ १॥
ਹੈਵਰ ਗੈਵਰ ਰਾਜ ਰੰਗ ॥ ਤਿਆਗਿ ਚਲਿਓ ਹੈ ਮੂੜ ਨੰਗ ॥੨॥ अपने कुशल घोड़े, हाथी एवं शासन के आनन्द को त्याग करमूर्ख मनुष्य नग्न ही अन्त में दुनिया से चला जाता है॥ २॥
ਚੋਆ ਚੰਦਨ ਦੇਹ ਫੂਲਿਆ ॥ ਸੋ ਤਨੁ ਧਰ ਸੰਗਿ ਰੂਲਿਆ ॥੩॥ जिस शरीर पर इत्र तथा चन्दन लगाकर मनुष्य अभिमान करता था,वह शरीर (अन्त में) पार्थिव (मिट्टी) हो जाता है॥ ३॥
ਮੋਹਿ ਮੋਹਿਆ ਜਾਨੈ ਦੂਰਿ ਹੈ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਹਦੂਰਿ ਹੈ ॥੪॥੧॥੧੩੯॥ हे नानक ! दुनिया के मोह में मुग्ध हुआ मनुष्य ईश्वर को दूर समझता है।परन्तु ईश्वर सदा ही प्राणी के आसपास रहता है ॥ ४ ॥ १ ॥ १३९ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਮਨ ਧਰ ਤਰਬੇ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨੋ ॥ हे प्राणी ! तू ईश्वर-नाम के आधार से संसार सागर से पार हो जाएगा।
ਸਾਗਰ ਲਹਰਿ ਸੰਸਾ ਸੰਸਾਰੁ ਗੁਰੁ ਬੋਹਿਥੁ ਪਾਰ ਗਰਾਮਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ संशय की लहरों से भरे हुए जगत् सागर से पार होने के लिए गुरु जी जहाज हैं॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਲਿ ਕਾਲਖ ਅੰਧਿਆਰੀਆ ॥ कलियुग में गहरा अंधकार है।
ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਦੀਪਕ ਉਜਿਆਰੀਆ ॥੧॥ गुरु के दिए हुए ज्ञान का दीपक उजाला कर देता है॥ १॥
ਬਿਖੁ ਬਿਖਿਆ ਪਸਰੀ ਅਤਿ ਘਨੀ ॥ मोह-माया का विष अधिक मात्रा में फैला हुआ है।
ਉਬਰੇ ਜਪਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਗੁਨੀ ॥੨॥ ईश्वर की निरन्तर आराधना करने से महापुरुष बच जाते हैं।॥ २॥
ਮਤਵਾਰੋ ਮਾਇਆ ਸੋਇਆ ॥ माया में मुग्ध हुआ मनुष्य (इस विष की मार से) सोया हुआ है।
ਗੁਰ ਭੇਟਤ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਖੋਇਆ ॥੩॥ लेकिन गुरु को मिलने से दुविधा एवं भय दूर हो जाते हैं॥३ ॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਏਕੁ ਧਿਆਇਆ ॥ है नानक ! जिस व्यक्ति ने एक ईश्वर का ध्यान किया है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥੪॥੨॥੧੪੦॥ उत्त व्यक्ति को ही भगवान कण-कण में मौजूद दिखाई दिया है॥ ४॥ २॥ १४०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਦੀਬਾਨੁ ਹਮਾਰੋ ਤੁਹੀ ਏਕ ॥ हे ईश्वर ! एक तू ही हमारा सहारा है।
ਸੇਵਾ ਥਾਰੀ ਗੁਰਹਿ ਟੇਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु की शरण में मैं तेरी ही सेवा करता रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਿਕ ਜੁਗਤਿ ਨਹੀ ਪਾਇਆ ॥ हे प्रभु ! अनेक युक्तियों द्वारा मैं तुझे प्राप्त न कर सका।
ਗੁਰਿ ਚਾਕਰ ਲੈ ਲਾਇਆ ॥੧॥ गुरु ने कृपा करके मुझे तेरी सेवा-भक्ति में लगा दिया है।॥ १ ॥
ਮਾਰੇ ਪੰਚ ਬਿਖਾਦੀਆ ॥ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਦਲੁ ਸਾਧਿਆ ॥੨॥ मैंने पाँच दुष्टों (कामादि विकारों) का नाश कर दिया है।गुरु की कृपा से मैंने बुराई की सेना को पराजित कर दिया है॥ २॥
ਬਖਸੀਸ ਵਜਹੁ ਮਿਲਿ ਏਕੁ ਨਾਮ ॥ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥੩॥ मुझे एक नाम प्रभु के दान के तौर पर प्राप्त हुआ है।अब मेरा निवास सहज सुख एवं आनंद में है॥ ३॥


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