Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 209

Page 209

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਤੁਮ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਰਾਤੇ ਸੰਤਹੁ ॥ तुम हरि सेती राते संतहु ॥ हे संतजनो ! आप भगवान् के प्रेम में मग्न हो।
ਨਿਬਾਹਿ ਲੇਹੁ ਮੋ ਕਉ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ਓੜਿ ਪਹੁਚਾਵਹੁ ਦਾਤੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ निबाहि लेहु मो कउ पुरख बिधाते ओड़ि पहुचावहु दाते ॥१॥ रहाउ ॥ हे अकालपुरुष विधाता ! हे मेरे दाता ! मुझे भी अपने साथ मिला ले और मुझे मेरी अंतिम मंजिल तक पहुँचा दे॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮਰਾ ਮਰਮੁ ਤੁਮਾ ਹੀ ਜਾਨਿਆ ਤੁਮ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ॥ तुमरा मरमु तुमा ही जानिआ तुम पूरन पुरख बिधाते ॥ हे सर्वव्यापक विधाता! आपका रहस्य केवल आप ही जानते हैं।
ਰਾਖਹੁ ਸਰਣਿ ਅਨਾਥ ਦੀਨ ਕਉ ਕਰਹੁ ਹਮਾਰੀ ਗਾਤੇ ॥੧॥ राखहु सरणि अनाथ दीन कउ करहु हमारी गाते ॥१॥ मुझ दीन अनाथ को अपनी शरण में रखो और मुझे मोक्ष प्रदान करो ॥ १॥
ਤਰਣ ਸਾਗਰ ਬੋਹਿਥ ਚਰਣ ਤੁਮਾਰੇ ਤੁਮ ਜਾਨਹੁ ਅਪੁਨੀ ਭਾਤੇ ॥ तरण सागर बोहिथ चरण तुमारे तुम जानहु अपुनी भाते ॥ हे प्रभु ! आपके चरण संसार सागर से पार होने के लिए एक जहाज हैं। आप स्वयं ही जानते हैं कैसे?
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸੁ ਰਾਖਹੁ ਸੰਗੇ ਤੇ ਤੇ ਪਾਰਿ ਪਰਾਤੇ ॥੨॥ करि किरपा जिसु राखहु संगे ते ते पारि पराते ॥२॥ वे सभी प्राणी जिन पर आप कृपा करके अपने साथ रखते हो, संसारसागर से पार हो जाते हैं। ॥ २॥
ਈਤ ਊਤ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ ਸਮਰਥਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੁਮਰੈ ਹਾਥੇ ॥ ईत ऊत प्रभ तुम समरथा सभु किछु तुमरै हाथे ॥ हे ईश्वर ! इहलोक एवं परलोक में आप सर्वशक्तिशाली हो। सब कुछ आपके ही वश में है।
ਐਸਾ ਨਿਧਾਨੁ ਦੇਹੁ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਜਨ ਚਲੈ ਹਮਾਰੈ ਸਾਥੇ ॥੩॥ ऐसा निधानु देहु मो कउ हरि जन चलै हमारै साथे ॥३॥ हे प्रभु के भक्तजनों ! मुझे ऐसा नाम भण्डार प्रदान करो, जो परलोक में मेरे साथ जाए॥ ३॥
ਨਿਰਗੁਨੀਆਰੇ ਕਉ ਗੁਨੁ ਕੀਜੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਜਾਪੇ ॥ निरगुनीआरे कउ गुनु कीजै हरि नामु मेरा मनु जापे ॥ मुझ गुणहीन को ऐसा गुण प्रदान करो चूंकि मेरा मन प्रभु के नाम का ही जाप करता रहे।
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭੇਟੇ ਮਨ ਤਨ ਸੀਤਲ ਧ੍ਰਾਪੇ ॥੪॥੧੪॥੧੩੫॥ संत प्रसादि नानक हरि भेटे मन तन सीतल ध्रापे ॥४॥१४॥१३५॥ हे नानक ! संतों की कृपा से जिन्हें भगवान मिल जाता है, उनका मन एवं तन शीतल तथा संतुष्ट हो जाते हैं॥ ४ ॥ १४ ॥ १३५ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਓ ਦੇਵ ॥ ਮੋ ਕਉ ਸਤਿਗੁਰ ਭਏ ਦਇਆਲ ਦੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सहजि समाइओ देव ॥ मो कउ सतिगुर भए दइआल देव ॥१॥ रहाउ ॥ मैं सहज ही ईश्वर में समा गया हूँ। हे देव, मुझ पर सतगुरु जी दयालु हो गए हैं ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਟਿ ਜੇਵਰੀ ਕੀਓ ਦਾਸਰੋ ਸੰਤਨ ਟਹਲਾਇਓ ॥ काटि जेवरी कीओ दासरो संतन टहलाइओ ॥ हे भगवान, सतगुरु ने माया के बंधन काट कर मुझे अपना विनम्र भक्त बना लिया है और नामस्मरण करा कर संतों की सेवा में लगा दिया है।
ਏਕ ਨਾਮ ਕੋ ਥੀਓ ਪੂਜਾਰੀ ਮੋ ਕਉ ਅਚਰਜੁ ਗੁਰਹਿ ਦਿਖਾਇਓ ॥੧॥ एक नाम को थीओ पूजारी मो कउ अचरजु गुरहि दिखाइओ ॥१॥ मैं केवल नाम का ही पुजारी बन गया हूँ और गुरु जी ने मुझे प्रभु का अदभुत रूप दिखा दिया है॥ १॥
ਭਇਓ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਸਰਬ ਉਜੀਆਰਾ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਮਨਹਿ ਪ੍ਰਗਟਾਇਓ ॥ भइओ प्रगासु सरब उजीआरा गुर गिआनु मनहि प्रगटाइओ ॥ गुरु जी ने मेरे मन में ही ज्ञान प्रगट कर दिया है और अब हर तरफ (ज्ञान का) प्रकाश एवं उजाला हो गया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਪੀਓ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਿਆ ਅਨਭੈ ਠਹਰਾਇਓ ॥੨॥ अम्रितु नामु पीओ मनु त्रिपतिआ अनभै ठहराइओ ॥२॥ नाम अमृत का पान करने से मेरा मन तृप्त हो गया है और दूसरे भय दूर हट गए हैं। ॥ २॥
ਮਾਨਿ ਆਗਿਆ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਏ ਦੂਖਹ ਠਾਉ ਗਵਾਇਓ ॥ मानि आगिआ सरब सुख पाए दूखह ठाउ गवाइओ ॥ गुरु की आज्ञा मानकर मैंने सर्व सुख प्राप्त कर लिए हैं और दु:खों के स्त्रोत ध्वस्त कर दिए हैं।
ਜਉ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਭਏ ਪ੍ਰਭ ਠਾਕੁਰ ਸਭੁ ਆਨਦ ਰੂਪੁ ਦਿਖਾਇਓ ॥੩॥ जउ सुप्रसंन भए प्रभ ठाकुर सभु आनद रूपु दिखाइओ ॥३॥ जब प्रभु-परमेश्वर मुझ पर पूरी तरह प्रसन्न हो गए, तो उन्होंने मेरे सामने सर्वत्र अपना आनंदमय स्वरूप प्रकट किया। ॥ ३॥
ਨਾ ਕਿਛੁ ਆਵਤ ਨਾ ਕਿਛੁ ਜਾਵਤ ਸਭੁ ਖੇਲੁ ਕੀਓ ਹਰਿ ਰਾਇਓ ॥ ना किछु आवत ना किछु जावत सभु खेलु कीओ हरि राइओ ॥ न कुछ आता है और न ही कुछ जाता है। यह सारा खेल जगत् के मालिक प्रभु ने जारी किया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਅਗਮ ਅਗਮ ਹੈ ਠਾਕੁਰ ਭਗਤ ਟੇਕ ਹਰਿ ਨਾਇਓ ॥੪॥੧੫॥੧੩੬॥ कहु नानक अगम अगम है ठाकुर भगत टेक हरि नाइओ ॥४॥१५॥१३६॥ हे नानक ! वह ठाकुर प्रभु अगम्य एवं अपार है। उसके भक्तों को ईश्वर के नाम का ही सहारा है॥ ४ ॥ १५ ॥ १३६ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਮਨ ਤਾ ਕੀ ਓਟ ਗਹੀਜੈ ਰੇ ॥ पारब्रहम पूरन परमेसुर मन ता की ओट गहीजै रे ॥ हे मेरे मन ! हमें उस पूर्ण पारब्रह्म-परमेश्वर की शरण ही ग्रहण करनी चाहिए,
ਜਿਨਿ ਧਾਰੇ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਖੰਡ ਹਰਿ ਤਾ ਕੋ ਨਾਮੁ ਜਪੀਜੈ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिनि धारे ब्रहमंड खंड हरि ता को नामु जपीजै रे ॥१॥ रहाउ ॥ जिसने ब्रह्माण्ड एवं भू-मण्डलों को धारण किया हुआ है। अतः हमें उस ईश्वर का नाम ही जपना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਮਨ ਕੀ ਮਤਿ ਤਿਆਗਹੁ ਹਰਿ ਜਨ ਹੁਕਮੁ ਬੂਝਿ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਰੇ ॥ मन की मति तिआगहु हरि जन हुकमु बूझि सुखु पाईऐ रे ॥ हे परमात्मा के सेवको ! मन की चतुरता को त्याग दीजिए। भगवान् की आज्ञा को समझने से ही सुख उपलब्ध हो सकता है।
ਜੋ ਪ੍ਰਭੁ ਕਰੈ ਸੋਈ ਭਲ ਮਾਨਹੁ ਸੁਖਿ ਦੁਖਿ ਓਹੀ ਧਿਆਈਐ ਰੇ ॥੧॥ जो प्रभु करै सोई भल मानहु सुखि दुखि ओही धिआईऐ रे ॥१॥ हे भक्तजनों ! जो कुछ प्रभु करता है, उसको खुशी-खुशी स्वीकार करो। सुख एवं दुःख में उस ईश्वर का ध्यान करते रहना चाहिए॥ १॥
ਕੋਟਿ ਪਤਿਤ ਉਧਾਰੇ ਖਿਨ ਮਹਿ ਕਰਤੇ ਬਾਰ ਨ ਲਾਗੈ ਰੇ ॥ कोटि पतित उधारे खिन महि करते बार न लागै रे ॥ हे भक्तजनो ! विधाता प्रभु करोड़ों ही पापियों का एक क्षण में ही उद्धार कर देता है और उसमें कोई देरी नहीं लगती।
ਦੀਨ ਦਰਦ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਸੁਆਮੀ ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸਹਿ ਨਿਵਾਜੈ ਰੇ ॥੨॥ दीन दरद दुख भंजन सुआमी जिसु भावै तिसहि निवाजै रे ॥२॥ हे दुख भंजन स्वामी ! आप दीनों के दुःख-दर्द नाश करने वाले हो। जिस पर आप प्रसन्न होते हो, उसे सम्मान प्रदान करते हो ॥ २॥
ਸਭ ਕੋ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਰੇ ॥ सभ को मात पिता प्रतिपालक जीअ प्रान सुख सागरु रे ॥ हे भक्तजनो ! प्रभु समस्त प्राणियों की माता, पिता एवं पालनहार है। वह समस्त प्राणियों के प्राण दाता एवं सुख का सागर है।
ਦੇਂਦੇ ਤੋਟਿ ਨਾਹੀ ਤਿਸੁ ਕਰਤੇ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਰਤਨਾਗਰੁ ਰੇ ॥੩॥ देंदे तोटि नाही तिसु करते पूरि रहिओ रतनागरु रे ॥३॥ सृष्टिकर्ता के खजाने नाम के अनमोल उपहार से भरे हुए हैं और इतनी उदारता से देने पर भी कम नहीं पड़ते।॥ ३॥
ਜਾਚਿਕੁ ਜਾਚੈ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸੋਈ ਰੇ ॥ जाचिकु जाचै नामु तेरा सुआमी घट घट अंतरि सोई रे ॥ हे मेरे स्वामी ! भिखारी आपके नाम का दान माँगता है। वह प्रभु सबके हृदय में समाया हुआ है।
ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਤਾ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ਜਾ ਤੇ ਬ੍ਰਿਥਾ ਨ ਕੋਈ ਰੇ ॥੪॥੧੬॥੧੩੭॥ नानकु दासु ता की सरणाई जा ते ब्रिथा न कोई रे ॥४॥१६॥१३७॥ दास नानक ने उस प्रभु की शरण ली हुई है, जिसके द्वार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता ॥ ४॥ १६ ॥ १३७ ॥


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