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ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੫
रागु गउड़ी पूरबी महला ५
राग गौड़ी पूरबी, पाँचवें गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕਵਨ ਗੁਨ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਮਿਲਉ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कवन गुन प्रानपति मिलउ मेरी माई ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरी माता ! मैं कौन से गुण द्वारा प्राणपति प्रभु को मिल सकती हूँ? ॥ १॥ रहाउ॥
ਰੂਪ ਹੀਨ ਬੁਧਿ ਬਲ ਹੀਨੀ ਮੋਹਿ ਪਰਦੇਸਨਿ ਦੂਰ ਤੇ ਆਈ ॥੧॥
रूप हीन बुधि बल हीनी मोहि परदेसनि दूर ते आई ॥१॥
मैं रूपहीन, बुद्धिहीन एवं बलहीन हूँ और मैं परदेसिन विभिन्न योनियो की यात्रा से गुजरकर दूर से आई हूँ॥ १॥
ਨਾਹਿਨ ਦਰਬੁ ਨ ਜੋਬਨ ਮਾਤੀ ਮੋਹਿ ਅਨਾਥ ਕੀ ਕਰਹੁ ਸਮਾਈ ॥੨॥
नाहिन दरबु न जोबन माती मोहि अनाथ की करहु समाई ॥२॥
मेरे पास न ही (नाम) धन है और न ही यौवन का गर्व है। हे प्रभु ! मुझ अनाथ को अपने साथ मिला लो॥ २॥
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਭਈ ਬੈਰਾਗਨਿ ਪ੍ਰਭ ਦਰਸਨ ਕਉ ਹਉ ਫਿਰਤ ਤਿਸਾਈ ॥੩॥
खोजत खोजत भई बैरागनि प्रभ दरसन कउ हउ फिरत तिसाई ॥३॥
ढूंढते-ढूंढते मैं बैरागन हो गई हूँ। प्रभु के दर्शनों हेतु मैं प्यासी होकर फिर रही हूँ॥ ३॥
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮੇਰੀ ਜਲਨਿ ਬੁਝਾਈ ॥੪॥੧॥੧੧੮॥
दीन दइआल क्रिपाल प्रभ नानक साधसंगि मेरी जलनि बुझाई ॥४॥१॥११८॥
नानक का कथन है कि हे दीनदयाल ! हे कृपालु प्रभु ! संतों की संगति ने मेरी विरह की पीड़ा को संतुष्ट किया है।॥ ४॥ १॥ ११८ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਬੇ ਕਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਨਿ ਲਾਗੀ ॥
प्रभ मिलबे कउ प्रीति मनि लागी ॥
मेरे मन में प्रभु को मिलने के लिए प्रेम उत्पन्न हो गया है।
ਪਾਇ ਲਗਉ ਮੋਹਿ ਕਰਉ ਬੇਨਤੀ ਕੋਊ ਸੰਤੁ ਮਿਲੈ ਬਡਭਾਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पाइ लगउ मोहि करउ बेनती कोऊ संतु मिलै बडभागी ॥१॥ रहाउ ॥
यदि मुझे सौभाग्य से कोई गुरु-संत आकर मिल जाए, तो मैं उसके चरण स्पर्श करती हूँ और उसे विनती करती हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਨੁ ਅਰਪਉ ਧਨੁ ਰਾਖਉ ਆਗੈ ਮਨ ਕੀ ਮਤਿ ਮੋਹਿ ਸਗਲ ਤਿਆਗੀ ॥
मनु अरपउ धनु राखउ आगै मन की मति मोहि सगल तिआगी ॥
मैंने अपना दंभ त्याग दिया है;, मैं अपना मन और शरीर भी उन्हें समर्पित करता हूं।
ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਨਾਵੈ ਅਨਦਿਨੁ ਫਿਰਉ ਤਿਸੁ ਪਿਛੈ ਵਿਰਾਗੀ ॥੧॥
जो प्रभ की हरि कथा सुनावै अनदिनु फिरउ तिसु पिछै विरागी ॥१॥
जो मुझे प्रभु की हरि-कथा सुनाता है, मैं वैरागी होकर रात-दिन उसके आगे-पीछे फिरता हूँ॥ १ ॥
ਪੂਰਬ ਕਰਮ ਅੰਕੁਰ ਜਬ ਪ੍ਰਗਟੇ ਭੇਟਿਓ ਪੁਰਖੁ ਰਸਿਕ ਬੈਰਾਗੀ ॥
पूरब करम अंकुर जब प्रगटे भेटिओ पुरखु रसिक बैरागी ॥
जब पूर्व जन्मों में किए शुभ कर्मों के अंकुर प्रकट हो गएं तो उसे सर्वव्यापक प्रभु मिल गया है जो समस्त प्राणियों में विराजमान होकर रस भोगने वाला है और जो रसों से निर्लिप्त भी है।
ਮਿਟਿਓ ਅੰਧੇਰੁ ਮਿਲਤ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਸੋਈ ਜਾਗੀ ॥੨॥੨॥੧੧੯॥
मिटिओ अंधेरु मिलत हरि नानक जनम जनम की सोई जागी ॥२॥२॥११९॥
हे नानक ! ईश्वर को मिल जाने से मेरा अज्ञानता का अंधकार मिट गया है और जन्म-जन्मांतरों की निद्रा से मैं जाग उठा हूँ।
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਨਿਕਸੁ ਰੇ ਪੰਖੀ ਸਿਮਰਿ ਹਰਿ ਪਾਂਖ ॥
निकसु रे पंखी सिमरि हरि पांख ॥
हे मेरे मन रूपी पक्षी ! भगवान् के सिमरन को अपने पंख बनाकर माया के बंधनों से स्वयं को बचा ले।
ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸਰਣਿ ਗਹੁ ਪੂਰਨ ਰਾਮ ਰਤਨੁ ਹੀਅਰੇ ਸੰਗਿ ਰਾਖੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलि साधू सरणि गहु पूरन राम रतनु हीअरे संगि राखु ॥१॥ रहाउ ॥
संतों से मिलकर उनकी शरण ले और प्रभु के पूर्ण नाम-रत्न को अपने हृदय से लगाकर रख ॥ १॥ रहाउ ॥
ਭ੍ਰਮ ਕੀ ਕੂਈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਰਸ ਪੰਕਜ ਅਤਿ ਤੀਖ੍ਯ੍ਯਣ ਮੋਹ ਕੀ ਫਾਸ ॥
भ्रम की कूई त्रिसना रस पंकज अति तीख्यण मोह की फास ॥
सांसारिक सुखों की लालसा अंधविश्वास के कुएं में कीचड़ के समान है और तृष्णा अत्यंत कड़े फंदे के समान है।
ਕਾਟਨਹਾਰ ਜਗਤ ਗੁਰ ਗੋਬਿਦ ਚਰਨ ਕਮਲ ਤਾ ਕੇ ਕਰਹੁ ਨਿਵਾਸ ॥੧॥
काटनहार जगत गुर गोबिद चरन कमल ता के करहु निवास ॥१॥
जगद्गुरु गोबिन्द उन बंधनों को काटने वाला है। उसके चरण कमलों में निवास करो ॥ १॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੋਬਿੰਦ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰੀਤਮ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਸੁਨਹੁ ਅਰਦਾਸਿ ॥
करि किरपा गोबिंद प्रभ प्रीतम दीना नाथ सुनहु अरदासि ॥
हे गोबिन्द ! हे दीनानाथ ! हे मेरे प्रियतम प्रभु ! कृपा करके मेरी प्रार्थना सुनो।
ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੇਹੁ ਨਾਨਕ ਕੇ ਸੁਆਮੀ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤੁਮਰੀ ਰਾਸਿ ॥੨॥੩॥੧੨੦॥
करु गहि लेहु नानक के सुआमी जीउ पिंडु सभु तुमरी रासि ॥२॥३॥१२०॥
हे नानक के स्वामी, मुझे हाथ से पकड़ ले, मेरी आत्मा और शरीर तमाम तेरी ही पूंजी है ॥ २॥ ३॥ १२०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਪੇਖਨ ਕਉ ਸਿਮਰਤ ਮਨੁ ਮੇਰਾ ॥
हरि पेखन कउ सिमरत मनु मेरा ॥
मेरा मन भगवान् के दर्शन करने के लिए उसका सिमरन करता रहता है।
ਆਸ ਪਿਆਸੀ ਚਿਤਵਉ ਦਿਨੁ ਰੈਨੀ ਹੈ ਕੋਈ ਸੰਤੁ ਮਿਲਾਵੈ ਨੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आस पिआसी चितवउ दिनु रैनी है कोई संतु मिलावै नेरा ॥१॥ रहाउ ॥
अपने स्वामी को देखने की आशा एवं प्यास में मैं दिन-रात उसका चिंतन करती हूँ। क्या कोई ऐसा संत है, जो मुझे निकट से उससे मिला दे॥ १॥ रहाउ॥
ਸੇਵਾ ਕਰਉ ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੀ ਅਨਿਕ ਭਾਂਤਿ ਤਿਸੁ ਕਰਉ ਨਿਹੋਰਾ ॥
सेवा करउ दास दासन की अनिक भांति तिसु करउ निहोरा ॥
मैं अपने स्वामी के सेवकों के सेवकों की सेवा करती हूँ और अनेक उपायों से उसके समक्ष निवेदन करती हूँ।
ਤੁਲਾ ਧਾਰਿ ਤੋਲੇ ਸੁਖ ਸਗਲੇ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਦਰਸ ਸਭੋ ਹੀ ਥੋਰਾ ॥੧॥
तुला धारि तोले सुख सगले बिनु हरि दरस सभो ही थोरा ॥१॥
मैंने सभी सुख तराजू में रखकर तोले हैं, लेकिन ईश्वर के दर्शनों के बिना सभी थोड़े हैं॥ १॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਗਾਏ ਗੁਨ ਸਾਗਰ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੋ ਜਾਤ ਬਹੋਰਾ ॥
संत प्रसादि गाए गुन सागर जनम जनम को जात बहोरा ॥
संतों की कृपा से मैंने गुणों के सागर का यश गायन किया है और वह जन्म-जन्मांतरों के भटकते हुए को (जीवन-मृत्यु के चक्र में से) मोड़कर ले आता है।
ਆਨਦ ਸੂਖ ਭੇਟਤ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਜਨਮੁ ਕ੍ਰਿਤਾਰਥੁ ਸਫਲੁ ਸਵੇਰਾ ॥੨॥੪॥੧੨੧॥
आनद सूख भेटत हरि नानक जनमु क्रितारथु सफलु सवेरा ॥२॥४॥१२१॥
हे नानक ! ईश्वर को मिलने से उसने आनंद एवं सुख प्राप्त कर लिए हैं और उसका जन्म कृतार्थ हो गया है तथा उसका सवेरा भी सफल हो गया है॥ २ ॥ ४ ॥ १२१ ॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੫
रागु गउड़ी पूरबी महला ५
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕਿਨ ਬਿਧਿ ਮਿਲੈ ਗੁਸਾਈ ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਰਾਇ ॥
किन बिधि मिलै गुसाई मेरे राम राइ ॥
हे मेरे राम ! मैं किस विधि से अपने गोसाई प्रभु से मिल सकता हूँ?
ਕੋਈ ਐਸਾ ਸੰਤੁ ਸਹਜ ਸੁਖਦਾਤਾ ਮੋਹਿ ਮਾਰਗੁ ਦੇਇ ਬਤਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कोई ऐसा संतु सहज सुखदाता मोहि मारगु देइ बताई ॥१॥ रहाउ ॥
क्या कोई ऐसा सहज सुखदाता संत है जो मुझे प्रभु का मार्ग बता दे॥ १॥ रहाउ॥