Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 205

Page 205

ਅੰਤਰਿ ਅਲਖੁ ਨ ਜਾਈ ਲਖਿਆ ਵਿਚਿ ਪੜਦਾ ਹਉਮੈ ਪਾਈ ॥ अलक्ष्य परमेश्वर जीव के अन्तर्मन में ही है, किन्तु अहंकार के पर्दे के कारण वह देखा नहीं जा सकता।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਸਭੋ ਜਗੁ ਸੋਇਆ ਇਹੁ ਭਰਮੁ ਕਹਹੁ ਕਿਉ ਜਾਈ ॥੧॥ सारी दुनिया मोह-माया में निद्रामग्न है। बताइये ? यह भ्रम किस प्रकार दूर हो सकता है॥ १॥
ਏਕਾ ਸੰਗਤਿ ਇਕਤੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਬਸਤੇ ਮਿਲਿ ਬਾਤ ਨ ਕਰਤੇ ਭਾਈ ॥ हे भाई ! आत्मा और परमात्मा की एक ही संगति है और इकट्टे एक ही घर में वास करते हैं परन्तु वह एक दूसरे से संवाद नहीं करते(अहंकार के कारण)।
ਏਕ ਬਸਤੁ ਬਿਨੁ ਪੰਚ ਦੁਹੇਲੇ ਓਹ ਬਸਤੁ ਅਗੋਚਰ ਠਾਈ ॥੨॥ ईश्वर नाम के धन के बिना पाँचों ज्ञानेन्द्रियां दुःखी हैं। वह पदार्थ अगोचर स्थान पर विद्यमान है॥ २॥
ਜਿਸ ਕਾ ਗ੍ਰਿਹੁ ਤਿਨਿ ਦੀਆ ਤਾਲਾ ਕੁੰਜੀ ਗੁਰ ਸਉਪਾਈ ॥ जिस भगवान का यह शरीर रूपी गृह है, उसने ही इसे मोह-माया का ताला लगा दिया है और कुंजी गुरु को सौंप दी है।
ਅਨਿਕ ਉਪਾਵ ਕਰੇ ਨਹੀ ਪਾਵੈ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥੩॥ सतगुरु की शरण लिए बिना दूसरे अनेक उपाय करने पर भी मनुष्य उस कुंजी को प्राप्त नहीं कर सकता ॥ ३॥
ਜਿਨ ਕੇ ਬੰਧਨ ਕਾਟੇ ਸਤਿਗੁਰ ਤਿਨ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥ जिनके मोह-माया के बंधन सतगुरु ने काट दिए हैं। उन्होंने ही साधसंगत में अपनी सुरति लगाई है।
ਪੰਚ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਭੇਦੁ ਨ ਭਾਈ ॥੪॥ हे नानक ! उनकी पाँचों ज्ञानेन्द्रियों ने मिलकर मंगल गीत गाए हैं। हे भाई ! उनमें और ईश्वर में कोई अन्तर नहीं रह गया॥ ४॥
ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਰਾਇ ਇਨ ਬਿਧਿ ਮਿਲੈ ਗੁਸਾਈ ॥ हे मेरे राम ! गोसाई प्रभु इस विधि से मिलता है।
ਸਹਜੁ ਭਇਆ ਭ੍ਰਮੁ ਖਿਨ ਮਹਿ ਨਾਠਾ ਮਿਲਿ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੧॥੧੨੨॥ जिस व्यक्ति को सहज आनंद प्राप्त हो गया, उसकी दुविधा एक क्षण में ही दूर हो गई है और उसकी ज्योति परमज्योति में विलीन हो गई है॥ १॥ रहाउ दूजा॥ १॥ १२२॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु:५ ॥
ਐਸੋ ਪਰਚਉ ਪਾਇਓ ॥ मेरी भगवान् से ऐसी घनिष्ठता हो गई है कि
ਕਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਦਇਆਲ ਬੀਠੁਲੈ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਝਹਿ ਬਤਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अपनी कृपा करके दयालु विट्ठल प्रभु ने मुझे सतगुरु का पता बता दिया है ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਤ ਕਤ ਦੇਖਉ ਤਤ ਤਤ ਤੁਮ ਹੀ ਮੋਹਿ ਇਹੁ ਬਿਸੁਆਸੁ ਹੋਇ ਆਇਓ ॥ अब मेरा यह दृढ़ विश्वास हो गया है कि मैं जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, वहाँ मैं आपको ही पाता हूँ।
ਕੈ ਪਹਿ ਕਰਉ ਅਰਦਾਸਿ ਬੇਨਤੀ ਜਉ ਸੁਨਤੋ ਹੈ ਰਘੁਰਾਇਓ ॥੧॥ हे रघुराई ! मैं किसके पास विनती व प्रार्थना करूँ, जब तू सबकुछ स्वयं सुन रहा है॥ १॥
ਲਹਿਓ ਸਹਸਾ ਬੰਧਨ ਗੁਰਿ ਤੋਰੇ ਤਾਂ ਸਦਾ ਸਹਜ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ॥ गुरु ने जिस व्यक्ति के मोह-माया के बन्धन तोड़ दिए हैं, उसकी दुविधा समाप्त हो गई है और उसे हमेशा के लिए सहज सुख मिल गया है।
ਹੋਣਾ ਸਾ ਸੋਈ ਫੁਨਿ ਹੋਸੀ ਸੁਖੁ ਦੁਖੁ ਕਹਾ ਦਿਖਾਇਓ ॥੨॥ ईश्वरेच्छा से दुनिया में जो कुछ भी होना है, अंततः वह अवश्य होगा। भगवान् की आज्ञा के बिना दुःख एवं सुख तब कहाँ देखा जा सकता है? ॥ २॥
ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਕਾ ਏਕੋ ਠਾਣਾ ਗੁਰਿ ਪਰਦਾ ਖੋਲਿ ਦਿਖਾਇਓ ॥ अज्ञानता का पर्दा दूर करके गुरु जी ने मुझे यह दिखा दिया है कि अनेकों खण्डों और ब्रह्माण्डों के केवल प्रभु ही सहयक हैं।
ਨਉ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਇਕ ਠਾਈ ਤਉ ਬਾਹਰਿ ਕੈਠੈ ਜਾਇਓ ॥੩॥ नवनिधि एवं नाम रूपी भंडार एक स्थान (मन) में है। तब मनुष्य कौन से बाहरी स्थान को जाए?॥ ३॥
ਏਕੈ ਕਨਿਕ ਅਨਿਕ ਭਾਤਿ ਸਾਜੀ ਬਹੁ ਪਰਕਾਰ ਰਚਾਇਓ ॥ जैसे एक सोने से सुनार ने आभूषणों की विभिन्न किस्मों की बनावट बना दी, उसी भाँति प्रभु ने स्वयं को विभिन्न रचनाओं में प्रकट किया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਰਮੁ ਗੁਰਿ ਖੋਈ ਹੈ ਇਵ ਤਤੈ ਤਤੁ ਮਿਲਾਇਓ ॥੪॥੨॥੧੨੩॥ हे नानक ! गुरु ने जिसकी दुविधा निवृत्त कर दी है। जैसे सोने के आभूषण अंतत: सोना हो जाते हैं। उसी प्रकार प्रत्येक तत्व, मूल तत्व (ईश्वर) से मिल जाता है ॥ ४ ॥ २ ॥ १२३ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਅਉਧ ਘਟੈ ਦਿਨਸੁ ਰੈਨਾਰੇ ॥ तेरी जीवन-अवधि दिन-रात कम होती जा रही है अर्थात् तेरी उम्र बीतती जा रही है
ਮਨ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਕਾਜ ਸਵਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे मन ! तू इस दुनिया में जिस मनोरथ हेतु आया है, गुरु से मिलकर अपना वह कार्य संवार ले ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਉ ਬੇਨੰਤੀ ਸੁਨਹੁ ਮੇਰੇ ਮੀਤਾ ਸੰਤ ਟਹਲ ਕੀ ਬੇਲਾ ॥ हे मेरे मित्र ! मैं एक प्रार्थना करता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो। साधुओं की सेवा करने का यह स्वर्णिम अवसर है।
ਈਹਾ ਖਾਟਿ ਚਲਹੁ ਹਰਿ ਲਾਹਾ ਆਗੈ ਬਸਨੁ ਸੁਹੇਲਾ ॥੧॥ इहलोक में प्रभु-नाम का लाभ प्राप्त करके प्रस्थान कर, परलोक में तुझे सुन्दर निवास प्राप्त होगा ॥ १॥
ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ਬਿਕਾਰੁ ਸਹਸੇ ਮਹਿ ਤਰਿਓ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ॥ यह दुनिया विकारों एवं (मोह-माया के) सन्देह से भरी हुई है तथा केवल ब्रह्मज्ञानी ही भवसागर से पार होता है।
ਜਿਸਹਿ ਜਗਾਇ ਪੀਆਏ ਹਰਿ ਰਸੁ ਅਕਥ ਕਥਾ ਤਿਨਿ ਜਾਨੀ ॥੨॥ भगवान् जिस व्यक्ति को मोह-माया की निद्रा से जगा देता है, उसे ही वह हरि-रस का पान करवाता है और फिर वह अकथनीय प्रभु की कथा को समझ लेता है॥ २॥
ਜਾ ਕਉ ਆਏ ਸੋਈ ਵਿਹਾਝਹੁ ਹਰਿ ਗੁਰ ਤੇ ਮਨਹਿ ਬਸੇਰਾ ॥ हे जीव ! इस दुनिया में तू जिस नाम-पदार्थ का सौदा खरीदने के लिए आया है, उस नाम-पदार्थ को खरीद ले। गुरु की कृपा से प्रभु तेरे मन में निवास कर लेगा।
ਨਿਜ ਘਰਿ ਮਹਲੁ ਪਾਵਹੁ ਸੁਖ ਸਹਜੇ ਬਹੁਰਿ ਨ ਹੋਇਗੋ ਫੇਰਾ ॥੩॥ अपने हृदय घर में ही प्रभु को पाकर तुझे सहज सुख प्राप्त हो जाएगा एवं तुझे पुन: जन्म-मरण का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा ॥ ३॥
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ਸਰਧਾ ਮਨ ਕੀ ਪੂਰੇ ॥ हे अन्तर्यामी विधाता ! मेरे मन की श्रद्धा पूरी करो।
ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਇਹੀ ਸੁਖੁ ਮਾਗੈ ਮੋ ਕਉ ਕਰਿ ਸੰਤਨ ਕੀ ਧੂਰੇ ॥੪॥੩॥੧੨੪॥ दास नानक यही सुख की कामना करता है कि मुझे अपने संतों का सबसे विनम्र सेवक बनाओ। ॥४॥३॥१२४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਰਾਖੁ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ॥ हे मेरे पिता-परमेश्वर ! मुझ गुणहीन की रक्षा करें।
ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨੁ ਸਭ ਗੁਨ ਤੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ समस्त गुण आप में ही विद्यमान हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਪੰਚ ਬਿਖਾਦੀ ਏਕੁ ਗਰੀਬਾ ਰਾਖਹੁ ਰਾਖਨਹਾਰੇ ॥ हे संरक्षक प्रभु ! मेरी रक्षा करें, मैं निर्धन अकेला हूँ किंतु मेरे भीतर कामादिक मेरे पाँच शत्रु हैं।
ਖੇਦੁ ਕਰਹਿ ਅਰੁ ਬਹੁਤੁ ਸੰਤਾਵਹਿ ਆਇਓ ਸਰਨਿ ਤੁਹਾਰੇ ॥੧॥ वे मुझे बहुत दुःख देते हैं और अत्यंत तंग करते हैं, इसलिए मैं आपकी शरण में आया हूँ॥ १॥


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