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ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਭੁਜ ਬਲ ਬੀਰ ਬ੍ਰਹਮ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਗਰਤ ਪਰਤ ਗਹਿ ਲੇਹੁ ਅੰਗੁਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे भुजबल शूरवीर प्रभु ! हे सुखों के सागर! मैं (विकारों के) गड्ढे में गिर रहा हूँ, मुझे उंगली से पकड़ लीजिए॥ १॥ रहाउ॥
ਸ੍ਰਵਨਿ ਨ ਸੁਰਤਿ ਨੈਨ ਸੁੰਦਰ ਨਹੀ ਆਰਤ ਦੁਆਰਿ ਰਟਤ ਪਿੰਗੁਰੀਆ ॥੧॥
हे प्रभु ! मेरे कानों में तेरी महिमा सुनने की सूझ नहीं, मेरे नयन सुन्दर नहीं और मैं दुखी एवं लंगड़ा तेरे द्वार पर पुकारता हूँ (कि मुझे विकारों के गङ्गे से बचा लो)॥ १॥
ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਅਨਾਥ ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਸਾਜਨ ਮੀਤ ਪਿਤਾ ਮਹਤਰੀਆ ॥
हे दीनानाथ ! हे अनाथों पर करुणा करने वाले ! तू ही मेरा मित्र, सखा, पिता एवं माता है।
ਚਰਨ ਕਵਲ ਹਿਰਦੈ ਗਹਿ ਨਾਨਕ ਭੈ ਸਾਗਰ ਸੰਤ ਪਾਰਿ ਉਤਰੀਆ ॥੨॥੨॥੧੧੫॥
हे नानक ! प्रभु के चरण कमलों को अपने ह्रदय से लगा कर रख, जो अपने संतों को भयानक सागर से पार कर देता है। ॥ २ ॥ २ ॥ ११५ ॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੫
रागु गउड़ी बैरागणि महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਦਯ ਗੁਸਾਈ ਮੀਤੁਲਾ ਤੂੰ ਸੰਗਿ ਹਮਾਰੈ ਬਾਸੁ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे दया के पुंज ! हे गुसाई ! तू मेरा प्रिय मित्र है और हमेशा ही मेरे साथ बसता रह॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਘਰੀ ਨ ਜੀਵਨਾ ਧ੍ਰਿਗੁ ਰਹਣਾ ਸੰਸਾਰਿ ॥
हे प्रभु ! तेरे बिना मैं एक क्षण भर के लिए भी जीवित नहीं रह सकता और तेरे बिना इस दुनिया में जीना धिक्कार योग्य है।
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਣ ਸੁਖਦਾਤਿਆ ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਬਲਿਹਾਰਿ ਜੀ ॥੧॥
हे आत्मा, प्राण एवं सुख प्रदान करने वाले प्रभु ! हर क्षण मैं तुझ पर कुर्बान जाता हूँ॥ १॥
ਹਸਤ ਅਲੰਬਨੁ ਦੇਹੁ ਪ੍ਰਭ ਗਰਤਹੁ ਉਧਰੁ ਗੋਪਾਲ ॥
हे गोपाल ! मुझे अपने हाथ का आश्रय दीजिए और मुझे गड्ढ़े में से बाहर निकालें
ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨ ਮਤਿ ਥੋਰੀਆ ਤੂੰ ਸਦ ਹੀ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ॥੨॥
क्योंकि मैं निर्गुण एवं अल्पबुद्धि वाला हूँ लेकिन तू सदैव ही दीनदयाल है॥ २॥
ਕਿਆ ਸੁਖ ਤੇਰੇ ਸੰਮਲਾ ਕਵਨ ਬਿਧੀ ਬੀਚਾਰ ॥
तेरे दिए हुए कौन-कौन से सुख मैं स्मरण कर सकता हूँ और किस विधि से मैं तेरी आराधना कर सकता हूँ?
ਸਰਣਿ ਸਮਾਈ ਦਾਸ ਹਿਤ ਊਚੇ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥੩॥
हे सर्वोच्च, अगम्य एवं अपार प्रभु ! तू अपने सेवकों से प्रेम करता है और जो तेरा आश्रय लेते हैं, उनको अपने साथ लीन कर लेता है ॥ ३ ॥
ਸਗਲ ਪਦਾਰਥ ਅਸਟ ਸਿਧਿ ਨਾਮ ਮਹਾ ਰਸ ਮਾਹਿ ॥
हे भाई ! संसार के समस्त पदार्थ, आठों सिद्धियाँ, महा रस नाम के परम अमृत में विद्यमान हैं।
ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਭਏ ਕੇਸਵਾ ਸੇ ਜਨ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਹਿ ॥੪॥
हे भाई ! जिन पर केशव सुप्रसन्न होता है, वे व्यक्ति प्रभु की गुणस्तुति करते रहते हैं। ॥ ४॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਬੰਧਪੋ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰ ॥
हे प्राणों के आधार प्रभु ! तू ही मेरी माता, पिता, पुत्र, रिश्तेदार सब कुछ तू ही है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕੁ ਭਜੈ ਬਿਖੁ ਤਰਿਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥੫॥੧॥੧੧੬॥
संतों की संगति में नानक तेरा भजन करता है, जो तेरी स्तुति करता है वह विष से भरे संसार सागर से पार हो जाता है॥५ ॥१॥ ११६ ॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਰਹੋਏ ਕੇ ਛੰਤ ਕੇ ਘਰਿ ਮਃ ੫
गउड़ी बैरागणि रहोए के छंत के घरि मः ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹੈ ਕੋਈ ਰਾਮ ਪਿਆਰੋ ਗਾਵੈ ॥
कोई विरला व्यक्ति ही प्रिय राम का यश गायन करता है ?
ਸਰਬ ਕਲਿਆਣ ਸੂਖ ਸਚੁ ਪਾਵੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
वह सत्य, सर्व कल्याण एवं सुख प्राप्त कर लेता है॥ रहाउ॥
ਬਨੁ ਬਨੁ ਖੋਜਤ ਫਿਰਤ ਬੈਰਾਗੀ ॥
वैरागी अनेकों वनों में प्रभु की खोज हेतु जाता है।
ਬਿਰਲੇ ਕਾਹੂ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
परन्तु कोई विरला पुरुष ही है जिसकी सुरति एक ईश्वर से लगती है।
ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ॥੧॥
जिन्होंने भगवान को पा लिया है, ऐसे व्यक्ति बड़े भाग्यशाली हैं।॥ १॥
ਬ੍ਰਹਮਾਦਿਕ ਸਨਕਾਦਿਕ ਚਾਹੈ ॥
ब्रह्मा इत्यादि देवते एवं सनक, सनन्दन एवं सनत कुमार भी भगवान को मिलने की लालसा करते हैं।
ਜੋਗੀ ਜਤੀ ਸਿਧ ਹਰਿ ਆਹੈ ॥
योगी, ब्रह्मचारी एवं सिद्ध पुरुष ईश्वर से मिलने की आशा करते रहते हैं।
ਜਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤਿ ਸੋ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਹੈ ॥੨॥
जिसको यह देन प्राप्त हुई है, वह ईश्वर की महिमा करता रहता है।॥ २॥
ਤਾ ਕੀ ਸਰਣਿ ਜਿਨ ਬਿਸਰਤ ਨਾਹੀ ॥
मैंने उनकी शरण ली है, जिनको ईश्वर नहीं भूलता।
ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਸੰਤ ਮਿਲਾਹੀ ॥
बड़ी किस्मत से ही हरि का संत मिलता है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਤਿਹ ਮੂਲੇ ਨਾਹੀ ॥੩॥
चूंकि वह जीवन-मृत्यु से वास्तव में मुक्त है। ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮਿਲੁ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪਿਆਰੇ ॥
हे मेरे प्रियतम प्यारे ! कृपा करके मुझे दर्शन दीजिए।
ਬਿਨਉ ਸੁਨਹੁ ਪ੍ਰਭ ਊਚ ਅਪਾਰੇ ॥
हे मेरे सर्वोपरि एवं अपार प्रभु! मेरी एक प्रार्थना सुनो,
ਨਾਨਕੁ ਮਾਂਗਤੁ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੇ ॥੪॥੧॥੧੧੭॥
नानक तेरे नाम का आधार ही मांगता है ॥ ४॥ १॥ ११७॥