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ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਨਿਵਾਰੇ ॥
गुरु की वाणी मानसिक क्लेश एवं कष्टों को दूर कर देती है।
ਆਵਣ ਜਾਣ ਰਹੇ ਸੁਖ ਸਾਰੇ ॥੧॥
गुरु की वाणी के फलस्वरूप जन्म-मरण का आवागमन मिट जाता है और सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं।॥ १॥
ਭੈ ਬਿਨਸੇ ਨਿਰਭਉ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निडर ईश्वर का ध्यान करने से मेरा भय दूर हो गया है। संतों की संगति में मैं ईश्वर की गुणस्तुति करता रहता हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਚਰਨ ਕਵਲ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਧਾਰੇ ॥
ईश्वर के चरण कमल मैंने अपने हृदय में स्थापित कर लिया है।
ਅਗਨਿ ਸਾਗਰ ਗੁਰਿ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੇ ॥੨॥
गुरु ने मुझे तृष्णा के अग्नि सागर से पार कर दिया है॥ २ ॥
ਬੂਡਤ ਜਾਤ ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਕਾਢੇ ॥
मैं भवसागर में डूब रहा था परन्तु पूर्ण गुरु ने मेरी रक्षा की है।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਟੂਟੇ ਗਾਢੇ ॥੩॥
गुरु ने मुझे प्रभु से मिला दिया है, जिनसे मैं जन्म-जन्मांतरों से बिछुड़ा हुआ था ॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥
हे नानक ! मैं उस गुरु पर बलिहारी जाता हूँ,
ਜਿਸੁ ਭੇਟਤ ਗਤਿ ਭਈ ਹਮਾਰੀ ॥੪॥੫੬॥੧੨੫॥
जिनको मिलने मुझे मुक्ति मिल गई है ॥४॥५६॥१२५॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਤਾ ਕੀ ਸਰਨੀ ਪਰਹੁ ॥
हे भाई ! संतों की सभा में उसकी शरण में पड़ो।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਪਨਾ ਆਗੈ ਧਰਹੁ ॥੧॥
अपना मन एवं तन ईश्वर के समक्ष समर्पित कर दो ॥ १ ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਪੀਵਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
हे मेरे भाई ! अमृत रूपी नाम पान करो।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਭ ਤਪਤਿ ਬੁਝਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रभु की स्तुति एवं आराधना करने से मोह-माया की अग्नि पूर्णतया बुझ जाती है।॥ १॥ रहाउ॥
ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਜਨਮ ਮਰਣੁ ਨਿਵਾਰਹੁ ॥
अपना अभिमान त्याग कर अपने जन्म-मरण के आवागमन को समाप्त कर लो ।
ਹਰਿ ਕੇ ਦਾਸ ਕੇ ਚਰਣ ਨਮਸਕਾਰਹੁ ॥੨॥
ईश्वर के सेवक के चरणों पर प्रणाम करो ॥ २॥
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮਨਹਿ ਸਮਾਲੇ ॥
श्वास-श्वास से अपने मन में प्रभु स्मरण कर लो।
ਸੋ ਧਨੁ ਸੰਚਹੁ ਜੋ ਚਾਲੈ ਨਾਲੇ ॥੩॥
हे भाई ! वह नाम धन संचित करो जो तेरे साथ परलोक में जाएगा॥ ३ ॥
ਤਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤਿ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ॥
केवल वही व्यक्ति नाम धन को पाता है, जिसके मस्तक पर विधाता द्वारा भाग्यरेखाएँ विद्यमान होती हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੀ ਚਰਣੀ ਲਾਗੁ ॥੪॥੫੭॥੧੨੬॥
हे नानक ! तू उसके चरणों पर झुक ॥४॥५७॥१२६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਸੂਕੇ ਹਰੇ ਕੀਏ ਖਿਨ ਮਾਹੇ ॥
गुरु ने एक क्षण में आध्यात्मिक रूप से मृत लोगों को पुनर्जीवित कर दिया।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਸੰਚਿ ਜੀਵਾਏ ॥੧॥
उसकी अमृत रूपी दृष्टि उनको सींच कर पुनजीर्वित कर देती है॥ १॥
ਕਾਟੇ ਕਸਟ ਪੂਰੇ ਗੁਰਦੇਵ ॥
पूर्ण गुरदेव ने मेरे कष्ट दूर कर दिए हैं।
ਸੇਵਕ ਕਉ ਦੀਨੀ ਅਪੁਨੀ ਸੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अपने सेवक को वह अपनी सेवा प्रदान करता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਮਿਟਿ ਗਈ ਚਿੰਤ ਪੁਨੀ ਮਨ ਆਸਾ ॥
मेरी चिन्ता मिट गई है और मनोकामनाएँ पूर्ण हो गई हैं
ਕਰੀ ਦਇਆ ਸਤਿਗੁਰਿ ਗੁਣਤਾਸਾ ॥੨॥
जब से गुणों के भण्डार, सतगुरु ने अपनी दया की है ।॥ २॥
ਦੁਖ ਨਾਠੇ ਸੁਖ ਆਇ ਸਮਾਏ ॥
दुःख दूर हो गए हैं और सुख आकर उसका स्थान ले लेता है।
ਢੀਲ ਨ ਪਰੀ ਜਾ ਗੁਰਿ ਫੁਰਮਾਏ ॥੩॥
जब गुरु आज्ञा करते हैं, तो इसमें कोई देरी नहीं लगती ॥ ३॥
ਇਛ ਪੁਨੀ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਮਿਲੇ ॥
जिन पुरुषों को पूर्ण गुरु मिल जाते हैं,
ਨਾਨਕ ਤੇ ਜਨ ਸੁਫਲ ਫਲੇ ॥੪॥੫੮॥੧੨੭॥
हे नानक ! उनकी सभी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं और वे श्रेष्ठ फलों से प्रफुल्लित हो जाते हैं॥ ४ ॥ ५८ ॥ १२७ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौरी, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਤਾਪ ਗਏ ਪਾਈ ਪ੍ਰਭਿ ਸਾਂਤਿ ॥
प्रभु ने सुख-शांति प्रदान की है जिससे ताप दूर हो गया है।
ਸੀਤਲ ਭਏ ਕੀਨੀ ਪ੍ਰਭ ਦਾਤਿ ॥੧॥
जिन्हें प्रभु ने नाम की देन प्रदान की है, जिससे वे सभी शीतल हो गए हैं। १॥
ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਭਏ ਸੁਹੇਲੇ ॥
प्रभु की कृपा से हम सुखी हो गए हैं।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਬਿਛੁਰੇ ਮੇਲੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जन्म-जन्मांतरों के बिछुड़े हुओं को ईश्वर ने मिला दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਿਮਰਤ ਸਿਮਰਤ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਨਾਉ ॥
ईश्वर के नाम की स्तुति-आराधना करने से
ਸਗਲ ਰੋਗ ਕਾ ਬਿਨਸਿਆ ਥਾਉ ॥੨॥
समस्त रोगों का मूल कारण नष्ट हो गया है। २।
ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ਬੋਲੈ ਹਰਿ ਬਾਣੀ ॥
वह सहज शांति और संतुलन में वह हरि के दिव्य शब्दों का जाप करते रहते हैं।
ਆਠ ਪਹਰ ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥੩॥
हे प्राणी ! दिन के आठ प्रहर ही प्रभु का सिमरन करो।
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ॥
दुःख-दर्द एवं यमदूत उसके निकट नहीं आते
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜੋ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥੪॥੫੯॥੧੨੮॥
हे नानक ! जो व्यक्ति ईश्वर का यशोगान करता है ॥ ४॥ ५९॥ १२८॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਭਲੇ ਦਿਨਸ ਭਲੇ ਸੰਜੋਗ ॥
वह दिन बड़ा शुभ है और वह संयोग भी भला है,
ਜਿਤੁ ਭੇਟੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਨਿਰਜੋਗ ॥੧॥
जब मुझे निर्लिप्त पारब्रह्म मिला ॥ १॥
ਓਹ ਬੇਲਾ ਕਉ ਹਉ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥
उस समय पर मैं बलिहारी जाता हूँ,
ਜਿਤੁ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਜਪੈ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जब मेरा मन ईश्वर के नाम की आराधना करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਫਲ ਮੂਰਤੁ ਸਫਲ ਓਹ ਘਰੀ ॥
वह मुहूर्त सफल है और वह घड़ी भी सफल है,
ਜਿਤੁ ਰਸਨਾ ਉਚਰੈ ਹਰਿ ਹਰੀ ॥੨॥
जब मेरी रसना हरि-प्रभु का नाम उच्चारित करती है॥ २॥
ਸਫਲੁ ਓਹੁ ਮਾਥਾ ਸੰਤ ਨਮਸਕਾਰਸਿ ॥
वह मस्तक भाग्यवान है जो संतों के समक्ष नतमस्तक होता है।
ਚਰਣ ਪੁਨੀਤ ਚਲਹਿ ਹਰਿ ਮਾਰਗਿ ॥੩॥
वह चरण पवित्र हैं जो प्रभु-मार्ग का अनुसरण करते हैं।॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਲਾ ਮੇਰਾ ਕਰਮ ॥
हे नानक ! मेरा भाग्य भला है,
ਜਿਤੁ ਭੇਟੇ ਸਾਧੂ ਕੇ ਚਰਨ ॥੪॥੬੦॥੧੨੯॥
जिसके फलस्वरूप मैं संतों के चरणाश्रय लगा ॥ ४ ॥ ६० ॥ १२९॥