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ਚਰਨ ਠਾਕੁਰ ਕੈ ਮਾਰਗਿ ਧਾਵਉ ॥੧॥
चरणों से मैं ठाकुर के मार्ग का अनुसरण करता हूँ॥ १॥
ਭਲੋ ਸਮੋ ਸਿਮਰਨ ਕੀ ਬਰੀਆ ॥
जीवन का वह समय बड़ा शुभ है, जिसमें भगवान का सिमरन करने का अवसर मिलता है।
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਭੈ ਪਾਰਿ ਉਤਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भगवान का नाम-सिमरन करने से भयानक सागर से पार हुआ जा सकता है ॥१॥रहाउ॥
ਨੇਤ੍ਰ ਸੰਤਨ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਪੇਖੁ ॥
हे भाई ! अपने नेत्रों से संतों के दर्शन कर।
ਪ੍ਰਭ ਅਵਿਨਾਸੀ ਮਨ ਮਹਿ ਲੇਖੁ ॥੨॥
अविनाशी प्रभु को अपने हृदय में धारण कर ले॥ २॥
ਸੁਣਿ ਕੀਰਤਨੁ ਸਾਧ ਪਹਿ ਜਾਇ ॥
संतों के पास जाकर ईश्वर का भजन सुन
ਜਨਮ ਮਰਣ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸ ਮਿਟਾਇ ॥੩॥
और इस प्रकार तेरा जन्म-मरण का भय दूर हो जाएगा ॥ ३॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਠਾਕੁਰ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥
हे भाई ! ठाकुर जी के सुन्दर चरणों को अपने हृदय में बसाकर रख।
ਦੁਲਭ ਦੇਹ ਨਾਨਕ ਨਿਸਤਾਰਿ ॥੪॥੫੧॥੧੨੦॥
हे नानक ! इस तरह अपने अमूल्य मानव शरीर का कल्याण कर ले ॥४॥५१॥१२०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਜਾ ਕਉ ਅਪਨੀ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੈ ॥
जिस व्यक्ति पर ईश्वर अपनी कृपा धारण करता है,
ਸੋ ਜਨੁ ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਉਚਾਰੈ ॥੧॥
वह अपनी रसना से भगवान के नाम का जाप करता है॥ १॥
ਹਰਿ ਬਿਸਰਤ ਸਹਸਾ ਦੁਖੁ ਬਿਆਪੈ ॥
हरि को विस्मृत करके सन्देह एवं दुख प्राणी को लग जाते हैं।
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਭਰਮੁ ਭਉ ਭਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लेकिन नाम-सिमरन करने से भ्रम एवं भय भाग जाते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਸੁਣੈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਵੈ ॥
जो व्यक्ति ईश्वर का भजन सुनता है और ईश्वर का भजन गाता है,
ਤਿਸੁ ਜਨ ਦੂਖੁ ਨਿਕਟਿ ਨਹੀ ਆਵੈ ॥੨॥
उस व्यक्ति के निकट कोई भी मुसीबत नहीं आती ॥ २॥
ਹਰਿ ਕੀ ਟਹਲ ਕਰਤ ਜਨੁ ਸੋਹੈ ॥
ईश्वर का सेवक उसकी सेवा करता हुआ सुन्दर लगता है।
ਤਾ ਕਉ ਮਾਇਆ ਅਗਨਿ ਨ ਪੋਹੈ ॥੩॥
उसे माया की अग्नि स्पर्श नहीं करती ॥ ३ ॥
ਮਨਿ ਤਨਿ ਮੁਖਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦਇਆਲ ॥ ਨਾਨਕ ਤਜੀਅਲੇ ਅਵਰਿ ਜੰਜਾਲ ॥੪॥੫੨॥੧੨੧॥
हे नानक ! दया के घर ईश्वर का नाम जिस व्यक्ति के हृदय एवं मुख में वास कर जाता है,उस व्यक्ति ने दूसरे समस्त जंजाल त्याग दिए हैं॥ ४॥ ५२॥ १२१॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਛਾਡਿ ਸਿਆਨਪ ਬਹੁ ਚਤੁਰਾਈ ॥
हे भाई ! अपनी बुद्धिमता एवं अधिक चतुरता को त्याग कर
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਟੇਕ ਟਿਕਾਈ ॥੧॥
पूर्ण गुरु की शरण ले॥ १॥
ਦੁਖ ਬਿਨਸੇ ਸੁਖ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥
ऐसा व्यक्ति भगवान का गुणानुवाद करता हुआ सुखी हो जाता है और उसके तमाम दुख नाश हो जाते हैं,
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਆ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिस व्यक्ति की पूर्ण गुरु से भेंट हो जाती है, वह गुरु की कृपा से भगवान में ही सुरति लगाता है। ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ਗੁਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ॥
गुरु ने मुझे ईश्वर के नाम का मंत्र प्रदान किया है,
ਮਿਟੇ ਵਿਸੂਰੇ ਉਤਰੀ ਚਿੰਤ ॥੨॥
जिससे मेरी चिन्ताएँ मिट गई हैं और व्याकुलता दूर हो गई है॥ २॥
ਅਨਦ ਭਏ ਗੁਰ ਮਿਲਤ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ॥
कृपा के घर गुरु को मिलने से आनन्द प्राप्त हो गया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਾਟੇ ਜਮ ਜਾਲ ॥੩॥
अपनी कृपा धारण करके गुरु ने यमदूतों का फँदा काट दिया है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥
हे नानक ! मैंने पूर्ण गुरु को पा लिया है,
ਤਾ ਤੇ ਬਹੁਰਿ ਨ ਬਿਆਪੈ ਮਾਇਆ ॥੪॥੫੩॥੧੨੨॥
इसलिए माया मुझे पुनः पीड़ित नहीं करेगी॥ ४॥ ५३॥ १२२॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਰਾਖਿ ਲੀਆ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਆਪਿ ॥
पूर्ण गुरु ने स्वयं मेरी रक्षा की है।
ਮਨਮੁਖ ਕਉ ਲਾਗੋ ਸੰਤਾਪੁ ॥੧॥
लेकिन स्वेच्छाचारी पर मुसीबतों का पहाड़ उमड़ पड़ा है॥ १॥
ਗੁਰੂ ਗੁਰੂ ਜਪਿ ਮੀਤ ਹਮਾਰੇ ॥
हे मेरे मित्र ! गुरु को हमेशा स्मरण कर।
ਮੁਖ ਊਜਲ ਹੋਵਹਿ ਦਰਬਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रभु के दरबार में तेरा मुख उज्ज्वल होगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਹਿਰਦੈ ਵਸਾਇ ॥
हे मित्र ! तू गुरु के चरण अपने ह्रदय में बसा,
ਦੁਖ ਦੁਸਮਨ ਤੇਰੀ ਹਤੈ ਬਲਾਇ ॥੨॥
तेरा दुःख, शत्रु एवं आपदा नष्ट हो जाएँगे॥ २॥
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਤੇਰੈ ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ॥
गुरु का शब्द ही तेरा साथी एवं सहायक है।
ਦਇਆਲ ਭਏ ਸਗਲੇ ਜੀਅ ਭਾਈ ॥੩॥
हे भाई ! सभी लोग तुझ पर दयालु होंगे॥ ३॥
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਜਬ ਕਿਰਪਾ ਕਰੀ ॥
हे नानक ! जब पूर्ण गुरु ने अपनी कृपा-दृष्टि की,
ਭਨਤਿ ਨਾਨਕ ਮੇਰੀ ਪੂਰੀ ਪਰੀ ॥੪॥੫੪॥੧੨੩॥
तो मेरा जीवन परिपूर्ण हो गया ॥ ४॥ ५४॥ १२३॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਅਨਿਕ ਰਸਾ ਖਾਏ ਜੈਸੇ ਢੋਰ ॥
मनुष्य अधिकतर स्वादिष्ट पदार्थ पशु की भाँति सेवन करता है
ਮੋਹ ਕੀ ਜੇਵਰੀ ਬਾਧਿਓ ਚੋਰ ॥੧॥
और सांसारिक मोह की रस्सी से वह चोर की भाँति जकड़ा रहता है।॥ १॥
ਮਿਰਤਕ ਦੇਹ ਸਾਧਸੰਗ ਬਿਹੂਨਾ ॥
हे भाई ! जो व्यक्ति संतों की संगति से विहीन रहता है, उसका शरीर मृतक है।
ਆਵਤ ਜਾਤ ਜੋਨੀ ਦੁਖ ਖੀਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऐसा व्यक्ति योनियों में फंसकर आवागमन करता रहता है और दुख से नष्ट हो जाता है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਅਨਿਕ ਬਸਤ੍ਰ ਸੁੰਦਰ ਪਹਿਰਾਇਆ ॥
मनुष्य मोहवश विभिन्न प्रकार की सुन्दर पोशाकें धारण करता है,
ਜਿਉ ਡਰਨਾ ਖੇਤ ਮਾਹਿ ਡਰਾਇਆ ॥੨॥
परन्तु निर्धनों के लिए वह ऐसा होता है जैसे फसल में पशुओं को डराने के लिए बनावटी रक्षक खड़ा किया होता है॥ २॥
ਸਗਲ ਸਰੀਰ ਆਵਤ ਸਭ ਕਾਮ ॥
दूसरे पशुओं इत्यादि के शरीर काम आ जाते हैं।
ਨਿਹਫਲ ਮਾਨੁਖੁ ਜਪੈ ਨਹੀ ਨਾਮ ॥੩॥
लेकिन जो व्यक्ति भगवान के नाम का जाप नहीं करता, उसका दुनिया में आगमन निष्फल हो जाता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕਉ ਭਏ ਦਇਆਲਾ ॥
हे नानक ! भगवान जिस व्यक्ति पर दयालु हो जाता है,
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਭਜਹਿ ਗੋੁਪਾਲਾ ॥੪॥੫੫॥੧੨੪॥
वह संतों की संगति में शामिल होकर गोपाल का भजन करता रहता है॥ ४ ॥ ५५ ॥ १२४ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥